दुर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 31 जनवरी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के बघेरा स्थित आनंद सरोवर में रशिया के सेंट पीटर्सबर्ग से संतोष दीदी का आगमन हुआ साथ में इन्दौर जोन की क्षेत्रिय निर्देशिका हेमलता दीदी का आगमन हुआ।
इस अवसर पर राजू भाटिया अध्यक्ष सिख समाज व भानुप्रताप सिंग (वनसंरक्षक रायपुर) द्वारा पुष्पगुच्छ व शाल से स्वागत किया गया। रीटा दीदी संचालिका ब्रह्माकुमारीज दुर्ग द्वारा सम्मानीय अतिथियों का शब्दों के स्नेह सुमन से स्वागत किया गया।
इंदौर जोन की क्षेत्रिय निर्देशिका हेमलता दीदी ने बताया कि संतोष दीदी ने विगत 34 वर्षों से रशिया में रहकर जो ईश्वरीय ज्ञान की गंगा बहाई, भारत की दैवी संस्कृति से उन्हें पहचान कराया। संस्कृति और भाषा भेद होने के पश्चात् भी उन्हें भारतीय संस्कृति की पहचान ही नहीं दी किन्तु उन्हें इस ईश्वरीय मार्ग में चलने की प्रेरणा देकर उनका जीवन श्रेष्ठ बनाया एवं ईश्वरीय नियम व धारणायें जैसे ब्रह्ममुहुर्त में उठकर ईश्वरीय ज्ञान का श्रवण करना, नियमित राजयोग का अभ्यास करना, सात्विक आहार ग्रहण करना, एक दूसरे के गुणों को ही देखना इत्यादि यह सब अत्यंत ही मुश्किल कार्य है जो परमात्म शक्ति से आपने पूर्ण किया ।
ब्रह्माकुमारी संतोष दीदी क्षेत्रीय सांस्कृतिक एवं शैक्षिक गैर-सरकारी संगठन ब्रह्माकुमारीज सेंट पीटर्सबर्ग के निर्देशक, रूस, सीआईएस और बाल्टिक क्षेत्र में ब्रह्माकुमारीज सेवाओं के संयुक्त क्षेत्रीय समन्वयक डिवाइन लाइट कला और सांस्कृतिक समूह के निर्देशक है
आपको शरणार्थी और प्रवासी बच्चों के पुनर्वास और सामाजिक संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय केंद्र स्वैलो द्वारा रूस के सर्वश्रेष्ठ लोग में गोल्डन स्वैलो का सम्मान (सितंबर, 2014) में दिया गया ऐसे 2023 तक आपके उल्लेखनीय सेवाओं की लम्बी फेरहिस्त है ।
संतोष दीदी ने रशिया में ईश्वरीय ज्ञान की सेवाओं का अनुभव साझा करते हुए बताया कि भगवान का बनने के बाद यह मालूम पड़ा मैं कौन? एक छोटी सी बिंदी जिसे परमात्मा पिता ने बताया आप चैतन्य आत्मा हो और मैं आपका पिता परम आत्मा हूं। हम बहनें कोई गुरु तो है नहीं और हम टीचर्स भी नहीं है। स्टूडेंट है। जो सुना हुआ और धारण किया हुआ शेयर करते हैं। रिवाइज करते हैं। हमारा अपना तो कुछ नहीं है। भगवान क्या सिर्फ भारत के लिए आता है? नहीं वह सम्पूर्ण विश्व के लिए आता है। उस पिता का परिचय सभी लोगों को देना है। परमात्मा नें सभी को सुख-शांतिमय सम्राज्य दिया लेकिन एक के मन में यह भावना जाग्रत हुई, इनके पास खाने को मेरे से अच्छा है, फिर यहीं से यह भावना जागृत हुई कि उसका हिस्सा मेरे पास आ जाये यहीं से विश्व का पीस होना अर्थात् खंडित होना प्रारंभ हुआ जब पूरे विश्व का पीस-पीस (खंड-खंड)हो गया और दुनिया से पीस (शांति) रूपी कबूतर उड़ गया।
सोवियत युनियन में धर्म की बात नहीं कर सकते। धर्म को वे अफीम कहते हैं। उन्हें शिक्षा मिली है कि धर्म इंसान को कर्महीन बनाता है। किसी को गहरी नींद में सुलाना है तो धर्म की बातें सुनाओं। वहाँ धर्म की बातें सुना नहीं सकते किन्तु भारत की पारिवारिक मूल्यों के प्रति वहाँ (रशिया में) बहुत अधिक सम्मान है । पूरी दुनिया कहती हैं। कम्युनिस्ट देश में धर्म का नाम नहीं ले सकते हैं। परमात्मा हिन्दु है क्या? परमात्मा मुस्लिम है क्या ? ये सब देह के धर्म है। परमात्मा सर्व आत्माओं का पिता है। जब ये बातें सुनते हैं और उन्हें बताते हैं कि हम सब दैहिक रूप में भिन्न-भिन्न धर्म के हैं, किन्तु इस शरीर रूपी रथ के अंदर जो चैतन्य आत्मा विराजमान है। उन सबका पिता एक परमात्मा है और इस नाते से सभी हम आपस में भाई-भाई हैं। उस पिता का गुण पवित्रता, सुख,शांति,आनंद, प्रेम है। जो पिता का गुण है वहीं आपका और हमारा गुण है। तब उन्हें पता चलता है अभी तक हमें जो शिक्षा मिली थी वह हमें अध्यात्मिक व मानवीय मूल्यों से वंचित कर दिया था। इस ज्ञान से उन लोगो का जीवन भी सुखमय होने लगा।
कार्यक्रम में कुमारी चारू, लिपिका, कशिश व आँचल ने बहुत ही मनमोहक मयुर नृत्य की प्रस्तुति दी। मंच संचालन वरिष्ठ राजयोगी शिक्षिका रुपाली बहन ने किया ।