महासमुन्द

जिले के 19.150 हेक्टेयर रकबे में दलहन, 4.160 हेक्टेयर में तिलहन की फसल
07-Jul-2022 6:32 PM
जिले के 19.150 हेक्टेयर रकबे में दलहन, 4.160 हेक्टेयर में तिलहन की फसल

प्रति एकड़ 10 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने की योजना से किसानों ने अपनाया फसल चक्र-मोहंती

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 7 जुलाई। इस साल महासमुंद जिले के किसानों ने 19.150 हेक्टेयर रकबे में दलहन व 4.160 हेक्टेयर में तिलहन की फसल ली है। इन फसलों की एमएसपी भी अधिक है। इससे किसानों को फायदा भी हो रहा है। कहा जा रहा है कि इस साल दलहन का रकबा 9 हेक्टेयर बढ़ा है। पूर्व में दलहन की फसल 10.440 हेक्टेयर में लिया गया। वर्तमान में 19 हेक्टेयर में ले रहे हैं। वहीं तिलहन की फसल पिछले साल 2.591 हेक्टेयर मेें ली गई थी। लेकिन इस साल 19.150 में दलहन की फसल ली गई है। इसमें सबसे ज्यादा उड़द की फसल है। 16.960 हेक्टेयर में किसानों ने उड़द की फसल ली है। वहीं तिलहन फसल में अब तक मूंगफली 2.432 हेक्टेयर में ली जाती थी पर इस बार 3.980 हेक्टेयर में किसानों ने मूंगफली फसल ली है।

कृषि उप संचालक अमित मोहंती के मुताबिक हर साल फसल के बदलाव से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ ही फसलों का उत्पादन भी बेहतर होता है। लगातार एक ही फसल लेने से मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी होने लगती है। जिससे मिट्टी अम्लीय व क्षारीय हो जाती है। धान के बदले अन्य फसल लगाने वाले किसानों को प्रति एकड़ 10 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने की योजना राज्य सरकार ने बनाई है। इससे दलहन व तिलहन का रकबा बढ़ा है। धान की फसल में अधिक लागत लगती है। सिंचाई के लिए पानी सहित खाद व बीज पर अधिक खर्च करना पड़ता है। जबकि दलहन-तिलहन में लागत कम लगती है। धान के अलावा अन्य फसलों का समर्थन मूल्य भी अधिक है। उड़द व मूंग की फसल महासमुंद जिले में होती है और इसका समर्थन मूल्य धान से दो से तीन गुना ज्यादा है।

महासमुंद जिले में 1.39 लाख किसान 241 हेक्टेयर रकबे में खेती करते हैं। पिछले साल 241.918 हेक्टेयर धान का रकबा था। धान का समर्थन मूल्य 25 सौ रुपए होने के बावजूद इस साल किसानों ने दलहन व तिलहन की फसल लेने में रुचि दिखाई है। खरीफ  सीजन में यहां धान की फसल हर साल अधिक होती थी,  लेकिन इस बार 5 हजार हेक्टेयर धान का रकबा कम हुआ है। इसका कारण पानी की कमी को बताया जा रहा है।

कृषि उप संचालक अमित मोहंती कहते हैं कि धान के साथ अन्य फसलों की खेती करने से किसानों के साथ-साथ पर्यावरण को भी इसका फ ायदा मिलता है। खेतों की मिट्टी में बदलाव आते हैं और उत्पादन की क्षमता बढ़ती है। किसानों को कम समय व कम लागत में लाभ होता है। खाद की मारामारी से भी किसानों को राहत मिलती है।

विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पिछले साल धान का रकबा 241.918 हेक्टेयर था। जिसमें जिले के करीब 1 लाख 39 हजार किसानों ने धान की फसल ली थी और समर्थन मूल्य में बेचा था। लेकिन इस साल धान का रकबा घटकर 237.030हेक्टेयर हो गया है। यानी 5 हेक्टेयर रकबा पिछले साल के मुकाबले कम है।

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