बलौदा बाजार

भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलने की ली शपथ
04-Apr-2023 7:04 PM
भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलने की ली शपथ

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

भाटापारा, 4 अप्रैल। शासकीय प्राथमिक शाला कुम्हली में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती मनाई गई। भगवान महावीर के चित्र पर पुष्पहार अर्पित कर पूजा की गई। सभी छात्रों के महावीर स्वामी को पुष्प अर्पित कर आत्म मनन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

विद्यालय के प्रधान पाठक छन्नूलाल साहू ने भगवान महावीर की जीवनी और उनके संदेशों को बच्चों के बीच विस्तार से रखा। महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के चंपारण जिले के कुंडलपुर राजघराने में चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी के दिन हुआ था। इनके बचपन का नाम वर्धमान था जिसका अर्थ है, जो बढ़ता है। महावीर के जन्म के समय उनके राज्य की समृद्धि बढ़ गई थी। उनके जन्मदिन को वीर तेरस के रूप में भी जाना जाता है। तीस साल की आयु संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल पड़े।  बारह वर्ष की कठिन तपस्या के कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।

दीक्षा ग्रहण के पश्चात साम्य भाव की साधना और पंच महाव्रती धर्म चलाया। उन्हें इस बात का अनुभव हो गया था कि इन्द्रियों, विषय वासनाओं के सुख दूसरों को दुख पंहुचा कर ही पाया जा सकता है। प्रेम का व्यवहार करते हुए दुनिया भर को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। महावीर कहते हैं कि जिनके मन में सदा धर्म रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। भगवान महावीर ने पंचशील का सिद्धांत चलाया।

सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रम्हचर्य। ब्रम्हचर्य को सर्वश्रेष्ठ तपस्या बताया।

प्रधान पाठक ने विद्यार्थियों को भगवान महावीर के सिद्धांतो को अपनाने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि वर्तमान  समाज में चारों तरफ नशाखोरी और विलासिता का साम्राज्य स्थापित हो रहा है। छात्र और युवा पीढ़ी नशा के दलदल मे फंसे हैं तब महावीर का इन्द्रियों के संयम का संदेश ही रक्षा कर सकता है। विद्यार्थी जीवन तपस्या का जीवन है। ब्रम्हचर्य से उत्कृष्ट एवं उच्च शिक्षा प्राप्त किया जा सकता है। सत्य और अहिंसा मानसिक अवसाद से मुक्ति दिला है।  पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रधान पाठक श्री मती प्रभा सिंह ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आजकल छोटे बच्चों में भी नशाखोरी और हिंसक वृतियां देखी जा रही हैं। यह कुसंगति का प्रभाव है। हिंसक और नशाखोरी जैसे धारावाहिक, साहित्यों से दूर रहें। छात्रों को मूल्यपरक शिक्षा प्राप्ति के लिए भगवान महावीर के सिद्धांतों को जीवन में उतार कर अपने जीवन सुखमय बना सकते हैं।

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