बीजापुर

1900 ईंसवी में बना कुआं खण्डर की कगार पर
01-Apr-2024 2:50 PM
1900 ईंसवी में बना कुआं खण्डर की कगार पर

बरसों से बुझती थी हजारों ग्रामीणों की प्यास

मो.इमरान खान

भोपालपटनम, 1 अप्रैल (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। राजमहल परिसर में सदियों पुराना कुआ भोपालपटनम, मामिडगुडा, गोल्लगुड़ा सहित दर्जनों गांवों के हजारों ग्रामीणों की प्यास बुझाने में काम आया करता था। इस कुएं के पानी को पटनम सहित आस पास गांव के लोग इस्तेमाल किया करते थे। आज यह खंडहर में तब्दील हो चुका है।

लगभग 1900 ईसवी में बना भोपालपटनम का राजमहल पटनम की भव्यता देखते ही बनती है, लेकिन संरक्षण के अभाव में आज ये राजमहल खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस कुएं में पानी का स्रोत बहुत है यह कुआ कभी नहीं सूखा है। भीषण गर्मी में भी लोगों को भरपूर पानी मिल जाता था कुएं से पानी ग्रामीण कंधे में कावड़ लगाकर ले जाते थे। कुएं के चारों ओर पानी भरने वालों की कतार लगी रहती थी। रात के 3 बजे से ही ग्रामीणों का कुए से पानी निकालना शुरू हो जाता था। पूरे दिन पानी का इस्तेमाल हुआ करता था इसके बाद भी पानी की कभी कमी नहीं हुई।

बताया जाता है कि एक बार सफाई के दौरान जहाँ से पानी का स्रोत था वह कारीगरों ने पत्थर लगाकर स्रोत कम कर रखा था 90 की दशक में सफाई करते वक्त यह देखने को मिला था कि उस पत्थर को निकालने पर मोटी धार से पानी निकलने लगा था। उसको तुरंत वैसे ही बंद कर दिया गया।

बगीचे में पर्याप्त मात्रा में होता था पानी का उपयोग

राजमहल के बाउंड्री से लगे बगीचे अमराई के लिए इस कुएं से पानी निकाला जाता था। बगीचे में फलदार पेड़ आम, जाम, निम्बू, सीताफल के पेड़ लगे हुए थे व हरी सब्जियां भी उगाई जाती थी। इन सब्जियों का इस्तेमाल राजबाड़ा में रहने वालों के लिए खाने के काम में आती थी

सागौन की लकडिय़ां थी आय का स्रोत

ब्रिटिश काल में भोपालपट्नम एक अच्छी जमीदारी थी जिसका कुल परीक्षेत्र 722 वर्ग फिट था 1908 से पहले भोपालपटनम में राजमहल, पुलिस थाना और तहसील कार्यालय भी बनाया गया था। इस इलाके में सागौन जैसी कीमती लकडिय़ां आय का साधन थी उस समय गोदावरी और इंद्रावती नदी से लकडिय़ों का निर्यात किया जाता था। बस्तर में मध्यकाल से लेकर रियासत काल तक शासन संचालन में जमीदारों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बस्तर में फोतकेल पामेड़-कुटरु, भोपालपटनम, सुकमा चिंतलनार, कोत्तापल्ली और परलकोट प्रमुख जमीदारियां रही है, जिसमें में से कुटरू सबसे बड़ी तो फोतकेल सबसे छोटी जमीदारी रही।

जीर्णोद्धार की है जरूरत

कुएं के अन्दर बाहर पौधे उग गए है पूरी तरह से जर्जर की स्थिति में है। जीर्णोद्धार की जरूरत है। लोगों का मानना है कि कुएं की रिपेरिंग कर मोटर लगाकर पानी को नगर में सप्लाई दिया जा सकता है। जिससे राजमहल की निशानियां भी बनी रहेगी व लोगों को आसानी से शुद्ध पानी भी मिल पाएगा।

इतिहास बन रहा मलियामेट

भोपालपटनम नगर को यह सुध ही नहीं कि उनकी महानतम विरासत की निशानियाँ मटियामेट हो रही हैं। लम्बे समय तक रियासतकालीन राजनीति के केन्द्र में रहा राजमहल भवन अभी पूरी तरह क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है, और यदि कोशिश की जाए तो इसे बचाया जा सकता है। भवन के भीतर के भवनों में कब्जा कर लिया गया है तथा पीछे अवस्थित मैदानों में भी लोग झोपडिय़ाँ बना कर रहने लगे हैं। सामने की संरचना, भीतर का अहाता और उससे लग कर अनेक भवन अभी ठीक-ठाक अवस्था में हैं, जबकि पिछली दीवारों पर बरगद का कब्जा है। अनेक बड़े कमरे अब ईंटों का ढेर रह गये हैं। इसे सवारने की सुध किसी ने नहीं ली है।

संरक्षण की जरूरत

साहित्यकार लक्ष्मीनारायण पयोधि ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि यहाँ कुआँ सैकड़ों साल पुराना है, भोपालपटनम सहित कई गांव के लोगों की प्यास बुझाता था, इस कुएं में कई जल स्रोत थे, इतने ज्यादा की कुछ जल-स्रोतों को बंद करवाना पड़ा। भीषण गर्मी में भी  यहाँ कुआं आज तक नहीं सूखा है, इसको संरक्षण करने की जरूरत है।

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