जान्जगीर-चाम्पा

काल-लाल के बाद अब हरा चावल की फसल
09-Dec-2021 5:26 PM
काल-लाल के बाद अब हरा चावल की फसल

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदा, 9 दिसंबर। 
युवा कृषक संजय के लगन से किसानों को नई राह मिली। अभी तक लोग सामान्य धान, गेंहू कोदो कुटकी मक्का की उपज करते आ रहे थे, अब काली चावल, लाल राइस, हरा चावल,और काली  गेंहू की भी उपज होने लगी।  अब श्यामला ग्रीन राइस की फसल ली जा रही है।

जांजगीर जिले के बलौदा नगर के युवा किसान संजय ने  सोशल मीडिया,समाचार पत्रों और  इंटरनेट के माध्यम से , देश विदेशों में खाद्यान्न उपज की जानकारी जुटाई ,साथ ही साथ कृषि विभाग की ओर से आयोजित अलग अलग जगहों में आयोजित कृषि प्रदर्शनी में जाकर जानकारी जुटाई। वहां जाने से पता चला कि ब्लैक राइस, रेड राइस  ब्लैक गेहूं के अलावा श्यामला ग्रीन राइस औषधि युक्त हरा चावल की फसलें लगाई जाती है। इसके सेवन से लोगों के स्वास्थ्य पर काफी लाभ होता है। ग्रीन राइस की बीज प्रदर्शनी में आये किसानों से जानकारी लेकर बस्तर से ग्रीन राइस का 2 किलो बीज से उपज की शुरुवात की और अब 2 एकड़ भूमि में ग्रीन राइस की खेती किए हैं।

कृषक संजय रजक दुबराज, मासुरी, एचएमटी, सफरी जैसे धान उगा चुके है अब अलग-अलग रंगों के धान उगा रहे हैं। महानगरों के साथ विदेशी बाजारों की डिमांड को ध्यान में रखते हुए यहां ग्रीन राइस का उत्पादन किया जा रहा है। अब यहां के किसान उन्नत किस्म की खेती कर इसे बड़ा व्यवसाय बनाकर मुनाफा कमाने की सोच रहे हैं और अन्य किसानों को भी इसकी उपज को अपनाने के लिए बीज भी उपलब्ध करा रहें है।

डाइबिटीज कंट्रोल में मदद करता हैं ग्रीन राइस
जो किसान धीरे-धीरे खेती से विमुख हो रहे थे, वे अब फिर से जैविक खेती के माध्यम से  इसकी ओर लौटने लगे हैं, लेकिन अब वे बदले जमाने के मुताबिक खेती कर रहे हैं। वे अपने खेतों में धान की सामान्य किस्मों के साथ ग्रीन राइस के साथ सेंटेड राइस जैसी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं।

कृषक संजय का कहना है कि वे श्यामला ग्रीन राइस पर फोकस कर रहे हैं। इस चावल को खाने से डाइबिटीज कंट्रोल में रहता हैं,जिंक, आयरन,और प्रोटीन भी की मात्रा अधिक है,चावल हरे रंग का होता है। स्वाद और सुगंध भी लाजवाब है. जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। इसको उपजाने में कोई भी रासायनिक खाद का प्रयोग नही किया जाता। पूरे तौर पर जैविक पद्धति अमल में लाते हंै।

वैज्ञानिक खेती से ज्यादा हो रहा मुनाफा
पिछले कुछ सालों में खेती के ट्रेंड में काफी बदलाव आया है. यहां के किसान पारंपरिक खेती के साथ अब वैज्ञानिक खेती पर भी फोकस कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के विकास में किसान और धान दोनों का अहम योगदान है।
प्रदेश में लगभग 80 फीसदी किसान हैं। इनमें से अधिकांश किसानों की जिंदगी धान और उससे होने वाली आय पर ही निर्भर रहती है।
 

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