राजनांदगांव
राजनांदगांव, 15 सितंबर। जैन संतश्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमें पाप कर्म में शर्म आनी चाहिए न कि उसे प्रकट करने और उसकी आलोचना करने में। उन्होंने कहा कि हमें जिस चीज को करने में शर्म आनी चाहिए, हम उसे ही करते हैं और जिस चीज को करने में शर्म नहीं आनी चाहिए, उस चीज को करने में हम शर्म करते हैं। उन्होंने कहा कि पाप कर्म को गुरु के सामने में प्रगट करने में नहीं शर्माना चाहिए। गुरु के सामने में पाप प्रगट करने में नहीं शर्माना चाहिए।
संतश्री हर्षित मुनि ने समता भवन में अपने नियमित प्रवचन के दौरान कहा कि हम शर्माते हैं कि हमारा पाप प्रगट न हो जाए और यही सोच हम गुरु के सामने पाप की आलोचना नहीं करते। हमें पाप की आलोचना कर पाप मुक्त होना चाहिए।
क्षमा याचना तभी सार्थक हो सकती है, जब पाप की आलोचना करें। पाप प्रगट करने पर सद्गुरु का भाव कभी नहीं बदलता, क्योंकि वे जानते हैं कि सामने वाला व्यक्ति अपने पाप की आलोचना कर रहा है, वह व्यक्ति सरल और सधार्मिक है। उसे अपने द्वारा किए गए पाप की आत्मग्लानि हो रही है। यह जानकारी विमल हाजरा ने दी।