रायपुर

निजीकरण को बढ़ाने वाला जनविरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त बजट- माकपा
01-Feb-2021 5:34 PM
निजीकरण को बढ़ाने वाला जनविरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त बजट- माकपा

बजट प्रतिक्रिया

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 1 फरवरी।
केंद्र सरकार द्वारा आज पेश बजट को माक्र्सवादी कम्युनिस्ट  पार्टी ने अर्थव्यवस्था को निजीकरण की ओर धकेलने वाला जनविरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त बजट करार दिया है, जिसमें कोरोना संकट से जूझ रही आम जनता के लिए  महंगाई और बेकारी के सिवा और कुछ नहीं है। 

आज जारी प्रतिक्रिया में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि बजट में बीमा, बंदरगाह, बिजली, सडक़, स्वास्थ्य, रेलवे आदि सभी प्रमुख क्षेत्रों के रणनीतिक निवेश की घोषणा की गई है, जो अपना घर बेचकर सरकारी खर्च चलाने के समान है। सरकार द्वारा इसे आत्मनिर्भरता बताना हास्यास्पद है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था का और पतन होगा। 

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि कोरोना वैक्सीन पर 35000 करोड़ रुपये के बजट से मुश्किल से एक-तिहाई आबादी का ही टीकाकरण हो सकेगा। सैनिक स्कूलों के लिए निजी क्षेत्र के सहयोग की आड़ में सैन्य शिक्षा में संघी गिरोह की घुसपैठ कराने का काम किया जा रहा है और यह सैन्य बलों के निजीकरण का रास्ता ही खोलेगा। इसी प्रकार 2.5 लाख करोड़ रुपये के बजट से उतना भी खाद्यान्न भंडारण नहीं होगा, जितना कि पिछले साल हुआ है। इससे स्पष्ट है कि किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की जगह उन्हें किसान विरोधी कानूनों की मंशा के अनुरूप खुले बाजार में धकेलने की योजना लागू की जा रही है। इससे देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता खतरे में पडऩे वाली है।

उन्होंने कहा कि जब अर्थव्यवस्था मांग के अभाव और मंदी से जूझ रही हो, तब जरूरत बड़े पैमाने पर नौकरियों के सृजन, मुफ्त खाद्यान्न वितरण और नगद राशि से मदद करने की होती है, ताकि आम जनता बाजार से सामान खरीद सके, मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था को गति मिले। लेकिन ऐसे किसी उपाय पर अमल करने के बजाय बजट में आम जनता की रोजमर्रा के उपयोग की चीजों के दाम ही बढ़ाये गए हैं।

माकपा नेता ने कहा कि यह पहला आधा-अधूरा बजट है, जिसमें मनरेगा और रक्षा क्षेत्र के लिए बजट आबंटन का प्रस्ताव ही नहीं है। ग्रामीण विकास और कृषि के लिए सरकारी खर्च में कोई वृद्धि नहीं की गई है। महंगाई से परेशान मध्यवर्गीय जनता को आयकर में कोई छूट नहीं दी गई है। 

विनिवेशीकरण की लकीर को इतना लंबा खींचा गया है कि सरकारी उद्योगों के पास पड़ी जमीनों को बेचने की घोषणा की गई है। इससे कोरबा जैसे जिलों में इन जमीनों पर काबिज किसानों और आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा।
माकपा ने कहा है कि यह एक चुनावी बजट भी है, जिसमें 1.8 लाख करोड़ रुपये चुनावी राज्यों में ही राजमार्ग निर्माण के नाम पर झोंके जा रहे हैं, लेकिन अपनी आजीविका खोकर गांवों में पहुंचने वाले आप्रवासी मजदूरों के लिए राहत के छींटे तक नहीं हैं। 
 

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