राजनांदगांव
![दृष्टि एवं दृष्टिकोण सही नहीं हुआ तो पतन निश्चित-सम्यक रतन सागर दृष्टि एवं दृष्टिकोण सही नहीं हुआ तो पतन निश्चित-सम्यक रतन सागर](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1641815451G_LOGO-001.jpg)
राजनांदगांव, 10 जनवरी। जैन मुनि सम्यक रतन सागर जी ने रविवार को कहा कि जब हमें देखने और सोचने की शक्ति मिली है तो इसका सही उपयोग होना चाहिए। चील के पास दृष्टि होती है, किन्तु दृष्टिकोण नहीं होता, इसलिए इतनी ऊंचाई में उडऩे के बाद भी उसकी नजर नीचे की ओर रहती है। वह शव, गला मांस आदि खोजते रहता है। हमारी भी दृष्टि एवं दृष्टिकोण सही नहीं हुआ तो हमारा पतन निश्चित है।
मुनिश्री ने कहा कि दृष्टि की एक निश्चित सीमा होती है, किन्तु दृष्टिकोण की सीमाएं अनंत है। दृष्टि में हम एक निश्चित दूरी तक परिवर्तन कर सकते हैं, किन्तु दृष्टिकोण में हम शुरू से लेकर अंत तक परिवर्तन कर सकते हैं। जैन जगत का आध्यात्म भी दर्शन यानि दृष्टिकोण पर टिका है। उन्होंने कहा कि हम आराधना साधना के कितने भी उड़ान भर लें, किंतु यदि दृष्टिकोण मलिन है तो हमारी साधना-आराधना का कोई मतलब नहीं। उन्होंने कहा कि आकाश में उडऩे वाले चील की नजर अर्थात दृष्टि इतनी ऊंचाई में होने के बाद भी नीचे रहती है।
क्योंकि चील के पास दृष्टि है, किन्तु दृष्टिकोण नहीं है। हंस के पास दृष्टि भी होती है और दृष्टिकोण भी होता है, इसीलिए वह दूध और पानी को अलग-अलग कर देता है।
शिकायत करने वाला कभी प्रसन्न नहीं हो सकता-प्रवीण मुनि
श्रमण संघ के उपाध्याय प्रवीण मुनि ने कहा कि शिकायत करने वाला कभी प्रसन्न नहीं हो सकता। शिकायत एक कांटा है और इससे हमें बचना चाहिए। शिकायतकर्ता कभी धर्म श्रद्धालु हो नहीं सकता। उन्होंने कहा कि जिसके पास बुद्धि का दिया है, वह कभी शिकायत नहीं करता और जिसका दिवाला निकल गया है ,वहीं शिकायत करता है। प्रवीण मुनि जैन बगीचे में बोल रहे थे।