रायपुर

आयुर्वेद शिक्षा में बदलाव का विरोध निरर्थक-डॉ. शुक्ला
01-Feb-2021 5:30 PM
आयुर्वेद शिक्षा में बदलाव का विरोध निरर्थक-डॉ. शुक्ला

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 1 फरवरी। आयुर्वेद शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े डॉ संजय शुक्ला ने भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा आयुर्वेद चिकित्सकों को सर्जरी की अनुमति दिए जाने के निर्णय के खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानि आईएमए के विरोध को निरर्थक बताते हुए पुनर्विचार की अपील की है। गौरतलब है कि आयुष मंत्रालय ने पिछले साल आयुर्वेद पद्धति के शल्य तंत्र (सर्जरी) एवं शालाक्य तंत्र (नाक, कान, गला) के तीन वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम (एमएस) चिकित्सकों को आवश्यक प्रशिक्षण के बाद सामान्य सर्जरी, ईएनटी व डेंटल सर्जरी की अनुमति प्रदान करने हेतु अधिसूचना जारी की थी।

आईएमए इस अधिसूचना के साथ आयुर्वेद पाठ्यक्रमों में एलोपैथी की पढ़ाई व ब्रिज कोर्स का देशव्यापी विरोध कर रही है। जबकि आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर लंबे अर्से से अपने सिलेबस में शामिल एलोपैथी विषयों के शिक्षण, विश्वविद्यालयीन परीक्षा और अनिवार्य प्रशिक्षण के बाद सर्जरी और अपनी पद्धति के साथ आवश्यकतानुसार एलोपैथी दवाओं का उपयोग अपने चिकित्सा व्यवसाय में करते रहे हैं। भारत सरकार ने अब आयुर्वेद के शल्य विशेषज्ञों के द्वारा किए जा रहे सर्जरी को वैधानिक मान्यता देने के लिए ही यह अधिसूचना जारी की है। यह कोई नया फैसला नहीं है इस लिहाज से आईएमए का विरोध निरर्थक है।

डॉ. संजय शुक्ला ने बताया कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में सर्जरी का इतिहास पांच हजार साल पुराना है। प्राचीन काल में आयुर्वेदीय शल्य विधा काफी विकसित और वैज्ञानिक थी।

 

 

आयुर्वेद पद्धति में शल्य क्रिया के निपुण आचार्य सूश्रुत हुए हैं जिनके ग्रंथ सुश्रुत संहिता में आधुनिक प्लास्टिक सर्जरी से लेकर सामान्य सर्जरी, नाक, कान और गला तथा दंत रोगों के शल्य कर्म का उल्लेख है। इस संहिता में 132 प्रकार के ऐसे शल्य उपकरणों और शल्य कर्म का उल्लेख है जो आधुनिक एलोपैथी सर्जरी के क्षेत्र में भी उपयोग किया जा रहा है। आचार्य सुश्रुत के शल्य ज्ञान और शल्य क्रियाओं के निपुणता के दृष्टिगत ही आधुनिक चिकित्सा विज्ञान यानि एलोपैथी में उन्हें फादर ऑफ सर्जरी की संज्ञा दी गई है। विदेशों के अनेक प्रख्यात चिकित्सा संस्थानों में आचार्य सुश्रुत की मूर्ति भी स्थापित है।

डॉ. शुक्ला ने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण से बचाव और एसिम्पटोमैटिक व माइल्ड संक्रमितों के उपचार में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति काफी सफल हुई है फलस्वरूप केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को कोविड-19 के उपचार और नियंत्रण के लिए अनुमति प्रदान की थी लेकिन आईएमए ने इस फैसले का भी विरोध किया था। भारत के नई स्वास्थ्य नीति में आरोग्य पर सर्वाधिक जोर दिया गया इस उद्देश्य को पूरा करने में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति काफी कारगर है। इसी प्रकार देश में चिकित्सकों की कमी, महंगी ईलाज, अंधविश्वास और झोला छाप डॉक्टरों के बढ़ते व्यापार के दृष्टिगत आयुष चिकित्सकों के प्रति आईएमए का पूर्वाग्रह और भेदभाव स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ीकरण में बाधक है। उपरोक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में आईएमए को अपने आंदोलन पर पुनर्विचार करना चाहिए।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news