महासमुन्द

कमर से नीचे का हिस्सा अचल, परिवार की खातिर ट्राइसिकल में बैठे-बैठे नगाड़े बेच रहा शिव
22-Mar-2024 2:32 PM
कमर से नीचे का हिस्सा अचल, परिवार की खातिर ट्राइसिकल में बैठे-बैठे नगाड़े बेच रहा शिव

कहता है-शरीर से कमजोर हो सकता हूं मन से नहीं, घर का बड़ा बेटा हूं, फर्ज निभाते रहूंगा  

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 22 मार्च।
रविवार 24 मार्च को होलिका दहन और उसके दूसरे दिन 25 मार्च को होली है। इस त्यौहार को लेकर जिले में रंग गुलाल की दुकानें सज गई हैं। जगह-जगह चौक चौराहे पर नगाड़े की दुकानें भी लगी हुई हैं। रंग गुलाल की दुकानों में तरह-तरह की पिचकारियां, मुखौटे, गुलाल, चूड़ी रंग के अलावा फूलों से बने रंग भी दस रुपए से लेकर 500 रुपए तक कीमत पर उपलब्ध हैं।

जिला मुख्यालय से सटे हुए गांव भलेसर से भी मोची अहिरवार समुदाय के बहुत से लोगों ने नगाड़े की दुकानें लगाई हैं। इनमें एक शिव कुमार टांडेकर भी शामिल हैं। कांग्रेस भवन के सामने इन्होंने अपनी दुकान लगाई है। शिव के कमर से नीचे का हिस्सा बिल्कुल अचल है। चल फिर नहीं सकता। जमीन पर बैठ नहीं सकता, खड़ा नहीं हो सकता। लेकिन परिवार की खातिर वह ट्राइसिकल में ही बैठे-बैठे दुकानदारी चला रहा है। लोग दुकान पर आ रहे हैं और दो सौ रुपए से एक हजार रुपए कीमत के नगाड़ों को अपनी सहूलियत के हिसाब से खरीदकर ले जा रहे हैं। 

‘छत्तीसगढ़’ से मुलाकात में शिव ने बताया-परिवार में मां पिताजी के अलावा एक बहन और भाई भी है। मैं घर का बड़ा बेटा हूं। पिताजी भी एक पैर से चल नहीं सकते। अत: बचपन में ही घर की जिम्मेदारी आ गई थी। जल्दी शादी भी हो गई। बाल बच्चे भी आ गये।

सात साल पहले मैं सुबह से मोटर साइकिल में सवार होकर काम पर निकल गया। गांव से दूर एक गांव में मकान की रंगाई पोताई कर शाम को लौटते समय सडक़ दुर्घटना हो गई। जिसमें मेरा यह हाल हो गया। काफी इलाज के बाद भी मैं ठीक नहीं हो सका। परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज होने लगा। तब मैंने मन बनाया कि किसी तरह ठीक होकर काम पर निकल जाऊंगा। लेकिन मेरे कमर के नीचे का हिस्सा बिल्कुल काम नहीं करता। 

मैंने समाज कल्याण विभाग में ट्रायसाइिकल के लिए आवेदन दिया। ट्रायसाइकिल मिल जाने के बाद मैंने अपने पिता के साथ छोटे-छोटे कामों में हाथ बंटाना शुरू किया। मेरी पत्नी और पिता के अलावा मेरी मां भी मुझे बहुत सहयोग करती हैं। 

घर की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है। ऐसे में घर का बड़ा बेटा होने के नाते चुपचप बैठना उचित नहीं है। इसलिए मैं ऐसा काम करते रहता हूं। शरीर से कमजोर हो सकता हूं पर मन से कमजोर बिल्कुल नहीं हूं। मेरे घर के लोगों पर बोझ बनकर नहीं बल्कि उनका सहारा बनकर जीना अच्छा लगता है।

एक सवाल कि नगाड़े से मिलने वाले पैसे से बच्चों के लिए क्या-क्या खरीदोगे? शिव ने कहा-बच्चों से कहूंगा कि जैसा पसंद हो, जो पसंद हो रंग गुलाल खरीद लो। ...और घर के बाकी लोगों से कहूंगा कि साथ में खूब अच्छे से त्यौहार मनाएं। बचे हुए पैसों से बच्चों के लिए किताब कापियां खरीदने का मन है। 
 

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