सरगुजा
अम्बिकापुर में सप्तदिवसीय संतसम्मेलन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर,27 अप्रैल। सोहम पीठाधीश्वर श्री स्वामी सत्यानंदजी महाराज ने अग्रसेन भवन में सप्त दिवसीय सत्संग के चौथे दिन कहा कि बुजुर्गों को सम्मान दे, उनके अनुभवों का लाभ व आशीर्वाद लें।
स्वामीजी ने कहा कि हमारे परिवार व समाज के बुर्जुग साक्षात देव स्वरूप है। देवालयों में प्रतिष्ठित प्रतिमाओं को वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ प्राण प्रतिष्ठा करवाकर वंदनीय, पूजनीय बनाया जाता है। जबकि हमारे बुर्जुग परमात्मा द्वारा प्रतिष्ठित है। उनका सम्मान करने से आयु, यश व बल की वृृद्धि होती है। बुजुर्गों को धन सम्पति, सुख-सुविधा नहीं अपनत्व व प्रेम की दरकार है, वहीं बुजुर्गों का तिरस्कार करने, उनको दुख तकलीफ देने वाले कभी सुख व चैन से नहीं रह सकते है। जैसा कर्म करेगा, वैसा फल देगा भगवान यही है गीता का ज्ञान का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अपने परिजनों, नारी शक्ति ओर मेल मुलाकात के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार रखे उनको सम्मान दें।
स्वामीजी ने कहा कि मैकाले की पाश्चात्य संस्कृृति के प्रभाव की शिक्षा प्रणाली ने भारतीय विद्यार्थियों को प्राचीन वैदिक, आध्यात्मिक एवं धार्मिक शिक्षा से दूर कर नौकरशाही को बढ़ावा दिया। विद्यार्थियों में स्वाभिमान कम व नकारात्मकता अधिक है। प्राचीन गुरुकुल व वैदिक शिक्षा प्रणाली के कारण भारत का ज्योतिष, भूगोल, गणित, आध्यात्म, वेद व पुराणों में विश्व स्तर पर वर्चस्व था।
हिन्दुस्तान में रहने वाला हर धर्म मजहब का व्यक्ति हिन्दू है। सभी को अपने ज्ञान, बुद्धि व कौशल के माध्यम से भारतीयता की पहचान बढ़ानी चाहिए।
इस अवसर पर रामायणी स्वामी ज्ञानानंद, स्वामी प्रणवानंद, स्वामी नारायणानंद, स्वामी प्रज्ञानंदजी और अरुणस्वरूप ने भी प्रवचन किए।