रायपुर
![जंगल को बचाकर आदिवासी संस्कृति को बचाया जा सकता है जंगल को बचाकर आदिवासी संस्कृति को बचाया जा सकता है](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1650546608llllllllll.jpg)
साहित्य महोत्सव में परंपरा के संरक्षण के उपायों पर चर्चा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 21 अप्रैल। राजधानी के डी.डी.यू ऑडिटोरियम में चल रहे राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव में जनजाति साहित्य की विभिन्न विषयों पर अलग-अलग सत्रों में परिचर्चा हुई। इसमें भारत के जनजातियों में वाचिक परंपरा के तत्व एवं विशेषताएं एवं संरक्षण के उपाय, भारत की जनजाति धर्म एवं दर्शन, जनजाति लोक कथाओं का पठन एवं अनुवाद तथा जनजाति लोक काव्य पठन एवं अनुवाद जैसे विषय शामिल रहे।
आदिवासी प्रकृति पूजक-डॉ. मीणा
जे.एन.यू. नई दिल्ली विश्वविद्यालय से आए डॉ गंगा सहाय मीणा ने कहा कि सभी आदिवासियों की कुछ बातें पूरे विश्व में सभी जगह समान रूप से मिलती हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के सांस्कृतिक सवालों पर सोचने की जरूरत है, आदिवासी मूलत: एक सांस्कृतिक अवधारणा है। इंदौर कॉलेज की सहायक प्राध्यापक डॉ रेखा नागर ने कहा कि आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं, प्रकृति उनकी सहचरी बनी हुई है। जंगल के बचाव से आदिवासी संस्कृति को बचायी जा सकती है।
वाचिक परंपरा का बना दस्तावेज-रूद्र
छत्तीसगढ़ बस्तर के रूद्र पाणिग्रही ने कहा कि वाचिक परंपरा का दस्तावेजीकरण होना चाहिए। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के दूरस्थ अंचल अबूझमाड क्षेत्र में निवासरत जनजातियों के बारे में अपना व्याख्यान दिया। हैदराबाद से आए डॉ सत्य रंजन महकुल ने जुआंग समुदाय के शिफ्टिंग कल्टीवेशन, हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पी.सुब्बाचारी ने अनुवर्तीत जनजाति प्रदर्शन कला, दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ स्नेहलता नेगी ने हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जनजातियो में महिला सशक्तिकरण के बारे में तथा लोक परंपराओं को बचाए रखने वाली पारंपरिक गीत ठाकुरमोनी और बीआर साहू ने जनजातियों के वनस्पतिक ज्ञान के बारे में बताया।
इसी तरह अन्य प्रतिभागियों में उत्तर प्रदेश लखनऊ से आई डॉ अलका सिंह, गुवाहाटी विश्वविद्यालय आसाम से डॉ अभिजीत पायेंग, झारखंड की वंदना टेटे, मणिपुर विश्वविद्यालय की डॉ कंचन शर्मा, नारायणपुर से आए शिव कुमार पांडे, पदमपुर उडीसा से आयी दमयंती बेहरा ने भी अपना व्याख्यान दिया।
आदिवासी साहित्य में प्रेम है-डॉ. आबिदी
लखनऊ विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आबिदी ने कहा कि आदिवासी साहित्य में प्रकृति प्रेम की झलक दिखती है। आदिवासियों का जल, जंगल व जमीन के प्रति भावनात्मक लगाव होता है। इसी पर आधारित गीत, नृत्य और विभिन्न आयोजनों की झलक साहित्य में परिलक्षित होती है। छत्तीसगढ़ से प्रोफेसर रूद्र नारायण पाणिग्रही ने कहा कि छत्तीसगढ़ में विभिन्न 36 से अधिक प्रकार के जनजाति निवास करते हैं। इनकी प्रकृति से जुड़ी हुई समृद्ध संस्कृति है। आदिवासी संस्कृति पर साहित्य लिखने के लिए आदिवासियों की स्थानीय बोली के साथ 2 अलग-अलग भाषा में निपुण होना जरूरी है, तभी आदिवासियों की मूल संस्कृति को साहित्य के माध्यम से परिलक्षित किया जा सकता है।
परिचर्चा में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पी. सुब्बाचार्य, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविंद्र प्रताप सिंह, न्यू देलही से वर्जिनियस खाखा, टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज मुंबई के प्रोफेसर डॉ बिपिन जोजो सहित विभिन्न प्रतिभागियों में व्यक्तव्य प्रस्तुत किए। परिचर्चा सत्र के अध्यक्ष डॉ. मदन सिंह वासकेल, सहअध्यक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. स्नेहलता नेगी भी उपस्थित थे।
साहसी हैं बुरय्या
बीजापुर जिले के घोर नक्सली क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल के सेवा निवृत प्राचार्य है । तेल्लम बुर्रया छत्तीसगढ़ के इतिहास में इनका नाम सुर्खियों में रहा कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के नक्सली घटना के बाद इनके अदम साहस के लिए इन्हें जाना जाता है।
16 अप्रैल 2019 में नक्सलियों द्वारा सीआरपीएफ के जवान को अगवा कर लिया गया था जिसे माओवादी यातनाएं देकर हत्या का प्रयास था उसे प्राथमिक शाला के प्राचार्य ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए और नक्सलियों से भय से मुक्त होकर सीआरपीएफ के जवान को नक्सलियों के कब्जे से छुड़ाने का प्रयास किया और नक्सलियों के सामने खड़ा होकर उन्हें चुनौती देते हुए सीआरपीएफ के जवान को उनके चंगुल से छुड़ाकर उसके घर जम्मू तक पहुंचाने का काम किया जिसके लिए छत्तीसगढ़ शासन ने उनके अदम्य साहस के लिए उनकी प्रशंसा की।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इनके साहस की सराहना करते हुए इन्हें अपने विचार साझा करने के लिए राष्ट्रीय आदिम जनजाति है साहित्य समारोह में अपने विचार सांझा करने का नेता भेजा।
प्रधानाध्यापक और गोंडवाना समाज के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने अपने समाज के लिए शासन प्रशासन से मदद लेकर आदिवासियों की जीवन शैली को बदलने और शिक्षा स्वास्थ्य से जोडऩे का काम किया है। इन्होंने आदिवासी समाज को शिक्षा मुहैया कराते हुए समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का काम किया।