अंतरराष्ट्रीय
काहिरा, 16 अप्रैल । लीबिया के तट पर प्रवासियों की नौका पलटने से कम से कम 35 लोगों की मौत होने की आशंका है। संयुक्त राष्ट्र प्रवास एजेंसी ने शनिवार को यह जानकारी दी।
अंतरराष्ट्रीय प्रवास संगठन ने कहा कि दुर्घटना शुक्रवार को पश्चिमी लीबिया के सब्रत शहर के तट पर हुई, जहां से मुख्य रूप से अफ्रीकी प्रवासी जान को खतरे में डालकर भूमध्यसागर पार करते हैं।
एजेंसी ने कहा कि छह प्रवासियों के शव निकाले जा चुके हैं जबकि 29 अन्य लापता हैं और उनकी मौत होने की आशंका है। नौका पलटने का कारण अभी पता नहीं चल पाया है।(एपी)
स्पेस-एक्स के संस्थापक और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क की नज़र सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर टिक गई है. मस्क ट्विटर को खरीदने की खुलकर कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ट्विटर का बोर्ड उन्हें रोकने के लिए अपने अंतिम विकल्प तक आ गया है.
कंपनी के बोर्ड ने एलन मस्क के जबरन अधिग्रहण (हॉस्टाइल टेकओवर) की कोशिशों से कंपनी को बचाने के लिए 'पॉइज़न पिल' का तरीक़ा अपनाया है.
'पॉइज़न पिल' किसी कंपनी को जबरन अधिग्रहण से बचाने का एक तरीक़ा है. यह एक सीमित अवधि की शेयरधारक अधिकार योजना है जो किसी को कंपनी में 15 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी खरीदने से रोकती है.
इसमें कंपनी कुछ छूट के साथ दूसरों को कंपनी के अतिरिक्त शेयर खरीदने की अनुमति दे देती है. इससे अधिग्रहण करने की कोशिश करनेवाले के शेयरों की क़ीमत कम हो जाती है और अधिग्रहण मुश्किल हो जाता है. साथ ही कंपनी का अधिग्रहण करने की कीमत बढ़ जाती है.
ट्विटर बोर्ड ने अमेरिकी प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग को अपनी इस बचाव योजना के बारे में विस्तार से बता दिया है. एक बयान में कंपनी ने कहा है कि एलन मस्क के "ट्विटर के अधिग्रहण के अवांछित, गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव" के कारण इसकी ज़रूरत पड़ी.
किसी कंपनी के टेकओवर को जबरन तब माना जाता है जब कंपनी को उसके प्रबंधन की मर्ज़ी के बिना अधिग्रहित करने की कोशिश की जाए. ट्विटर के मामले में एक्ज़िटिव बोर्ड उसके प्रबंधन की भूमिका में है.
प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग के पूर्व वित्तीय अर्थशास्त्री जोश व्हाइट ने बीबीसी को बताया कि 'पॉइज़न पिल' किसी कंपनी को "जबरन अधिग्रहण से बचाने के लिए बचाव की आख़िरी कोशिश होती है. इसे परमाणु विकल्प की तरह देखा जाता है."
जोश व्हाइट कहते हैं कि कंपनी के बोर्ड ने ये साफ़ कर दिया है कि "उन्हें नहीं लगता कि कंपनी के लिए इतना मूल्य काफ़ी नहीं है."
एलन मस्क ने पहले ही ये स्पष्ट कर दिया है कि वो कंपनी के लिए इससे ऊंची क़ीमत पर बात नहीं करेंगे. इसके बाद बोर्ड ने 'पॉइज़न पिल' का तरीक़ा अपना लिया है.
हिस्सेदारी खरीदने से लेकर अधिग्रहण की कोशिश तक
एलन मस्क ने ट्विटर को लेकर पहला क़दम सोशल मीडिया पर एक वोटिंग करवाकर बढ़ाया था. उन्होंने ट्विटर पर लोगों से पूछा कि क्या वो इसमें एडिट बटन चाहते हैं?
वहीं, पिछले हफ़्ते एलन मस्क ने ट्विटर के सात करोड़ 35 लाख शेयर यानी 9.2 प्रतिशत की हिस्सेदारी ख़रीदने की जानकारी दी थी. इससे ट्विटर के शेयर में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई थी.
इसका मतलब ये है कि मस्क की संपत्ति भी बढ़ गई है और उनके पास ट्विटर के जो शेयर हैं उनकी क़ीमत अब 3 अरब डॉलर के बराबर पहुंच गई है.
मस्क के पास जितने शेयर हैं वो ट्विटर के संस्थापक जैक डोर्सी के शेयरों से चार गुना ज़्यादा है. डोर्सी ने पिछले साल नवंबर में ट्विटर का सीईओ पद छोड़ दिया था जिसके बाद ये ज़िम्मेदारी अब पराग अग्रवाल संभाल रहे हैं.
एलन मस्क के हिस्सेदारी खरीदने के बाद से ट्विटर और मस्क के बीच खींचतान चल रही है. ट्विटर ने एलन मस्क के बोर्ड में शामिल होने को लेकर भी संकेत दिए थे जिसकी एलन मस्क ने सार्वजनिक तौर पर पुष्टि नहीं की थी.
ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल ने मंगलवार को एक ट्वीट में कह दिया था, "हाल के हफ़्तों में एलन से जो बातें हुईं, उनसे हमें साफ़ पता चल गया कि वो हमारे बोर्ड का मान बढ़ाएंगे."
मस्क ने बाद में जवाब में लिखा, "मैं आने वाले महीनों में ट्विटर में बड़े सुधार करने के लिए पराग और ट्विटर के साथ काम करने को लेकर आशान्वित हूँ." हालांकि, मस्क ने बोर्ड में शामिल होने के बात स्वीकार नहीं की थी.
सऊदी प्रिंस से बहस
अब एलन मस्क साफ़ तौर पर कंपनी का अधिग्रहण करने का इरादा ज़ाहिर कर चुके हैं. इसके लिए ट्विटर के एक बड़े शेयर होल्डर सऊदी प्रिंस अलवलीद बिन तलाल से ट्विटर पर उनकी बहसबाजी भी हो गई है.
एलन मस्क ने गुरुवार को प्रिंस अलवलीद को एक बड़ा प्रस्ताव दिया था. उन्होंने सऊदी प्रिंस को ट्विटर खरीदने का प्रस्ताव दिया था जिसके लिए उन्होंने 41.39 अरब डॉलर (3.2 लाख करोड़ रुपये) नगद चुकाने की पेशकश की थी.
लेकिन, प्रिंस अलवलीद ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए ट्वीट किया, "मुझे नहीं लगता है कि एलन मस्क की ओर से दिया ऑफ़र ट्विटर (54.20 डॉलर) की विकास की संभावनाओं को देखते हुए इसके आंतरिक मूल्य के आसपास भी है. ट्विटर के लंबे समय से और सबसे बड़े शेयरधारकों में से एक होने के नाते मैं और किंगडम होल्डिंग कंपनी इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं."
अपने ऑफ़र में एलन मस्क ने कंपनी के एक शेयर का क़ीमत 54.20 डॉलर लगाई थी जिससे ट्विटर की कुल क़ीमत 43 अरब डॉलर बनती है. उनका कहना था कि इस सोशल मीडिया कंपनी में बहुत क्षमताएं और वो इसे खरीद सकते हैं.
लेकिन, प्रिंस अलवलीद के जवाब पर एलन मस्क भी चुप नहीं बैठे. उन्होंने शुक्रवार को ट्वीटर पर प्रिंस अलवलीद को टैग करते हुए सवाल किया, "दिलचस्प, सिर्फ़ दो सवाल, अगर मैं पूछ सकता हूं तो. ट्विटर का कितना हिस्सा किंगडम के पास है, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर? पत्रकारिता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर किंगडम के क्या विचार हैं."
एलन मस्क ने ट्विटर को भी अपने ऑफ़र में कहा था कि कंपनी को एक निजी कंपनी के रूप में बदलने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि अगर उनका सबसे अच्छा और अंतिम प्रस्ताव भी खारिज किया जाता है तो वो शेयरधारक के तौर पर अपनी स्थिति पर विचार करेंगे.
उसके बाद शुक्रवार को उन्होंने सोशल मीडिया पर एक और पोल चलाया जिसमें उन्होंने पूछा, "ट्विटर को 54.20 डॉलर पर लेना शेयरधारक पर निर्भर होना चाहिए, ना कि बोर्ड पर."
जोश व्हाइट का कहना है कि वह एलन मस्क की बातचीत की रणनीति से हैरान थे क्योंकि अगर उनका आख़िरी लक्ष्य कंपनी का अधिग्रहण करना है तो ये तरीक़ा सही नहीं है.
वो कहते हैं, "मुझे लगता था कि वो कंपनी के अधिग्रहण को लेकर वाकई गंभीर हैं. वो क़ीमत पर शुरुआत करेंगे और फिर बातचीत के लिए दरवाज़े खुले छोड़ देंगे."
ट्विटर के बोर्ड द्वारा लागू क गई 'पॉइज़न पिल' योजना अगले साल 14 अप्रैल को ख़त्म हो जाएगी.
मस्क के प्रस्ताव को लेकर ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल ने पहले कहा था कि कंपनी को इस प्रस्ताव से "बंधक नहीं बनाया जा रहा है."
एलन मस्क कह चुके हैं कि ट्विटर अपने मंच पर अभिव्यक्ति की आज़ादी को सीमित कर रहा है. उनका पहला मकसद ट्विटर पर अभिव्यक्ति की आज़ादी को बढ़ाना है.
ब्लूमबर्ग के अनुसार एलन मस्क को अमेरिकी इंवेस्टमेंट बैंक मॉर्गन स्टेनली से मदद मिल रही है, वहीं, दो बैंकों गोल्डमैन सैश और जेपी मॉर्गन ट्विटर की मदद कर रहे हैं.
अब देखना है कि ट्विटर का 'पॉइज़न पिल' तरीक़ा कितना काम करता है और क्या ये एलन मस्क को रोक पाता है. अब ये देखना भी दिलचस्प हो गया है कि शह और मात का खेल बन चुके इस मामले में कौन बाज़ी मारता है. (bbc.com)
वाशिंगटन, 15 अप्रैल। अमेरिकी रक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अमेरिका का मानना है कि बृहस्पतिवार को उत्तरी काला सागर में डूबा रूस का मिसाइल वाहक युद्धपोत यूक्रेन द्वारा दागे गए पोत-रोधी मिसाइल हमले का निशाना बना था और कम से कम एक मिसाइल पोत पर गिरा था। कीव सरकार ने भी युद्धपोत पर मिसाइल हमले का दावा किया है।
पेंटागन के अधिकारियों ने पहले कहा था कि वे यूक्रेन के दावे का सत्यापन नहीं कर सकते हैं, लेकिन उन्होंने इसे खारिज भी नहीं किया था।
अमेरिकी रक्षा विभाग के अधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर खुफिया जानकारी साझा की और कहा कि मोस्क्वा पर बुधवार को कम से कम एक, संभवत: दो मिसाइलें गिरी थीं, जिससे उसमें आग लगी।
अधिकारी ने इसके अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी नहीं दी। (एपी)
कीएव इलाक़े के पुलिस प्रमुख ने कहा है कि रूसी सेना के जाने के सप्ताह भर बाद राजधानी कीएव के आसपास के इलाक़ों से आम नागरिकों के 900 शव मिले हैं.
