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सरगुजा अंचल के प्राचीन धरोहरों और सरगुजिहा लोकगीतों में राम है-अजय चतुर्वेदी
17-Jun-2022 3:37 PM
सरगुजा अंचल के प्राचीन धरोहरों और सरगुजिहा लोकगीतों में राम है-अजय चतुर्वेदी

रामगढ़ राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में सरगुजा में राम मूर्त और अमूर्त स्वरूप शोध की प्रस्तुति

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
प्रतापपुर,17 जून।
मेघदूतम की रचना स्थली रामगढ़ में आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य अजय कुमार चतुर्वेदी, राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता ने सरगुजा में राम मूर्त और अमूर्त स्वरूप शोध की प्रस्तुति कर बताया कि सरगुजा अंचल के प्राचीन धरोहरों और सरगुजिहा लोकगीतों में राम व्याप्त हैं। इन्होंने सरगुजा संभाग के पांचों जिले-सरगुजा, कोरिया, सूरजपुर, बलरामपुर-रामानुजगंज एवं जसपुर में गहन शोध कर 38 स्थलों का चिन्हाकन किया है। जहां -जहां प्रभु श्रीराम गये थे।

एसी मान्यता है कि राजा दशरथ के बड़े पुत्र श्री राम, लक्ष्मण, और माता सीता ने वनवास काल की एक लंबी अवधि दंडकारण्य (छत्तीसगढ़)में व्यतीत की। प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ को अनेक नामों से जाना जाता था। रामायण काल (त्रेता युग) में दक्षिण कोसल और दंडकारण्य कहा जाता था। रामायण की कथा से ज्ञात होता है कि अयोध्या (उत्तर कोसल) के राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या दक्षिण कोसल (छत्तीसगढ़) के राजा भानुमन्त की पुत्री थी।

छत्तीसगढ़ में श्रीराम का पहला पड़ाव सरगुजा अंचल के सीतामढ़ी हरचौका से
सरगुजा अंचल के अनेक जगहों पर प्राचीन मूर्त धरोहरों एवं अमूर्त स्वरूप में रामकथा के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख देखने-सुनने को मिलता है। अजय चतुर्वेदी ने अपने शोध में बताया कि भगवान श्रीराम के वनवास काल का छत्तीसगढ़ में पहला पड़ाव उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के कोरिया जिले के भरतपुर तहसील के सीतामढ़ी हरचौका से हुआ था।

 कोरिया जिले के घाघरा सरतामढ़ी, सिद्ध बाबा का आश्रम सीतामढ़ी(गांगी रानी)रामगढ़ अमृतधारा, कोटाडोल, सीतामढ़ी छतौड़ा आश्रम, देवसील, अमृतधारा, जटाशंकरी गुफा, और देवगढ़ श्रीराम कथा से संबंधित प्रमुख प्राचीन स्थल हैं। सूरजपुर जिले का कुदरगढ़ जोगीमाड़ा (गुफा चपदा ग्राम), लक्ष्मण पंजा, सीता लेखनी पहाड़, रक्स गंडा, राम-लक्ष्मण पंजा सारासोर, श्रीराम लक्ष्मण पखना ग्राम पासल भैयाथान, मरह_ा, साल्हो और बेसाही पहाड़ पोड़ी, शिवपुर का सीता पांव, बिलद्वार गुफा और सरगुजा जिले का अंबिकापुर (विश्रासमपुर), यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि देवगढ़ और सतमहला,़ महेशपुर, रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, मिरगा डाड,़ चंदन मिट्टी गुफा, नान दमाली एवं बड़े दमाली के समीप बंदरकोट, अंजनी टीला, मैनपाट षरभंजा, देउरपुर (महारानीपुर), सीतापुर में मंगरेलगढ़,एव जषपुर जिले के पत्थगांव तहसील का किलकिला आश्रम,बगीचा शिव मंदिर, रिंगार घाट,लेखा पत्थर, लक्ष्मण पंजा आदि स्थल हैं।

पहले अंबिकापुर को विश्रामपुर कहा जाता था। छत्तीसगढ़ नए सूबा में सरगुजा के शामिल होने के साथ ही विश्रामपुर का नाम अंबिकापुर अंबिका देवी के नाम पर रखा गया। विश्रामपुर नामकरण के संबंध में जनश्रुति है कि रामायण काल में वनवास के समय भगावान श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण जी दंडकारण्य से गुजरते वक्त वर्तमान अंबिकापुर में कुछ समय विश्राम किए थे, इसलिए विश्रामपुर नाम पड़ा था।

सरगुजा अंचल के पारंपरिक लोक लोकगीतों में श्रीराम कथा का भंडार है
सरगुजा अंचल में भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के वन गमन की कहानी यहां के पर्वतों, गुफाओं, नदियों और पत्थरों में देखने और सुनने को जितना मिलता है, कहीं उससे ज्यादा सरगुजा अंचल के पारंपरिक सरगुजिहा लोकगीतों, जनजातीय लोक गीतों में सुनने को मिलता है। यहां की जनजातियां भगवान श्री राम - लक्ष्मण और माता सीता को आलंबन बनाकर पारंपरिक सरगुजिहा लोकगीतों का गायन करते हैैं।

सरगुजा अंचल की जनजातीयां अपनी जातीय बोली कुडूख, कोरवाई, पंडो, और कोडाकू में भी रामकथा के विभिन्न प्रसंग का गायन करते हैं। इनके लोक गीतों में राम जन्म से लेकर धनुष यज्ञ, विवाह, वन गमन, सीता हरण, सीता की खोज, राम - रावण युध वन वापसी और राज्याभिषेक तक के सभी प्रसंग सुनने को मिलते हैं।

सरगुजा अंचल की राम कथा श्रीराम कथा का विश्व संदर्भ महाकोश में शामिल
श्रीराम कथा का विश्व संदर्भ महाकोश के प्रथम खंड में भारत के विभिन्न प्रांतों के लोकगीतों तथा लोक कथाओं में श्रीराम का संदर्भ को समाहित किया गया है। इस कोश के छत्तीसगढ़ अंक में सरगुजा अंचल के विभिन्न स्थल जहां जहां भगवान श्री राम के पावन चरण पड़े और सरगुजिहा लोकगीतों को समाहित किया गया है।

इस अध्याय के लेखक अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि इस महाकोश में सरगुजा संभाग के 38 पवित्र स्थलों का वर्णन किया गया है, जहां-जहां प्रभु श्री राम के पावन चरण पड़े थे।
अजय चतुर्वेदी ने कोरिया ने सीतामढ़ी हरचौका से जशपुर के किलकिला आश्रम तक का राम वन गमन मार्ग का विस्तृत शोध कर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शोध संगाोष्ठी में प्रस्तुति दे कर सरगुजा अंचल को गौरान्वित किया। इन्हों ने सरगुजा अंचल के इतिहास, पुरातत्व, लोक संस्कृति, लोक गीत, लोक वाद्य, लोक कला, सरगुजिहा बोली पर अनेंक राष्ट्रीय एव अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में प्रस्तृत दिया है।

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