बीजापुर

18 साल बाद खुले स्कूलों के 900 से ज्यादा बच्चों ने उठाया समर कैम्प का लाभ
07-Jun-2023 7:08 PM
18 साल बाद खुले स्कूलों के 900 से ज्यादा बच्चों ने उठाया समर कैम्प का लाभ

पेकोर पंडुम से बच्चों में आएगा सकारात्मक बदलाव       

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बीजापुर, 7 जून। पुन: संचालित स्कूलों के 150 गांवों से आये 1000 बच्चों का पेकोर पंडुम फेज 2 समर कैम्प बीते दिन ज्ञान गुड़ी एजुकेशन सिटी में संपन्न हुआ । एक सप्ताह के समर कैम्प में दुर्गम और अतिसंवेदनशील इलाकों के बच्चों ने कला शिल्प,खेल, नृत्य और बुनियादी शिक्षा को जाना। समापन अवसर पर बच्चों ने सीखे हुए गतिविधियों का मंच पर प्रदर्शन कर खूब वाहवाही लूटी और अपने अनुभव का बयान किया।                 

इस अवसर पर कलेक्टर राजेन्द्र कुमार कटारा ने बच्चों का उत्साहवर्धन करते हुए पेकोर पंडुम फेज 2 को बदलाव का माध्यम बताया। कलेक्टर ने कहा कि इस कार्यक्रम से उन्हें व्यक्तिगत रूप से खुशी हो रही है, जिसमें इतने सारे बच्चों ने पहली बार बीजापुर तक सफर किया और इतने बड़े आयोजन के हिस्सा बने। इस आयोजन से निश्चित रूप से बच्चों की सोच और समझ का विकास होगा तथा उनकी छिपी प्रतिभाओं को निखारने का रास्ता बनेगा  यही बच्चे कल शांति और विकास के लिए अपने गांव में नई पहल शुरू कर सकेंगे।

जिला पंचायत अध्यक्ष शंकर कुडिय़म व जिला पंचायत उपाध्यक्ष कमलेश कारम  ने मंच से बच्चों की हौसला अफजाई की और आयोजन के लिए जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग की सराहना की।                                

  समापन कार्यक्रम में बच्चों ने देशभक्ति गीत सुनो गौर से दुनिया वालो, लुंगी डांस, जय हो, भूमरो भूमरो जैसे फि़ल्मी तथा हल्बी और गोंडी लोक गीतों पर आकर्षक डांस कर खूब वाहवाही लूटी। बच्चों ने हिंदी और गोंडी में गीत गाने के साथ हाकिम का चिमटा नाटक की मंचीय प्रस्तुति दी।

कार्यक्रम में जिला शिक्षा अधिकारी बलीराम बघेल ने अतिथियों का स्वागत किया और अंत में सफल कार्यक्रम के लिए सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन और संयोजन एपीसी मोहम्मद ज़ाकिर खान द्वारा किया गया।        

नक्सल प्रभावित इलाकों के सैकड़ों गांव के बच्चे हुए शामिल

पेकोर पंडुम फेज 2 में शामिल सभी बच्चे 18 साल बाद खोले गए स्कूलों से शामिल किए गए। ये सभी इलाक़े नक्सल प्रभावित और अतिसंवेदनशील माने जाते हैं। कोशलनार, पामेड़, पेदाकोरमा, मनकेली, गोरना, पदमुर, मुंजाल कांकेर, कोतापल्ली, पेदाजोजेर, बाकेली, हुर्रेपाल, एडकापल्ली सेंड्रा, केरपे, बेचापाल, ताकिलोड, यमपुर,जैसे दूरस्थ और दुर्गम इलाको के बच्चे शिविर में आये और पहली बार विकास की संरचना और बुनियादी सुविधाओं का अनुभव कर समर केम्प की गतिविधियों की सीखी विधाओं की यादें लेकर अपने गांव वापस लौट गए।

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