बीजापुर

28 सूत्रीय मांगों को लेकर सर्व आदिवासी समाज ने सौंपा ज्ञापन
29-May-2023 10:05 PM
 28 सूत्रीय मांगों को लेकर सर्व आदिवासी समाज ने सौंपा ज्ञापन

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बीजापुर, 29 मई। सर्व आदिवासी समाज छत्तीगसढ़ के आह्वान पर सोमवार को आदिवासियों के सामाजिक, सांस्कृतिक, संवैधानिक हकों तथा राज्य व स्थानीय मुददों का निराकरण के लिए सर्व आदिवासी समाज बीजापुर के जिलाध्यक्ष अशोक तलांडी के नेतृत्व में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री के नाम तहसीलदार बीजापुर को ज्ञापन सौंपा गया।

 28 सूत्रीय मांगों में सर्व आदिवासी समाज द्वारा तेन्दूपत्ता संग्राहकों को नगद भुगतान, शासन द्वारा विभिन्न विभागों में शासकीय पदो की भर्तियां किया जा रहा है, इसमें प्राथमिकता मिले।

संवैधानिक प्रावधान के तहत समाज का 32 प्रतिशत आरक्षण दिया जाये। ग्राम सिलगेर में दोषियों पर कार्यवाही एवं निर्दोष मृतक ग्रामीणों के परिजन को उचित मुआवजा। एडसमेटा, सारकेगुडा, ताड़मेटला घटनाओं के जांच में सभी एनकाउंटर फर्जी पाया गया है, दोषी अधिकारी, कर्मचारी पर तत्काल दण्डात्मक कार्यवाही एवं मृतक परिवार को उचित मुआवजा देने, बस्तर में नक्सल समस्या का स्थायी समाधान हेतु शासन स्तर पर पहल करें।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में पेसा कानून का नियम बनाया गया है, उसमें संशोधन कर ग्रामसभा को पूर्ण अधिकार दिया जाये। छग में विभिन्न शासकीय पदों के पदोन्नति में आरक्षण लागू करें।शासकीय नौकरी में बैकलॉग एवं नई भर्तियों पर आरक्षण रोस्टर लागू किया जाये। पांचवी अनुसूची क्षेत्र में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी भर्ती में शत-प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाये। पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में गैर संवैधानिक रूप से बनाये गये नगर पंचायतों, नगर पालिका निगम को वापस ग्राम पंचायत बनाया जाये।

छग राज्य में समस्त वन ग्रामों को राजस्व ग्राम बनाये जाये। अभ्यारण्य में प्रभावित वनग्राम, ग्राम में वनोपज संग्रहण और विक्रय का अधिकार दिया जाये?। प्रदेश के 5 वीं अनुसूची क्षेत्रों में ग्रामसभा की सहमति के बिना किये गये भूमि अधिग्रहण रद्द करें।

 प्रदेश में खनिज उत्खनन के लिए जमीन अधिग्रहण न की जाए। गौण खनिज का पूरा अधिकार ग्राम सभा को दिया जाये ।पांचवी अनुसूची क्षेत्र कांकेर जिला के 14 ग्राम पंचायतों में सरपंच पद को अनारक्षित किया गया है, उसे पुन: आदिवासी के लिए आरक्षित किया जाये। केन्द्र सरकार द्वारा छात्रवृत्ति योजना में आदिवासियों के लिए आय सीमा में 2.50 लाख निर्धारित है को समाप्त किया जाए।

आदिवासी सलाहकार परिषद का गठन  किया जावे, इस परिषद का अध्यक्ष आदिवासी सदस्यों में से ही होना चाहिए। आदिवासी सलाहकार परिषद का एक कार्यालय होना चाहिए, जहां अजजा वर्ग के लोग अपनी समस्या एवं विचार रख सकें। आदिवासी को ही अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया जाये । छग प्रदेश में अवैध रूप से आदिवासी क्षेत्रों में रह रहे विदेशी घुसपैठियों जिनकी संख्या कई हजारों में है। उनका निष्पक्ष जांचकर इसे आदिवासी क्षेत्रों से बाहर भेजा जाये। बस्तर संभाग में  आदिवासियों को नक्सली या  सहयोगी बताकर जेलों में बन्दी बनाकर रखा गया है। ऐसे निर्दोष आदिवासियों को नि:शर्त जेलों से रिहाई किया जाये?। फर्जी तरीके से मारे गए आदिवासियों के परिवारों को रू. 25 लाख मुआवजा दिया जाये।

सलवा जुडुम के समय में 600 उजडे गांव को पुन: बसाया जाये। अभ्यारण्य और टाईगर रिजर्व, बांध या सरकारी उपक्रम के नाम पर आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है उसमें रोक लगे। धमतरी के गंगरेल बांधों से विस्थापितों को मय ब्याज मुआवजा दिया जाए। आदिवासी के परिवारों तथा उनके पालतू जानवर, नदी नाला, बांध, जंगल आदि का पुनर्वास एवं पुर्नव्यवस्थापन नही कर दिया जाता, तब तक इन बस्तियों को न उजाडा जाये। इसके लिए समाज विरोध करता है। कबीरधाम जिले के लगभग 80-90 ग्राम पंचायत को अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया जाये। आदिवासी धार्मिक, पारम्परिक और सांस्कृतिक स्थलों जैसे भोरमदेव के देखरेख और सेवा अर्जी के लिए बनाये गये समिति या ट्रस्ट में आदिवासी समाज के लोगों को ही रखा जाए।

अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों में ट्रस्ट न बनाये जाए। वन अधिकार कानून 2006 के तहत सभी दावेदारों को उनकी पूर्ण काबिज जमीन के व्यक्तिगत वनाधिकारों को मान्यता दी जाए। आदिवासी समाज अपने इन स्थानीय मुद्दों को लेकर गांव-गांव एवं मोहल्ला पारा तक पहुंचायेगी तथा  शासन-प्रशासन से अपने अस्तित्व के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ेगी।

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