बलौदा बाजार
दिव्यांगता को बनाई ताकत, नेट में 92 फीसदी अंक
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 26 फरवरी। उड़ान भरने पंख नहीं हौसला चाहिए और यह कर दिखाया है हमारे नगर की बेटी कृषि विभाग में सहायक सांख्यिकी अधिकारी अर्चना बघेल ने। बचपन में एक हादसे में दाहिना हाथ व पैर गवां चुकी अर्चना ने बाएं हाथ से यूजीसी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा ली गई ऑल इंडिया लेवल की नेट 2021 में हिंदी विषय में 92 अंक प्राप्त कर नगर व प्रदेश का नाम रोशन किया है। उनकी यह सफलता इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए यूजीसी द्वारा ली गई राष्ट्रीय पात्रता की इस परीक्षा में 671288 परीक्षार्थियों में सिर्फ 7.8 फीसदी परीक्षार्थियों ही सफलता हासिल कर पाए हैं।
जिले के सिमगा विकासखंड के छोटे से गांव भैंसा के किसान परिवार में जन्मी अर्चना के साथ 6 वर्ष की छोटी सी आयु में एक बड़ा हादसा तब हुआ, जब घर की छत पर खेलते समय छत के ऊपर से गए 6 केवी विद्युत तार के संपर्क में आ गई, जिसमें चिकित्सकों को उसका जीवन बचाने के लिए दायांं हाथ व घुटने तक दायांं पैर काटना पड़ा।
बचपन की मौज मस्ती हंसी खेलकूद बचपन में ही छूट गए मगर अर्चना के मन में आगे बढऩे की उनकी चाहत उनके कदमों को रोक नहीं पाए, वह उस वक्त पहली कक्षा में थी। इलाज के बाद संभाली तो बाएं हाथ व पैर का उपयोग प्रैक्टिस कर दाहिने की तरह करना सीख गई। उन्होंने दिव्यांगता की अपनी कमजोरी को ताकत बना लिया और पढ़ाई जारी रखते हुए अधिकांश विषयों में टॉप करती रही अर्चना इस समय कृषि विभाग बलौदाबाजार में सहायक सांख्यिकी अधिकारी के पद पर कार्यरत है।
बेटी के लिए डॉक्टर पिता ने छोड़ दी प्रैक्टिस
पिता ओमप्रकाश बघेल बेटी के कंधा से कंधा मिलाकर खड़े रहे पैसे से इस पिता ने बेटी की पढ़ाई के लिए अपनी प्रैक्टिस भी छोड़ दी प्रैक्टिस छोडऩे के बाद पूरा परिवार खेती किसानी पर ही निर्भर होकर रह गया है गांव में पांचवी कक्षा तक ही स्कूल था इसलिए पिता बेटी को गांव से 6 किलोमीटर दूर साइकिल से ही नयापारा के स्कूल छोड़ कर आते थे फिर लेने जाते थे आने जाने में ही पूरा दिन निकल जाता था 24 साल बीत जाने के बाद भी आज जब बेटी अधिकारी बन गई है तब भी यह पिता उन्हें ऑफिस तक छोडऩे के बाद लेने भी जाते हैं।
बिना जिद के आप इतिहास नहीं रच सकते-अर्चना
अर्चना का कहना है बिना जीत के आप इतिहास नहीं रच सकते, छोटी उम्र में ही अगर किसी शख्स के साथ ऐसी घटना हो तो उसका टूटना लाजिम है। बदनसीबी से मिले हालात मुझे हारने में लगे थे मगर मेरी जीत हालात को बदलने की थी अपनी सारी शक्तियों योग्यताओं को संकल्पित करके मैंने अपनी मंजिल को पाने में लगा दिया। गुरु डॉक्टर मृदुला शुक्ला पथ प्रदर्शन बनी तो माता-पिता मुश्किलों में भी साए की तरह साथ रहे। मेरा लक्ष्य पीएससी परीक्षा देकर असिस्टेंट प्रोफेसर बनना है।