महासमुन्द
महासमुन्द, 8 फरवरी। नगर के इमली भाठा वार्ड 3 में श्रीमद भागवत महापुराण का आयोजन किया जा रहा है। भागवत कथा के चौथे दिन आचार्य युगल किशोर ने कहा कि वास्तव में हम जो दान करते हैं, वह केवल पुण्य कार्य नहीं है, बल्कि परिग्रह रूपी पाप का प्रायश्चित है। किसी भी कार्य का अतिरेक स्वयं एवं समाज दोनों के लिए ठीक नहीं है।
हमारा पूरा जीवन अपने एवं परिवार के आवश्यकता की पूर्ती करने में ही बीत जाता है। इस आपाधापी में हम सोच ही नहीं सकते कि हमारे लिए आवश्यक क्या है। उन्होंने कहा कि आवश्यकता ऐसी डायन है, जो कभी तृप्त नहीं होती और न हो सकती है। आपमें यदि अर्जन का सामर्थ है तो खूब अर्जित करें और जरूरतमंदों को अर्पित भी करें। आप जितना बाटेंगे, उतना ही बटोरेंगे और जितना खिलाएंगे, उतना ही खिलखिलाएंगे। व्यासपीठ से आयार्च युगल किशोर ने समुद्र मंथन की व्याख्या करते हुए कहा कि नित्य मन का औचक निरीक्षण करें। मन का मंथन करेंगे तो निश्चित ही आनंद रूपी अमृत निकलकर आएगा। भगवान राम का व्याख्या करते हुए आचार्य ने कहा कि राम को केवल दशरथ के पुत्र या अयोध्या नरेश के रूप में देखना संकीर्णता है। वास्तव में राम सम्पूर्ण सृष्टि के प्राण हैं।
भारत की प्रभाती के प्रथम प्रहर की गूंज है।