दुर्ग

हाऊसिंग बोर्ड 724 मकान कंडम, पर लोग खाली नहीं कर रहे
21-Feb-2024 3:00 PM
हाऊसिंग बोर्ड  724 मकान कंडम, पर लोग खाली नहीं कर रहे

कई धरना, भूख हड़ताल के बाद भी इच्छाशक्ति के अभाव में नहीं हुआ समाधान

संतोष मिश्रा 

भिलाई नगर, 21 फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। पिछले 17 वर्षों से निगम भिलाई द्वारा कंडम घोषित किए गए हाउसिंग बोर्ड वार्ड-25 औद्योगिक क्षेत्र के जर्जर 724 मकानों को लेकर शासन प्रशासन ने संजीदगी नहीं दिखाई है। 

नतीजतन मकानों को खाली कराने के लिए पिछले 10 साल से नोटिस जारी करने के बावजूद न तो लोगों ने आवास खाली किए और न ही समस्या का कोई समाधान निकल पाया। इन क्वार्टरों में रह रहे हजारों लोगों का कहना है कि उन्होंने लगभग 20 से 25 वर्ष हाउसिंग बोर्ड को मकान का किराया दिया जिससे निर्माण लागत शासन को प्राप्त हो चुकी है। इसलिए उन्हें जर्जर आवासों का पुनर्निर्माण कर मालिकाना हक दिया जाना चाहिए। यहां के रहवासियों ने बताया कि वसूले गए किराये से हाउसिंग बोर्ड इन मकानों की समय-समय पर मरम्मत करवाया था, यह उसकी जिम्मेदारी भी थी, लेकिन दो दशक पूर्व मेंटेनेंस के अभाव में लोगों ने किराया देना बंद कर दिया था। 

ज्ञात हो कि नगर पालिक निगम प्रशासन ने हाउसिंग बोर्ड के आवास को 10 साल पहले 2007 में कंडम घोषित किया था। तीन मंजिला बिल्डिंग की स्थिति को देखते हुए हाउसिंग बोर्ड को मकान खाली कराने के लिए निगम ने कई बार पत्र लिखा लेकिन हाउसिंग बोर्ड नोटिस देने के बाद कार्रवाई की बात कहकर टालमटोल करता रहा है। 

हाउसिंग बोर्ड के औद्योगिक क्षेत्र में तीन मंजिला अलग अलग ब्लॉक में कुल 724 आवास हैं। 1983-84 में हाउसिंग बोर्ड ने लोगों को 30 रुपए प्रतिमाह की दर से किराए पर इन आवासों को दिया था और लगभग 20 साल बाद किराया बढ़ा कर अचानक 300 रूपये कर दिया गया, अचानक यह किराया वृद्धि लोगों पर नागवार गुजरी और उन्होंने कहा कि प्रारंभ काल से किराया के बदले हाउसिंग बोर्ड को इन ब्लाक की मरम्मत भी करनी थी, मगर उसने 2001 से मरम्मत बंद कर दी जिससे मकान जर्जर हुए हैं। 

मेंटेनेंस बंद करने और अचानक किराया 30 से 300 करने के विरोध स्वरूप लोगों ने किराया देना बंद कर हाउसिंग बोर्ड से मालिकाना हक देने की मांग की। कई बार आंदोलन भी हुआ मगर वर्षों बाद भी इन 724 मकानों का कोई हल आज तक नहीं निकला है। इनमें से कुछ मकान हाउसिंग बोर्ड ने 19 रहवासी के नाम रजिस्ट्री भी की थी, लेकिन अधिकांश मकान की रजिस्ट्री नहीं है।

