दुर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 4 जुलाई। जीवन में अपने मस्त स्वभाव के मालिक बने पाठ ऑफ लाइफ भले ही हमारे हाथ में नहीं है पर आट ऑफ लाइफ तो हमारे हाथ में जीवन का इंजॉय करते हुए हमें जीवन जीना चाहिए। पाना और बटोरना मनुष्य के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है, पाना और बटोरने की चाह में मनुष्य आज सर्वाधिक दुखी हो रहा है। पत्नी अपने पति को धर्म मार्ग पर चलने का मार्ग दिखाती है, इसीलिए पत्नी धर्म पत्नी कहलाती है। उक्त उदगार ऋषभ कालोनी ग्राउंड में आयोजित प्रवचन श्रृंखला के द्वितीय दिवस राष्ट्रसंत ललित प्रभ जी महाराज ने व्यक्त किए।
राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि जो माता-पिता बच्चों को केवल जन्म देते हैं वे सामान्य हैं, जो बच्चों को जन्म के साथ सुविधाएं-संपत्ति देते हैं, वे माता-पिता मध्यम हैं, पर जो अपने बच्चों को जन्म और सम्पत्ति के साथ अच्छे संस्कार भी देते हैं वही उत्तम माता-पिता कहलाते हैं। उन्होंने अभिभावकों से कहा कि वे अपने बच्चों को इतना सुयोग्य बनाएं कि वे समाज की अग्रिम पंक्ति में बैठने लायक बन सके और बच्चे ऐसा जीवन जीए कि लोग उनके माता-पिता से पूछने लग जाए कि आपने ऐसी कौन सी पुण्यवानी कि जो आपके इतने अच्छी संतान पैदा हुई। उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ा-लिखाकर केवल शिक्षित ही न बनाएं वरन संस्कारित भी बनाएं।
संतप्रवर रविवार को सकल जैन समाज द्वारा जिला कचहरी के पीछे स्थित ऋषभ नगर मैदान में आयोजित चार दिवसीय जीने की कला प्रवचन माला के दूसरे दिन हजारों सत्संग प्रेमी भाई बहनों को जीवन को संस्कारी बनाने के गुर विषय पर संबोधित कर रहे थे। बच्चों को कार से पहले संस्कार देने की सीख देते हुए संतश्री ने माता-पिता से कहा कि अगर आप अपने बुढ़ापे को सुखी बनाना चाहते हैं तो बच्चों को केवल कार न दें, साथ में संस्कार जरूर दें। उन्होंने कहा कि अच्छे संस्कार दुनिया के किसी मॉल में नहीं मिलते ये तो घर के अच्छे माहौल में मिलते हैं। हमें इतना उत्तम जीवन जीना चाहिए कि हमारा जीवन ही बच्चों के के लिए आदर्थ बन जाए।
परिवार का माहौल अच्छा बनाएं
बच्चों को संस्कारित करने का पहला सूत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि परिवार का माहौल अच्छा बनाएँ। बच्चों पर धन के साथ समय का भी निवेश करें। घर में अच्छा साहित्य रखें। घर में सम्मान की भाषा बोलें। नाम के पहले श्री व बाद में जी लगाएं, बड़ों के पांव छुएं, मेहमानों को गेट तक पहुँचाने जाएं, घर में लड़ाई-झगड़े का वातावरण न बनाएं और व्यसनों का कदापि सेवन न करें।
नशे का त्याग करें
संत प्रवर ने कहा कि जहाँ एक अच्छी आदत जीवन को ऊँचाइयाँ दिया करती है वहीं एक बुरी आदत अच्छी जिंदगी को बर्बाद कर देती है। आपका एक गलत शौक पूरे परिवार को शोक में डाल सकता है। व्यक्ति भूलचूककर नशा करने की आदत जीवन में न डाले क्योंकि नशा नाश की निशानी है। नशा दांत से लेकर आंत तक, दिल से लेकर दिमाग तक नुकसान ही नुकसान करता है। अगर इन्हें जीते-जी छोड़ देंगे तो हम जीत जाएंगे नहीं तो ये एक दिन मौत बनकर हमें छोड़ देंगे।
संस्कारों के प्रति जागरूक रहिए
अभिभावकों को प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि बच्चों को कार से पहले संस्कार दें। बच्चों को आजादी दें, पर अंकुश भी रखें। उन्हें गलत संगत से बचाकर रखें। शराबी बाप भी अपने बेटे का शराबी बनाना नहीं चाहेगा, पर शराबी दोस्त अपने दोस्त को शराबी बनाकर ही छोड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे व्यसनों से घिर गए हैं तो हिम्मत करके उन्हें कहें कि वे या तो व्यसन छोड़ें या घर। बिगड़ेल बच्चों के बाप कहलाने की बजाय बिना बच्चों के रहना ज्यादा अच्छा है। साथ ही उन्हें सम्पत्ति के हक से भी वंचित रखें। अगर आप बच्चों को गलत दिशा में जाने से रोक नहीं सकते तो कृपया करके बच्चों को पैदा ही न करें। अगर आप खुद व्यसन करते हैं तो सावधान आने वाले कल में आपके बच्चे आपकी बुरी आदतों के चलते आपका नाम लेने में भी शर्म महसूस करेंगे। याद रखें, व्यक्ति की सच्ची दीक्षा उस दिन होती है जिस दिन वह बुरी आदतों का त्याग कर अपने संस्कारों को सुधार लेता है।
कार्यक्रम में ज्ञानचंद कोठरी, संतोष लोढ़ा, प्रवीण लोढ़ा उत्तम बरडिया, कांतिलाल बोथरा, पदम बरडिया, मनीष बोथरा, अमृत लोढ़ा, मनीष दुग्गड़ , विनोद तातेड़ ,दीपक चोपड़ा, निर्मल लोढ़ा , नरेंद्र चोपड़ा, प्रवीण बोथरा, देवीचंद दुग्गड़, टीकम चोरडिया, योगेश बरडिया, उषा टावरी, जागेश्वर साहू, सुपारस गोलछा, धर्मचंद लुनिया, रमेश चोपड़ा, नवीन बोथरा,, राजेन्द्र पारख, भवरलाल पोरवाल आदि उपस्थित थे।