रायगढ़

हसदेव अरण्य को बचाने के बाद अब तमनार ब्लॉक में भी होगी बड़ी लड़ाई
28-Jul-2022 4:40 PM
हसदेव अरण्य को बचाने के बाद अब तमनार ब्लॉक में भी होगी बड़ी लड़ाई

9 अगस्त को विरोध के लिए ग्रामीण हो रहे हैं एकजुट

विस में पारित संकल्प को लेकर गांव बचाने के लिए एकता के साथ सडक़ पर उतरेंगे कई सामाजिक संगठन

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 28 जुलाई।
मंगलवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा में हसदेव अरण्य को बचाने के लिए एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया, जिसमें कोल ब्लॉक के लिए हंसदेव के जंगल नहीं काटने का अनुरोध केंद्र सरकार से किया गया है। छत्तीसगढ़ विधानसभा ने वन संशोधन अधिनियम का भी विरोध जताया है। अब इसी तरह का संकल्प रायगढ़ जिले के तमनार के लिए लिए जाने की आवाज स्थानीय लोगों द्वारा उठाई जाने लगी है। नौ अगस्त को विरोध के लिए ग्रामीण एकजुट हो रहे हैं।

रायगढ़ जिले के तमनार व घरघोड़ा ब्लॉक में कोयला के अकूत भंडार है और यहां का कोयला निकालने के लिये एसईसीएल के अलावा जिंदल, अदाणी सहित कई बड़ी निजी कंपनियों द्वारा कोल ब्लाक लिये गए हैं  और इन कोल ब्लाक के आबंटन के बाद अकेले तमनार ब्लाक में दो दर्जन से भी अधिक गांव नक्शे से गायब हो गए हैं और नई कोयला खदान खुलने से बचा खुचा तमनार भी गायब हो जाएगा और इसी को लेकर अब गांव वाले पूरी एकजुटता के साथ विधानसभा में पारित प्रस्ताव के आधार पर रायगढ़ जिले में आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। जनचेतना मंच, रायगढ़ संघर्ष मोर्चा के साथ-साथ तमनार के कई सामाजिक मंच के अलावा देश के जाने माने सोशल वर्कर भी तमनार के ग्रामीणों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लड़ाई के लिये आगे आ रहे हैं।

एक जानकारी के अनुसार विधानसभा ने जनता कांग्रेस के विधायक धर्मजीत सिंह ने यह संकल्प प्रस्ताव लाया था, जिसका समर्थन मुख्यमंत्री सहित पूरे सदन ने कर दिया और एकमत से यह संकल्प पारित कर केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाएगा। हालांकि यह केंद्र के लिए बाध्यकारी नहीं है लेकिन इससे राज्य सरकार और छत्तीसगढ़ के लोगों का मत माना जाएगा।  अब इस प्रस्ताव के बाद आदिवासी बाहुल्य तमनार क्षेत्र में कोल ब्लाक आबंटन से उजडऩे वाले ग्रामीण पूरी एकजुटता के साथ सडक़ों पर उतरने के लिये तैयारी कर रहे हैं।

विधानसभा में यह बताया गया है कि छत्तीसगढ़ में 57 हजार मिलियन टन कोयला है, जिसमें 158 मिलियन टन प्रतिवर्ष उत्पादन किया जाता है। जिसमें सिर्फ हंसदेव अरण्य ही नहीं रायगढ़ जिले के तमनार भी शामिल है। इसे गारे पेलमा सेक्टर के नाम से जाना जाता है। यहां पूर्व से ही कई कोल माइंस है और अभी कई और कोल माइंस खोले जाने की अनुमति केंद्र सरकार ने से दे दी है जिसमे 2 कमर्शियल कोल माइंस की मंजूरी अभी हाल ही में दी गई है।  यहां अंबुजा सीमेंट, हिंडाल्को, जिंदल, एसईसीएल के चालू कोल माइंस हैं। यहां भी करीब 2400 हेक्टेयर वन भूमि कोल माइंस में जा रहा है। जिसमें महाजेनको, एसईसीएल के लिए अभी ग्रामसभाओं से प्रस्ताव मंगवाया गया है।  

इस मामले में तमनार में काम कर रहे सामाजिक व जनचेतना मंच के संयोजक राजेश त्रिपाठी, सविता रथ बताते हैं कि हंसदेव अरण्य के तर्ज पर रायगढ़ और खास कर तमनार के बारे में भी प्रस्ताव पारित करने की मांग की है।
उनका कहना है कि अभी हाल ही में गारे पेलमा सेक्टर 2 को पर्यावरणीय स्वीकृति मिली है वो भी तब जब भारी विरोध के कारण दो बार जनसुनवाई स्थगित की गई और आखरी बार भी बहुत चालाकी से भरी विरोध के बीच साठ लोगो की उपस्थिति में जनसुनवाई की गई। यह विरोध केन्द्र स्तर पर लगातार जारी है, लेकिन अधिकारी ग्रामीणों की बात को अनसुनी करके इस जनसुनवाई को हरी झंडी देने में लगे हुए हैं। वहीं विरोध करने वाले संगठन सीधे न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर उजडऩे वाले गांव को बचाने के लिये अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

जिले के तमनार में एनजीटी द्वारा नियुक्त समितियों ने खुद कहा है कि अभी चालू माइंस और पावर प्लांट्स के चलते पर्यावरण की स्थिति बहुत खराब है। कोर्ट ने क्षेत्र की स्टडी को जल्द करने का भी आदेश दिया है। और माना है कि यहां की स्थिति बहुत गंभीर है।

आईसीएमआर की स्वास्थ्य की रिपोर्ट भी कहती है कि जिस अभी की माइनिंग और पावर प्लांट्स के प्रदूषण से यह रह रहे लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत ही खराब असर पड़ रहा है। इस रिपोर्ट को एक अखबार ने प्रकाशित भी किया था।
बहरहाल अब देखना यह है कि सरगुजा संभाग के आरण्य का उदाहरण देते हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा ने जो प्रस्ताव केन्द्र को भेजा है उसके बाद आगामी 9 अगस्त को तमनार में होने वाले विरोध कार्यक्रम पर कितना असर होता है।

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