19 मकानों की रजिस्ट्री, मेंटेनेंस बंद करने के बाद शुरू हुआ विवाद
कंडम घोषित होने के बाद रजिस्ट्री धारी हाउसिंग बोर्ड से आसपास के एरिया में नया आवास बनाकर देने की मांग कर रहे हैं, जबकि हाउसिंग बोर्ड प्रबंधन आवास को खाली कराने के बाद नया आवास बनाकर देने और लागत मूल्य की वसूली शर्त पर व्यवस्थापन की बात कहता रहा है। कंडम घोषित आवास खाली कराने के मामले में निगम और जिला प्रशासन खतरा मानता है, लेकिन अब तक आवास को खाली कराने के लिए कोई ठोस पहल या चर्चा नहीं हुई है। हाउसिंग बोर्ड प्रबंधन ने अब तक अपनी मंशा भी स्पष्ट नहीं किया है। निगम प्रशासन ने जिन आवासों को जर्जर घोषित किया वहां वर्षों से रहने वाले लोग जान को खतरे में डाल हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में ही बिना कोई समझौता के नए आवास की मांग पर अड़े हुए हैं।

नफा नुकसान नीति के चलते वर्षों से जनप्रतिनिधियों की चुप्पी बरकरार

हाउसिंग बोर्ड के कंडम आवासों को खाली कराने में अब तक राजनीति ही सबसे बड़ा रोड़ा के रूप में उभरकर सामने आई है। स्थानीय नेता कंडम घोषित आवासों की कार्रवाई को अपने नफा और नुकसान के अनुसार इस्तेमाल कर रहे हैं। अधिकारी भी उनके इशारे पर काम रहे हैं। यही वजह है पिछले 16 साल में आवास को ढहाने और रहवासियों की मांग पर कोई ठोस निर्णय नहीं हो पाया है। नियमानुसार हाउसिंग बोर्ड के आवासों को नगर पालिक निगम को कंडम घोषित करने का अधिकार है। आवास को कंडम घोषित करने पहले निगम, राजस्व और लोक निर्माण विभाग के इंजीनियरों की टीम सर्वे करती है। कंडम घोषित कर हाउसिंग बोर्ड को आवास को खाली कराने और ढहाने के लिए पत्र जारी किया जाता है।


निगम हाउसिंग बोर्ड के औद्योगिक क्षेत्र के 724 आवास को 2007 में कंडम घोषित किया जरूर है लेकिन इसके बावजूद लोग पिछले डेढ़ दशक से स्वयं इन मकानों की मरम्मत कर अब भी रह रहे हैं। हजारों रहवासियों ने इन मकानों को व्यवस्थित कर उन्हें मालिकाना हक देने की मांग पर भूख हड़ताल, धरना-प्रदर्शन सहित अनेक बार आंदोलन भी किया जिस पर क्षेत्र का नेतृत्व करने वाले पार्षद, महापौर, विधायक और सांसद ने समय-समय पर उनकी मांग को जायज बताते हुए आश्वासन भी दिया, जिसका वर्षों बाद भी हल न निकल पाना इच्छाशक्ति के अभाव का भी परिचायक है।

30 रूपये से 20 साल बाद अचानक किराया 300

रहवासियों ने बताया कि एक ब्लाक में 24 क्वार्टर हैं, एक ब्लाक की निर्माण लागत 67 हजार थी, उन्होंने लगभग 30 रूपये प्रतिमाह हर क्वार्टर के लिए 20 से 25 वर्ष किराया जमा किया जो कि निर्माण लागत का तीन गुना से अधिक है। दशकों बाद अचानक हाउसिंग बोर्ड ने मेंटेनेंस बंद किया और किराया 30 रूपये से बढ़ाकर 300 किया जो कि किराया वृद्धि नियम के विपरीत थी, इसलिए लोगों ने किराया और जल कर देते हुए नियमित मेंटेनेंस की मांग रखी थी, हाउसिंग बोर्ड ने बाद में किराया देना भी बंद कर दिया था। स्थानीय निवासियों ने स्पष्ट कहा कि हर जनप्रतिनिधि ने हमें केवल वोट बैंक मान सिर्फ और सिर्फ आश्वासन दिया हल नहीं।

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