गरियाबंद

भक्ति युवावस्था में करो, बुढ़ापे में क्या फायदा-ईश्वर महराज
27-Mar-2022 2:33 PM
भक्ति युवावस्था में करो, बुढ़ापे में क्या फायदा-ईश्वर महराज

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
नवापारा, राजिम, 27 मार्च।
तोरला में आयोजित दुखू साहू, मुरहा साहू, फगवा एवं इतवारी साहू की स्मृति में श्रीमद भागवत कथा अजामिल की कथा, प्रह्लाद चरित्र एवं गजेंद्र मोक्ष की कथा सुनाई गई। कथा वाचक पं ईश्वर महाराज कहते है कि भक्ति करने है, तो जवानी में कर लो। बुढ़ापे में अगर भक्ति के करीब होगे तो बस कुछ ही समय का फायदा होगा। जीवन भर पाप करते रहे और अंत में धर्म के करीब आ भी गए तो कोई बड़ी बात नहीं हो गई।
अंत समय में भी स्वार्थवश ही धर्म के करीब जाते हो। सोचते हो कि अंतिम समय में धर्म से सारे पाप कट जाएंगे। क्यों भूल जाते हो कि उसके पास सबका हिसाब है।

श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन कथावाचक ईश्वर महराज ने श्रीकृष्ण-रुक्मणी विवाह का प्रसंग सुनाया। कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं में यह दिखाया भी था कि श्रीराधा और वह दो नहीं बल्कि एक हैं, लेकिन देवी राधा के साथ श्रीकृष्ण का लौकिक विवाह नहीं हो पाया।

देवी राधा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय देवी रुक्मणी हुईं। देवी रुक्मणी और श्रीकृष्ण के बीच प्रेम कैसे हुआ इसकी बड़ी अनोखी कहानी है। इसी कहानी से प्रेम की नई परंपरा की शुरुआत भी हुई। देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी अपनी बुद्धिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्ध थीं। रुक्मणि का पूरा बचपन श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। जब विवाह की उम्र हुई तो इनके लिए कई रिश्ते आए लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया। उनके विवाह को लेकर माता-पिता और भाई चिंतित थे। बाद में रुक्मणी का श्री कृष्ण से विवाह हुआ। कथा का आयोजन कोमल राम साहू, हेमंत साहू द्वारा किया जा रहा है।

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