बलौदा बाजार
तालाबों में चारों ओर गंदगी का आलम
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 19 नवंबर। उत्तर भारतीय लोगों का प्रमुख त्यौहार छठ पूजा नहाए खाए के साथ प्रारंभ हो गया है। नहाए खाए के साथ दूसरे दिन खरना की पूजा की गई। महिलाओं द्वारा रविवार 19 तारीख की शाम अस्ताचल होते सूर्य की और 20 तारीख की सुबह उदय होते सूर्य की अधर्य देकर पारंपरिक रूप से पूजा की जाएगी।
नगर में उत्तर भारतीय लोगों की बड़ी संख्या होने तथा बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष महिलाओं द्वारा छठ पूजा की जाने के बावजूद प्रतिवर्ष घटकों लेकर शिकायत की जाती है। नगर में छठ घाट प्रति महिलाओं की तुलना में बेहद छोटा होने और स्थानीय प्रशासन द्वारा पूजन के पूर्व घाट की सफाई नहीं होने से लोगों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ता है।
यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है। पहले दिन सेंधा नमक घी से पूजा हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास प्रारंभ होता है। व्रती दिनभर अन्य जल त्याग कर शाम करीब 7 से खीर बनाकर पूजा करने के उपरांत प्रसाद ग्रहण करते हैं जिससे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अधर्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अधर्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
छठ घाट को बड़ा बनाया जाना आवश्यक
नगर के पिपरा तालाब में ही प्रतिवर्ष छठ की पूजा की जाती है। तालाब के छठ घाट में स्थान बहुत कम है। इसकी वजह से महिलाओं को पूजन के लिए कतार लगनी पड़ती है, और तालाब घाट में फिसल कर गिरने की आशंका भी बनी रहती है।
ऐसे मनाया जाता है यह महापर्व
छठ पूजा चार दिवसी उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थ को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रत धारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थ नहाए खाए के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तारीख से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं।