अंतरराष्ट्रीय
स्टेनफोर्ड (कैलिफोर्निया), 1 जून कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि चीन भारत पर कुछ थोप नहीं सकता और भारत तथा चीन के संबंध आसान नहीं हैं, ये ‘‘मुश्किल’’ होते जा रहे हैं।
कांग्रेस नेता तीन अमेरिकी शहरों की यात्रा पर हैं और उन्होंने कैलिफोर्निया में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय परिसर में बुधवार रात छात्रों के एक प्रश्न के उत्तर में यह बात कही।
छात्रों ने राहुल से पूछा था,‘‘ अगले पांच से दस वर्षों में भारत और चीन के बीच संबंध कैसे होंगे, आप इसे कैसे देखते हैं।’’
इसके उत्तर में कांग्रेस नेता ने कहा,‘‘ये अभी मुश्किल हैं। मेरा मतलब है कि उन्होंने हमारे कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है। ये मुश्किल हैं, ये इतने आसान नहीं हैं।’’
उन्होंने कहा,‘‘ भारत पर कुछ थोपा नहीं जा सकता। ऐसा कुछ नहीं होने वाला।’’
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में तीन वर्षों से गतिरोध कायम है। जून 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़पों के बाद संबंध बेहद तनावपूर्ण हो गए थे। भारत का रुख है कि द्विपक्षीय संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक कि सीमाई इलाकों में शांति न हो।
स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में बातचीत के दौरान राहुल ने पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में रूस के साथ अपने संबंध बनाए रखने की भारत की नीति का समर्थन किया।
कांग्रेस नेता से प्रश्न किया गया था कि क्या वह रूस को लेकर भारत के तटस्थ रुख का समर्थन करते हैं, इस पर उन्होंने कहा,‘‘ हमारे रूस के साथ संबंध हैं,हमारी रूस पर कुछ निर्भरताएं है। इसलिए मेरा वही रुख है जो भारत सरकार का है।’’
उन्होंने कहा कि अंतत: भारत को अपने हितों की ओर देखना होगा क्योंकि भारत एक बड़ा देश है जहां सामान्य तौर पर उसके अन्य देशों के साथ संबंध होंगे।
कांग्रेस नेता ने कहा कि यह इतना छोटा तथा आश्रित नहीं है कि इसके केवल एक के साथ संबंध हों, किसी और के साथ नहीं। अपनी बात उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा, ‘‘ हमारे पास सदैव इस प्रकार के संबंध होंगे। कुछ लोगों के साथ हमारे बेहतर संबंध होंगे, कुछ के साथ संबंध बनेंगे। तो इस प्रकार का संतुलन है।’’
राहुल ने भारत और अमेरिका के बीच मजबूत संबंधों का समर्थन किया, साथ ही उत्पादन की जरूरत तथा डेटा और कृत्रिम मेधा (एआई) जैसे उभरते क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि इन द्विपक्षीय संबंधों में केवल सुरक्षा तथा रक्षा के पहलू पर ध्यान केन्द्रित करना पर्याप्त नहीं है। (भाषा)
न्यूयॉर्क, 1 जून ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस, यूएसए’ (आईओसीयूएसए) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा को लेकर लगाए जा रहे आरोपों की निंदा की और कहा कि उनकी यात्रा को दागदार करने के लिए ‘‘भ्रामक अभियान’’ चलाया जा रहा है।
गांधी अमेरिका के तीन शहरों की यात्रा पर मंगलवार को सैन फ्रांसिस्को पहुंचे। इस दौरान वह प्रवासी भारतीयों से बातचीत करेंगे और अमेरिकी सांसदों से मुलाकात करेंगे।
आईओसीयूएसए की ओर से बुधवार को जारी एक बयान के अनुसार, राहुल गांधी की ‘‘यात्रा यहां अमेरिका और भारत में जनता का ध्यान आकर्षित कर रही है। लोग उनके प्रगतिशील दृष्टिकोण के बारे में जानने और उनसे बातचीत करने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। यकीनन इससे कुछ लोगों का एक समूह नाराज होगा और उसने यात्रा को दागदार करने के लिए भ्रामक अभियान चलाया है।’’
आईओसीयूएसए ने राहुल गांधी की ‘‘ यात्रा को बाहरी ताकतों के साथ एक अपवित्र गठबंधन बताने और किसी निश्चित अल्पसंख्यक समूह द्वारा इसे नियंत्रित’’ बताए जाने के प्रयासों की भी निंदा की।
बयान के अनुसार, ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस, यूएसए’ एक स्वायत्त इकाई है जो अमेरिका में किसी भी धार्मिक समूह के अधीन नहीं है।
बयान के अनुसार, ‘‘ लोगों को उनके धर्म के आधार पर बांटना कांग्रेस पार्टी की नीति नहीं है। हम धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र से परे हर व्यक्ति का आगामी कार्यक्रमों में स्वागत करते हैं।’’
राहुल गांधी की वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में भी बैठकों में हिस्सा लेने की योजना है।
आईओसीयूएसए के बयान के अनुसार, ‘‘हम इन सभी प्रतिक्रियाओं और फर्जी खबरों को अमेरिका में (राहुल) गांधी की यात्रा और उन्हें दागदार करने के प्रयासों का हिस्सा मानते हैं। हालांकि हमें विश्वास है कि लोग खुलेपन व संवाद के साथ इन तिकड़मों तथा गंदी चालों को खारिज कर देंगे।’’ (भाषा)
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने दक्षिण अमेरिकी देशों के लिए एक क्षेत्रीय व्यापारिक मुद्रा बनाने का प्रस्ताव दिया है. लैटिन अमेरिकी देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए आयोजित सम्मेलन में उन्होंने यह प्रस्ताव दिया.
