बलौदा बाजार

बलौदाबाजार में स्थित है महर्षि वाल्मिकी का आश्रम, माता सीता ने यहां लव-कुश को जन्म देने के साथ किया था लानन-पालन
21-Jan-2024 2:57 PM
बलौदाबाजार में स्थित है महर्षि वाल्मिकी का आश्रम, माता सीता ने यहां लव-कुश को जन्म देने के साथ किया था लानन-पालन

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 21 जनवरी। 
अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देश ही नहीं विदेशों में भी खुशहाली का माहौल है। चारों ओर राम के चरित्र व उनके राज्य की गाथा बताई जा रही, ऐसे में बलौदाबाजार जिले में भी कसडोल विकासखंड के ग्राम तुरतुरिया को भूला नहीं जा सकता है, जहां स्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में माता सीता की तपस्या, लव-कुश का जन्म और उनका पालन-पोषण होना बताया जाता है।

बलौदाबाजार जिला मुख्यालय से 50 किमी व कसडोल से 25 किमी दूरी पर प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा बालमदेही नदी की कलकल ध्वनि व पहाड़ से गिरती पानी की जलधारा की तुरतुरिया आवाज की वजह से इसका नाम तुरतुरिया पड़ा। ऊपर पहाड़ी पर माताजी का मंदिर है, जहां श्रद्धालु संतान की कामना को लेकर आते हैं, और मां से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बताया जाता है कि सीता मां ने लव-कुश का जन्म यही पर हुआ था, जिसकी वजह से यहां माता जो भक्त संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं, उसकी मनोकामना जरूर पूरी करती है।
घने वनों के बीच बसे तुरतुरिया मंदिर का जीर्णोद्धार 1972-73 में बलौदाबाजार के ग्राम बुडग़हन के टिकरिहा परिवार के पहलवान के नाम से पहचाने जाने वाले दाऊ चिंता राम टिकरिहा ने करवाया था। इस मंदिर की पूजा-अर्चना पहले बाल ब्रम्हचारी हनुमान व देवी भक्त बाबाजी महराज किया करते थे. वहीं उनके स्वर्गधाम प्रवास उपरांत मंदिर की देख-रेख पं. राम बालक दास कर रहे हैं।

मंदिर के पुजारी राम बालक दास ने बताया कि यहां पर प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में लोग आते हैं, और माताजी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह वाल्मिकी आश्रम के नाम से जाना जाता है, और यहां पर लव-कुश का जन्म होना बताया जाता है। यहां माता सीता ने तपस्या की थी। आज बहुत अच्छा लग रहा है कि अयोध्या में रामलला की स्थापना हो रही है, वहीं तुरतुरिया का भी नवीनीकरण हो रहा है।

मंदिर के जीर्णोद्धारकर्ता चिंता राम टिकरिहा के वंशज हेमंत टिकरिहा ने बताया कि दादा यहां की अक्सर बातें किया करते थे, और यहां की पूरी व्यवस्था भी देखते थे। बाबा सिद्ध पुरुष थे, जो माताजी एवं हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। हमें भी उनका आशीर्वाद मिला है। आज छत्तीसगढ़ में जहां-जहां भगवान राम के चरण पड़े हैं, उनको शासन ‘राम वन पथ गमन’ के माध्यम से बनवा रही है। हमारे लिए गौरव का विषय है कि 500 साल बाद भगवान राम के बालस्वरूप की मूर्ति अयोध्या में स्थापित होने जा रही है, और उनके पुत्रों के छत्तीसगढ़ में जन्म व उनकी माता कौशल्या का मायके होने से और भी महत्व बढ़ गया है. निश्चित ही यहां विकास होना चाहिए।

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