रायपुर

हमेशा कूल रहें, मीठा बोलें और सबसे प्रेम करें-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
22-Jul-2022 12:38 PM
हमेशा कूल रहें, मीठा बोलें और सबसे प्रेम करें-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी

रायपुर,22 जुलाई। ‘‘व्यक्ति अपनी जिंदगी में अगर ये तीन फैक्ट्रियां खोल ले, तो उसकी जिंदगी मालामाल हो जाएगी। उनमें पहली है-अपने माथे या दिमाग के प्लॉट पर आईस  फैक्ट्री। दूसरी- अपनी जुबान के प्लॉट पर शुगर फैक्ट्री और तीसरी फैक्टी का प्लॉट हृदय है, जहां आदमी लव फैक्ट्री खोल ले।

 दिमाग में खोली आईस फैक्ट्री के मालिक बनकर हमेशा कूल-कूल रहें, जुबान पर खोली शुगर फैक्ट्री के मालिक बन सदा मीठा-मुधर बोलें और हृदय रूपी प्लॉट पर खोली प्रेम या लव की फैक्ट्री का मालिक बन सबसे प्रेम करें।

ये तीन फैक्ट्रियों का जो मालिक बन जाता है उसकी पूरी जिंदगी प्रेम, माधुर्य और आनंद से भर जाती है। हमेशा कूल रहें, मीठा बोलें और सबसे प्रेम करें। ये तीन मंत्र आपकी जिंदगी को आनंद और माधुर्य से भर देंगे।’’

ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग ‘जीने की कला’ के अंतर्गत युवाओं के लिए जारी व्यक्तित्व विकास सप्ताह के चौथे दिन गुरूवार को ‘कैसे बनाएँ खुद को 3 फैक्ट्रियों का मालिक’ विषय पर व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो, यदि वह अपनी जिंदगी में नम्रता, विनयशीलता का व्यवहार रखे, जब भी बोले मीठा-मधुर भाषा बोले और हृदय में सबके लिए सदा प्रेम बनाए रखे तो उसकी जिंदगी मालामाल हो जाएगी।

अक्सर आदमी का भेजा हमेशा गर्म बना रहता है, जरा सा कोई उसका अपमान कर दे तो दो मिनट में वह अपना आपा खो देता है। आदमी सबसे ज्यादा कर्म बंध अपने गर्म दिमाग से करता है। जब भी कोई आपको विपरीत बात कहे, आपकी आलोचना करे तब अपनी शांति बनाए रखें, सामने वाले के शब्दों को भीतर न आने दें। क्योंकि जो चीज आप स्वीकार नहीं करते वह सामने वाले के पास ही रहती है।

एक-दूसरे को सुधारने की जंग छोड़, पहले स्वयं में सुधार लाएं

संतप्रवर ने कहा कि सरल व नम्र स्वभाव हमारी कमजोरी नहीं है, बल्कि यह हमारी ऊंची सोच व अच्छे संस्कारों का परिचायक है। अन्यथा जो सुन सकता है, वो आदमी बोल भी सकता है। जब भी ऐसी प्रतिकूल स्थिति आए तो भगवान महावीर के कथन- हे जीव अब तो शांत रह, का स्मरण करें।

विपरीत वातावरण तो सबकी जिंदगी में आता ही है। दूसरे को सुधारने के फेर में रहने की बजाय पहले खुद को सुधारें, सामने वाला भी एक दिन आपसे प्रभावित हो स्वयं ही थोड़ा न थोड़ा सुधर ही जाएगा। आदमी की पहली भूल यही है कि वह एक-दूजे को सुधारने में लगा रहता है। सुधारने की कार्रवाई जब भी हो तो आदमी उसकी शुरूआत खुद से करे।

जब-जब सामने वाला आपके मन में कसाय पैदा करे तब-तब इस बात को जरूर याद करें कि इसके साथ तो मेरी बहुत छोटी-सी यात्रा है।

सातों दिन अपने गुस्से को रखें काबू

अपने गुस्से को सदा काबू रखने की सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा- सोमवार को अगर गुस्सा आए तो उस दिन को सप्ताह का पहला दिन मानकर गुस्सा न करें, मंगलवार को गुस्सा आए तो मंगल को मैं अमंगल नहीं बनाउंगा सोचकर गुस्सा न करें, बुधवार को गुस्सा आए तो बुध के दिन युद्ध नहीं कहकर शांत रहें, गुरुवार को यदि क्रोध आ जाए तो गुरूदेव का वार मानकर गुस्सा न करें, शुक्रवार को शुक्राना अदा करने-धन्यवाद कहने का दिन मानकर गुस्सा न करें, शनिवार को शनि हावी हो जाएंगे यह जानकर गुस्सा बिलकुल न करें और रविवार को गुस्से की छुट्टी का दिन मानकर प्रसन्नता से भरे रहें।

