गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नवापारा-राजिम, 29 दिसंबर। राधा-कृष्णा मंदिर प्रांगण में चल रही भागवत कथा के षष्ठम दिवस व्यासपीठ पर विराजे 10 वर्षीय बालव्यास कृष्णा दुबे महाराज ने सुंदर हरि संकीर्तन से शुरुआत करते हुए मर्यादा की महिमा का प्रतिपादन किया। मैया सीता और सूर्पनखा की मर्यादा को बताया। उन्होंने भजन हर जगह से हारे जीव को मिलता है मेरे भोले नाथ का सहारा। भगवान पैसे से नहीं विश्वास से मिलते हैं, को प्रतिपादित किया।
उन्होंने कहा कि हम सब तो उस मृग के समान हैं जो कस्तूरी को वन वन खोजता है। कस्तूरी कुण्डल बसे, मृग खोजै वन माहि। ऐसे घट घट राम को जीव खोजें जग माहि। भोले बाबा की उदारता का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे भस्मासुर को वरदान देकर खुद ही संकट में फंस गए। भोलेनाथ को त्रिपुरारी क्यों कहा जाता है। अन्नपूर्णा माता का चित्र कहा लगाना चाहिए महिमा सहित वर्णन करते हुए श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
आगे बताया कि हम मंदिर में हो या यज्ञ मंडप में, या फिर कथा पंडाल हो इन जगहों पर साफ-सफाई, सेवा का कार्य करने से सबसे ज्यादा फल मिलता है। महाकाल का प्राकट्य कैसे और क्यों हुआ, माता से भोलेनाथ भीक्षा मांगते हुए क्यूं दिखाई देते हैं, अवंतिका नाथ क्यों कहा जाता है। इसका विस्तार से वर्णन किया। पार्वती मां के पूछने पर कि आप किसके मुंड की माला पहनते हो तब बाबा भोलेनाथ ने अमर कथा सुनाई, जिसे तोते ने भी सुन लिया और ब्यासजी की पत्नी के मुंह के माध्यम से गर्भ में प्रविष्ट होना और बाद में सुकदेव जी के रूप में प्रकट होना बताया।
शिव परिवार में विषमता होने पर भी सभी का आपस में प्रेम से रहना यही तो गृहस्थियों को सीखने वाली बात है। हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक, हनुमान साठिका की महिमा को प्रतिपादित करते हुए इसके द्वारा दुखों के निवारण का उपाय बताया। श्रद्धालुओं ने बहुत ही सुंदर झांकी का दर्शन किया जिसमें राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमानजी चरणों में बैठे है। आज कथा में अपार भीड़ थी। दूर-दूर से अंचल के लोग आए थे।