लूला ने रीजनल डेवलपमेंट बैंकों से भी अपील की कि वे क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में वित्तीय सहायता और निवेश बढ़ाने की दिशा में कोशिशें बढ़ाएं. उन्होंने क्षेत्र के सभी सरकारी बैंकों से कहा कि वो व्यापार के लिए क्षेत्र के बाहर की मुद्राओं से निर्भरता घटाने के लिए साथ मिलकर काम करें.
लूला ने ये बातें राजधानी ब्रासीलिया में आयोजित दक्षिण अमेरिकी सम्मेलन में कहीं. इस सम्मेलन में दक्षिण अमेरिका के सभी 12 देशों के नेता शामिल हुए. पेरू की राष्ट्रपति दीना बोलूआर्ते अनुपस्थित रहीं. पेरू में उन पर चल रहे आपराधिक मामले के कारण वो देश से बाहर नहीं जा सकती हैं. ऐसे में उनकी जगह प्रधानमंत्री अल्बेर्तो ओतारोला सम्मेलन में पहुंचे. इससे पहले आखिरी बार 2014 में इक्वाडोर में क्षेत्रीय नेताओं का सम्मेलन हुआ था.
सिंगल करंसी का विचार नया नहीं
दक्षिण अमेरिकी देशों के बीच एकल मुद्रा लागू करने का विचार नया नहीं है. मगर इसकी प्रक्रिया बहुत विस्तृत और जटिल है. इसके अलावा मौजूदा और एतिहासिक स्पर्धाएं भी हैं, मसलन अर्जेंटीना और ब्राजील के बीच. फ्लूमिनेस फेडरल यूनिवर्सिटी के जैक्स डीअडेस्की ने डीडब्ल्यू को बताया, "सिंगल करंसी जोन बनाने के लिए शुरुआत में भविष्य के सहयोगियों के बीच कई दौर की बातचीत की जरूरत होगी."
एकिनटेक बैंक के अर्थशास्त्री लेआंद्रो दिआस बताते हैं, "ज्यादातर देश अपनी संप्रभुता और आर्थिक आजादी बरकरार रखना चाहेंगे." इसके अलावा लैटिन अमेरिका की सिगंल करंसी के राजनैतिक मायने भी होंगे. यूरो जोन की तरह इसे भी एक संगठित आर्थिक इलाके की तरह देखा जाएगा. पूरा क्षेत्र आर्थिक और सामाजिक तौर पर और करीब आएगा.
क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने पर फोकस
लूला अपने कार्यकाल में दक्षिण अमेरिकी देशों के बीच एका और आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर बहुत ध्यान दे रहे हैं. अपने चुनावी अभियान में भी लूला ने सिंगल करंसी का जिक्र करते हुए कहा था, "अगर ईश्वर ने चाहा, तो हम लैटिन अमेरिका के कॉमन करंसी बनाएंगे क्योंकि हमें डॉलर पर निर्भर नहीं रहना चाहिए." लूला ने सत्ता में आकर चार साल की अनुपस्थिति के बाद अप्रैल 2023 में ब्राजील की यूनियन ऑफ साउथ अमेरिकन नेशन्स (यूएनएएसयूआर) में वापसी कराई.
इस मौके पर राष्ट्रपति कार्यालय ने अपने बयान में कहा कि यूएनएएसयूआर, दक्षिण अमेरिकी देशों के बीच बेहतर तालमेल बिठाने और समेकन को बढ़ावा देने की व्यवस्था है. बयान में जोर दिया गया कि टिकाऊ विकास, नागरिकों की भलाई और गरीबी, सामाजिक असामनता जैसे क्षेत्रीय मसलों को सुलझाने के लिए दक्षिण अमेरिकी देशों में एकता और सामंजस्य की जरूरत है. पूर्व राष्ट्रपति खाएर बोल्सोनारो के कार्यकाल के दौरान 2019 में ब्राजील ने यूएनएएसयूआर छोड़ दिया था. अब ब्राजील की वापसी के बाद अर्जेंटीना भी ब्लॉक में लौट आया है.
मादुरो को बुलाने पर आलोचना
ब्रासीलिया सम्मेलन में क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की बातों के बीच मतभेद भी दिखे. लूला ने वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलास मादुरो को भी सम्मेलन में शरीक किया. उनके पूर्ववर्ती बोल्सोनारो ने वेनेजुएला की सरकार से संबंध तोड़ लिए थे. अब लूला ने मादुरो के साथ वापस संबंध जोड़े हैं. उन्होंने मादुरो का स्वागत करते हुए उन्हें गला लगाया और कहा कि यह दोनों देशों के आपसी संबंधों की नई घड़ी है.
मादुरो के शामिल होने पर भी ब्लॉक में मतभेद दिखा. मादुरो पर मानवाधिकार उल्लंघन और राजनैतिक आलोचना को निशाना बनाने के गंभीर आरोप हैं. लूला ने इन आरोपों पर सवाल उठाते हुए इन्हें "होस्टाइल नरैटिव" बताया. उन्होंने मादुरो का बचाव करते हुए कहा बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "लोकतांत्रिक दुनिया वेनेजुएला के बारे में जो मांग करता है, वो सऊदी अरब के लिए नहीं करता."