क्रोध में जीओगे तो संसार में डूबोगे

महाराष्ट्र के संत तुकाराम और यूनान के महान दार्शनिक शुक्रात के गृहस्थ जीवन का वृतांत सुनाते हुए संतश्री ने धर्मानुरागियों को सदा शांत-कूल रहने की प्रेरणा दी। क्योंकि पास रहते हुए भी यदि कोई मन से दूरियां बना ले तो मन को बहुत खटकता है। आज से जीवन का यह मंत्र बना लें कि मैं जब भी बोलुंगा शांतिपूर्वक सोचकर ही बोलुंगा। भगवान महावीर ने विषधर सर्प चण्डकौशिक को केवल एक शब्द कहा था-बुज्झ। यानि बोधि को प्राप्त कर। क्रोध में जीओगे तो संसार में डूबोगे और बोध में जीओगे तो मुक्ति मंजिल की ओर बढ़ जाओगे। 

गलती होना प्रकृति और गलती न सुधारना विकृति है

संतश्री ने कहा कि अपने घर के माहौल को आनंदमयी बनाने के लिए इस बात को जीवन में अपना लें कि आप जैसा व्यवहार अतिथियों से करते हैं, वैसा ही व्यवहार अपने घर वालों से भी करें। फिर कभी घर में कलह हो जाए तो कहना। उन्होंने कहा- गलती होना हमारी प्रकृति है पर गलती को ना सुधारना या ना स्वीकारना यह हमारी विकृति है। और गलती हो जाने पर सॉरी कहना यह हमारे भारत की संस्कृति है। क्षमा का परिणाम हमेशा मीठा होता है। क्षमा और प्रेम की गंगा में जब आदमी नहाता है तो उसका मन पवित्र हो जाता है। आदमी का दो मिनट का गुस्सा उसके पूरे कॅरियर पर, बरसों के रिश्तों पर पानी फेर देता है। जीवन में एक बात हमेशा याद रखना कि बिगड़े हुए रिश्ते भी तब बन जाते हैं जब आप प्रेम से बोलते हैं और बने हुए रिश्ते भी तब बिगड़ जाते हैं जब आप टेढ़ा, तीखा-कडुवा बोलते हैं। टेढ़ा बोलना दीवारों पर कील ठोंकने जैसा होता है, कील निकल जाती है मगर उसका निशान बना रह जाता है। पे्रमपूर्वक बोलों से प्रेम के पुल खड़े हो जाते हैं तो कडुवा बोलने से द्वेष की दीवारें खड़ी हो जाती हैं। मीठा-मधुर और हितकारी बोलें, क्योंकि बोलने की शालीनता से आदमी की कुलीनता की पहचान होती है। एक बार इज्जत देकर मधुर जबान से बोल कर तो देखो, आपके बिगड़े रिश्ते कैसे संवर-सुधर जाते हैं। अपने हृदय में सर्वदा सबके लिए प्रेम रखें। ये दिवाली आए तो अपने कर्मचारियों को केवल सामान मत देना, अगर दे सकते हो तो उन्हें गले लगाकर सम्मान जरूर देना। दिया हुआ सामान तीन महीने में खत्म हो जाएगा पर आपने गले लगाकर उसे जो सम्मान दिया, उसे वह जीवनभर याद रखेगा। क्या बोलना, कैसे बोलना इसका सदा विवेक रखें। रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ परिजाय।।  हमें पता है- स्कूलों में लिखा रहता है, ऊसूल मत तोडि़ए। बगीचों में लिखा रहता है- कृपया फूल मत तोडि़ए। और खेलों में सिद्धांत होता है- रूल मत तोडि़ए। आज मैं यह कहता हूँ- जिंदगी में कभी किसी का दिल मत तोडि़ए।

जीवन से प्रेम निकल जाए तो इंसान-जानवर में कोई फर्क नहीं- नम्रता, माधुर्य और प्रेम इन तीन सूत्रों के जीवन में महत्व को संतश्री ने एक रोचक दृष्टांत से स्पष्ट करते बताया कि एक बार जानवरों के दल और मनुष्य दल में कौन है श्रेष्ठ विषय पर आमने-सामने वाद-विवाद स्पर्धा हुई। जब इंसानों ने अपनी सुंदर आंखों की तारीफ बताई तो जानवरों ने हिरणी को सामने खड़ा कर दिया और कहा तुम्हारे समाज में सुंदर आंखों की उपमा मृगनयनी कहकर दी जाती है। फिर इंसानों ने स्वयं को मीठी भाषा बोलने वाला बताया तब जानवरों ने कोयल को आगे कर कहा, मधुर वाणी की उपमा आप लोग कोकिला कहकर देते हैं, तो आपमें और हममें श्रेष्ठ कौन। इसी तरह बहादुरी की बात आने पर शेर को खड़ा कर दिया गया, फिर इंसानों ने 380 किलो के मोटे पहलवान को खड़ा किया तो जानवरों ने हाथी को सामने लाकर कहा- आप लोग पहलवान की उपमा हाथी जैसा बल से देते हैं। फिर इंसानों ने विश्व सुंदरी को सामने लाया तो जानवरों ने मोर को आगे कर दिया। बाजी हारते देख इंसानों ने दाव खेला और कहा कि हम इंसान सात्विक और निर्मल भोजन करते हैं तब जानवरों ने हंस को आगे कर दिया। फिर इंसानों ने अपनी विशेषता बताते कहा कि हम सब हिल-मिलकर खाते हैं, जानवरों ने जवाब दिया कि हमें पता है आप लोग पराया माल हो तो हिल-मिलकर खाते हैं और खुद का माल हो तो अकेले में खाते हैं। तब आदमियों ने कहा कि हम परिवार के रूप में साथ-साथ रहते हैं तो जानवरों ने सुअर को आगे बुलाया। इंसानों ने अपना आखिरी दाव खेला और कहा- हम सब आपस में हिल-मिलकर प्रेम से रहते हैं। इस पर जानवर दल कुछ झुका और उनके मुखिया ने कहा- यह बात सच है कि जब तक तुम लोग प्रेम से रहते हो तब तक तुम हमसे ऊपर हो, लेकिन जिस दिन तुम्हारे जीवन से प्रेम निकल जाता है उस दिन तुममें और हममें कोई फर्क नहीं होता।

