रायपुर

मैडम नहीं मां है : अपना बेटा खोई तो 60 बेटियां पाईं
08-May-2022 8:59 PM
मैडम नहीं मां है : अपना बेटा खोई तो 60 बेटियां पाईं

  गोंड़ी बोली भी सीखी, नक्सल पीडि़त बच्चों को पढ़ाकर बना रही काबिल  

मदर्स-डे विशेष : संदीप सिन्हा


रायपुर, 8 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। कस्तूरबा गांधी बालिका आश्रम बेलसोंडा की 43 वर्षीय हेमलता यहां रहने वाले नक्सल प्रभावित क्षेत्र की लड़कियों की मां है। लड़कियां हेमलता को मैडम नहीं, बल्कि मां ही बुलाती हैं। यहां रहने वाली बालिकाओं को परेशानी न हो इसलिए उन्होंने खुद गोंड़ी बोली सीखी। अब वे उनसे उनकी ही बोली में बात करती हैं, दुलारती हंै और उन्हें शिक्षा देती हैं।

साल 2010 में बने कस्तूरबा आश्रम बेलसोंडा में आज नक्सल प्रभावित सुकमा की 50 लड़कियां पढ़ रहीं है। महासमुंद की रहने वाली हेमलता साहू कस्तूरबा आश्रम ट्रस्ट से जुड़ीं और आश्रम में बच्चों की सेवा करती आ रही हैं। गोंड़ी बोलने व समझने वाली बच्चियां हिंदी को कैसे समझतीं, जिनके लिए छत्तीसगढ़ी भी अजीब थी। आज यह पढऩे के साथ गायन, खेल में नंबर 1 हैं।

ऐसे बनी नक्सल पीडि़तों की मां
हेमलता ने कहा पुत्र के मृत्यु के बाद मैं टूट चुकी थी, और संतान की इच्छा भी नहीं थी, ऐसे में मैंने इस संस्थान में आई और नक्सल प्रभावित बच्चों की मां हो गई, जिसका कोई नहीं उसकी मैं मां, इसके बाद उन्होंने सभी बच्चों की देखरेख का काम शुरू कर दिया।

हर बच्चे का खुद रखती है ख्याल
आश्रम की छात्रा सरस्वती, गंगा, यमुना के पिता नहीं है। वह बतातीं है कि कई बार बीमार हुई है, पर उसकी दवा से लेकर भोजन आदि की व्यवस्था मां करतीं है। बच्ची कहती है कि एक बार बीमारी के दौरान उसे उल्टी हो गई। उन्होंने अपने हाथ से सब कुछ साफ किया। विद्यालय में किसी बच्ची के फटे कपड़े दिख जाए तो वह कितनी भी व्यस्त क्यों ने हों, सुई धागा लेकर खुद कपड़े सिलतीं हैं।

उदेश्य : किसी की पढ़ाई न रूके
हेमलता कहती है कि नक्सल प्रभावित बच्चे तंगी के कारण बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दे पाते। हर बच्चों का सपना होता है कि वे अच्छे से पढ़ाई लिखाई कर काबिल बने। इन्हीं को देखते हुए इन बच्चों की जिम्मेदारी मेरे को है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news