रायपुर

हैदराबाद के रियल एस्टेट में छत्तीसगढ़ का दबदबा
20-Mar-2022 5:31 PM
हैदराबाद के रियल एस्टेट में छत्तीसगढ़ का दबदबा

अमरनाथ और भरत के मन की पीड़ा-दिहाड़ी मजदूरी में छत्तीसगढ़ जैसी बेइमानी नहीं

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 20 मार्च। हैदराबाद-सिकंदराबाद ट्विन सिटी की अटटालिकाओं में छत्तीसगढ़ के श्रम का पसीना भी महकता है। महक शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है कि वह मजदूर की मेहनत की बंूदे हैं। ट्विन सिटी के रियल एस्टेट कारोबार में दुर्ग, राजनांदगांव, जांजगीर के हजारों मजदूरों का दबदबा है। शिवरीनारायण के सलखन गांव के अमरनाथ के मुताबिक हजारों नहीं एक लाख से अधिक मजदूर होंगे। वहां मिलने वाली मजदूरी दिहाड़ी और बिल्डर द्वारा दी जाने वाली अन्य सुविधाएं इतनी अच्छी होती है कि गांव से काम न होने का फोन जाते ही इंहा आ जा का रिप्लाई मिल जाता है।

परिवार में शादी बिहाव के लिए गांव आ रहे अमरनाथ से काचीगुडा स्टेशन में मुलाकात हुई। यशवंतपुर एक्सप्रेस एक घंटे लेट थी, हमने लंबी बात की। उसके साथ थे, चार माह पहले हैदराबाद गए भरत और उसका बेटा सभी के हाथ में एंड्रायड फोन थे और उंगलिया लेट लतीफ ट्रेन को फॉलो कर रही थी। ‘छत्तीसगढ़’ के रिपोटर ने अपना परिचय दिया और छत्तीसगढ़ी में चर्चा शुरू हुई। अमरनाथ ने बताया वह कोरानाकाल के पहले से ही राजमिस्त्री का काम कर रहा है। भरत को आए चार से पांच माह हो गए। दोनों ने बताया कि हैदराबाद में रोजी राजमिस्त्री की 750 रेजा की 4 सौ रुपये और कुली को 5 सौ रुपये मिलते हैं। पेमेंट सप्ताह में एक बार। इस हिसाब से महीना 28 से 30 हजार की इनकम है। जब रिपोटर ने यह कहा कि छत्तीसगढ़ में अमूमन यही दिहाड़ी है। यह सुनकर भरत ने तपाक से कहा कि वहां बेईमानी ज्यादा है। मैने एमजीएम के पीछे एक साइट पर काम किया था। पहले तो दिहाड़ी कम फिर छोटी-छोटी बात पर बिल्डर ने उसमें भी कटौती कर दी। तब अमरनाथ से मदद ली और हैदराबाद चला आया। अब 28 हजार रुपये में 10 से 12 हजार रुपये बच भी जाता है, क्योंकि यहां रसोई सस्ती है। फिर हम लोग छत्तीसगढिय़ा लोग दाल-चावल पताल की चटनी से पेट भर लेते हैं। यहां साढ़े 8 से साढ़े 5  तक काम दोपहर एक घंटे का लंच और काम के बाद फ्री। साइट पर श्रम विभाग के अफसरों की पहली नजर होती है। हर सप्ताह आकर मजदूरों की संख्या, दिहाड़ी, मेडिकल सुविधाओं को लेकर फार्म भरवाकर ले जाते हैं। गड़बड़ी हुई तो नोटिस, इसलिए बेईमानी का प्रश्न ही नहीं उठता।

खानपान नहीं बदला, पहनावा बदल गया-अमरनाथ का ही एक साथी अपने परिवार के साथ लौट रहा था। परिवार की महिलाओं का पहनावा देखते ही बन रहा था। दक्षिण के फिल्मों की पूरी झलक इस पहनावे में थी। जवान बहू ने एंब्रॉइडरी और ग्लास वर्क की साड़ी, लिपस्टिक लगाए हुए थे, दोनों कलाईयां कोहनी तक चूड़ा से भरी थी। मगर सफर के लिए जो लंच पैक रखा था, उसमें दाल-भात और चटनी नजर आई।

अभी 10 साल का काम है, लौटने की जल्दबाजी नहीं

जब पूछा कि इसका मतलब यहां तो 10 हजार मजदूर तो होंगे छत्तीसगढ़ के। अमरनाथ ने कहा कि यह तो एक प्रतिशत हो गया। एक लाख से ऊपर होंगे। अमरनाथ अभी लिंगमपल्ली प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। रिपोटर ने कहा कि प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद गांव लौटना होगा। अमरनाथ ने जवाब दिया कि नहीं हमारे लिए  अगले दस साल का काम है। अभी का प्रोजेक्ट 8-8 मंजिल के 18 टावर का है। अभी 8 बजे है। 10 और बनने है। इसलिए गांव लौटने की जल्दबाजी नहीं है। जब पूछा कि बोली भाषा की समस्या तो होगी, तो भरत ने कहा हमारा काम इंच, वर्गफीट में होता है इसलिए साइट इंजीनियर या बिल्डर की बाते समझने में दिक्कत नहीं होती।

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