राजनांदगांव
राजनांदगांव, 4 सितंबर। जैन संतश्री हर्षित मुनि ने कहा कि उदासीन याने ऊपर की ओर आसीन होना है। उन्होंने कहा कि उदासीनता को साधे और मन को बांधे तो ताजगी मिलेगी। मन की उदासीनता शरीर को शक्ति देती है। बच्चों का मन उदासीन रहता है और शरीर एक्टिव रहता है। यही कारण है कि बच्चे सक्रिय रहते हैं और एक बच्चा जो कर सकता है, वह हम आधे घंटे तक नहीं कर सकते। यदि हमने वैसा कर दिया तो हम थक जाते हैं।
समता भवन में जैन संतश्री हर्षित मुनि ने अपने नियमित प्रवचन में कहा कि हम हमारे मन को खुला छोड़ देते हैं। यही कारण है कि हम मन को मजबूत नहीं कर पाते। मन को खुराक नहीं देने से मन तपेगा। उन्होंने कहा कि शरीर को खुराक नहीं देने से शरीर कमजोर होता है, किंतु मन को खुराक नहीं देने से मन मजबूत होता है। मन में विचार आते हैं और चले जाते हैं, किंतु इन विचारों को बांधकर नहीं रखना चाहिए। आप विचारों को सहयोग नहीं करेंगे तो विचार ज्यादा देर नहीं टिक पाते हैं और भाग जाते हैं। रोज यदि 10 मिनट तक हमने मन को खुराक देना बंद कर दिया तो मन काफी मजबूत होगा और मन मजबूत हुआ तो हमारे कार्य सफल होंगे।
जैन संतश्री हर्षित मुनि ने कहा कि मन में एक बार उबाल आता है तो व्यक्ति यह नहीं सोचता कि वह कहां क्या बोल रहा है। ऐसी परिस्थिति में यदि सामने वाला मौन साध ले तो बात आगे नहीं बढ़ती और विवाद की स्थिति निर्मित नहीं होती।
यह निश्चित है कि जब दो व्यक्ति लड़ते हैं तो हारने वाला भी अपने आपको हारा हुआ नहीं मानता। ऐसे में एक शांत रहे तो दूसरे को बाद में आत्म ग्लानि होती है। यह जानकारी ें विमल हाजरा ने दी।