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बस्तर रियासत कालीन परंपरानुसार नेत्रोत्सव पूजा विधान, आज रथ यात्रा
11-Jul-2021 9:54 PM
बस्तर रियासत कालीन परंपरानुसार नेत्रोत्सव पूजा विधान, आज रथ यात्रा

जगन्नाथ मंदिर के छ: खंडों में सात जोड़े व 22 प्रतिमाओं को किया जाएगा रथारूढ़

विश्व के किसी भी जगन्नाथ मंदिर में एक साथ 22 प्रतिमाओं की पूजा और रथयात्रा नहीं होती

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

जगदलपुर, 11 जुलाई। बस्तर गोंचा पर्व में आज नेत्रोत्सव पूजा विधान शताब्दियों पुरानी मान्यताओं एवं बस्तर के रियासत कालीन परंपराओं के अनुसार विधि-विधान से 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों के द्वारा संपन्न करवाया गया। इसके साथ ही सोमवार को श्रीगोंचा रथयात्रा पूजा विधान में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के विग्रहों को रथारूढ़ कर गुंडिचा मंदिर सिरहासार भवन में सभी के दर्शनार्थ स्थापित किया जाएगा।

     जगदलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर के छ: खंडों में सात जोड़े (भगवान जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र व सुभद्रा देवी के विग्रह) के अलावा एक प्रतिमा केवल जगन्नाथ भगवान के साथ कुल 22 प्रतिमाओं का एक साथ एक ही मंदिर में स्थापित होना, पूजित होना तथा इन 22 प्रतिमाओं की एक साथ रथयात्रा भी भारत के किसी भी क्षेत्र नहीं, बल्कि विश्व के किसी भी जगन्नाथ मंदिर में एक साथ 22 प्रतिमाओं की पूजा नहीं होती, जैसी कि जगदलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर में देखा जा सकता है। मंदिर में 7 खंड हैं, जिसे जगन्नाथ जी की बड़े गुड़ी, मलकानाथ, अमायत मंदिर, मरेठिया, भरतदेव तथा कालिकानाथ के नाम से जाना जाता है। जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा जी के साथ-साथ श्रीराम मंदिर के साथ सात खंडों में स्थापित हैं।

      360 घर आरयक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष ईश्वर खंबारी ने बताया कि चंदन जात्रा पूजा विधान के पश्चात जगन्नाथ स्वामी के अस्वस्थता कालावधि अर्थात अनसर काल के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन वर्जित अवधि में श्री जगन्नाथ मंदिर में स्थित मुक्तिमडप में स्थापित भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के विग्रहों को श्रीमंदिर के गर्भगृह के सामने भक्तों के दर्शनार्थ स्थापित किसे जाने के बाद नेत्रोत्सव पूजा विधान संपन्न किया गया।

     उहोने बताया कि बस्तर अंचल में रथयात्रा उत्सव का श्रीगणेश चालुक्य राजवंश के महाराजा पुरूषोत्तम देव की जगन्नाथपुरी यात्रा के पश्चात् 1408 में हुआ। पौराणिक कथानुसार ओडि़सा के जगन्नाथ पुरी में सर्वप्रथम राजा इन्द्रद्यनुष ने रथयात्रा प्रारंभ की थी, ओडिसा में गुण्डिचा कहा जाने वाला यह पर्व कालान्तर में परिवर्तन के साथ बस्तर में गोंचा कहलाया। लगभग 613 वर्ष पूर्व प्रारंभ की गयी रथयात्रा  की यह परंपरा आज भी निर्बाध रूप से स्थापित है। बस्तर अंचल के जगदलपुर नगर में मनाये जाने वाले बस्तर गोंचा रथयात्रा पर्व में एक अलग ही परंपरा, विशेषता एवं छटा देखने को मिलती है। प्रथम तो यह कि विशाल रथों को परंपरागत तरीकों से फूलों तथा कपड़ों से सजाया जाता है, और भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र के विग्रहों को आरूढ़ कर बस्तर गोंचा रथयात्रा पर्व मनायी जाती है तथा दूसरा मुख्य आकर्षण यह कि भगवान के सम्मान में तुपकी चलाने की प्रथा (गार्ड ऑफ ऑनर) जो बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर के अलावा भारत में कहीं और प्रचलित नहीं है।

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