महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 23 मार्च। कुछ ऐसे रिवाज और उनसे जुड़ी कुछ ऐसी चीजें कभी मरती नहीं। मिठाई माला को ही ले लीजिए। जमाना पूरा का पूरा बदल गया। लेकिन होली पर मिठाई माला और उसकी तासीर नहीं बदली।
हालांकि इसकी उपयोगिता कम जरूर हुई है लेकिन आज भी यह पढ़े लिखे आधुनिक समाज में अपना माद्दा रखता है। महासमुंद के बाजार में आज सुबह से ही ठेले आदि में इसे सजाकर बेचा रहा है। इसे बेचने वााली हठियारिन वाई कहती हैं कि लोग अब भी आते हैं इसे खरीदने। इस बार तीस से लेकर पचास रुपए कीमत तक की मिठाई माला बेच रही हंै। जितना बड़ा दाना, दाने का जितनी ज्यादा तादात, उतनी ही महंगी। इस माला को बड़े और बच्चे होली के दिन पहनते हैं। यह शक्कर पाग से बना होता है। काफी मीठा रहता है।
एक खास बात यह है कि इस माला को पहनने वाला कम और उसे रंग गुलाल लगाने वाला, गले मिलकर बधाईयां देने वाले ज्यादा खाते हैं। इससे त्यौहार पर मिठाईयोंं की आदान प्रदान भी हो जाता है। गांवों में तो अब भी रंग गुलाल और मिठाई माला के बगैर होली होती नहीं है।