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दोषी करार दिये बिना लंबे समय तक कैद बिना सुनवाई के सजा जैसा : उच्चतम न्यायालय
28-Aug-2024 8:59 PM
दोषी करार दिये बिना लंबे समय तक कैद बिना सुनवाई के सजा जैसा : उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 28 अगस्त। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली आबकारी ‘‘घोटाला’’ मामलों में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पार्टी की नेता के. कविता को जमानत देते हुए कहा है कि दोषी करार दिये जाने से पहले लंबे समय तक कैद रखे जाने को ‘‘बिना सुनवाई के सजा’’ बनाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि धनशोधन-रोधी कानून द्वारा लगाई गई पाबंदियों की तुलना में स्वतंत्रता का मूल अधिकार ‘श्रेष्ठ’ है।

कविता (46) कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में 15 मार्च को गिरफ्तार किये जाने के बाद से जेल में थीं। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने बाद में उन्हें 11 अप्रैल को भ्रष्टाचार के मुख्य मामले में गिरफ्तार किया था।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने मंगलवार को दोनों मामलों में उन्हें जमानत दे दी और जांच की निष्पक्षता पर केंद्रीय जांच एजेंसियों से सवाल किया। पीठ ने पूछा कि क्या वे किसी आरोपी को अपनी मर्जी से चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।

बुधवार को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किये गए 13 पन्नों के फैसले में न्यायमूर्ति गवई ने इस सुस्थापित सिद्धांत को दोहराया कि ‘‘जमानत नियम है और इनकार अपवाद।’’

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और सह-आरोपी मनीष सिसोदिया के मामले सहित विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए फैसले में कहा गया है, ‘‘किसी अपराध के लिए दोषी करार दिये जाने से पहले लंबे समय तक कैद रखने को बगैर सुनवाई के सजा नहीं बनने देना चाहिए।’’

फैसले में कहा गया है, ‘‘हमने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त स्वतंत्रता का मूल अधिकार, सांविधिक प्रतिबंधों (धनशोधन निवारण अधिनियम) से श्रेष्ठ है।’’

पीठ ने कहा कि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपनी जांच पूरी कर ली है और जांच के लिए कविता की हिरासत की जरूरत नहीं है।

पिछले पांच महीनों से कविता के जेल में रहने का संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा कि 493 गवाहों से पूछताछ होनी बाकी है और करीब 50,000 पन्नों के दस्तावेजों पर विचार किया जाना है, जिससे निकट भविष्य में मुकदमे को निष्कर्ष तक पहुंचाना असंभव हो गया है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमने इस सुस्थापित सिद्धांत को भी दोहराया है कि 'जमानत नियम है और इनकार अपवाद'।’’

पीठ ने पीएमएलए (धनशोधन निवारण अधिनियम) की धारा 45 पर भी विचार किया, जिसमें दो शर्तें दी गई हैं, जिन्हें धनशोधन-रोधी कानून के तहत किसी आरोपी को जमानत देने से पहले पूरा किया जाना आवश्यक है।

ये दो शर्तें हैं कि न्यायाधीश को प्रथम दृष्टया संतुष्ट होना चाहिए कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहने के दौरान उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।

पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को भी त्रुटिपूर्ण पाया, जिसमें कविता को पीएमएलए की धारा 45(1) के तहत जमानत का लाभ नहीं दिया गया था, जो एक महिला को विशेष राहत का अधिकार देती है।

पीएमएलए की धारा 45(1) के उक्त प्रावधान में कहा गया है, ‘‘ऐसा व्यक्ति-- जो 16 वर्ष से कम आयु का है, या महिला है या बीमार या अशक्त है, अथवा जिस पर अकेले या अन्य सह-आरोपियों के साथ एक करोड़ रुपये से कम की राशि के धनशोधन का आरोप है, उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है, बशर्ते विशेष अदालत ऐसा निर्देश दे।’’

शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि कविता उच्च योग्यता रखने वाली और एक काफी दक्ष व्यक्ति हैं।

तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की बेटी कविता पर व्यापारियों और राजनीतिक नेताओं के उस समूह (साउथ ग्रुप) का हिस्सा होने का आरोप है, जिसने शराब लाइसेंस के बदले में दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को कथित तौर पर 100 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी। हालांकि, कविता ने इन आरोपों से इनकार किया है। (भाषा)

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