उरूग्वे के राष्ट्रपति लुईस पौ ने कहा, "मैं यह सुनकर हैरान हुआ कि वेनेजुएला में जो हो रहा है, उसे कहानी बताया जा रहा है. सबसे बुरी चीज जो हम कर सकते हैं, वो है इसे बुहारकर कालीन के नीचे छुपा देना." पौ, मादुरो को तानाशाह बता चुके हैं. चिली के राष्ट्रपति गैरबियल बोरिक ने कहा, "मानवाधिकारों का हर जगह, हमेशा सम्मान होना चाहिए. इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि सत्तारूढ़ नेता का राजनैतिक रुझान क्या है."
एसएम/सीके (एएफपी)
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने अमेरिका दौरे के दौरान सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव के बारे में एक ऐसा दावा किया, जिसके बाद कई लोग उनकी जानकारी पर सवाल उठा रहे हैं.
राहुल गांधी ने अमेरिका के सैन फ़्रांसिस्को में दिए एक भाषण में गुरु नानक देव की यात्राओं का ज़िक्र करते हुए दावा किया कि वो थाईलैंड गए थे.
राहुल गांधी के भाषण का ये हिस्सा सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने लगा. बीजेपी के नेता और दूसरे सोशल मीडिया यूज़र उनकी जानकारी पर सवाल उठाने लगे.
कुछ लोग उन्हें 'ट्रोल' भी करने लगे. ट्विटर #Guru Nanak #Thailand और #राहुलगांधी ट्रेंड करने लगे
राहुल गांधी ने क्या कहा?
अमेरिका दौरे पर गए राहुल गांधी सेन फ़्रांसिस्को में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित कर रहे थे.
भाषण शुरू होने के कुछ ही देर बाद कुछ लोगों ने नारेबाज़ी शुरू कर दी.
नारे लगाने वाले लोग सिख्स फ़ॉर जस्टिस (एसजेएफ़) से जुड़े थे. वो खालिस्तान के समर्थन में नारे लगा रहे थे. इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लेकर भी नारे लगाए गए.
नारेबाज़ी के दौरान राहुल गांधी कुछ देर के लिए रुके. फिर उन्होंने अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' का ज़िक्र किया.
राहुल गांधी ने कहा, "भारत जोड़ो एक आइडिया है, जो आपके दिलों में है. ये एक दूसरे को सम्मान देने के बारे में है और एक दूसरे से लगाव रखने के बारे में है. ये एक दूसरे प्रति हिंसक न होने के बारे में है. गुरुर न दिखाने के बारे में है."
इसी के बाद उन्होंने गुरु नानक देव का ज़िक्र किया.
राहुल गांधी ने कहा, "मैं यहां अपने सिख भाइयों को देख रहा हूं. आपके गुरु नानक जी का पूरा जीवन इसी के लिए था. वो बात थी, विनम्र रहो, स्नेह करो, गुरु नानक जी की तुलना में हम कुछ नहीं चले."
इसके बाद उन्होंने गुरु नानक देव की थाईलैंड यात्रा को लेकर दावा किया.
राहुल गांधी ने कहा, "मैंने कहीं पढ़ा था कि गुरु नानक जी मक्का, सऊदी अरब गए थे. वो थाईलैंड गए थे, वो श्रीलंका गए थे. ये बड़े लोग हमारे पैदा होने के काफी पहले भारत जोड़ो कर रहे थे."
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ये बयान सामने आते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई.
कुछ लोगों ने उनके बयान को लेकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (एसजीपीसी) से सवाल किया,"क्या गुरुनानक देव थाईलैंड गए थे और भारत जोड़ो यात्रा की थी."
गुरु नानक देव की यात्रा: तथ्य क्या है?
सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव ने कई यात्राएं की. उन्होंने भारत और पश्चिमी एशिया के कई इलाक़ों का भ्रमण किया. वे अधिकतर पैदल ही यात्राएं किया करते थे.
उनके साथ रबाब बजाने वाले भाई मरदाना यात्रा करते थे.
गुरु नानक देव की यात्राओं को उदासी कहा जाता है. पंजाब सरकार ने इनका ब्योरा दर्ज किया है.
पहली उदासी (1500-1505)
गुरु नानक देव ने अपनी पहली यात्रा में उत्तर भारत, मौजूदा बांग्लादेश और मौजूदा पाकिस्तान के इलाकों की यात्रा की.
दूसरी उदासी (1506-1509)
गुरु नानक देव ने अपनी दूसरी यात्रा में दक्षिण भारत का रुख किया.
वो राजस्थान और उत्तर प्रदेश होते हुए देश के दक्षिणी हिस्से की ओर गए.
ये कहा जाता है कि गुरु नानक देव ने श्रीलंका की यात्रा भी इसी दौरान की.
तीसरी उदासी (1514-1516)
गुरु नानक देव ने अपनी तीसरी यात्रा में हिमालय क्षेत्र का दौरा किया.
इस दौरान वो कश्मीर के अलावा लद्दाख और तिब्बत तक गए.
चौथी उदासी (1518-1521)
इस यात्रा में गुरू नानक देव ने पश्चिम दिशा का रुख़ किया.
इसी दौरान गुरु नानक देव मक्का और मदीना गए.
चौथी उदासी के बाद गुरु नानक देव रावी नदी के किनारे करतारपुर (मौजूदा पाकिस्तान में) में बस गए और अपने जीवन का बाक़ी समय वहीं व्यातीत किया.
राहुल गांधी के दावे पर तीखी प्रतिक्रिया
गुरु नानक देव के थाईलैंड जाने से जुड़े राहुल गांधी के दावे पर सोशल मीडिया पर कई लोगों ने कमेंट किए.
