राजनांदगांव

नारी का सदैव सम्मान करें-गोस्वामी
01-Jan-2022 5:04 PM
नारी का सदैव सम्मान करें-गोस्वामी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अंबागढ़ चौकी, 1 जनवरी
। श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा के सातवे दिन व्यासपीठ से भागवताचार्य कथावाचक पं. विनोद बिहारी गोस्वामी ने बताया कि जो इंसान नारी का सम्मान नहीं करता है, उसे दरिद्रता का शिकार होना पड़ता है तथा उसके वंश का विनाश होता है। उन्होंने कहा कि नारी में सर्वशक्तिमान जगदंबा का अंश होता है, इसलिए नारी का सदैव सम्मान करना चाहिए।

श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा के सातवें दिन कथावाचक गोस्वामी ने व्यासपीठ से नारी की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने कथास्थल में परम पावनी मां गंगा एवं माता पृथ्वी एवं मां तुलसी की महिमा सुनाई। कथावाचक ने बताया कि मां भगवती जगदंबा ही प्रकृति है। इस चराचर जगत के संचालन के लिए उन्होंने देवियों का उत्पन्न किया एवं त्रिदेव को भी सृष्टि के निर्माण व संचालन के लिए मां महाकाली, मां महालक्ष्मी व मां महासरस्वती को प्रदान किया। उन्होंने बताया कि घर की नारियों गृहलक्ष्मी में भी माता का अंश है, इसलिए कभी अपने गृहलक्ष्मी का अनादर न करें। यदि हमने नारियों का अपमान किया तो हमें दरिद्रता का शिकार होना पड़ेगा और वंश के विनाश का सामना करना पड़ सकता है।

कथावाचक गोस्वामी ने पतिव्रत धर्म के महत्व को समझाते बताया कि पतिव्रता नारी के साथ धर्म व सत्य साक्षात विराजमान रहते हैं और बिना पत्नि के साथ किया गया तीर्थ, दान, पुण्य एवं श्राद्ध कर्म कभी भी सार्थक नहीं होते हंै, इसलिए गृहस्थ वयक्ति को अपना संपूर्ण कार्य अपनी गृहलक्ष्मी धर्मपत्नी के साथ ही रहकर करना चाहिए।
भागवताचार्य ने कथास्थल में माता पृथ्वी, मां गंगे व माता तुलसी का प्रसंग भी सुनाया। उन्होंने माता की महिमा का बखान करते बताया कि माता आज भी इस धरा में लोगों का उद्धार कर रही है।

 इन भारों का सहन नहीं कर सकती मां पृथ्वी  
कथावाचक पं. गोस्वामी ने बताया कि भगवान श्रीहरी विष्णु के वराह अवतार के समय ही माता पृथ्वी मूर्तीमान रूप में विराजित हुई। भगवान की कृपा से ही माता पृथ्वी रसातल में स्थापित हुई। कथा में भागवताचार्य ने बताया कि माता पृथ्वी ने भगवान के सामने प्रार्थना की थी की वह सब का भार सहन कर लेगी, लेकिन श्रीकृष्ण पूजन सामग्री , शिलिंग पार्वती शंखदीप, तुलसी दल, जपमाला, कपूर, सोना चंदन शालिग्राम का जल यह मुझ पर न रखे। अर्थात इन्हें धरती में रखना वर्जित है, इसलिए सदा इन्हें आसन में रखा जाता है।
 

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