रूस ने कहा है कि उसने कीएव के बाहरी इलाक़े में मौजूद एंटी एयरक्राफ्ट और एंटी शिप मिसाइल बनाने वाली एक फ़ैक्ट्री को निशाना बनाया है.
इससे कुछ घंटों पहले रूस ने कहा था कि बुधवार को हुए एक धमाके के बाद उसका युद्धपोत मोस्कवा डूब गया है.
यूक्रेन का दावा है कि काले सागर में मौजूद रूस के इस युद्धपोत पर उसने मिसाइल हमले किए थे. हालांकि रूस का कहना है कि युद्धपोत में आग लग गई थी जिस कारण युद्धपोत डूब गया.
रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि अगर यूक्रेन ने रूसी इलाक़ों को निशाना बनाया तो कीएव पर हमले तेज़ किए जाएंगे.
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष के कारण क़रीब 50 लाख लोगों को बेघर होना पड़ा है.
यूक्रेनी अधिकारियों का कहना है कि राजधानी कीएव के बाहरी इलाक़ों से रूसी सेना के जाने के एक सप्ताह बाद भी उन्हें आम नागरिकों के शव मिल रहे हैं. कीएव पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रही रूसी सेना सप्ताह भर पहले यहां से यूक्रेन के पूर्वी हिस्से की तरफ बढ़ गई थी.
कीएव के पुलिस प्रमुख आंद्रे नेबितोव ने संवाददाताओं से बात करते हुए कहा, "ये दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन मुझे कहना पड़ रहा है कि हमें आम नागरिकों के 900 शव मिले हैं और हमने इन शवों को जांच के लिए फोरेंसिक एक्सपर्ट्स के पास भेज दिया है. इन सभी लोगों की मौत रूसी सैनिकों ने की है."
नेबितोव ने कहा कि 350 से अधिक शव बूचा शहर में मिले हैं. रूस पर आरोप हैं कि उसके सैनिकों ने यूक्रेन के इस शहर में युद्ध अपराध किए हैं. हालांकि रूस अब तक इन आरोपों से इनकार करता रहा है.
पुलिस प्रमुख का कहना है कि "बोरदयांका और माकारोव से अभी भी ध्वस्त इमारतों के मलबे को हटाने का काम जारी है और यहां मलबे के नीचे लोगों के शव दबे होंगे."
उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि मारे गए लोग आम नागरिक थे और उनका सेना से कोई नाता नहीं था.
बीबीसी स्वतंत्र रूप से इन आरोपों की पुष्टि नहीं करती है.
हालांकि बीबीसी संवाददाताओं ने कीएव के बाहरी इलाक़े में सड़कों के किनारे आम कपड़ों में कई शव देखे हैं और बूचा में मारे गए लोगों की पहचान से जुड़े दस्तावेज़ इकट्ठा किए हैं.(bbc.com)
यरुशलम में अल-अक़्सा मस्जिद कंपाउंड में इसराइली सुरक्षाबलों के फ़लस्तीनियों पर की गई कार्रवाई की सऊदी अरब ने निंदा की है.
सऊदी अरब विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया है जिसमें लिखा है, “नियमित हमलों की वृद्धि अल-अक़्सा मस्जिद की पवित्रता और इस्लामी राष्ट्र के दिलों पर हमला है.”
रमज़ान के पवित्र महीने में शुक्रवार को नमाज़ के लिए फ़लस्तीनी इकट्ठा हुए थे जिस दौरान इसराइली पुलिस और उनके बीच झड़पें शुरू हो गईं.
इसराइल का आरोप है कि कंपाउंड में फ़लस्तीनियों ने फ़लस्तीन और हमास के झंडों के अलावा पत्थर इकट्ठा कर रखे थे. वहीं फ़लस्तीनियों का कहना है कि उन पर नमाज़ के दौरान हमला किया गया था.
फ़लस्तीनी अधिकारियों ने कहा है कि इस झड़प में तक़रीबन 150 फ़लस्तीनी घायल हुए हैं.
जॉर्डन और यूएई ने भी की निंदा
मस्जिद में घुसकर पुलिस की कार्रवाई करने की जॉर्डन और यूएई ने भी निंदा की है.
सऊदी अरब ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग की है कि वो इसराइली सुरक्षाबलों को फ़लस्तीनियों, उनकी ज़मीन और उनके पवित्र स्थलों पर लगातार हमलों के लिए उसे जवाबदेह ठहराएं.
साथ ही सऊदी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि मध्य पूर्व में शांति के प्रयासों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है.
बीते साल रमज़ान महीने के दौरान ऐसी ही हिंसा हुई थी जिसके बाद हमास और इसराइल के बीच साल का सबसे लंबा संघर्ष शुरू हो गया था. 11 दिनों तक चले युद्ध के बाद मिस्र, जॉर्डन और अमेरिका की मध्यस्थता के बाद यह संघर्ष रुका था. (bbc.com)
पाकिस्तान में चल रही सियासी उथल-पुथल से पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पूर्व पत्नी जेमाइमा गोल्डस्मिथ परेशान हैं.
जेमाइमा ने ट्विटर पर बताया है कि उनके घर के बाहर प्रदर्शन किए जा रहे हैं, उनके बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है और सोशल मीडिया पर उन्हें यहूदी विरोधी बयानबाज़ी का शिकार बनाया जा रहा है.
जेमाइमा का कहना है कि उन्हें ऐसा लग रहा है कि वो 90 के दशक के लाहौर में पहुँच गई है.
इस बीच ऐसे प्रदर्शनों को लेकर पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर और जेमाइमा गोल्डस्मिथ के बीच बहस भी देखने को मिली.
दरअसल, जेमाइमा के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए हामिद मीर ने पीटीआई और पीएमएल (एन) दोनों को प्रदर्शन रोकने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि जिनके घर शीशे के होते हैं, उन्हें दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए.
मीर ने ट्विटर पर लिखा है, ''पीटीआई को लंदन में नवाज़ शरीफ़ के घर के बाहर प्रदर्शन को बंद करना चाहिए और पीएमएल (एन) को जेमाइमा गोल्डस्मिथ के घर के बाहर भी ऐसा नहीं करना चाहिए. जो काँच के घरों में रहते हैं, उनको दूसरों के घर पर पत्थर फेंकना बंद करना चाहिए.''
इसके जवाब में जेमाइमा का कहना था कि नवाज़ शरीफ़ और उनके घर के बाहर प्रदर्शन के बीच अंतर ये है कि उनका और उनके बच्चों का पाकिस्तान की राजनीति से कोई लेना देना नहीं है. जेमाइमा का कहना है कि उनके बच्चे तो सोशल मीडिया पर भी नहीं हैं. इसको रीट्वीट करते हुए हामिद मीर लिखते हैं कि नवाज़ शरीफ़ के घर में भी महिलाएं हैं जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन उन्हें रोज़ भद्दी टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है.
हामिद मीर का कहना है कि जेमाइमा गोल्डस्मिथ को कम से कम ऐसी भद्दी टिप्पणियों और महिलाओं के उत्पीड़न की निंदा करनी चाहिए. साथ ही हामिद मीर का दावा है कि जेमाइमा गोल्डस्मिथ के भाई पाकिस्तान की राजनीति में दख़ल देते हैं, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.
हामिद मीर जेमाइमा के तर्क पर सहमति जताते हुए ये भी लिखते हैं, ''आप सही हैं लेकिन ध्रुवीकरण के शिकार लोग इसे नहीं समझेंगे.''
हामिद मीर के इस ट्वीट के जवाब में जेमाइमा लिखती हैं कि अपने पूर्व पति या अपने भाई के किसी भी राजनीति कार्रवाई या बयानबाज़ी को लेकर वो ज़िम्मेदार नहीं हैं.
सोशल मीडिया पर जेमाइमा को मिल रही मिलीजुली प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया हमेशा की तरह इस मुद्दे पर बंटा हुआ है. कई लोग जेमाइमा गोल्डस्मिथ के समर्थन में ट्वीट कर रहे हैं और कह रहे हैं कि जेमाइमा के घर के बाहर ऐसे प्रदर्शनों का कोई औचित्य नहीं हैं और ऐसा नहीं करना चाहिए.
मेहर तरार ने लिखा है, ''जिस वक़्त नफ़रत से भरे ये लोग आपके घर के बाहर गंदा तमाशा कर रहे हैं पाकिस्तान आपके साथ खड़ा है. ये कुछ लोग और उनके मालिक पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. लाखों पाकिस्तानियों के मन में आपके लिए जो प्यार और सम्मान है, वही मायने रखता है.''
बता दें कि जेमाइमा गोल्डस्मिथ ब्रिटेन के एक समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखने वाले अरबपति कारोबारी की बेटी हैं. उन्होंने इमरान ख़ान से 1995 में शादी की थी. उनके दो बेटे भी हैं सुलेमान ख़ान और क़ासिम ख़ान. यह शादी नौ साल तक चली और साल 2004 में दोनों ने तलाक़ ले लिया.
जेमाइमा से शादी के कारण इमरान ख़ान को 'यहूदी एजेंट' भी कहा गया और उनकी शादी को 'एक साज़िश' बताया गया था. हालांकि, जेमाइमा से अलग होते हुए इमरान ख़ान ने कहा था, "मेरा घर और भविष्य पाकिस्तान में है जबकि जेमाइमा पाकिस्तान में रहने की बहुत कोशिश कर रही हैं. पर मेरे राजनीतिक जीवन ने उनका यहाँ रहना मुश्किल बना दिया है."
इमरान ख़ान को लेकर जेमाइमा गोल्डस्मिथ को पहले भी निशाना बनाया जा चुका है. कई मौकों पर इमरान ख़ान को घेरने के लिए पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों और उनके समर्थकों ने जेमाइमा गोल्डस्मिथ पर निशाना साधा है. पिछले साल नवाज़ शरीफ़ की लंदन में अपने नवासे जुनैद का पोलो मैच देखते हुए कुछ तस्वीरें सामने आई थीं. इस पर इमरान ख़ान ने शरीफ़ पर निशाना साधा था.
जवाब में मरियम नवाज़ ने इमरान ख़ान पर तीखा हमला किया और उनके बच्चों को लेकर तंज कसा. मरियम ने कहा, "कहता है, उसके पास पोलो के लिए पैसे कहां से आए हैं. तो मैं बच्चों तक नहीं जाना चाहती थी, लेकिन जैसी बात करोगे मुंहतोड़ जवाब मिलेगा. वो नवाज़ शरीफ़ का नवासा है गोल्डस्मिथ का नवासा नहीं है. वो यहूदियों की गोद में नहीं पल रहा है. किस मुंह से तुम नाम लेते हो?"
इसके बाद जेमाइमा गोल्डस्मिथ भी इस बहस में आ गईं और उन्होंने मरियम पर यहूदी विरोधी बयान देने का आरोप लगाया. (bbc.com)
कीव, 15 अप्रैल । यूक्रेन के पूर्वी शहर क्रामतोरस्क में बड़ा धमाका सुना गया जहां पर पिछले हफ्ते रेलवे स्टेशन पर मिसाइल से हमला किया गया था और उसमें 50 से अधिक लोगों की मौत हुई थी तथा दर्जनों अन्य घायल हुए थे।
शहर में मौजूद एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के पत्रकारों ने धमाके से पहले रॉकेट या मिसाइल की आवाज सुनी। इसके बाद शुक्रवार को दोपहर में सायरन की आवाजें आने लगीं। तत्काल यह स्पष्ट नहीं हो सका कि क्या नुकसान हुआ और कोई हताहत हुआ है या नहीं।
कीव,यूक्रेन उत्तर पूर्वी शहर खारकीव के नजदीक बोरोवाया गांव में आम नागरिकों को ले जा रही बस पर रूसी सैनिकों द्वारा कथित तौर पर गोलाबारी करने से सात लोगों की मौत हो गई है जबकि 27 अन्य घायल हुए हैं। यह दावा यूक्रेन के क्षेत्रीय अभियोजक कार्यालय ने शुक्रवार को स्थानीय न्यूज वेबसाइट सुसपिलने से बातचीत में किया।
दिमित्रो चुबेंको ने बताया कि यूक्रेन की कानून प्रवर्तन एजेंसियां हमले की परिस्थितियों का पता लगाने का प्रयास कर रही हैं। उन्होंने बताया कि जांचकर्ता बोरोवाया के करीब रूस नियंत्रित इलाके में आम लोगों को ढो रहे वाहनों के मार्ग और गंतव्य का भी पता लगा रहे हैं।
चुबेंको ने बताया कि यूक्रेनियाई अधिकारियों ने मामले में संदिग्ध ‘‘नियमों और युद्ध परंपरा का उल्लंघन’’करने के साथ-साथ पहले से नियोजित हत्या का आपराधिक मामला चलाने का विकल्प खुला रखा है।
हालांकि, इस दावे की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हो सकी है।
संयुक्त राष्ट्र के मानावाधिकार कार्यालय ने बताया है कि 24 फरवरी को रूस द्वारा यूक्रेन के खिलाफ शुरू की गई सैन्य कार्रवाई से लेकर 13 अप्रैल तक कम से कम 1,964 आम नागरिकों की मौत हुई है। कार्यालय का मानना है कि मृतकों की संख्या कहीं अधिक है क्योंकि कुछ क्षेत्रों से सूचना आने में देरी हो रही है और अन्य सूचनाएं सत्यापित होने तक लंबित हैं।
यूक्रेन के अधिकारियों का दावा है कि इस युद्ध में हजारों-हजारों लोग मारे गए हैं।(एपी)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पूर्व पत्नी रेहाम ख़ान ने ही उन पर तंज कसा है और कहा है कि इमरान ख़ान बॉलीवुड में ऑस्कर विनिंग परफॉर्मेंस दे सकते हैं. उनके इस बयान की पाकिस्तान के सोशल मीडिया पर काफ़ी चर्चा हो रही है.
रेहाम ख़ान पहले भी इमरान ख़ान को लेकर विवादित बयान देती रही हैं लेकिन इमरान ख़ान के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद उन्होंने इस पर दो बार चुटकी ली है.
रेहाम ख़ान इमरान ख़ान की दूसरी पत्नी हैं. इमरान ख़ान की पहली पत्नी जेमिमा गोल्डस्मिथ थीं. फिलहाल उनकी पत्नी बुशरा बीबी हैं.
रेहम ख़ान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें वो ये बता रही हैं कि इमरान ख़ान को अब करियर को आगे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए. इसमें वो बॉलीवुड में एक्टिंग करने से लेकर कॉमेडियन बनने तक के विकल्प बता रही हैं.
वीडियो में रेहाम ख़ान एक शख़्स के साथ बातचीत में कहती दिख रही हैं, "वो काफी भावुक हो गए और मैं समझती हूं कि भारत को चाहिए कि उनके लिए कोई जगह बनाए..."
इस पर उनसे पूछा गया कि भारत किस तरह से उनके लिए जगह बनाए. रेहाम ख़ान ने कहा, "बॉलीवुड में. मैं समझती हूं कि वो ऑस्कर विनिंग परफॉर्मेंस दे सकते हैं लेकिन आजकल हॉलीवुड बॉलीवुड को भी काफ़ी जगह दे रहा है."
इसके बाद रेहाम से पूछा गया कि इमरान ख़ान को भारतीय फ़िल्मों में हीरो की भूमिका देनी चाहिए या विलेन की. इस पर रेहाम ख़ान ने जवाब दिया, "अब ये तो उनकी मर्ज़ी है. वैसे आपको पता है वहां हीरो भी विलेन का रोल करते हैं और विलन ज़्यादा मशहूर हो जाते हैं. लेकिन, मेरा ख्याल है कॉमेडियन टैलेंट भी बहुत है. मुझे लगता है कि एक-दो कैबिनेट के सदस्य वहां टूर पर भी जा सकते हैं."
भारतीय टेलीविज़न पर आने वाले जानेमाने कॉमेडी सीरियल कपिल शर्मा शो में नवजोत सिंह सिद्धू की जगह की तरफ इशारा करते हुए रेहाम ने कहा, "अगर ऐसा नहीं हुआ तो कपिल शर्मा शो में पाजी की जगह तो खाली है. अब तो, शेरो-शायरी भी करना शुरू कर दिया है. कल ही एक शेर सुनाया था."
रेहाम ख़ान
इसी तरह ट्वीटर पर 'द पाक डेली' के संस्थापक और संपादक हमज़ा अज़हर सलाम ने ट्वीट करके पूछा था, "इमरान ख़ान को विकल्प के तौर पर कौन-सा करियर अपनाना चाहिए- क्रिकेटर कमेंटेटर, जिम ट्रेनर, टीवी/रेडियो होस्ट, मदरसा में इमाम."
क्या कह रहे लोग
रेहाम ख़ान के इस तंज पर लोगों ने भी प्रतिक्रिया दी है. कुछ लोग इस पर चुटकी ले रहे हैं तो कुछ रेहाम ख़ान की आलोचना कर रहे हैं.
एक ट्विटर यूज़र अजित कुमार चटर्जी ने लिखा, "ये एक से ज़्यादा पत्नी होने की समस्या है. अगर रेहाम ख़ान सिर्फ़ एक ही पत्नी होतीं तो वो इमरान ख़ान पर ऐसे कमेंट नहीं करतीं. ये जलन है या उन्हें पछतावा हो रहा है."
पी दास नाम के एक यूज़र ने लिखा, "पत्नियां अपने पति से नफ़रत करती हैं, ख़ासतौर पर जब जो उनसे अलग हो जाते हैं. इमरान ख़ान का एक से अधिक विवाह ग़लत है लेकिन जब वो सैन्य शासन के ख़िलाफ़ खड़े होते हैं, तो ये गलत नहीं है. इसे देशभक्ति कहते हैं."
मोहम्मद शाहबुद्दीन नाम के एक यूज़र ने लिखा, "आपको बॉलीवुड जाना चाहिए. आप वहां लोकप्रिय हो सकती हैं क्योंकि आप में उनके लिए प्यार है."
रेहाम ख़ान
एक अन्य यूज़र समीर कुमार पुजारी ने कमेंट किया, "नवजोत सिंह ख़ान और इमरान सिद्धू एक साझा उपक्रम शुरू कर सकते हैं."
मरान को 'पाकिस्तान गॉट टैलेंट' में जाना चाहिए या किसी गुरुद्वारे में सेवा करें."
सुरेंद्र सिंह नाम के यूज़र ने लिखा, "बुरे समय में तो परछाई भी साथ छोड़ जाती है. रेहाम तो तीन में से एक बीवी ही थीं. बेगम भूतपूर्व से अभूतपूर्व हो गईं."
वहीं सत्येंद्र राजपूत ने लिखा है, "भारत में सिद्धू ही भारी है इमरान ख़ान की ज़रूरत नहीं."
एक और यूज़र ने लिखा, "इमरान ख़ान बेहतरीन नेता हैं. भारत की बेहतरी के लिए उनके नेतृत्व का इस्तेमाल किया जा सकता है. करतारपुर कॉरिडोर दोनों देशों की मानवीय मानसिकता के कारण संभव हो पाया."
इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ पाकिस्तान की संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था जिसमें वो विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए. इसके बाद उन्हें पिछले शनिवार को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
अब पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के अध्यक्ष शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनाये गये हैं. (bbc.com)
एरिजोना (अमेरिका), 15 अप्रैल। एरिजोना के एक व्यक्ति के गैरेज में फ्रीजर में 183 पशुओं के अवशेष पाए जाने के बाद उसे गिरफ्तार कर, उसके खिलाफ पशु क्रूरता के आरोप लगाए गए हैं। प्रतीत होता है कि इनमें से कुछ पशुओं को जिंदा ही फ्रीजर में रख दिया गया था जिससे जमकर उनकी मौत हो गई थी। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
शेरिफ कार्यालय ने बृहस्पतिवार को एक बयान में कहा कि मोहवे काउंटी के अधिकारियों और पशु नियंत्रण अधिकारियों ने पशुओं के अवशेष को तीन अप्रैल को एक गैरेज फ्रीजर में पाया। इससे पहले एक महिला ने शिकायत की कि 43 वर्षीय माइकल पैट्रिक टरलैंड ने उन सांपों को वापस नहीं लौटाया था जिसे उसने प्रजनन के लिए आरोपी को सौंपा था।
गैरेज फ्रीजर सुदूरवर्ती एरिजोना के गोल्डन वैली में व्यक्ति के पूर्ववर्ती मकान में था। बयान में कहा गया है कि इन जानवरों में कुत्ते, कछुए, छिपकली, पक्षी, सांप, चूहे और खरगोश शामिल हैं। बयान के अनुसार, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि कई जानवर जिंदा जमे हुए थे।’’
बयान में कहा गया है कि घर के मालिक को कथित तौर पर टरलैंड और उसकी पत्नी द्वारा संपत्ति खाली करने के बाद सफाई करते समय जमे हुए जानवरों की का पता चला और फिर उसने उस महिला से संपर्क किया जिसने शेरिफ के कार्यालय को सूचित किया था।
कार्यालय ने कहा कि टरलैंड को बुधवार को उसके घर से गिरफ्तार किया गया था। बयान में कहा गया है, ‘‘पूछताछ करने पर टरलैंड ने आखिरकार कुछ जानवरों को जिंदा ही फ्रीजर में रखने की बात स्वीकार की।’’ (एपी)
-हारून रशीद
पाकिस्तान में पिछले एक हफ़्ते में तेज़ी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद शहबाज़ शरीफ़ देश के अगले प्रधानमंत्री चुन लिए गए हैं.
सोमवार को कई दलों की ज़बरदस्त लामबंदी के चलते वो इमरान ख़ान को पीएम पद से हटाने में कामयाब हुए. पाकिस्तान की संसद में हुए बहुमत परीक्षण के दौरान उन्होंने 174 वोट लाकर जीत दर्ज की.