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने उनसे तीखे सवाल पूछे.
बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने ट्विटर पर लिखा, “प्रिय राहुल गांधी आपकी बेवकूफियों के नाम पर हमें आपको कब तक माफ करते रहना चाहिए. आपने ये कहां पढ़ा कि गुरु नानक थाईलैंड गए थे? ”
बीजेपी के राज्यसभा सांसद डॉक्टर के लक्ष्मण ने कहा कि 'गुरु नानक का मजाक बनाना ठीक नहीं है.'
उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "ये दावा करते हुए गुरु नानक जी का मजाक बनाना ठीक नहीं है कि वो थाईलैंड गए थे!"
फ़िल्मकार अशोक पंडित ने भी राहुल गांधी के दावे पर सवाल उठाया.
उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "गुरु नानक जी थाईलैंड गए थे. कौन इस बंदे को इतिहास पढ़ाता है?" (bbc.com/hindi)
सियोल, 31 मई उत्तर कोरिया का जासूसी उपग्रह प्रक्षेपित करने का पहला प्रयास विफल रहा। देश की सरकारी मीडिया ने यह जानकारी दी।
सरकारी मीडिया में जारी एक बयान में उत्तर कोरिया ने कहा कि जासूसी उपग्रह ले जा रहे रॉकेट की गति पहले और दूसरे चरण के अलग होने के बाद कमजोर पड़ गई और यह कोरियाई प्रायद्वीप के पश्चिमी तट के समुद्री क्षेत्र में गिर गया।
वैज्ञानिक अभियान के विफल होने के कारणों का पता लगा रहे हैं।
इससे पहले दक्षिण कोरिया की सेना ने कहा था कि उत्तर कोरियाई रॉकेट ने ‘‘असामान्य तरीके से उड़ान’’ भरी और इसके बाद यह समुद्र में गिर गया।
ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ ने एक बयान में कहा कि रॉकेट को उत्तर कोरिया के उत्तर-पश्चिमी टोंगचांग-री क्षेत्र से सुबह करीब साढ़े छह बजे प्रक्षेपित किया गया। यहीं देश का मुख्य अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र स्थित है।
इससे पहले जापान के तटरक्षक बल ने सोमवार को कहा था कि उत्तर कोरिया के जलमार्ग अधिकारियों से मिले नोटिस के अनुसार प्रक्षेपण 31 मई से 11 जून के बीच किया जा सकता है।
जापान के रक्षा मंत्री ने अपनी सेना को आदेश दिया था कि यदि कोई उपग्रह जापानी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसे मार गिराया जाए।
जापान का तटरक्षक बल पूर्वी एशिया में समुद्री सुरक्षा सूचना का समन्वय करता है और उसे आगे भेजता है, इसी कारण उत्तर कोरिया ने यह नोटिस उसे भेजा है।
उपग्रह को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के लिए उत्तर कोरिया का लंबी दूरी की मिसाइल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों द्वारा लगाए प्रतिबंधों का उल्लंघन है। (एपी)
चीन ने अपने तिआनगोंग अंतरिक्ष स्टेशन पर तीन और लोगों को भेजा है, जिनमें पहली बार एक सिविलियन को भी शामिल किया गया है. बीहांग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ग्वी हाइचाओ अंतरिक्ष में जाने वाले पहले चीनी नागरिक बन गए हैं.
'शेनजाउ-16' नाम के इस मिशन को 'लॉन्ग मार्च' 2एफ रॉकेट पर उत्तरपश्चिमी चीन में स्थित जुकुआन सैटेलाइट लॉन्च सेंटर से मंगलवार 30 मई को सुबह 9:31 मिनट पर छोड़ा गया. लॉन्च सेंटर के निदेशक जाऊ लीपेंग ने बताया कि लॉन्च "पूरी तरह से सफल" रहा और "अंतरिक्ष यात्री अच्छे हाल में" हैं.
चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रम के दर्जनों कर्मचारी लॉन्च के दौरान मौजूद रहे. साल भर वहीं रहने वाले कई कर्मचारियों में से कुछ ने रॉकेट के आगे सेल्फियां भी लीं. लोगों ने अपने बच्चों को भी लॉन्च दिखाया, जिनमें से कुछ ने अपने माता-पिता के कंधों पर बैठ कर चीनी झंडे लहराए.
मिशन दल के कमांडर हैं जिंग हाइपिंग, जो अपने चौथे मिशन पर हैं. उनके अलावा दल में इंजीनियर जू यांग्जू और प्रोफेसर ग्वी हाइचाओ शामिल हैं.
चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम सेना संचालित करती है. अब तक अंतरिक्ष में भेजे गए सभी चीनी अंतरिक्षयात्री पीपल्स लिबरेशन आर्मी का हिस्सा रहे हैं. इस दफा पहली बार अंतरिक्ष भेजे गए चीन के नागरिक अंतरिक्षयात्री ग्वाई हाइचाओ, मिशन में पेलोड विशेषज्ञ हैं. वह बीजिंग यूनिवर्सिटी ऑफ एयरोनॉटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिक्स में प्रोफेसर हैं.
यह जानकारी देते हुए चीन के मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रवक्ता लिन शिजियांग ने कहा, "ग्वाई हाईचाओ मुख्य रूप से स्पेस साइंस एक्सपेरिमेंटल पेलोड्स के ऑन-ऑरबिट ऑपरेशन का जिम्मा संभालेंगे."
