बलौदा बाजार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भाटापारा, 20 नवंबर। नहाय खाय से शुरू हुए आस्था के महापर्व छठ पूजा का चौथे दिन उगते हुए सूर्य देवता को अघ्र्य देने के साथ ही समापन हो गया। चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है और इसी के साथ छठ महापर्व का समापन हो जाता है। छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अघ्र्य और चौथे दिन को ऊषा अघ्र्य के नाम से जाना जाता है।
चार दिन का पर्व छठ पूजा का समापन उषा अघ्र्य के साथ होता है। इस दिन उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देते हैं। इसके बाद सूर्य देव और छठ माता से संतान के सुखी जीवन और परिवार की सुख-शांति और सभी कष्टों को दूर करने की कामना करते हैं।
सूर्य देवता को अघ्र्य देने की विधि
छठ पूजा में व्रती यदि ही विधि और श्रद्धा भाव से उगते सूरज को अघ्र्य दें तो छठी माता प्रसन्न होकर उनकी पूजा को स्वीकार कर लेती हैं। सदा अपनी कृपा बनाए रखती हैं। सूर्य पूजा के समय महिलाएं सूती साड़ी पहनें, वहीं पुरुष धोती पहन सकते हैं।
साफ-सफाई, शुद्धता का ख्याल अवश्य रखें। मान्यताओं के अनुसार, तांबे के कलश से अघ्र्य देना शुभ होता है। अघ्र्य देते समय सूर्य देवता को सीधे न देखें, बल्कि कलश से गिरते हुए जल की धारा को देखकर भगवान सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। नियमित रूप से जल अर्पित करने से सूर्य दोष भी दूर होगा।
पूजा की सामग्री के साथ व्रती नदी, तालाब किनारे पहुंचते हैं। सूप में सभी पूजा की सामग्री रखी होती है। पानी में खड़े होकर सूप और जल से भरा कलश लेकर उगते हुए सूर्य देव को अघ्र्य दिया जाता है।
हाथों को ऊपर करके पूजा की सामग्री को सूरज भगवान, छठी मैया को अर्पित किया जाता है। मंत्र जाप करके जल से अघ्र्य दिया जाता है। इसके बाद सूर्य भगवान को नमस्कार कर पानी में खड़े होकर ही 5 बार परिक्रमा कर, इसके बाद अपनी इच्छाओं की पूर्ति की प्रार्थना करें।