इससे पहले रविवार तड़के अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान के बाद इमरान ख़ान को पीएम पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
शहबाज़ शरीफ़ के मुक़ाबले इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) ने शाह महमूद क़ुरैशी को अपना उम्मीदवार बनाया था.
हालांकि सोमवार को हुए मतदान से ठीक पहले उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया. उसके बाद पीटीआई ने मतदान के दौरान सदन की कार्रवाई का बहिष्कार किया.
पूर्ण कार्यकाल या जल्द चुनाव?
शहबाज़ शरीफ़ के पीएम बन जाने के बाद अब सवाल उठता है कि पाकिस्तान की नई सरकार कैसी होगी?
क्या उनकी सरकार मज़बूत साबित हो पाएगी और क्या वो नेशनल असेंबली के बचे हुए डेढ़ साल का कार्यकाल पूरा कर पाएगी? या चुनाव करवाने की सूरत यदि बनी तो क्या अच्छे से चुनाव हो पाएगा?
पाकिस्तान के प्रमुख विपक्षी नेता पीएमल (एन) के नेता शहबाज़ शरीफ़ (बाएं), पीपीपी के नेता पूर्व राष्ट्रपति आसिफ़ अली जरदारी, और जमात उलेमा ए इस्लाम-फ़ज़ल के अध्यक्ष फ़ज़ल-उर-रहमान
हालांकि इन सभी सवालों का संक्षिप्त जवाब तो यही है कि नई सरकार के लिए सत्ता कांटों की सेज होगी.
पाकिस्तान डेमोक्रेटिक एलायंस या पीडीए के नाम से बने नए सत्ताधारी गठबंधन की सबसे पहली और अहम चुनौती तो यही है कि वो नेशनल असेंबली का बचा हुए क़रीब डेढ़ साल का कार्यकाल पूरा कर लें.
ताज़ा राजनीतिक संकट से पहले, इमरान ख़ान सरकार ने योजना बनाई थी कि देश की आज़ादी के 75 साल पूरा होने के समय यानी अगस्त 2022 में देश में फिर से जनगणना कराई जाए, ताकि आने वाला चुनाव बेहतर तरीक़े से पूरा हो पाए.
लेकिन क्या यह संभव हो पाएगा? चुनाव सुधार और नए चुनावों की तैयारी भी नव-निर्वाचित सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी.
अपनी राजनीतिक भविष्यवाणियों के लिए पहचाने जाने वाले शेख़ रशीद ने इमरान ख़ान सरकार में गृह मंत्री की हैसियत से कुछ दिनों पहले कहा कि वो अगस्त-सितंबर में आम चुनाव होता हुए देख रहे हैं. वैसे उनकी भविष्यवाणियां अकसर ग़लत साबित हुई हैं.
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक इरफ़ान सिद्दीक़ी का कहना है कि नए सत्ताधारी मोर्चे ने अपनी पहली कामयाबी हासिल कर ली है और जो गठबंधन बना है, वो अगले 6-8 महीने में चुनाव सुधार कर नए चुनाव कराने के लिए ही बनाया गया है.
नई सरकार
पाकिस्तान के नव-निर्वाचित सत्ताधारी ख़ेमे में कई दल हैं. उसमें मुस्लिम लीग (नवाज़), पीपुल्स पार्टी, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ़) और मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) जैसी प्रमुख पार्टियां हैं.
इस मोर्चे की सबसे बड़ी चुनौती मौजूदा गठबंधन को बनाए रखना ही होगी. उससे पहले तो सरकार की पहली प्राथमिकता नई सरकार का गठन होगा.
प्रधानमंत्री और नेशनल असेंबली के स्पीकर के बारे में तो सोच विचार हो चुका है, लेकिन कैबिनेट में मंत्रियों और मंत्रालयों के बंटवारे से हमेशा कुछ ख़ुश और अक्सर लोग नाराज़ हो जाते हैं.
इस नव-निर्वाचित सरकार में अहम मंत्रालय किसे मिलेंगे और किसे कुछ नहीं मिलेगा, इसे लेकर उत्सुकता फ़िलहाल बनी हुई है. आख़िर सहयोगियों को कितने और कौन से मंत्रालयों से संतुष्ट किया जा सकेगा?
एक दल की सरकार के भीतर ही मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर समस्याएं पैदा हो जाती हैं. यहां तो कई दलों का गठबंधन है. ज़ाहिर है यहां समस्याओं की भरमार होने की आशंका है.
सूत्रों के मुताबिक़, पीएम और स्पीकर को छोड़ दें तो अभी संघ और पंजाब में पदों के लिए नामांकन से संबंधित मामले तय नहीं हुए हैं. उनके लिए पहला चरण पीएम और पंजाब के मुख्यमंत्री को हटाना था.
इस चरण के पूरा होने के बाद, बाक़ी पदों के लिए नामांकन पर विचार किया जाएगा.
लेकिन केंद्र में पिता और प्रांत में बेटे के उच्च पदों पर होने के कारण, मुस्लिम लीग (नवाज़) के विरोधी पहले से ही इस पार्टी की पारिवारिक राजनीतिक विरासत की आलोचना कर रहे हैं.
पीपुल्स पार्टी के नेता चौधरी मंज़ूर अहमद ने कहा है कि उनके लिए अगला चरण पॉवर शेयरिंग फॉर्मूला ही है, जो अभी तक तय नहीं हुआ है.
आर्थिक चुनौती
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक़, नई सरकार को राजनीतिक समस्याओं से कहीं ज़्यादा आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. आईएमएफ़ के साथ हुए समझौतों को बरक़रार रखना या बदलना, महंगाई पर क़ाबू पाना, प्रशासनिक मामलों में सुधार करना सरकार की बड़ी परीक्षा होगी.
आईएमएफ़ के साथ हुए समझौतों और आर्थिक नीतियों को लेकर नई सरकार को बड़े फ़ैसले लेने होंगे. इमरान सरकार ने जिस तरह से प्रशासनिक मामलों को चलाया, उसे सुधारने में भी समय लगेगा. अगर जल्द ही इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो इसकी ज़िम्मेदारी इन सभी दलों पर आएगी.
देश में बहुत से लोगों को अर्थव्यवस्था के चार्टर नामक एक समझौते के तहत देश के सभी राजनीतिक दलों को हल करना होगा.
संभावित प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी कह चुके हैं कि कोई भी राजनीतिक दल स्थिति को अकेले नहीं संभाल सकता है. इसलिए गठबंधन सरकार बनने से, जेयूआई सहित अन्य दल भी अपनी पूरी भूमिका निभा सकते हैं.
'घायल' इमरान ख़ान
इमरान ख़ान अतीत में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और मुस्लिम लीग (नवाज़) सरकारों के कट्टर विरोधी साबित हुए थे, धरने और रैलियां करके उन्होंने उनकी सरकारों के नाक में दम किया हुआ था.
अब प्रधानमंत्री पद छिन जाने के बाद, वो और अधिक घायल और घातक साबित हो सकते हैं. पिछले दिनों उन्होंने ख़ुद कहा भी था कि अगर वह दोबारा सड़कों पर उतरे तो और ज़्यादा ख़तरनाक होंगे.
ज़ाहिर तौर पर सरकार बदलने से पाकिस्तान में ज़्यादा राजनीतिक शांति आने की संभावना नहीं है. अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से एक दिन पहले ही इमरान ख़ान लोगों से शांतिपूर्ण विरोध का आह्वान कर चुके हैं. (bbc.com)
न्यूयॉर्क, 15 अप्रैल। एक रूसी सांसद और उसके दो सहयोगियों ने यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई सहित रूस की अन्य विदेश नीति एजेंडे के लिए अमेरिकी प्रशासन का समर्थन हासिल करने के उद्देश्य से गोपनीय दुष्प्रचार अभियान चलाया था। अमेरिका के न्याय विभाग के सार्वजनिक नहीं हुए एक अभियोग से यह जानकारी मिली है।
यह प्रयास उसी अभियान का हिस्सा था, जिसे अमेरिकी अधिकारियों ने रूसी सरकार द्वारा जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए उन्हें प्रभावित करने, अमेरिकी संस्थानों में गतिरोध पैदा करने और अमेरिकी व यूरोपीय सहयोगियों के बीच फूट डालने के रूसी सरकार के व्यापक उद्देश्य की पूर्ति का हथकंडा बताया था।
इस मामले में अभियोजकों का कहना है कि रूसी सांसद और उसके सहयोगियों ने अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों सहित अमेरिका एवं यूरोप के अधिकारियों को अपने पाले में करने की कोशिश की। उन्होंने बैठकों में हिस्सा लेने के लिए झूठे बहानों से अमेरिका में प्रवेश की कोशिश की।
अभियोग में रूसी सांसद एलेक्जेंडर बाबकोव (59) की पहचान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की पार्टी के एक उच्च पदस्थ अधिकारी के रूप में की गई है। वह वर्तमान में रूसी संसद के निचले सदन स्टेट डूमा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
वहीं, उनके दो सहयोगियों 52 वर्षीय एलेक्जेंडर निकोलाइविच वोरोबेव और 58 वर्षीय मिखाइल एलेक्सेयेविच प्लिस्युक को भी मैनहट्टन की संघीय अदालत में आरोपी बनाया गया है।
अधिकारियों ने कहा कि तीनों आरोपी रूस में रहते हैं और फिलहाल गिरफ्त से बाहर हैं। उन पर न्याय विभाग को सूचित किए बिना एक अमेरिकी नागरिक को रूस और रूसी अधिकारियों के लिए एक विदेशी एजेंट के रूप में कार्य करने की साजिश रचने, अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने और वीजा धोखाधड़ी की साजिश रचने का आरोप है। (एपी)
-अभिनव गोयल
ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना में यूरोपियन जियोसाइंसेस यूनियन की एक कॉन्फ्रेंस होने वाली है. इस कॉन्फ्रेंस को जनरल असेंबली कहते हैं. सालाना तौर पर होने वाली इस कॉन्फ्रेंस में जियोलॉजिकल साइंसेज, जल संसाधन, जलवायु परिवर्तन के विज्ञान जैसे क्षेत्रों से जुड़े हजारों रिसर्च स्कॉलर हिस्सा लेते हैं.
भारत में आईआईटी, एनआईटी, आईआईएससी जैसे जानेमाने इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले छात्र इस कॉन्फ्रेंस का बेसब्री से इंतजार करते हैं. हर साल करीब 400 भारतीय छात्र-छात्राएं इस कॉन्फ्रेंस में शामिल होते हैं लेकिन इस बार भारतीय छात्रों के इस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने पर ऑस्ट्रिया ने रोक लगा दी है. वजह है भारत में लगी वैक्सीन.
