महासमुन्द
आस्था की पावस काव्य गोष्ठी
छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 19 जुलाई। आस्था साहित्य समिति महासमुंद द्वारा पावस काव्य गोष्ठी का आयोजन सावन की रिमझिम फुहारों भरे मनभावन मौसम में किया गया। इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता जिला शिक्षा अधिकारी एवं साहित्यकार श्रीमती एस. चंद्रसेन ने की। काव्य गोष्ठी का शुभारंभ सुरेन्द्र अग्निहोत्री ने सरस्वती वंदना से किया। अपने काव्य की रिमझिम फुहार प्रस्तुत करते हुये आस्था साहित्य समिति अध्यक्ष आनंद तवारी पौराणिक ने कहा कि बरस-बरस जाने को आतुर बादल, किसने आंखों में आंजा है काजल, किसने नेह गीत गाये पाहुन घन आये प्रस्तुत किया।
क्रम को आगे बढ़ाते हुए कमलेश पाण्डेय ने छम छमाछम बरसे पानी, भीगते हैं खेल बाग बन से प्रस्तुत कर सबको ओतप्रोत कर दिया। अपने अलग अंदाज में छत्तीसगढ़ी में पंक्तियां समर्पित करते हुये सुरेन्द्र अग्निहोत्री ने सावन का स्वागत किया। उन्होंने कहा-झिमिर झिमिर गिरत हवै पानी, मात गेहे चारो खूंट किसानी। साहित्यकार डा. साधना कसार ने कहा कि पर्वतों में गुंजती धरा की वाणी, पेड़ों की कतारें दिखती प्यारी-प्यारी। शफीक अहमद बेबाक ने कहा-क्या लिखूं शब्द नहीं मेरे पास से पावस की सुन्दरता का जिक्र किया। अपने संचालन के अलग अंदाज में साहित्यकार टेकराम सेन चमक ने कहा कि सावन की रिमझिम फुहारे लगते हैं सब कुछ न्यारे, धानी धरती श्रृंगार किये मानो आंगन में खड़ी हो। इस अवसर पर सुजाता विश्वनाथन ने हरियाली एवं सावन की झड़ी पर पंक्तियां समर्पित की -मुस्कराती पावस की बूंंदेंं मन प्रफुल्लित करती है।