गरियाबंद
गरियाबंद, 25 मार्च। श्री हरि सत्संग मण्डल द्वारा आयोजित श्री मद भागवत कथा आयोजन का आज तीसरा दिन श्री राम जन्म की कथा सुनाई गई, सत्संग ही एक ऐसा साधन है जो तुरंत फल देता है।
गरियाबंद के गांधी मैदान में 21 मार्च से उज्जैन से आई पूज्य दीदी वर्षा नागर जी ने कथा में आज बताया कि सत्संग ही एक ऐसा साधन है जो तुरंत फल देता है और सुपात्र व्यक्ति को ही श्री मद भागवत सुनने का सौभाग्य मिलता है, हर किसी को नहीं मिलता।कथा सुनने हर रोज हजारों श्रोताओं की भी गरियाबंद के गांधी मैदान में लग रही है।
रविवार को भंडारे के साथ कथा का समापन होगा
कथा के तीसरे दिन आज दीदी वर्षा नागर जी ने कहा कि कथा पंडाल कितना बड़ा है, कथा पंडाल कितना भरा हुआ है ये मायने नहीं रखता, बल्कि जितने भी लोग आए हैं वो कथा सुनकर अपने जीवन में उतार ले ये महत्व रखता है।
आज विदेशों में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग और बड़ी गाडिय़ंा और अनेक प्रकार के भौतिक संसाधन तो जुटा लिया गया है, आर्थिक रूप से तो बहुत समृद्ध हो चुके हैं, लेकिन संस्कार के मामले में बहुत गरीब होते जा रहे हैं।
संस्कृति और संस्कार को लेकर अगर कोई चल रहा है तो सिर्फ हमारा भारत है, जिसके सुनने से पापी भी तर जाते हैं और जो प्रेत रूपी आत्मा को भी तार दे वो श्री मद भागवत कथा है, व्यक्ति कभी भी अपने नाम से नहीं पहचाना जाता, बल्कि अपने कर्मो से पहचाना जाता है, इंसान उसकी जाती से नहीं बल्कि उसके कर्मो से महान बनता है, आज हर इंसान को जीवन मे शांति की जरूरत है, अनीति से कमाया हुआ धन कभी भी सुख नहीं देगा । उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे एक रावण जो सीता रूपी लक्ष्मी को जबरदस्ती ऊठा के लँका ले लाता है तो उससे उसका सर्वनाश हो जाता है और दूसरा एक निर्धन सुदामा जो अपने पत्नी के कहने से उसके द्वारा भेँट स्वरूप चने लेकर अपने ईस्ट अपने मित्र से मिलने जाता है तो वापस आते ही उसकी झोपड़ी सोने की महल बन जाता है।
संत सु श्री वर्षा नागर ने कहा कि आज ये बहुत बड़ी विडम्बना है जिनको हमने मंदिर के लम्बी लम्बी कतारों में खड़ा देखा है, हैरानी की बात है उनके माता पिता वृद्धाश्रम में है, जीवन मे सिद्ध होना बहुत जरूरी नहीं है, जीवन में जरूरी है शुद्धता होना जरूरी है, गौकरण जन्म की कथा बताते हुए कहा कि बच्चे की सर्वप्रथम गुरु माँ होती है, माँ ही बच्चे का जीवन बना सकती है और जिस व्यक्ति का एकांत अच्छा होता है तो समझो राम से कम नहीं होता, माताओं को कहा कि संस्कारहीन शिक्षा पेट भरने वाला विधार्थी बना सकती है, शिक्षा के साथ संस्कार देना जरूरी है ,ये श्री मद भागवत निर्वाण की नही निर्माण की कथा है, पिछले पांच हजार साल से बार बार भागवत कथा होने के बावजूद कन्हैय्या जी की कृपा और उनके आकर्षक से ही कथा पण्डाल में आकर बैठ जाते हैं। रामायण त्रेता युग मे शुरू हुआ और त्रेतायुग में ही बन्द हुआ, कृष्णकथा द्वापर में शुरू होकर द्वापर में खत्म हुआ, लेकिन महाभारत शुरू तो हुआ पर आज तक बन्द नहीं हुआ, उन्होंने से बड़े बुजुर्ग और माता - पिता को कहा कि मोह सबसे बड़ी व्याधि है, मोह छोडऩा है और किसी भी युवा को ये अधिकार नहीं होना चाहिए कि घर के बड़े बुजुर्ग बैठे हो तो आंख ऊठा के बात करे, समाज को बुरे लोगो की बुराई से ज्यादा अच्छे लोगों की खामोशी पतन की ओर से ले जा रही है, सौ दिन की कायरता वाली जीवन से अच्छा है 1 दिन का इतिहास वाला जीवन जिये।