यूरोपीय संघ में शामिल ऑस्ट्रिया का कहना है कि कोविशील्ड लगवाने वाले किसी भी व्यक्ति को देश में दाखिल होने की इजाज़त तो है, लेकिन उसे ठहरने और किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं है. इसके पीछे ऑस्ट्रिया ने यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी का हवाला दिया है
यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने यूरोपीय संघ के देशों में कोरोना की सिर्फ पांच वैक्सीन को मान्यता दी है. इसमें ऑक्सफ़र्ड एस्ट्राज़ेनेका, फ़ाइजर बायोनटेक, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन और नोवावैक्स शामिल है. यानी जिन लोगों ये वैक्सीन लगी है, वो इन देशों में ठहर सकते हैं.
इस लिस्ट में भारत में बनी कोवैक्सीन और यहां उत्पादन की जाने वाली कोविशील्ड को जगह नहीं दी गई है.
वैक्सीन एक लेकिन नियम अलग-अलग
ग़ौर करने वाली बात ये है कि इस लिस्ट में ऑक्सफ़र्ड एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सजेवरिया शामिल है लेकिन कोविशील्ड को बाहर कर दिया गया है. जबकि कोविशील्ड वैक्सीन भी ब्रिटेन-स्वीडन की फार्मा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से बनी है.
फ़र्क सिर्फ इतना है कि इसका उत्पादन पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट करता है. यानी वैक्सीन एक लेकिन नियम अलग-अलग. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि भारत के साथ वैक्सीन को लेकर भेदभाव क्यों किया जा रहा है जबकि कोविशील्ड को डब्लयूएचओ से मान्यता मिली हुई है.
भारत में नौ कोरोना वैक्सीन को मंजूरी दी गई है. देश में टीकाकरण के लिए इस समय केवल तीन वैक्सीन का ही उपयोग किया जा रहा है. इसमें कोविशील्ड, भारतीय फर्म भारत बायोटेक की बनाई कोवैक्सीन और रूस की स्पुतनिक-वी शामिल हैं. भारत में अब तक 85 प्रतिशत से अधिक लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन लगाई गई है. इसका मतलब है कि भारत के लोग ऑस्ट्रिया में दाखिल तो हो सकते हैं लेकिन वहां हो रहे किसी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले सकते.
ये शर्तें ना सिर्फ छात्रों बल्कि उन भारतीयों पर भी लागू होती हैं जिनके परिवार ऑस्ट्रिया में रहते हैं. ऐसे परिवार भी भारतीय वैक्सीन के चलते एकदूसरे से नहीं मिल सकते.
प्रियांशी देश बेंगलुरु के जानेमाने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के सेंटर फ़ॉर एटमॉस्फे़रिक एंड ओशिएन साइंसेज से पीएचडी कर रही हैं. वो मॉनसून पर रिसर्च कर रही हैं.
जनवरी महीने में प्रियांशी ने यूरोपियन जियोसाइंसेस यूनियन की कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए आवेदन दिया. आवेदन स्वीकार होने के बाद प्रियांशी 23 से 27 मई को होने वाली इस कॉन्फ्रेंस की तैयारियों में जुट गईं. इसके लिए उन्होंने क़रीब 25 हजार रुपये का भुगतान भी किया लेकिन अब उन्हें बताया गया कि वे इस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा नहीं ले सकतीं. कॉन्फ्रेंस में रजिस्ट्रेशन की आख़िरी तारीख 14 अप्रैल है.
बीबीसी से बातचीत में प्रियांशी ने बताया, "मेरी पीएचडी क़रीब-क़रीब पूरी हो गई है. पीएचडी के बाद पोस्टडॉक करने के लिए मुझे विदेश जाना है जिसके लिए नेटवर्किंग की ज़रूरत पड़ती है. ये कॉन्फ्रेंस हमारे लिए बहुत मायने रखती है. इस कॉन्फ्रेंस की मदद से हम लोग अपना रिसर्च दुनियाभर के सामने रखते हैं, लोगों से मिलते हैं जिससे हमें आगे एडमिशन मिलने में सहायता मिलती है."
यूरोपियन जियोसाइंसेस यूनियन की वेबसाइट पर प्रियांशी ने जब रजिस्ट्रेशन किया था तब ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई थी कि ऐसे लोगों को आस्ट्रिया में नहीं रहने दिया जाएगा जिन्होंने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई है. प्रियांशी का कहना है कि 7 अप्रैल को उन्हें इस बारे में जानकारी दी, जो ग़लत है.
WHO की मंजूरी के बाद भी एंट्री नहीं
ना सिर्फ प्रियांशी, शुभम गोस्वामी ने भी इस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने की सभी तैयारियां पूरी कर ली थी. शुभम गोस्वामी बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस में डिपार्टमेंट ऑफ़ सिविल इंजीनियरिंग के छात्र हैं. उन्हें इस कॉन्फ्रेंस में ग्राउंड वॉटर रिचार्ज पर एक पेपर प्रेजेंट करना था जिसे अब वो नहीं कर पाएंगे.
शुभम गोस्वामी का कहना है, "जब ऑक्सफ़र्ड एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सजेवरिया वैक्सीन को मंजूरी मिली हुई है तो फिर उसी कंपनी की कोविशील्ड के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है. डब्लयूएचओ ने भी कोविशील्ड को मान्यता दी हुई है. यूरोपियन यूनियन के कई देशों ने कोविशील्ड को मंजूरी दी हुई है. फ्रांस और हंगरी जैसे देशों से हमारे सीनियर लौटे हैं लेकिन ऑस्ट्रिया ने हमारी सालों की तैयारी को अधर में लटका दिया है."
भारतीय छात्रों ने कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए भारत सरकार से भी गुहार लगाई है. इससे पहले भारत सरकार की दखल के बाद ही कोवैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिली थी.
यूरोपियन जियोसाइंसेस का क्या कहना है?
कॉन्फ्रेंस में कोविशील्ड वैक्सीन के चलते एंट्री नहीं मिलने पर आईआईटी खड़गपुर की एक छात्रा ने यूरोपियन जियोसाइंसेस यूनियन को मेल लिखा. ये छात्रा आईआईटी खड़गपुर से पीएचडी कर रही हैं.
जवाब में यूरोपियन जियोसाइंसेस यूनियन का कहना है, "ये एक बड़ा कार्यक्रम है. हमारे लिए ऑस्ट्रिया अथॉरिटी के कोविड नियमों का पालन करना अनिवार्य है. हम अपने स्तर पर इसमें बदलाव नहीं कर सकते. आपने कोविशील्ड वैक्सीन की डबल डोज ली है. अगर आप कोविशील्ड की बूस्टर डोज भी ले लेते हैं तब भी आपको कॉन्फ्रेंस में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. हम रजिस्ट्रेशन में खर्च हुए पैसे वापस लौटाने के लिए तैयार हैं."
हालांकि छात्रा का कहना है, "भारत में ऑक्सफ़र्ड एस्ट्राज़ेनेका, फ़्इजर, मॉडर्ना जैसी वैक्सीन लगती ही नहीं तो फिर हम कहां से लगवाएंगे? इस तरह के नियमों से भारतीय छात्र परेशान हो रहे हैं."
भारतीय छात्रों को आर्थिक मोर्चे पर चोट
पीएचडी कर रहे अपने हर छात्र को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस 2 लाख रुपये का विशेष फंड देता है. इस फंड की मदद से छात्र विदेश में ज्यादा से ज्यादा तीन कॉन्फ्रेंस में शामिल हो सकते है. इस तरह का फंड दूसरे इंस्टीट्यूट भी अपने छात्रों को देते हैं. ऑस्ट्रिया में होने वाली यूरोपियन जियोसाइंसेस यूनियन के लिए कई छात्रों ने आवेदन स्वीकार होने के बाद फ्लाइट की टिकट तक बुक करवा ली थी लेकिन अब वैक्सीन के चलते उन्हें टिकट को कैंसिल करवाना पड़ रहा है.
शुभम गोस्वामी का कहना है, "छात्रों का काफी पैसा इसमें बर्बाद हो गया है. अगले साल अमेरिका में होने वाली कॉन्फ्रेंस में हम कैसे हिस्सा लेंगे इस पर भी सवाल खड़े हो गए हैं."
परेशान भारतीय छात्रों ने ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना के मेयर से भी अपील की है कि उन्हें कोविशील्ड वैक्सीन के चलते कॉन्फ्रेंस में आने से ना रोका जाए. मेयर ने फेडरल मिनिस्ट्री और विएना कन्वेंशन ब्यूरो से बात करने की बात कही है. (bbc.com)
रूस के रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि बुधवार को हुए एक विस्फोट में क्षतिग्रस्त हुआ उसका युद्धपोत 'मोस्कवा' डूब गया है.
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, काला सागर में रूसी बेड़े के प्रमुख जंगी जहाज 'मोस्कवा' को नुक़सान पहुंचने के बाद खींचकर बंदरगाह ले जाया जा रहा था, लेकिन समुद्री उफान के चलते यह डूब गया.
510 चालक दल वाला ये मिसाइल क्रूज़र रूस की सैन्य शक्ति का अहम प्रतीक था. यूक्रेन के ख़िलाफ़ समुद्र के रास्ते हमले का नेतृत्व यही युद्धपोत नेतृत्व कर रहा था.
यूक्रेन ने दावा किया कि उसकी मिसाइलों ने इस युद्धपोत पर अपनी दो 'नेप्च्यून' मिसाइलों से हमला किया था. हालांकि रूस ने ऐसे किसी हमले की जानकारी नहीं दी. उसने केवल इतना कहा है कि आग लगने के बाद ये जहाज डूब गया.
रूस के अनुसार, आग लगने के चलते इस जंगी जहाज पर रखे गोला-बारूदों में विस्फोट हो गया था. उसने यह भी बताया है कि मोस्कवा के पूरे चालक दल को विस्फोट होने के बाद वहां से निकाला गया. चालक दल को काला सागर में ही मौजूद अन्य रूसी जहाजों में ले जाया गया. रूस ने इससे ज़्यादा और कोई जानकारी नहीं दी है.
रूस-यूक्रेन संघर्ष को लगभग दो महीने हो चुके हैं. इस दौरान यूक्रेन लगातार दावा करता रहा है कि उसने रूस के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया है. लेकिन इस युद्धपोत का दुर्घटनाग्रस्त होना इस युद्ध की बहुत बड़ी ख़बर है.
रूस के लिए ये एक बहुत बड़ा झटका है. सैन्य-स्तर पर तो यह बड़ी क्षति है ही, मनोबल के लिहाज़ से ये बहुत बड़ा झटका है.
रूस के सरकारी मीडिया ने पहले बताया था कि यह जंगी जहाज धमाके के बाद तैर रहा था. हालांकि गुरुवार देर रात उसने बताया कि जहाज़ डूब गया है.
सरकारी न्यूज़ एजेंसी 'तास' ने रूस के रक्षा मंत्रालय के हवाले से कहा, "बंदरगाह तक ले जाने के दौरान इस जहाज ने अपना संतुलन खो दिया. समुद्र के उफान के बीच यह डूब गया."
रूस के रक्षा मंत्रालय ने इससे पहले एक बयान जारी करके कहा था कि यह युद्धपोत बहुत बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ है. हालांकि बयान में यह भी स्पष्ट किया गया कि पूरे चालक दल को सुरक्षित निकाल लिया गया है.
