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बस्तर दशहरा : बाहर रैनी रस्म के साथ विशालकाय रथ की परिक्रमा का समापन
25-Oct-2023 8:47 PM
बस्तर दशहरा : बाहर रैनी रस्म के साथ विशालकाय रथ की परिक्रमा का समापन

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 25 अक्टूबर।
बस्तर में 600 साल पुरानी परंपरा बस्तर दशहरा पर्व में रथ परिक्रमा की आखिरी रस्म बाहर रैनी बुधवार को अदा की गई। ज्ञात हो कि 75 दिनों तक मनाई जाने वाली विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व इस वर्ष 107 दिनों तक मनाई गई।

छत्तीसगढ़ के बस्तर में मनाई जाने वाली विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में रथ परिक्रमा की आखिरी रस्म बाहर रैनी बुधवार को अदा की गई।  इस रस्म में राजकुमार कमल चंद भंजदेव चोरी हुए रथ को ढूंढते हुए कुमड़ाकोट के जंगल पहुंचे, यहां नाराज ग्रामीणों को मनाकर और उनके साथ कुटिया में बैठकर नवाखाई नए फसल के चावल की खीर खाकर पूरे शाही अंदाज में चोरी हुए रथ को वापस राजमहल ले जाने के दौरान पहले बस्तर दशहरा में शामिल हुए, जिसमें असंख्य देवी-देवताओं की डोली, छतरी आगे चलती है और उसके बाद राजकुमार शाही अंदाज में डोली और छत्र के पीछे चलते है, उसके बाद रथ उनके पीछे चलता है और इस रथ में मां दंतेश्वरी के छत्र को विराजमान किया जाता है। इस बाहर रैनी रस्म के साथ ही बस्तर दशहरा की विशालकाय रथ परिक्रमा का समापन होता है।

बताया जाता है कि बाहर रैनी की इस रस्म को 600 बरस से बखूबी बस्तर के आदिवासियों के द्वारा बस्तर दशहरा में निभाया जा रहा है, सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार बस्तर के महाराजा से माडिय़ा जनजाति के आदिवासी नाराज हो गए थे और राजा को अपने बीच बुलाने के लिए एक योजना बनाई, विजयदशमी के दिन आधी रात को सैकड़ों माडिय़ा जनजाति के आदिवासी ग्रामीणों ने रथ को चोरी कर राजमहल परिसर से करीब 3 किलोमीटर दूर कुम्हड़ाकोट के जंगल में छिपाया। जिसके बाद सुबह बस्तर महाराजा को इस बात की खबर लगी तो बकायदा माडिय़ा जनजाति के ग्रामीणों ने उन्हें राजशाही के अंदाज में उनके बीच बुलाया और उनके साथ नवाखानी में शामिल होने को कहा।

कमलचंद भंजदेव ने बताया कि विजयदशमी के दूसरे दिन बाहर रैनी रस्म के दौरान नवाखाई की परंपरा निभाई जाती है इस दिन वे खुद राज महल से वाहन में सवार होकर और अपने पूरे लाव लश्कर के साथ कुम्हड़ाकोट के जंगल पहुंचते हंै। इस दिन बस्तर के पूरे गांव में नवाखाई त्योहार मनाया जाता है, इसमें नए फसल के चावल और राज महल से लाई गई देसी गाय के दूध से खीर तैयार किया जाता है।

इसे मां दंतेश्वरी को भोग लगाने के बाद बकायदा ग्रामीण और राजकुमार इसे ग्रहण करते हैं। इसके बाद 8 चक्कों की विशालकाय रथ को उन्हीं ग्रामीणों के द्वारा खींचकर मंदिर परिसर तक लाया गया।

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