तीन अंतरिक्ष यात्री वापस भी आएंगे
ग्वी मिशन में पेलोड विशेषज्ञ की भूमिका में रहेंगे और अंतरिक्ष स्टेशन में वैज्ञानिक प्रयोगों का काम देखेंगे. चीन इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने वाला तीसरा देश है और तिआनगोंग उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम का कोहिनूर है.
इस कार्यक्रम के तहत चीन मंगल ग्रह और चांद पर रोबोटिक रोवर भी उतार चुका है. अधिकारियों ने बताया कि तिआनगोंग के "एप्लीकेशन और डेवलपमेंट" चरण में पहुंचने के बाद 'शेनजाउ-16' वहां भेजा जाने वाला पहला मिशन है.
स्टेशन पहुंचने के बाद यान के सदस्य शेनजाउ-15 के अपने उन तीन सहकर्मियों से मिलेंगे जो वहां पिछले छह महीनों से हैं और आने वाले कुछ ही दिनों में धरती पर वापस आ जाएंगे.
अंतरिक्ष एजेंसी के प्रवक्ता लिन शिकियांग ने पत्रकारों को बताया कि शेनजाउ-16 इस मिशन के दौरान कई प्रयोग करेगा, जिनमें "हाई-प्रिसिशन स्पेस टाइम-फ्रीक्वेंसी सिस्टम्स", "जनरल रिलेटिविटी" और जीवन की शुरुआत पर शोध शामिल हैं.
अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम से चीन बाहर
लिन ने कहा, "संपूर्ण लक्ष्य 2030 तक चांद पर एक दल उतारने का है ताकि चांद पर वैज्ञानिक खोज और तकनीकी प्रयोग किए जा सकें." उम्मीद की जा रही है कि तिआनगोंग कम से कम 10 सालों तक धरती से 400 से 450 किलोमीटर के बीच कक्षा में रहेगा.
चीन ने अमेरिका और रूस की बराबरी करने के लिए अपनी सेना द्वारा चलाए जाने वाले अंतरिक्ष कार्यक्रम में अरबों डॉलर का निवेश किया है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रशासन के तहत चीन के इस सपने को पूरा करने की योजनाओं को तेज रफ्तार दी गई है. चीन अब चांद पर एक अड्डा बनाने की भी योजना बना रहा है.
वह अपना टेलिस्कोप तैनात करने की भी योजना बना रहा है. इसके अलावा चीन मंगल ग्रह से भी नमूने जमा करने का इरादा रखता है. वहीं अमेरिका 2025 के आखिर तक अंतरिक्षयात्रियों को फिर से चंद्रमा पर उतारने की तैयारी कर रहा है.
2011 में अमेरिकी सरकार ने नासा के लिए चीन से संबंध रखना प्रतिबंधित कर दिया था. तब से चीन को प्रभावशाली रूप से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर ही कर दिया गया है. इस वजह से चीन को अपना ही स्टेशन बनाने की योजना को और मजबूती मिली.
सीके, एसएम/एए (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
नासा की एक प्रतियोगिता में कई ऐसी कंपनियों को अंतिम चरण में जगह मिली है जिन्होंने खाना बनाने की अनूठी तकनीकें विकसित की हैं.
2015 में मैट डैमन की एक फिल्म आई थी, द मार्शियन. इस फिल्म में डैमन ने एक अंतरिक्षयात्री की भूमिका निभाई थी जो मंगल ग्रह पर फंस जाता है. वहां वह मानव मल और मंगल की मिट्टी का इस्तेमाल करके आलू उगाता है.
अब न्यूयॉर्क की एक कंपनी भी कुछ ऐसा ही कर रही है. विमानों के लिए कार्बन-नेगेटिव ईंधन बनाने वाली यह कंपनी दूसरे ग्रह पर रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए कुछ खास तरह का खाना बनाने की दिशा में काम कर रही है. इस कंपनी को नासा द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में आखिरी चरण में जगह मिल गई है.
कार्बन डाईऑक्साइड से बनाया शेक
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक प्रतियोगिता आयोजित की है जिसका मकसद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जरूरी खाना बनाने वाली तकनीकें विकसित करना है. इस प्रतियोगिता के अंतिम चरण में जिन कंपनियों को जगह मिली है, उनमें ब्रूकलिन की एयर कंपनी भी है, जिसने अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा यान में सांस लेने के दौरान छोड़ी जा रही कार्बन डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल करके खमीर से बनने वाले प्रोटीन शेक बनाने की तकनीक विकसित की है. ये शेक लंबे अंतरिक्ष अभियानों के दौरान यात्रियों को प्रोटीन पोषण उपलब्ध करा सकते हैं.
कंपनी के सह-संस्थापक और मुख्य तकनीकी अधिकारी स्टैफर्ड शीहान कहते हैं, "यह टैंग से तो ज्यादा पोषक है.” येल यूनिवर्सिटी से फिजिकल केमिस्ट्री में डॉक्टरेट शीहान कहते हैं कि उन्होंने यह तकनीक जब विकसित की थी तो उनका मकसद विमानों के ईंधन, पर्फ्यूम और वोडका के लिए शुद्ध अल्कोहल तैयार करना था.
नासा के ‘डीप स्पेस फूड चैलेंज' ने शीहान को अपनी तकनीक को इस तरह विकसित करने को प्रेरित किया जिससे वह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा से भरपूर शेक बना सकें. इस शेक के स्वाद की तुलना वह तोफू से बने शेक से करते हैं, जो पूर्वी एशिया में लोकप्रिय है और लोगों द्वारा मांस के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. वह कहते हैं, "इससे आप कुछ मीठा महसूस होने वाला स्वाद पा सकते हैं.”