गुरुवार दोपहर को रूस के रक्षा मंत्रालय की ओर से बयान जारी करते हुए कहा गया कि युद्धपोत पर विस्फ़ोट से भड़की आग पर काबू कर लिया गया है और इसे वापस बंदरगाह ले जाया जाएगा.
मॉस्को की ओर से जारी बयान में कहा गया कि युद्धपोत पर हुए विस्फ़ोट के पीछे कोई मिसाइल हमला वजह नहीं थी. रूस के अनुसार, इसके पीछे 'आग' हो सकती है. हालांकि यह आग कैसे लगी, वो स्पष्ट नहीं है.
लेकिन यूक्रेन का दावा है कि उसके मिसाइल हमलों की ही वजह से रूस का युद्धपोत बर्बाद हुआ. यूक्रेनी सैन्य अधिकारियों ने बताया कि मोस्कवा पर उन्होंने यूक्रेन में ही बने दो 'नेप्च्यून' मिसाइलों से हमला किया. 2014 में क्राइमिया पर रूस के क़ब्ज़े के बाद ये मिसाइल तैयार की गई थी.
एक फ़ेसबुक पोस्ट में यूक्रेन के अधिकारियों ने कहा है कि युद्धपोत पर हो रहे विस्फ़ोट और ख़राब मौसम के कारण युद्धपोत के चालक दल के सदस्यों को वहां से निकालने में काफ़ी मुश्किलें हुई.
हालांकि बीबीसी यूक्रेन के दावों की पुष्टि नहीं करता.
रूस ने यूक्रेन पर 24 फरवरी को जब हमला किया, तो उसी दिन मोस्कवा चर्चा में आ गया था. उसने काला सागर स्थित 'स्नेक' द्वीप की रक्षा में लगे यूक्रेनी सैनिकों के छोटे से दल को सरेंडर करने को बोला था. हालांकि उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था.
यह युद्धपोत मूलत: सोवियत संघ के जमाने में बना और इसने अस्सी के दशक में अपने मिशन की शुरुआत की थी. यह साल 2000 से ही काले सागर में रूस का प्रतिनिधित्व कर रहा है.
2014 में क्राइमिया को कब्ज़े में लेने के बाद से ही काले सागर में रूसी सेना का दबदबा रहा है. काले सागर में रूस के नौसेना बेड़े हमेशा ही प्रभावी रहे हैं.
मौजूदा संघर्ष के दौरान भी काले सागर में मौजूद इस बेड़े से यूक्रेन में कहीं भी मिसाइल दागी जा सकती है. इसके साथ ही मारियुपोल को अपने क़ब्ज़े में लेने के प्रयासों में भी इन नौसेना बेड़ों का काफी महत्व रहा है.
यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में मोस्कवा को यूक्रेन के दक्षिणी शहर 'मायकोलाइव' के पास तैनात किया गया था. मालूम हो कि इस शहर में रूस ने हाल में भारी बमबारी की है.
रूस ने इस युद्धपोत को इससे पहले सीरिया के संघर्ष में तैनात किया था. वहां इसने सीरिया में मौजूद रूसी सेना को नौसैनिक सुरक्षा प्रदान की थी.
दावा किया जाता है कि इस युद्धपोत पर कथित तौर पर 16 वल्कन एंटी-शिप मिसाइलों के अलावा कई एंटी-सबमरीन और माइन-टॉरपीडो जैसे हथियार भी मौजूद थे.
ये भी कहा जा रहा है कि यदि इस युद्धपोत पर यूक्रेन के हमले की पुष्टि हो सकी तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुश्मन के हमले के बाद डूबने वाला यह सबसे बड़ा जंगी जहाज होगा. इस युद्धपोत का वज़न 12,490 टन बताया जाता है.
मालूम हो कि यूक्रेन पर हमले के बाद रूस ने अपना यह दूसरा बड़ा जहाज खोया है. इससे पहले मार्च में यूक्रेन के हमले से 'सेराटोव' लैंडिंग जहाज बर्दियांस्क के बंदरगाह में बर्बाद हो गया था.
नेप्च्यून मिसाइलों की ख़ासियत
यूक्रेन का दावा है कि उसके दो नेप्च्यून मिसाइलों ने रूस के प्रमुख युद्धपोत को निशाना बनाया है.
साल 2014 में क्राइमिया पर क़ब्ज़ा करने के बाद काले सागर में रूस के बढ़ते नौसैनिक ख़तरे के जवाब में कीएव के सैन्य इंजीनियरों ने इस मिसाइल सिस्टम को तैयार किया था.
कीएव पोस्ट के अनुसार, पिछले साल के मार्च में यूक्रेन की नौसेना को 300 किमी रेंज पर निशाना लगाने वाली नेप्च्यून मिसाइलों की पहली खेप मिली थी.
रूस के हमले के बाद यूक्रेन को पश्चिमी देशों से पर्याप्त सैन्य मदद और हथियार मिल रही है. इस सहायता में 10 करोड़ डॉलर के एंटी-एयरक्राफ़्ट और एंटी टैंक मिसाइलें भी शामिल हैं. ब्रिटेन ने पिछले सप्ताह ही घोषणा की थी वो ये सारी सहायता भेज रहा है.
स्नेक आईलैंड
रूस के यूक्रेन पर हमला करते ही मोस्कवा चर्चा में आ गया था, तब उसने काला सागर स्थित स्नेक द्वीप की रक्षा में तैनात यूक्रेन के सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए कहा. लेकिन यूक्रेन के सैनिकों ने आत्मसमर्पण करने से मना कर दिया था.
उसके बाद बताया गया था कि इस युद्धपोत ने उन सैनिकों को मार डाला. हालांकि सैनिकों को बंदी बना लिया गया था. बाद में उन सैनिकों को मार्च के अंत में क़ैदियों की अदला-बदली होने पर रिहा कर दिया गया था.
यूक्रेन ने उन सैनिकों के कमांडर को सम्मानित भी किया था. कमांडर और उनके सैनिकों की बहादुरी के क़िस्सों ने शायद यूक्रेन के लोगों और सैनिकों का मनोबल बढ़ाने में मदद की हो.
वैसे वो घटना कितनी अहम थी, उसे ऐसे समझा जा सकता है कि यूक्रेन की डाक सेवा ने उस घटना की याद में ख़ास डाक टिकट भी जारी किया. (bbc.com)
जोहानिसबर्ग, 15 अप्रैल। दक्षिण अफ्रीका में डरबन शहर और पूर्वी क्वाजुलु-नेटल प्रांत में भारी बारिश और बाढ़ में कम से कम 341 लोगों की मौत हुई है। आने वाले दिनों में तूफान के साथ बारिश जारी रहने का पूर्वानुमान है।
अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को बताया कि मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका है क्योंकि कई परिवार लापता हैं।
लगातार हो रही बारिश के कारण प्रांत में त्रासदी की स्थिति है, मकान ढह रहे हैं, कई इमारतें भी क्षतिग्रस्त हुई हैं और कई महत्वपूर्ण सड़कें बह गयी हैं।
इथेक्विनी के मेयर मैक्योलोसी कुंडा ने बृहस्पतिवार को बताया कि डरबन और आसपास के इथेक्विनी मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में करीब 5.2 करोड़ डॉलर के अनुसान का अनुमान है।
कम से कम 120 स्कूलों में बाढ़ का पानी घुस गया है जिससे 2.6 करोड़ डॉलर से ज्यादा का नुकसान होने का अनुमान है और इन कारणों से प्रशासन ने प्रांत में स्कूलों को अस्थाई रूप से बंद कर दिया है।
शिक्षा मंत्री एंजी मोशेगा ने बताया कि बाढ़ में विभिन्न स्कूलों के कम से कम 18 छात्र और एक शिक्षक की मौत हुई है।
उन्होंने आज एक बयान में कहा, ‘‘यह त्रासदी है और इससे भयंकर नुकसान हुआ है। चिंता की बात यह है कि बारिश अभी जारी रहने और पहले से प्रभावित क्षेत्रों की स्थिति और बुरी होने की आशंका है।’’
दक्षिण अफ्रीका की मीडिया में आयी खबरों के अनुसार, प्रशासनिक मदद की कमी को लेकर डरबन के रिजर्ववायर हिल्स में प्रदर्शन कर रहे लोगों को हटाने के लिए पुलिस ने ‘स्टन ग्रेनेड’ का इस्तेमाल किया।
राहत एवं कार्यों में सहायता के लिए ‘साऊथ अफ्रीकन नेशनल डिफेंस फोर्स’ को तैनात किया गया है। (एपी)
पोमफ्रेट (अमेरिका), 15 अप्रैल। अमेरिका में कोबरा और ब्लैक माम्बा समेत 100 से अधिक सांप पालने वाले शख्स की सांप के काटने से मौत हो गयी। मैरीलैंड के अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
एक चिकित्सा पर्यवेक्षक के कार्यालय ने स्थानीय समाचार संगठनों को बुधवार को बताया कि इस व्यक्ति की ‘‘सांप के जहर’’ से मौत हुई और उसकी मौत दुर्घटनावश हुई । 49 वर्षीय व्यक्ति जनवरी में चार्ल्स काउंटी में अपने घर में मृत पाया गया था।
प्राधिकारियों ने बताया कि घटना के वक्त घर के अंदर 124 सांप मौजूद थे। (एपी)
महज दो करोड़ 20 लाख की आबादी वाला श्रीलंका इन दिनों भीषण संकट का सामना कर रहा है.
माना जा रहा है कि श्रीलंका अपने सबसे ख़राब आर्थिक दौर से गुजर रहा है. खाने-पीने की चीजों के अलावा पेट्रोलियम और गैस की क़ीमत लगातार बढ़ रही है.
पिछले कई महीनों से देश में महंगाई दर दहाई अंकों में हैं. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने के बाद श्रीलंका का संकट कहीं ज़्यादा गहराया है.
देश में 16-16 घंटों तक बिजली की कटौती हो रही है. एटीएम खाली पड़े हुए हैं और पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं.
श्रीलंका पेट्रोल, डीजल गैस से लेकर चीनी तक,अधिकतर चीज़ें आय़ात करता है और यह सब फ़िलहाल बाधित है. (bbc.com)
संयुक्त अरब अमीरात में एक इफ़्तार पार्टी को लेकर विवाद छिड़ गया है.
दरअसल, इफ़्तार की इस दावत में छह अलग-अलग धर्म के लोगों ने हिस्सा लिया था जिनमें सिख, बोहरा, हिंदू, बौद्ध, यहूदी और इजिप्शियन कॉप्टिक चर्च से जुड़े ईसाई शामिल हुए थे और इसका आयोजन देश के इस्लामी मामलों के महकमे ने किया था.
कुछ लोग इस पहल का स्वागत कर रहे हैं तो कुछ ने इसे खारिज़ किया है.
समर्थकों का कहना है कि इससे नस्लवाद कम होगा और सहिष्णुता को बढ़ावा मिलेगा जबकि कुछ लोग इसे अमीराती समाज की क़ीमत पर इसराइल के साथ रिश्ते मज़बूत करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं.