आरंभ में संतश्री ने राष्ट्रीय संत श्रीचंद्रप्रभजी रचित प्रभु भक्तिगीत ‘भाव बिन मिले नहीं भगवान, ओ भगवान को भजने वाले मन में धर ले ध्यान...’ के गायन से श्रद्धालुओं को अंतरमन से प्रभु भक्ति करने का संदेश दिया।

सुखी जीवन का मंत्र है एवरीथिंग इज पॉसीबल: डॉ. मुनि शांतिप्रियजी

धर्मसभा के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने श्रद्धालुओं को जीवन जीने की कला का दूसरा सूत्र देते हुए कहा कि यदि जीवन को आनंदमय बनाना है तो जिंदगी का यह मंत्र बना लें- एवरीथिंग इज पॉसीबल। इस दुनिया में कुछ भी इम्पॉसीबल नहीं। अगर आप चाहें तो सब कुछ संभव है। क्योंकि इम्पॉसीबल में ही पॉसीबल छिपा हुआ है। अक्सर व्यक्ति अपने मन में बनाई हुई कमजोर धारणों के कारण कुछ कर नहीं पाता। जैसे भौंरा शरीर से भारी होकर और पंख छोटे होते हुए भी बचपन से उडऩे की तमन्ना लिए एक दिन उडऩे में जरूर कामयाब हो जाता है। वैसे ही अपने इरादों को, हौसलों को हमेशा ऊंचा बनाए रखें एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। क्योंकि जैसी हमारी धारणा या भावना होती है, वैसे ही परिणाम भी मिलने शुरू हो जाते हैं। हम वह सब कुछ कर सकते हैं, जैसा हम सोचते हैं। बशर्तें आपका मार्ग और लक्ष्य कल्याणकारी-हितकारी हो। जीवन में सब कुछ पाना संभव है, यदि आप अपनी मेहनत व लगन से उसे हासिल करने जी-जान से जुट जाएं। एवरीथिंग इज बेस्ट और इवरीथिंग इज पॉसीबल के ये दो मंत्र यदि जीवन में आ जाएं तो हम सुखी-सफल जीवन के मालिक बन सकते हैं।

आज के अतिथिगण

गुरूवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथिगण राजमल लूनिया, राजेंद्र वोहरा बंगलुरु, इंदिरा वोहरा, डॉ. त्रिभुवन जैन, डॉ. पारस जैन, केदार गुप्ता, प्रकाश दस्सानी, पवन बुरड़, तुमड़ीबोड़ से आए अतिथियों सहित अजयजी, प्रदीप तालेड़ा ने दीप प्रज्जवलित कर किया। अतिथि सत्कार स्वागत समिति के अध्यक्ष कमल भंसाली व पीआरओ समिति से मनोज कोठारी, महावीर तालेड़ा द्वारा किया गया। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञान पुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किया गया। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया. आरंभ में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी द्वारा नित्य मंगल प्रार्थना- मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है, करते हो आप प्रभुजी, मेरा नाम हो रहा है... से दिव्य सत्संग की शुरुआत की गई।

तपस्वियों का हुआ बहुमान

पूज्य संतजनों की निश्रा में चातुर्मासिक आराधना-साधना के क्रम में गुरुवार को 8 उपवास की तपस्वी सुश्री हर्षिता चोपड़ा, सुश्री सोनल लुंकड़ व सुश्री अदिति बच्छावत का बहुमान हुआ। आज प्रवचन ‘किस्मत के बंद तालों को कैसे खोलें’ विषय पर

श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक, दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरडिय़ा, महासचिव प्रशांत तालेड़ा, अमित मुणोत ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि व्यक्तित्व विकास सप्ताह के अंतर्गत शुक्रवार 22 जुलाई को सुबह 8:45 बजे से ‘किस्मत के बंद तालों को कैसे खोलें’ विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।

 

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