कई तरह का खाना
इसी तकनीक का इस्तेमाल कार्बोहाइड्रेट से भरपूर ऐसी चीजें बनाने के लिए भी कर सकते हैं, जो ब्रेड, पास्ता और टोर्टिला का विकल्प हो सकते हैं. शीहान कहते हैं कि उनका बनाया शेक अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अन्य खानों के साथ पूरक के रूप में काम आएगा.
कंपनी ने एयरमेड नाम से अपनी तकनीक को पेटेंट कराया है. यह नासा के मुकाबले में अंतिम चरण में पहुंचे आठ विजेताओं में से एक है जिनका ऐलान इसी महीने किया गया था. साढ़े सात लाख डॉलर की इनामी राशि वाली इस प्रतियोगिता का अंतिम चरण अब शुरू हो रहा है.
अन्य विजेताओं में फ्लोरिडा की कंपनी है जो बायोरिजेनरेटिव सिस्टम से सब्जियां, मशरूम और यहां तक कि कीटों के लारवा भी पैदा कर रही है. कैलिफॉर्निया की एक कंपनी ने पौधों और फंगस से खाना तैयार किया है जबकि फिनलैंड की एक कंपनी ने गैस-फर्मेंटेनशन की तकनीक विकसित की है.
वीके/एए (रॉयटर्स)
हॉलीवुड (अमेरिका), 30 मई अमेरिका में फ्लोरिडा के हॉलीवुड में समुद्र तट के पास सोमवार शाम गोलीबारी की घटना में नौ लोग घायल हो गए।
पुलिस प्रवक्ता डियाना बेट्टिनेस्की ने बताया कि कई घायलों को बच्चों के अस्पताल ले जाया गया। प्राधिकारियों ने उनकी आयु के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं दी है।
‘मेमोरियल हेल्थकेयर सिस्टम’ की प्रवक्ता यानेट ओबारियो सांचेज ने बताया कि घायलों में छह वयस्क और तीन बच्चे शामिल हैं। उन्होंने बताया कि सभी घायलों की हालत स्थिर है।
पुलिस ने बताया कि प्रारंभिक जांच में पता चला है कि दो समूहों के बीच झगड़े के कारण गोलीबारी हुई। उसने बताया कि एक व्यक्ति को हिरासत में ले लिया गया है और एक अन्य संदिग्ध की तलाश की जा रही है। गोलीबारी की घटना करीब शाम साढ़े बजे हुई।
ट्विटर पर सोमवार शाम को पोस्ट किए गए वीडियो में दिख रहा है कि आपात चिकित्सा दल घायलों की मदद कर रहा है। (एपी)
सैन सल्वाडोर, 30 मई एल सल्वाडोर के स्थानीय गिरोहों पर नकेल कसने के लिए मार्च 2022 में आपात शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जेल भेजे गए कम से कम 153 लोगों की सल्वाडोर कारागार में मौत हो गई। मानवाधिकार समूह ‘क्रिस्टोसल’ ने सोमवार को एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
‘क्रिस्टोसल’ की रिपोर्ट के अनुसार, जिन लोगों की मौत हुई है उनमें से किसी को भी उस अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया , जिनके आरोप गिरफ्तारी के समय उन पर लगाए गए थे। इनमें में चार महिलाएं और शेष पुरुष हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इन लोगों की मौत यातनाओं, गंभीर चोटों की वजह से हुई। करीब आधे लोगों की मौत हिंसा का शिकार होने की वजह से हुई। कुछ लोगों की मौत कुपोषित होने के कारण हुई। चिकित्सकीय सहायता न मिलने, दवा या भोजन जान-बूझकर न देने कारण भी कुछ लोगों की जान जाने के संकेत मिले हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इन लोगों की मौत सुरक्षा कर्मियों और जेल अधिकारियों की दंडात्मक नीतियों का खुलासा करती हैं।
सरकार ने हालांकि कैदियों की मौत के संबंध में कोई सटीक आंकड़ा पेश नहीं किया है। (एपी)
सियोल, 30 मई उत्तर कोरिया ने जून में अपना पहला सैन्य जासूसी उपग्रह प्रक्षेपित करने की योजना की मंगलवार को पुष्टि की और इस प्रकार की क्षमताओं को अपने प्रतिद्वंद्वी दक्षिण कोरिया और अमेरिका के सैन्य अभ्यासों पर नजर रखने के लिए अहम बताया।
इस बयान के एक दिन पहले उत्तर कोरिया ने जापानी प्राधिकारियों को सूचित किया था कि वह आने वाले दिनों में एक उपग्रह प्रक्षेपित करने की योजना बना रहा है।
इसके बाद जापान के रक्षा मंत्री यासुकाजु हमादा ने अपने देश के आत्मरक्षा बल को आदेश दिया कि यदि कोई उपग्रह जापानी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसे मार गिराया जाए।
जापान के तटरक्षक बल के अनुसार, उत्तर कोरिया के जलमार्ग अधिकारियों से मिले नोटिस में कहा गया था कि प्रक्षेपण 31 मई से 11 जून के बीच किया जा सकता है। इस प्रक्षेपण से पीत सागर, पूर्वी चीन सागर और फिलीपीन के लुजोन द्वीप के पूर्व में समुद्री क्षेत्र प्रभावित हो सकता है।
उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया के अनुसार, देश के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी री प्योंग चोल ने अमेरिका एवं दक्षिण कोरिया के संयुक्त सैन्य अभ्यास की निंदा की। प्योंगयांग लंबे समय से यह कहता रहा है कि ये उस पर हमले का अभ्यास है।
