दुर्ग
![आम लोगों की जिंदगी में बदलाव की तस्वीर है ‘धीरे-धीरे उतरे पार’-डॉ. सुशील त्रिवेदी आम लोगों की जिंदगी में बदलाव की तस्वीर है ‘धीरे-धीरे उतरे पार’-डॉ. सुशील त्रिवेदी](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1720083687hilai-920.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 4 जुलाई। साहित्यकार, दुर्ग निषाद समाज के पूर्व अध्यक्ष व बीएसपी के सेवानिवृत्त शिक्षक बद्रीप्रसाद पारकर लिखित जीवनी ‘धीरे-धीरे उतरे पार’ का विमोचन पं. सुन्दरलाल शर्मा सम्मान प्राप्त लेखक पूर्व आई.ए.एस. डॉ. सुशील त्रिवेदी, लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष बी.एल. ठाकुर, लेखक जी.आर. राना, डॉ. सुधीर शर्मा, डी.पी. देशमुख, अशोक आकाश, डॉ.परदेशीराम वर्मा के द्वारा निर्मल कबीर आश्रम नेहरू नगर में हुआ। इस अवसर पर बद्रीप्रसाद पारकर को वैभव सम्मान से सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर डॉ. परदेशीराम वर्मा ने कहा कि बेलौदी जैसे नदी किनारे के छोटे से गांव से निकलकर बद्रीप्रसाद पारकर ने एक शिक्षक, समाजसेवी के रूप में खूब काम किया। अब वे लेखक के रूप में चर्चित हैं। उनकी पहली किताब छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा छपी। यह दूसरी किताब उनकी जीवनी है। यह बहुत ही प्रेरक और जानकारीपूर्ण किताब है। विगत साठ-सत्तर वर्ष पूर्व के छत्तीसगढ़ का धडक़ता हुआ सामाजिक इतिहास इस किताब में है।
मुख्य अतिथि डॉ. सुशील त्रिवेदी ने कहा कि बद्रीप्रसाद पारकर की आत्मकथा हमारा ध्यान खींचती है। यह आत्मकथा पिछड़ा वर्ग के आम लोगों की जिन्दगी में आ रहे बदलाव का अभिलेख प्रस्तुत करती है। आत्मकथा धीरे-धीरे उतरे पार में कोई दार्शनिक व्याख्या नहीं, न शिक्षा देने की कोशिश है इसमें पारकर ने सामान्य जीवन जीते हुए कुछ उल्लेखनीय काम कर जाने की प्रेरक गाथा लिखी है। संघर्ष की यह कथा है। पारकर ने जीवन के हर रंग को पकड़ा है। पंचायत से लेकर विधान सभा तक की चुनावी राजनीति का विवरण इस पुस्तक में है। इसमें बदलते भारत की सच्ची तस्वीर है। इसमें स्वस्थ, परिश्रमी, नैतिकता से जुड़े समाज का चित्र उभरता है। रीति-रिवाज, परंपरा का विषद वर्णन हमें बांधता हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक बेहद पठनीय है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष बी.एल. ठाकुर ने कहा कि बद्रीप्रसाद पारकर की जीवनी पढक़र हमें भी अपना संघर्षपूर्ण जीवन और उसकी घटनाएॅं याद आती हैं। यह किताब हमें लिखने और समाज से जुडऩे की प्रेरणा देती है। डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा कि शीर्षक धीरे-धीरे उतरे पार ही पुस्तक की ओर पाठक को ले जाती है। यह शीर्षक चर्चित लेखक डॉ. परदेशीराम वर्मा ने चुना। वे गुणों के पारखी हैं। खुद लिखना और दूसरे प्रतिभाशाली लोगों को लेखन की प्रेरणा देने की उदारता डॉ. परदेशीराम वर्मा से हम सीखें। बद्रीप्रसाद पारकर की यह जीवनी समाजिक इतिहास का दस्तावेज है।
डॉ. डी.पी. देशमुख ने कहा कि मेरा गांव भी नदी किनारे बसा है। मैं नदी किनारे के गांव बेलौदी के लेखक की प्रतिभा को प्रणाम करता हॅूं। अशोक आकाश ने पुस्तक के साथ छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी विषय पर वक्तव्य में कहा कि आज छत्तीसगढ़ी भाषा के मान के लिए हमें काम करना है।
यह पुस्तक भी छत्तीसगढ़ के हौशले का दस्तावेज ही है। जी.आर. राना ने कहा कि निषाद समाज पिछड़ा मगर परिश्रमी समाज है। किताब धीरे-धीरे उतरे पार बांधने वाली किताब है। बहुत पठनीय है। छोटी सी किताब में समाज के बड़ा संघर्ष लिखा गया है।
बद्रीप्रसाद पारकर ने कहा कि मुझे अपने अग्रज डॉ. परदेशीराम वर्मा से प्रेरणा मिलती है। इसीलिए लगातार लेखन सम्भव होता है। संघर्ष की कथा को लिखने का मतलब है कि परिश्रम और हिम्मत करने से एक दिन सफलता जरूर मिलती है।
संचालक दीनदयाल साहू ने निर्मल ज्ञान मंदिर के योगदान के लिए आभार माना। यह समारोह सिरजन, आगासदिया तथा वैभव प्रकाशन का संयुक्त आयोजन रहा। इस अवसर पर ब्रदीप्रसाद पारकर को वैभव सम्मान दिया गया। प्रसिध्द लेखक गिरीश पंकज और वैभव प्रकाशन के डॉ. सुधीर शर्मा द्वारा यह भावपूर्ण सम्मान दिया गया।
समारोह में पारकर परिवार के सदस्यगणों के साथ साहित्यकार, समाजसेवी और राजनीति के साथ कला जगत के विख्यात लोग उपस्थित थे। बद्रीप्रसाद पारकर के साथ उनकी पत्नी सुराज पारकर भी सम्मानित हुईं। पुत्र डॉ. मिथिलेश पारकर, इन्जीनियर पूर्णेन्द्र पारकर, शिवेन्द्र पारकर, भाभी बृजकुमारी पारकर, भतीजा दुर्गाप्रसाद पारकर, सरपंच मुकुन्द, प्रदीप, दामाद जीवन निषाद, रामेश्वर निषाद सहित परिजन उपस्थित थे।
नौशाद सिद्दीकी, सुरेश बन्छोर, हेमलाल साहू निर्मोही, प्रख्यात बाल साहित्यकार कमलेश चंद्राकर, डॉ. सुखदेव साहू, गुलाब जोशी, मौर्या ने इस अवसर पर काव्य पाठ किया। पत्रकार मनीषा निषाद ने आभार प्रदर्शन किया।