महासमुन्द
राज्य में महासमुंद जिले का प्रदूषण स्तर तीसरे स्थान पर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 7 मई। खराब जीवन शैली तथा धूल धुएं की वजह से जिले में साल दर साल अस्थमा के मरीजों में काफी इजाफ ा हो रहा है। इसमें सर्वाधिक मरीज उद्योगों में काम करने वाले कर्मी तथा इसके आसपास रहने वाले लोग होते हैं। जिला मुख्यालय की बात करें तो मेडिकल कॉलेज में प्रतिदिन अस्थमा के 10 मरीज औसत रूप से पहुंच रहे हैं। इनमें 5 से 7 से 8 मरीज बिरकोनी, घोड़ारी, नांदगांव के पत्थर उद्योगों में काम करने वाले होते हैं। इसके अलावा जैनेटिक अस्थमा के मरीजों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हुई है। महज 2 साल पूर्व तक यह आंकड़ा प्रतिदिन 3 मरीज का था। लेकिन इन दो सालों में ही प्रतिदिन 10 तक आंकड़ा पहुंच चुका है। पूर्व में केवल बुजुर्ग ही इसकी चपेट में आते थे। लेकिन बीते कुछ वर्षों में युवा भी तेजी से इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। हालांकि मेडिकल कॉलेज बनने के बाद से अस्थमा से होने वाली मृत्यु दर में कमी आई है।
जानकारी अनुसार प्रदेश में महासमुंद जिले का प्रदूषण स्तर(पॉल्यूशन लेवल) तीसरे स्थान पर है। मिली जानकारी के मुताबिक अस्थमा कोई गंभीर बीमारी नहीं है। लेकिन इसका समय पर इलाज न कराने, सावधानी नहीं बरतने से यह बड़ी परेशानी पैदा कर सकती है। अस्थमा के अटैक आने या शरीर में इस बीमारी के साथ फेफड़े और सांस की बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है। भारत में एक अनुमान के मुताबिक अस्थमा रोगियों की संख्या लगभग 15 से 20 करोड़ है। इसमें अस्थमा से पीडि़त शिशुओं की संख्या लगभग 12 प्रतिशत है। वहीं प्रदेश की बात करें तो यहां 10 फीसद अस्थमा पीडि़त हैं।
डॉक्टरों के मुताबिक अस्थमा एलर्जटिक बीमारी है। इसमें फेफड़े संकुचित और फूलने लगते हैं। सांस लेने में तकलीफ होती है। मौसम बदलने और प्रदूषण जैसे वातावरण में तकलीफ अधिक होती है। बच्चों में छह साल तक हाइपर रिएक्टिव एयरवे डिसीज एचआरएडी होता है। ऐसे मरीजों में किसी को सालभर परेशानी होती है तो किसी को मौसम बदलने के साथ तकलीफ शुरू होती है।
महासमुंद जिला मेडिकल अस्पताल के असिस्टेंट प्रोफेसर व श्वसन विशेषज्ञ रोशन वर्मा का कनहा है कि सांस फूलना, खांसी होना, गले में सीटी जैसी आवाज, कफ बना रहना, बलगम आना, सांस लेने में दिक्कत, सीने में खिंचाव होना इसके मुख्य लक्षण होते हैं। वर्तमान में यह बीमारी बुजुर्गों के साथ-साथ बड़ी संख्या में युवाओं और बच्चों को भी घेर रही है। प्रदूषण और धूल की समस्या से ग्रस्त अस्थमा के मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
चिकित्सकों के अनुसार अस्थमा मरीजों में 60 फीसद अनुवांशिक जबकि 40 फीसद सामान्य रूप से इस बीमारी से पीडि़त होते हैं। इसका सबसे बड़ा इलाज परहेज और नियमित दवाएं हैं। श्वांस संबंधित दिक्कतें होने पर तुरंत ही चिकित्सक से परामर्श लेने, बचाव के लिए इन्हेलर का उपयोग करने की जरूरत होती है।