री ने कहा कि उत्तर कोरिया अंतरिक्ष-आधारित टोही उपग्रह को ‘‘अमेरिका और उसके अधीन बलों के खतरनाक सैन्य कृत्यों’’ की निगरानी के लिए ‘‘अपरिहार्य’’ मानता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया ‘‘आक्रमण की अपनी अविवेकपूर्ण महत्वाकांक्षा को खुले तौर पर प्रकट कर रहे हैं।’’
उत्तर कोरिया 2022 की शुरुआत से करीब 100 मिसाइलों का परीक्षण कर चुका है, जिनमें अमेरिकी मुख्य भूमि तक पहुंचने में सक्षम अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल और कई अन्य प्रक्षेपण भी शामिल हैं, जिन्हें उसने दक्षिण कोरिया को निशाना बनाकर किए जाने वाले नकली परमाणु हमलों के रूप में वर्णित किया है।
री ने कहा कि अमेरिका-दक्षिण कोरियाई सैन्य अभ्यास का विस्तार, दक्षिण कोरिया में परमाणु-सक्षम पनडुब्बियों को भेजने की अमेरिक की कथित योजनाएं और क्षेत्र में अमेरिकी टोही विमानों की बढ़ती गतिविधियां उत्तर कोरिया के खिलाफ अग्रिम सैन्य कार्रवाई की तैयारी की ‘‘भयानक मंशा’’ को रेखांकित करती हैं।
अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने अपने इन नियमित अभ्यासों को रक्षात्मक प्रकृति का करार दिया है, लेकिन उन्होंने उत्तर कोरिया के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए 2022 से अपने प्रशिक्षणों में विस्तार किया है।
री ने कहा, ‘‘एक जून को प्रक्षेपित किया जाने वाला (उत्तर कोरिया का) पहला सैन्य टोही उपग्रह और बाद में होने वाले विभिन्न सैन्य परीक्षण अमेरिका और उसके अधीन बलों के खतरनाक सैन्य कृत्यों पर तात्कालिक आधार पर नजर रखने, उनकी पहचान करने, उन्हें नियंत्रित करने और उनसे अग्रिम तरीके से निपटने के लिए बहुत जरूरी हैं।’’
उत्तर कोरिया के उपग्रह प्रक्षेपण के मद्देनजर जापान के तटरक्षकों ने मलबा गिरने से संभावित जोखिमों के कारण उक्त तारीखों पर क्षेत्र में पोतों के लिए सुरक्षा चेतावनी जारी की है।
देश का तटरक्षक बल पूर्वी एशिया में समुद्री सुरक्षा सूचना का समन्वय करता है और उसे आगे भेजता है, इसी कारण उत्तर कोरिया ने यह नोटिस उसे भेजा है।
उपग्रह को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के लिए, उत्तर कोरिया को लंबी दूरी की मिसाइल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना होगा, जिस पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों द्वारा प्रतिबंध लगाए गए हैं।
जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव हिरोकाजू मात्सुनो ने बताया कि प्रक्षेपण संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन होगा और यह ‘‘जापान, क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शांति व सुरक्षा के लिए खतरा’’ है।
दक्षिण कोरिया ने सोमवार को चेतावनी दी कि उत्तर कोरिया यदि संयुक्त राष्ट्र के उन प्रस्तावों का उल्लंघन करता है, जिनके तहत उस पर बैलिस्टिक प्रौद्योगिकी इस्तेमाल कर प्रक्षेपण करने संबंधी प्रतिबंध है, तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे।
दक्षिण कोरिया ने एक बयान में कहा, ‘‘हमारी सरकार उत्तर कोरिया को क्षेत्र में शांति के लिए खतरा पैदा कर सकने वाले उकसावे के खिलाफ कड़ी चेतावनी देती है और उससे अपनी अवैध प्रक्षेपण योजना को तुरंत वापस लेने का आग्रह करती है।’’
इस महीने की शुरुआत में, उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया ने खबर दी थी कि देश के नेता किम जोंग-उन ने अपने देश के एयरोस्पेस केंद्र में तैयार एक सैन्य जासूसी उपग्रह का निरीक्षण किया और उपग्रह से जुड़ी प्रक्षेपण योजना को मंजूरी दे दी।
बाद में सोमवार को टेलीफोन पर बातचीत में, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और जापान के प्रमुख परमाणु दूत उत्तर कोरियाई उपग्रह प्रक्षेपण के लिए एकजुट एवं दृढ़ अंतरराष्ट्रीय जवाब को लेकर सहयोग करने पर सहमत हुए।
उत्तर कोरिया की घोषणा के बाद उसके मुख्य सहयोगी चीन ने बातचीत के जरिए राजनीतिक समाधान का आह्वान किया। (एपी)
मॉस्को, 30 मई मॉस्को के मेयर सर्गेई सोबयानिन ने रूस की राजधानी पर मंगलवार को सुबह एक ड्रोन हमला होने की जानकारी दी।
सोबयानिन ने ‘टेलीग्राम’ में एक पोस्ट के जरिए के कहा कि इस हमले से कई इमारतों को ‘‘मामूली नुकसान’’ पहुंचा लेकिन ‘‘कोई गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ।’’ बहरहाल, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि इसका अर्थ क्या है।