मुल्क के इस्लामिक अफ़ेयर्स एंड चैरिटेबल एक्टिविटिज़ डिपार्टमेंट के महानिदेशक डॉक्टर हमाद अल शैबानी ने ज़ोर देकर कहा कि किसी अरब देश में इंसानियत के नारे को बुलंद करने के लिए पहली बार ऐसी सरकारी पहल की गई है.
अल शैबानी ने बताया कि रमज़ान के दूसरे रविवार को हर साल दुबई इफ़्तार का आयोजन किया जाएगा.
बीबीसी अरबी सेवा की रिपोर्ट के अनुसार, 'दुबई इफ़्तार' में यहूदी धर्म को शामिल करने पर आलोचकों का कहना है कि ये इसराइल के साथ संबंध सामान्य करने की कोशिश है. ये अमीराती समाज में इसराइलियों की घुसपैठ है.
संयुक्त अरब अमीरात हुकूमत की नीतियों का विरोध करने वाले अहमद अल शैबा ने बीबीसी अरबी सेवा से कहा कि अमरीती लोग सह-अस्तित्व और सहिष्णुता के बड़े समर्थक हैं लेकिन अब अमीराती लोगों को इसके लिए मजबूर किया जा रहा है.
दुबई रिसर्च सेंटर में वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. रशा अल-जुंडी ने इस बात की पुष्टि करते हुए बीबीसी को बताया कि सहिष्णुता का जो रास्ता संयुक्त अरब अमीरात इख़्तियार कर रहा है वो इन रब्बी समेत इन अलग-अलग धर्मों के लोगों की मेज़बानी से शुरू नहीं हुआ, बल्कि देश में यह बहुत पहले से है."
इफ़्तार पार्टी को लेकर विवाद सिर्फ़ राजनीतिक गलियारों तक ही सीमित नहीं रह गया है. सोशल मीडिया पर भी इसे लेकर काफी बहस हो रही है.
माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर बहुत से यूज़र्स ने इस इफ़्तार पार्टी को ख़ारिज करते हुए अपनी टिप्पणी दी है.
द बॉयकॉट नाम के एक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है कि - 'दुबई में इस्लामिक अफ़ेयर्स डिपार्टमेंट तक भी नॉर्मलाइज़ेशन पहुंच चुका है.'
अमीरात 71 वेबसाइट ने दुबई में यहूदी समुदाय के प्रतिनिधि इसरायली रब्बी लेवी डचमैन के इफ़्तार पार्टी में शामिल होने को लेकर आलोचना की है. (bbc.com)
न्यूयॉर्क, 14 अप्रैल। फाइजर कंपनी ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह 5 से 11 साल के स्वस्थ बच्चों को कोविड-19 रोधी टीके की बूस्टर खुराक दिये जाने के पक्ष में है।
अमेरिकी स्वास्थ्य अधिकारी पहले से ही 12 वर्ष और उससे अधिक उम्र के सभी लोगों से कोरोना वायरस के नये-नये स्वरूपों के खिलाफ सर्वोत्तम सुरक्षा के लिए टीके की एक बूस्टर खुराक प्राप्त करने का आग्रह कर रहे हैं। उन्होंने हाल में 50 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों को दूसरी बूस्टर खुराक का विकल्प दिया है।
अब फाइजर ने कहा कि नये आंकड़े दिखाते हैं कि 5 साल से 11 साल के स्वस्थ बच्चे एक और खुराक से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
फाइजर और उसकी साझेदार बायोएनटेक ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि एक छोटे अध्ययन में दो खुराक लगवा चुके 140 बच्चों को छह महीने के अंतराल पर बूस्टर खुराक दी गयी और अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि अतिरिक्त खुराक ने बच्चों की प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ा दिया।
स्वतंत्र विशेषज्ञों ने इन आंकड़ों का प्रकाशन या सत्यापन नहीं किया है।
फाइजर ने इस सर्दी के मौसम में ओमीक्रोन के मामले बढ़ने के दौरान बच्चों की बूस्टर खुराक का परीक्षण किया था। अमेरिका में कोविड के मामले इस समय काफी कम स्तर पर हैं, वहीं वायरस के अधिक संक्रामक ओमीक्रोन (बीए.2) जैसे स्वरूप स्थानीय स्तर पर और दुनियाभर में प्रभावी बन गये हैं।
कंपनियों की योजना है कि आने वाले दिनों में अमेरिका खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) से 5 से 11 साल तक के स्वस्थ बच्चों के लिए टीके की बूस्टर खुराक की अनुमति देने के लिए अनुरोध किया जाएगा। (एपी)
यूक्रेन की सेना ने दावा किया है कि रूस का युद्धपोत मोस्कवा डूब रहा है. हालाँकि रूस के रक्षा मंत्रालय ने इससे इनकार किया है. यूक्रेन का दावा है कि उसके नेपच्युन मिसाइल के हमले के बाद रूसी युद्धपोत डूब रहा है. दूसरी ओर रूस का दावा है कि आग की वजह से मोस्कवा क्षतिग्रस्त हुआ है और वहाँ मौजूद गोला-बारूद में भी विस्फोट हो गया.
यूक्रेन के दक्षिणी मिलिटरी कमांड ने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट में लिखा है कि मिसाइल हमले के बाद रूसी युद्धपोत में आग लग गई और उसे बड़ा नुक़सान पहुँचा. ये भी दावा किया गया है कि गोला-बारूद में हुए धमाके और ख़राब मौसम के कारण रूस का बचाव कार्य प्रभावित हुआ और अब ये युद्धपोत डूब रहा है.
दूसरी ओर रूस के रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि युद्धपोत मोस्कवा पर लगी आग नियंत्रण में है और हथियारों में धमाके अब नहीं हो रहे हैं. रूस का ये भी कहना है कि मोस्कवा डूबा नहीं है. रूसी अधिकारियों ने बताया है कि युद्धपोत के चालक दल के सदस्यों को सुरक्षित निकाल लिया गया है और अब मोस्कवा को बंदरगाह तक ले जाने की कोशिश की जा रही है. अधिकारियों ने ये भी कहा है कि युद्धपोत में लगी आग के कारणों की जाँच की जा रही है. (bbc.com)
गुरुवार को पाकिस्तान की आर्मी की तरफ़ से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई. पाकिस्तान आर्मी का कहना है कि जनता और देश की सियासी पार्टियां सेना को राजनीति में न लाएं.
डीजी आईएसपीआर की तरफ़ से कहा गया कि सेना का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. डीजी आईएसपीआर मेजर जनरल बाबर इफ्तिख़ार ने अपील की है कि राजनीतिक बहसों से सेना को दूर रखना चाहिए.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के सशस्त्र बलों के ख़िलाफ़ अभियान चलाया जा रहा है और गहरी फ़र्ज़ी तकनीक का इस्तेमाल कर पूर्व अधिकारियों के फ़र्ज़ी संदेश बनाए जा रहे हैं
एनएससी के बयान में साजिश का जिक्र नहीं
डीजी आईएसपीआर का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के बयान में (विदेशी) साजिश का ज़िक्र नहीं है. इमरान ख़ान का ज़िक्र करते हुए कहा गया कि अमेरिका ने सैन्य ठिकाने नहीं मांगे थे लेकिन अगर उन्होंने पूछा होता तो सेना प्रधानमंत्री इमरान खान की तरह ही जवाब देती.
इसी के साथ आर्मी की तरफ़ से ये भी कहा गया कि इमरान ख़ान को सेना ने कोई विकल्प नहीं दिया था, विपक्ष ने तीन विकल्प दिए थे और सैन्य नेतृत्व ने गतिरोध ख़त्म करने की कोशिश की थी.
अपना कार्यकाल नहीं बढ़ाना चाहते जनरल बाजवा
डीजी आईएसपीआर ने कहा कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा अपना कार्यकाल नहीं बढ़ाना चाहते थे और न ही उन्होंने ऐसी कोई मांग की थी. उन्होंने कहा कि जनरल बाजवा अपने कार्यकाल के विस्तार को स्वीकार नहीं करेंगे और इस साल नवंबर के अंत में सेवानिवृत्त होंगे.
जब उनसे पूछा गया कि 9 अप्रैल की रात को कोर्ट खुलने और मार्शल लॉ की अफवाहों के बारे में उनका क्या ख्याल है, तो उन्होंने कहा कि यह निराधार है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में अदालतें स्वतंत्र हैं, क्या आपको लगता है कि वे सेना के नियंत्रण में हैं?
डीजी आईएसपीआर ने कहा कि पाकिस्तान का अस्तित्व पूरी तरह से लोकतंत्र में है और इसकी ताकत संस्थानों में है, चाहे वह संसद हो, सुप्रीम कोर्ट हो या सशस्त्र बल. मार्शल लॉ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मार्शल लॉ पाकिस्तान में कभी नहीं आएगा.
शहबाज़ शरीफ़ के शपथ ग्रहण में सेना प्रमुख के शामिल नहीं होने पर सवाल
पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के शपथ ग्रहण समारोह में सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की गैर-मौजूदगी पर एक सवाल का जवाब देते हुए, डीजी आईएसपीआर ने कहा कि जनरल बाजवा उस दिन अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि सेना प्रमुख उस दिन अपने कार्यालय भी नहीं आए थे. इमरान ख़ान सरकार के गिर जाने के बाद कुछ लोग सेना की आलोचना कर रहे हैं.
इसपर आर्मी की तरफ़ से कहा गया कि इमरान ख़ानऔर सेना प्रमुख के बीच अच्छे व्यक्तिगत संबंध थे और उनके बीच कोई समस्या नहीं थी.उन्होंने कहा कि पीटीआई के कुछ नेताओं ने भी इस संबंध में बेहद सकारात्मक बयान दिए हैं. (bbc.com)
अरबपति कारोबारी एलन मस्क ने 41 अरब डॉलर में ट्विटर को ख़रीदने की पेशकश की है. ये ख़बर ऐसे समय में आई है जब कुछ ही दिनों पहले मस्क के कंपनी बोर्ड में शामिल न होने की घोषणा की गई थी.
एलन मस्क ने 54.20 डॉलर प्रति शेयर की पेशकश की है, जिसकी जानकारी गुरुवार को एक रेगुलेटरी फाइलिंग में दी गई थी. ऐसे में प्रीमार्केट ट्रेडिंग में ट्विटर के शेयर 12% उछले हैं.
बता दें कि एलन मस्क के पास ट्विटर की 9.2 फ़ीसदी की हिस्सेदारी है. मतलब ये है कि मस्क के पास ट्विटर फाउंडर जैक डॉर्सी की हिस्सेदारी (2.25 फ़ीसदी) से चार गुना से भी ज़्यादा शेयर हैं.
अब मस्क ने ट्विटर के चैयरमेन ब्रेट टेलर को लिखे गए एक पत्र में कहा है, ''निवेश करने के बाद अब मुझे अहसास हुआ है कि कंपनी अपने मौजूदा स्वरूप में न तो अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा कर सकेगी न ही इसे आगे बढ़ा सकेगी. ट्विटर को एक प्राइवेट के रूप में बदलने की जरूरत है."
उन्होंने आगे कहा है, "मेरा प्रस्ताव, मेरी तरफ़ से सबसे अच्छा और अंतिम प्रस्ताव है और अगर इसे स्वीकार नहीं किया जाता है, तो मुझे शेयरधारक के रूप में अपनी स्थिति पर फिर से सोचना होगा." (bbc.com)
संयुक्त राष्ट्र, 14 अप्रैल। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद शुरू हुए युद्ध ने अनेक विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था के लिए तबाही का खतरा पैदा कर दिया है। ये देश पहले ही खाद्यान्न और ईंधन की बढ़ती कीमतों का सामना कर रहे हैं साथ ही जटिल आर्थिक हालात से जूझ रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र कार्य बल ने बुधवार को यह चेतावनी दी।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने एक रिपोर्ट जारी की और कहा कि युद्ध गरीब देशों में भोजन, ईंधन तथा आर्थिक संकट को और गहरा कर रहा है। ये देश पहले से ही महामारी, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक सुधार के लिए धन की कमी से निपटने में संघर्ष कर रहे हैं।
गुतारेस ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हम अब एक तूफान का सामना कर रहे हैं जो कई विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को तबाह करने की चेतावनी देता है। लगभग 1.7 अरब लोग अब भोजन, ऊर्जा और वित्त प्रणालियों में संकट की जद में आने के करीब हैं। इनमें से एक तिहाई लोग पहले ही गरीबी में जी रहे हैं।’’
व्यापार और विकास को बढ़ावा देने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की महासचिव रेबेका ग्रिनस्पैन ने कहा कि ये लोग 107 देशों में रहते हैं,जिनके किसी न किसी संकट की जद में आने का काफी जोखिम है।
रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों में लोग स्वस्थ आहार नहीं ले पा रहे हैं, भोजन और ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात आवश्यक है, लेकिन कर्ज का बोझ और सीमित संसाधन अनेक वैश्विक वित्तीय स्थितियों से निपटने की सरकार की क्षमता को सीमित करते हैं। (एपी)
वाशिंगटन, 14 अप्रैल। अमेरिका ने शाहबाज शरीफ को पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री चुने जाने पर बधाई दी और कहा कि वह उनके साथ काम करने को लेकर उत्सुक है।
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने बुधवार को कहा कि पाकिस्तान बीते 75 वर्षों से परस्पर हितों से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में अहम भागीदार रहा है और अमेरिका, पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को महत्व देता है।
ब्लिंकन ने एक बयान में कहा, ‘‘ अमेरिका, पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को बधाई देता है। हम पाकिस्तान की सरकार के साथ लंबे समय से चले आ रहे सहयोग को जारी रखने की उम्मीद करते हैं।’’
शरीफ के इमरान खान की जगह पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद अमेरिका ने यह बयान जारी किया है।
ब्लिंकन ने कहा, ‘‘ अमेरिका एक मजबूत, समृद्ध और लोकतांत्रिक पाकिस्तान को दोनों देशों के हितों के लिए जरूरी मानता है।’’ (भाषा)
वाशिंगटन, 13 अप्रैल। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को यूक्रेन को हेलीकॉप्टर और सैन्य साजो-सामान सहित 80 करोड़ डॉलर की नयी सैन्य सहायता को मंजूरी दी ताकि वह रूसी हमले से खुद का बचाव मजूबती से कर सके।
बाइडन ने सहायता आपूर्ति के समन्वय को लेकर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ फोन पर हुई बातचीत के बाद अमेरिकी सहायता की घोषणा की।
बाइडन ने एक बयान में कहा, 'इस नये सहायता पैकेज में कई अत्यधिक प्रभावी हथियार प्रणालियां शामिल होंगी जोकि हम पहले ही उपलब्ध करा चुके हैं। साथ ही यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में रूस के व्यापक हमले की आशंका के मद्देनजर नया सैन्य साजो-सामान भी शामिल हैं।'
उन्होंने कहा कि संघर्ष जारी रहने की स्थिति में अमेरिका अतिरिक्त हथियारों और संसाधनों को साझा करने के लिए सहयोगियों के साथ काम करना जारी रखेगा। (एपी)
अमेरिका की पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी की एक प्राध्यापिका ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में भारत के बारे में कुछ टिप्पणियाँ की हैं जिसे लेकर हंगामा हो रहा है.
प्रोफेसर एमी वैक्स ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू के दौरान भारत के ख़िलाफ़ अपशब्दों का प्रयोग किया. उन्होंने साथ ही दक्षिण एशिया से अमेरिका पहुंचने वाले लोगों से लेकर ब्राह्मण महिलाओं के प्रति भी आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है.
इस इंटरव्यू की क्लिप्स सोशल मीडिया पर वायरल हो गई हैं और भारतीय और अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लोग उनके इस बयान की निंदा कर रहे हैं.
क्या बोली हैं एमी वैक्स
एमी वैक्स ने बीती 8 अप्रैल को अमेरिकी टीवी चैनल फॉक्स न्यूज़ के एंकर टकर कार्लसन को दिए इंटरव्यू में भारतीय आप्रवासियों की आलोचना की है.
उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि 'पश्चिमी लोगों की बेहतरीन उपलब्धियों एवं भारी योगदान की वजह से ग़ैर पश्चिमी लोगों में उनके ख़िलाफ़ भारी नाराज़गी और शर्म का भाव है'.
उन्होंने एशिया, दक्षिण एशिया और भारतीय लोगों पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें यहां बेहतरीन शिक्षा और शानदार अवसर मिलते हैं लेकिन इसके बदले में वे अमेरिका की आलोचना करते हैं.
प्रोफेसर एमी वैक्स ने कहा, "ये अजीब सी बात है कि एशियाई, दक्षिण एशियाई और भारतीय डॉक्टर पेन्सिल्वेनिया की चिकित्सा सेवा में काम करते हैं. मैं वहां लोगों को जानती हूं और मुझे पता है कि वहां क्या हो रहा है. वे नस्लवाद के ख़िलाफ़ जारी मुहिम को लेकर मोर्चा संभाले हुए हैं. वे अमेरिका को दोष देते रहते हैं जैसे कि अमेरिका एक दुष्ट नस्लवादी जगह है."
इसके बाद उन्होंने भारतीय ब्राह्मण महिलाओं पर भी टिप्पणी करते हुए उनकी आलोचना की.
उन्होंने कहा, "भारत से आने वाली महिलाएं सफलता की सीढ़ियां चढ़ती हैं. उन्हें बेहतरीन शिक्षा मिलती है. हम उन्हें बेहतरीन अवसर देते हैं. और वे पलटकर हम पर ही आरोप लगा देते हैं कि हम नस्लवादी हैं, ख़राब देश हैं जिसमें सुधार की ज़रूरत है. और हमारे मेडिकल सिस्टम को सुधार की ज़रूरत है. समस्या ये है कि उन्हें ये सिखाया गया है कि वे दूसरों से बेहतर हैं क्योंकि वे ब्राह्मण उच्चकुलीन (परिवार से) हैं."
ये कहने के बाद उन्होंने भारत के संदर्भ में कुछ ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया जिसे गाली समझा जाता है.
सोशल मीडिया पर मचा बवाल
एमी वैक्स का ये बयान सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं.
जहां एक ओर तमाम लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं, वहीं भारत में दलितों-शोषितों और वंचितों की आवाज़ बनने वाले वैक्स के इस बयान के प्रति सहमति जता रहे हैं.
भारत में दलित राजनीति पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा है, "भारत में शोषण करने वाली जाति बेहद चतुराई से अमेरिका में काले लोग बन जाते हैं (और खुद को पीड़ित के रूप में पेश करते हैं). काले, मूल अमेरिकी लोगों और एक हद तक हिस्पैनिक लोगों ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है. सवर्ण हिंदू लोग उन पदों को हथिया रहे हैं जो वास्तव में काले लोगों, हिस्पैनिक्स या मूल अमेरिकियों के पास जाने चाहिए थे."
वहीं, लेखक और पत्रकार सदानंद धूमे ने इस मामले पर अलग तरह का ट्वीट किया है.
उन्होंने लिखा है, "कुछ भारतीय अप्रवासी एमी वैक्स की व्याख्या में फिट होते हैं जो लगातार अमेरिका की आलोचना करते रहते हैं. उनसे ये पूछना जायज़ है कि अगर वे इस देश को इतना बुरा मानते हैं तो वे यहां क्यों आए? लेकिन मेरे अनुभव में ऐसे लोग काफ़ी कम हैं. ज़्यादातर लोग उन अवसरों के प्रति शुक्रगुज़ार हैं जो अमेरिका ने उन्हें दिए हैं."
पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर असीम शुक्ला ने ट्वीट करके लिखा है, "एमी वैक्स, हम में से कुछ भारतीय अमेरिकी डॉक्टर अमेरिका के हेल्थकेयर सिस्टम को मजबूत बनाने में अपना योगदान देते हैं. ऐसे में हमें आलोचना करने का भी अधिकार है."
पेनसिल्वेनिया के क़ानून विभाग में लेक्चरर नील मखीजा ने भी एमी की आलोचना करते हुए ट्वीट किया है.
उन्होंने कहा है कि प्रोफेसर एमी पेन मेडिसिन में ब्राउन चेहरे देखती हैं और उनसे पूछना चाहती हैं कि वे यहां क्यों आए हैं, जबकि ज़्यादातर अमेरिका में ही पैदा हुए हैं और अपनी पूरी ज़िंदगी अमेरिका में रही हैं. और शायद यही लोग उनका इलाज भी करेंगे अगर वे अस्पताल में भर्ती होती हैं.
पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के कानून विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत एमी वैक्स एक जानी-मानी वकील हैं.
न्यूयॉर्क के यहूदी परिवार में जन्म लेने वालीं एमी वैक्स के माता-पिता पूर्वी यूरोप से निकलकर अमेरिका पहुंचे थे. ये तथ्य उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में साझा किया था.
इसके साथ ही एमी वैक्स ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता ने शुरुआती दिनों में कपड़े बनाने की फैक्ट्री में काम किया था. और उनकी मां एक टीचर थीं.
और इसी इंटरव्यू में उन्होंने खुद की व्याख्या एक वर्किंग क्लास गर्ल यानी मध्यम वर्गीय समाज की महिला के रूप में की थी.
अमेरिका की प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी से बायो-फिजिक्स और बायोकैमिस्ट्री में पढ़ाई करने वाली एमी वैक्स ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी दर्शनशास्त्र विषय में पढ़ाई की है. इसके बाद उन्होंने हार्वड लॉ स्कूल में कानून की पढ़ाई की.
अमेरिका के बुश और रीगन प्रशासन के साथ काम कर चुकीं एमी बैक्स पहले भी अपने विवादित बयानों की वजह से चर्चा में आ चुकी हैं.
इससे पहले वह अमेरिका में एशियाई लोगों की मौजूदगी और एशिया अप्रवासियों को लेकर दिए गए विवादित बयान को लेकर चर्चा में आ चुकी हैं.
उन्होंने कहा था कि अगर अमेरिका में एशियाई आप्रवासियों का आना कम हो तो ये अमेरिका के लिए बेहतर रहेगा. (bbc.com)