बलौदा बाजार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 21 फरवरी। समानता की बात करने वाली सरकार स्कूली शिक्षा का भेदभाव कर बच्चों के बीच असमानता का भाव पैदा कर रही है, एक तरफ जहां सरकारी आत्मानंद अंग्रेजी मीडियम स्कूल में बेहतर शिक्षा व्यवस्था बच्चों को मिल रही है तो दूसरी तरफ हिंदी मीडियम स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। जिले के 6 आत्मानंद इंग्लिश स्कूलों में पढऩे वाले 2083 बच्चों के लिए 149 शिक्षक हैं, यानी एक शिक्षक 14 बच्चों को पढ़ा रहा है, वहीं जिले के 2069 सरकारी स्कूलों हिंदी मीडियम स्कूलों में पढऩे वाले 256015 बच्चों के लिए 8 हजार शिक्षकों की ही नियुक्ति है। यानी औसत निकालने हेतु एक शिक्षक पर 30 से भी अधिक बच्चों को पढ़ाने का बोझ है, एक ही स्कूल में धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने सीखने और पढऩे वाले प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति की गई है, तो दूसरे स्कूलों में 9 टीचर है ना टेबल है जो हिंदी मीडियम स्कूलों में अंग्रेजी के शिक्षक थे। उन्हें भी प्रतिनियुक्ति में लिया गया है, इंग्लिश मीडियम में बच्चे टेबल में बैठकर खाना खाते हैं तो दूसरे स्कूलों में टाट पट्टी भी नसीब नहीं होती।
एक तरफ क्लास से ज्यादा कमरे तो दूसरी तरफ एक कमरे में दो-दो क्लास
हिंदी मीडियम के जिन जिन भवनों में कमरे कम है और कक्षाएं अधिक बिलाईगढ़ के आत्मानंद स्कूल की 10 कक्षाओं में पढऩे वाले 480 बच्चों के लिए 22 कमरे हैं, वहीं शहर के एम जी स्कूल में जगह कमी होने से एक कमरे में 2 कक्षाएं लग रही शिक्षाविद सेवा निर्मित प्रोफेसर एम एस पाते ने कहा कि स्कूल शिक्षा विभाग दोष सरकारी स्कूल संचालित कर रही है। एक सर्व सुविधायुक्त और दूसरा सुविधाविहीन। इंग्लिश में बजट भरपूर तो हिंदी मीडियम सुविधा विहीन जिले के प्रत्येक आत्मानंद स्कूलों में पुस्तक लाइब्रेरी लैब खेल सामग्री भवन मरम्मत के लिए पहले ही साल 43 लाख रुपए दिए गए वेतन व्यय के लिए बजट में 4 करोड़ रूपये बिजली तथा एक्टिविटी के लिए 2 लाख रुपये जारी किए गए है,ं वहीं हिंदी मीडियम के लिए सरकारी स्कूलों में लैब लाइब्रेरी ही देखने को नहीं मिलती तो बच्चों को खेल सामग्री मिलना दूर की बात है।
जिले में करीब 159 सहित प्रदेश भर के सरकारी शासकीय स्कूलों में लाइब्रेरियन के 2300 से अधिक पद रिक्त है, जिसे भरना आवश्यक है। सरकारी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल के बाथरूम चकाचक हैं तो वहीं सरकारी हिंदी मीडियम स्कूल के बाथरूम और टॉयलेट के छात्र ही नहीं है भवन भी कंडम हो चुका है।
सरकारी स्कूल में एक
जैसी हो व्यवस्था
सरकारी स्कूलों के साला समितियों के अध्यक्ष भी अब यह सवाल करने लगे हैं बेसिक स्कूल के साला समिति अध्यक्ष ताराचंद कनौजे का कहना है कि स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी मीडियम स्कूल के लिए जो व्यवस्था सुविधा और सन रचना दी गई है वह वही व्यवस्था सरकारी हिंदी मीडियम के स्कूलों को क्यों उपलब्ध नहीं कराई जा रही है।
स्कूलों का यह अंतर बढ़ रहा है असमानता का भाव
यहां निजी स्कूलों से बेहतर अघोसंरचना एवं व्यवस्थाएं की गई है, जिसमें फर्नीचर प्रयोगशाला, कंप्यूटर लैब, स्मार्ट क्लास, पीने के लिए आरो का पानी, थी स्टार होटलों जैसे टॉयलेट बाथरूम ए क्लास लाइब्रेरी लैब डाइनिंग हॉल रंगों से रंग आकर्षण गलियारों वाले ही स्कूलों में कैंपस से लेकर कमरों तक सीसीटीवी कैमरे में लगे हुए हैं। वहीं हिंदी मीडियम के अधिकतर सरकारी स्कूलों में बच्चों को फटी हुई टाट पट्टी ओवर टूटे-फूटे फनी चोरों पर बिठाया जाता है पीने के लिए टूटी पाइप लाइन से टपकता पानी मिलेगा तो खुली छतों वाले गंदे टॉयलेट बाथरूम आत्मानंद स्कूल के क्लास रूम कन्वेंट स्कूल की तरह आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण है। यहां बच्चों के बैठने के लिए वेज वह पढऩे के लिए अनुकूल माहौल मिलता है, जबकि हिंदी मीडियम स्कूल की दीवारों में रंग रोगन कब का हुआ है यह भी पता नहीं है।