बस्तर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 28 जुलाई। मानसून की लेटलतीफी के बाद लगातार बारिश के हालात से दक्षिण बस्तर के किसानों की दशा दयनीय हो गई है। इस साल सावन मास के 25 दिन गुजऱ जाने के बाद भी धान बोनी का काम अधूरा है, इधर निचली भूमि में पानी भरने से धान के बीज खराब होने की जानकारी है।
गीदम ब्लॉक के गाँव में सावन की हरियाली गायब है. मानसून में देरी की वजह से नमी के अभाव में इलाके के किसान धान की खुर्रा बोनी नहीं कर पाए, इधर मानसून के दस्तक देने के बाद हालात ऐसे हैं कि लगभग हर रोज बारिश हो रही है। खेत में जल जमाव और कीचड़ होने के कारण लेही धान बीज बोनी की तकनीक अपनाई जा रही है, पर कारगर साबित नहीं हो रहा है।
अधिकांश खेतों में धान के बीज सड़ चुके हैं। बारसूर, मुचनार, उपेट, रोंजे, नागफनी, हितामेटा, भटपाल, नेहूरनार, समेत इंद्रावती नदी पार के गाँव पदमेटा, चेरपाल कौरगांव, पाहुरनार और मांढरी आदि में खेत खाली नजर आ रहे हैं।
चेरपाल निवासी सुखराम ने बताया कि दो दफे लेही धान के बीज की बोनी कर चुके हैं, बावजूद धान का अंकुरण नहीं हो रहा है, लगातार बारिश से सही तापमान के अभाव में बीज खराब हो रहा है, लेही धान की बोनी के बाद कम से कम 5-6 दिन मौसम साफ होना जरूरी है।
किसान थलेश ठाकुर के अनुसार दक्षिण बस्तर में केवल 10 फीसदी किसान ही रोपा लगाते हैं, ज्यादातर बुआई के जरिये धान की खेती करते हैं, आज की स्थिति में धान बियासी के लायक होने चाहिए थे, पर ठीक से अंकुरित भी नहीं हो पाया है। किसानों ने चिंता जाहिर करते कहा कि जिन खेतों में बीज खराब हो गए, वहाँ दो दफे लेही बोनी कर चुके हैं, अब उनके पास ना तो बीज बचे हैं ना जुताई के लिए पैसे, वहीं उनका कहना है कि वैसे भी कीचडय़ुक्त खेत की जुताई में खर्च और परिश्रम की ज्यादा आवश्यकता होती है। वर्तमान मौसम धान की रोपाई के लिए उपयुक्त है लेकिन बोनी की अपेक्षा इसमें तीन - चार गुना बजट होने चाहिए। जो गरीब किसानों के बसा की बात नहीं है। इस तरह से खरीफ सीजन 2023 खेती के लिहाज से कम से कम दक्षिण बस्तर के किसानों के लिए ठीक नहीं है।
बोनस भी नहीं मिला
किसानों ने बताया कि हर साल अमूस तिहार के लिए राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत किसानों के खाते में बोनस की दूसरी किश्त जमा होती थी, इस साल धान बोनस का भी अता- पता नहीं है, समय पर राशि जमा होती तो किसानों को खेती- बाड़ी में सहूलियत होती।