रायगढ़
नदी घाटों व तालाबों में वर्तियों की बड़ी संख्या में रही उपस्थिति
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 21 नवंबर। नहाय खाय से शुरू हुए आस्था के महापर्व छठ पूजा का आज चौथे दिन उगते हुए सूर्य देवता को अघ्र्य देने के साथ ही समापन हो गया। चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है और इसी के साथ छठ महापर्व का समापन हो जाता है।
छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अघ्र्य और चौथे दिन को ऊषा अघ्र्य के नाम से जाना जाता है। सोमवार की सुबह भी शहर के नदी घाटों कयाघाट, खर्राघाट, जूटमिल लेबर कालोनी, किरोड़ीमल नगर, भगवानपुर सहित कई स्थानों पर उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देकर छठ पूजा संपन्न की गई।
छठ का महापर्व रायगढ़ जिले में पिछले कुछ वर्षों से बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। महिलाओं द्वारा छठ का व्रत संतान की लंबी उम्र और उनके खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है। छठ का यह पर्व 17 नवंबर नहाय खाय से शुरू हुआ था और आज 20 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देने की विधि के साथ पूर्ण रूप से संपन्न हुआ। चार दिनों के चलने वाले इस पर्व में व्रती महिलाओं ने खरना के बाद से व्रत का संकल्प लिया था। यह व्रत कुल 36 घंटे का होता है। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। सोमवार को इस व्रत का पारण कर महिलाओं ने छठ के प्रसाद के साथ अन्न-जल को ग्रहण किया।
पिछले 4 दिनों से धूमधाम से छठ का पर्व मनाया जा रहा था। छठ पूजा में शामिल होने के लिए लोग अपने-अपने शहर पहुंचे, ट्रेनें खचाखच भरी थीं, तो वहीं लोग फ्लाइट का दोगुना किराया देकर भी छठ पूजा में शामिल होने अपने-अपने शहर पहुंचे। ऐसी मान्यता है कि जो एक बार छठ की पूजा शुरू करता है, उसे तब तक करना पड़ता है, जब तक दूसरी पीढ़ी से कोई व्रत को न उठाए।
चौथे दिन उषा अघ्र्य का महत्व चार दिन का पर्व छठ पूजा का समापन उषा अघ्र्य के साथ होता है। इस दिन उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देते हैं। इसके बाद सूर्य देव और छठ माता से संतान के सुखी जीवन और परिवार की सुख-शांति और सभी कष्टों को दूर करने की कामना करते हैं।