रायपुर

14 साल की चंचला ने फतह की एवरेस्ट
10-May-2022 4:10 PM
14 साल की चंचला ने फतह की एवरेस्ट

   बचपन में एक पैर गंवाते ही पहाड़ों की चढ़ाई का सपना देखती थी  

एवरेस्ट से लौटे पर्वतारोहियों से ‘छत्तीसगढ़’ की बातचीत

टिकेश यादव

रायपुर, 10 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। एक पैर से विकलांग नन्हीं चंचला सोनी ने माउंट एवरेस्ट फतह कर अपने सपने को साकार कर लिया है। छत्तीसगढ़ की 14 वर्ष की बेटी ने एवरेस्ट के बेस कैंप तक चढ़ाई कर इतिहास रचा है। बचपन में ही दुर्घटना में अपना एक पैर गवां चुकी है, स्कूल में दूसरे बच्चों को खेलते-कूदते देखती थी, दूसरे बच्चों से अलग अब बैसाखी ही उसका सहारा बना, बचपन से ही कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने वाली धमतरी जिले के रुद्री ग्राम में रहने वाली चंचला सोनी ने अपनी कमजोरियों को ताकत बनाकर बैसाखी के सहारे माउंट एवरेस्ट की ऊंची चोटियां चढऩे का साहस दिखाया और इतिहास रच दिया।

चंचला सोनी ने बताया कि बचपन से मेरा ऊंची पहाडिय़ों में चढऩे का सपना था जो आज पूरा हुआ। मिशन इंक्लुजन की टीम और इसके लीडर चित्रसेन साहू सर के सहयोग से टीम से जुडऩे का मौका मिला।

एवरेस्ट ट्रेकिंग में मुश्किलें बहुत थी लेकिन कुछ कर गुजरने की चाह भी मन में थी। जब हम एवरेस्ट हिल के लिए नेपाल पहुंचे तो देखा की वहां का माहौल बहुत अलग है। चारों तरफ बर्फ और ऊंची-ऊंची पहाडिय़ां थी पहले तो देख कर ऐसा लगा कि चढ़ाई नामुमकिन है।  जब हमने चढ़ाई शुरू की तब बहुत ही अच्छा लग रहा था। कुछ ऊपर जाने के बाद मानो सांसे थम सीं गई। ऊंची बर्फीली चट्टानें ऊपर से बर्फ बारी हो रही थी, नीचे देखकर डर लगने लगा था कहीं  फिसले तो सीधा नीचे, वहां काफी ठंड थी। हाथ-पैर जमने लगे थे, बर्फ के सफेद चादर और धुंध में रास्ता साफ नजर नहीं आ रहा था और आगे ऊपर जाने के बाद ऑक्सीजन की कमी होने लगी थी। सबकी सांसें फूलने लगी थी। मेरा बैसाखी के सहारे चलना मुश्किल हो गया था। अब आगे का सफर हाथों से करते रहे और जब हम मंजिल पर पहुंचे तो सभी के चहरे खिल उठे।

कु. रजनी जोशी ने भी अपने अनुभव साझा किया। रजनी पैराजुडो और पैरास्विमिंग की खिलाड़ी है। उसने बताया कि हमारी टीम ने दस दिनों की लम्बी-लम्बी चढ़ाई के बाद माउंट एवरेस्ट के बेस कैम्प तक पहुंचे। लगा मानो दुनिया फतह कर ली। बर्फीली पहाडिय़ां और चट्टानों पर चढऩा बहुत ही मुश्किलों भरा और थका देने वाला था।  

चित्रसेन साहू जिसे रोबोट मैन के नाम से भी जाना जाता है वह अपने दोनों पैर गवां चुके हैं और अब कृत्रिम पैरों के सहारे ही चलते हैं। उन्होंने टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए मिशन इंक्लूजन को सफल बनाया विकलांगता को पीछे छोड़ माउंट एवरेस्ट की कठिन चढ़ाई कर टीम को एवरेस्ट के बेस तक पहुंचाया।

साहू ने बताया कि रायपुर के इस टीम में व्यवसायियों से लेकर बच्चियों ने भी हिस्सा लिया जिसमें चंचला सोनी, रजनी जोशी, निक्की बजाज, परमेंद्र चंद्राकर, अशुतोष, राघवेन्द्र, अनवर, और गुनजन कुमार सिन्हा और साथियों की टीम ने एवरेस्ट फतह करने का प्लान किया,  जिसमें टीम की सबसे छोटी उम्र की चंचला सोनी छत्तीसगढ़ की पहली बेटी है, जिसने विकलांगता और कमउम्र में एवरेस्ट फतह करने की ठानी, चंचला के हौसले को देखकर चित्रसेन साहू ने साल भर उसे ट्रेनिग के लिए रोज गंगरेल के पास 12 किलोमीटर तक चलाया, और ट्रैकिंग का अनुभव दिया। साल भर की मेहनत का फल है कि आज चंचला एवरेस्ट के बेस कैंप पर पहुंचकर छत्तीसगढ़ में इतिहास रचा है।

 

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