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नेताजी सुभाष स्टेडियम से सियोल ओलंपिक तक
20-Jul-2024 2:04 PM
नेताजी सुभाष स्टेडियम से सियोल ओलंपिक तक

 मसूद प्रदेश के पहले अन्तरराष्ट्रीय कॉमेन्टेटर 

रायपुर, 20 जुलाई। पूर्व खेल कॉमेन्टर तेजपाल सिंह हंसपाल ने बताया कि  मिर्जा मसूद जी खेल के अन्तर्राष्ट्रीय कॉमेन्टेटर थे। इस हैसियत से तो उनका दर्जा काफी सम्मान वाला था। लेकिन पेशे से वे आकाशवाणी रायपुर के वे उद्घोषक थे जिसमें प्रमोशन के अवसार बहुत कम थे। सो वे उदघोषक पद से रिटायर हो गए थे। वे हाकी की कमेन्ट्री के साथ ही फुटबाल व अन्य खेलों की कॉमेन्टेटरी किया करते थे। मेरी जानकारी में उन्होंने शायद क्रिकेट की कॉमेन्टेटरी कभी नहीं की। 

श्री हंसपाल ने बताया कि पहली बार मैंने जब उनकी कॉमेन्टेटरी सुनी तो उसमें उनका यह कहना की रायपुर के नेताजी सुभाष स्टेडियम से मैं मिर्जा मसूद अपने सहयोगी....... कॉमेन्टेटर के साथ बोल रहा हूं। उनकी यह शुरुआत मुझे काफी आकर्षित करती रही। फिर एक दिन ऐसा भी आया कि मैंने उनके साथ रायपुर के हिन्द स्पोर्टिंग मैदान में यही शब्द बोलने का रोमांच भर अवसर मिला।   

श्री हंसपाल ने बताया कि 1980 से मेरी आकाशवाणी रायपुर के खेल कार्यक्रमों रुचि बढऩे लगी थी, सो मैं अपने छोटे भाई सुरेन्द्रपाल सिंह हंसपाल के साथ मैं आकाशवाणी जाने लगा। धीरे धीरे मिर्जा मसूद जी के सानिध्य़ में खेल के कार्यक्रमों के लिए साक्षात्कार, वार्ता और अन्य खेल प्रसारण के कार्यक्रम करने लगा। उनकी आवाज भारी तो थी लेकिन बिल्कुल स्पष्ट थी। उनके व्यक्तित्व में रंगकर्म, नाटक, पटकथा लेखन और निर्देशन भी था। लेकिन कभी भी उन्होंने हमें शायद हमारी खेल के प्रति रुचि को देखते हुए हमें नाटक की ओर मोडऩे का प्रयास नहीं किया।

श्री हंसपाल ने बताया कि मिर्जा मसूद जी के साथ खेल के कार्यक्रम करते करते हम उनकी मुरीद हो गए थे। हमने उन्हें गुरु तो नहीं बनाया क्योंकि हम तो आकाशवाणी के खेल कार्यक्रम शौकिया ही करते रहे। वे विशेष रुप से अकसर ही आकाशवाणी दिल्ली के बुलावे पर देश के कई बड़े हॉकी टूर्नामेंट में हाकी की कमेन्ट्री करने जाते रहे। इसके अलावा भी उन्होंने कई अन्य खेलों की भी कमेन्ट्री। 

श्री हंसपाल ने बताया कि हमें याद है कि 1988 वें सियोल ओलिंपिक में कमेन्ट्री करने के लिए दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल गए थे। वहां उन्होंने देश के लिए हिन्दी में कॉमेन्टरी की जिसे लाखों भारतीयों ने सुना। जब वे कॉमेन्टेटरी कर ट्रेन से रायपुर लौटे तो हम दोनों भाईयों के अलावा हमारे एक दोस्त उनका स्वागत् करने के लिए रायपुर के रेल्वे स्टेशन पहुचे और उनका फूल मालाओं से स्वागत किया। हमारे पास तो न तो कोई कार नहीं थी और ना ही कोई कार वाला अमीर दोस्त था। सो हमने एक आटो किया और उसमें फूलों से लदे मिर्जा जी को उनके घर की ओर रवाना किया।

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