उन्होंने बताया कि हमले में क्षतिग्रस्त हुईं दो इमारतों में रह रहे लोगों को बाहर निकाला गया है।(एपी)
ल्वीव (यूक्रेन), 29 मई कानफोड़ू बम विस्फोट हुआ और आसमान में धुएं का काला बादल छा गया। दो बच्चे आंखों को मिचमिचाते हुए इस घने धुएं के बीच कुछ देखने समझने की कोशिश कर रहे हैं । नौ साल की ओल्हा हिंकिना और उसका दस साल का भाई आंद्रेई कुछ न समझ पाने पर जोर जोर से अपने पिता को पुकारना शुरू कर देते हैं । लेकिन धुएं के गुबार के बाद पसरे सन्नाटे में से कोई आवाज नहीं आती क्योंकि उनके पिता इस विस्फोट में मारे जा चुके हैं ।
रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष से सैंकड़ों मासूम जिंदगियां भी अछूती नहीं रही हैं। रूस हमलों में न जाने कितने घर बर्बाद हो गए और यूक्रेन के पूर्वी दोनेत्स्क इलाके में ऐसे ही एक विस्फोट ने इन दोनों बच्चों से उनके पिता का साया छीन लिया।
पिता की तलाश में ये भाई-बहन जब बरामदे के पास पहुंचे तब उन्होंने अपने पिता को खून से लथपथ पाया और उनके शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी।
आंद्रेई ने कहा, ‘‘मेरे पिता की सुबह सात बजे मौत हो गई।
फिलहाल, दोनों भाई बहन अभी पोलैंड की सीमा के पास सुरक्षित पश्चिमी शहर ल्वीव में हैं।
रूस के लगातार आक्रमण और बमबारी के कारण लाखों लोग बेघर और सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गये हैं। दोनों भाई-बहन भी अब यूक्रेन के उन बच्चों में शामिल हो गये हैं जिनका जीवन युद्ध से प्रभावित हुआ है।
दोनों देशों के बीच जारी युद्ध में सैकड़ों बच्चे मारे जा चुके हैं और जो बच गए हैं वे गहरे सदमे में हैं। उनके मन मस्तिष्क पर युद्ध की बर्बादी अपनी छाप छोड़ चुकी है और निश्चित ही जिंदगी भर उन्हें इस सदमे में जीना पड़ेगा ।
हिंसा में जिंदा बचे रह गए बच्चों के साथ काम करने वाली मनोवैज्ञानिक ओलेक्ज़ेंड्रा वोल्खोवा ने कहा, ‘‘भले ही बच्चे सुरक्षित इलाकों में चले गए हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे अपने साथ हुई हर बात को भूल गए हैं।’’
यूक्रेन के सामान्य अभियोजक कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष में कम से कम 483 बच्चों की जान चली गई है और लगभग 1,000 बच्चे घायल हुए हैं।
इस बीच, यूनिसेफ ने कहा है कि यूक्रेन के कुल 15 लाख बच्चे अवसाद, घबराहट, सदमे के बाद के तनाव संबंधी रोग तथा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं और इनका असर लंबे समय तक रहने की आशंका है।
यूक्रेन की राष्ट्रीय समाज सेवा ने बताया कि करीब 1,500 बच्चे अनाथ हो गए हैं।
दोनेत्सक जो युद्ध का केंद्र है, वहां सबसे अधिक संख्या में बच्चे हताहत हुए हैं। अधिकारियों के अनुसार दोनेत्सक में 462 बच्चों की मृत्यु हुई है या वे घायल हुए हैं।
हालांकि इस आंकड़े में रूसी कब्जे वाले मारियुपोल से हताहतों की संख्या शामिल नहीं है जो दोनेत्सक का ही हिस्सा है क्योंकि उस इलाके में यूक्रेन के अधिकारियों के लिए मृतकों और घायलों का पता लगाना मुश्किल काम है। (एपी)
पॉल किर्बी
तुर्की के राष्ट्रपति चुनाव में रेचेप तैय्यप अर्दोआन को जीत हासिल हुई है.
अभी तक चुनाव के नतीजे पूरी तरह घोषित नहीं हुए हैं, लेकिन उन्हें 52.16 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट हासिल हुए हैं. उनके विपक्षी कमाल कलचदारलू को 47.84 फ़ीसदी वोट मिले हैं.
अर्दोआन को पांच साल के लिए एक और जीत हासिल होने पर उनके समर्थक जमकर जश्न मना रहे हैं.
जीत के बाद अंकारा में अपने भव्य महल के बाहर जश्न मना रहे समर्थकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ''ये साढ़े आठ करोड़ की आबादी वाले पूरे मुल्क की जीत है.''
लेकिन जानकारों को देश की एकता की अर्दोआन की बातें खोखली लग रही हैं क्योंकि उन्होंने अपने विपक्षी कमाल कलचदारलू का माखौल उड़ाया है.
उधर कलचदारलू ने इन चुनावों को ''हाल के वर्षों में देश का सबसे धांधली वाला चुनाव क़रार दिया है.''
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति अर्दोआन की पार्टी ने चुनाव में जीत के लिए उनके ख़िलाफ़ पूरे सरकारी तंत्र का इस्तेमाल किया.
हालांकि चुनाव के नतीजों से ये बात साफ़ हो गई है कि देश की तक़रीबन आधी आबादी ने राष्ट्रपति अर्दोआन के अधिनायकवादी शासन के विरोध में मतदान किया है.
पहले दौर के चुनाव में राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन, 49.5 प्रतिशत वोट लेकर अपने प्रतिद्वंदी कमाल कलचदारलू से आगे थे. जीत के लिए 50 फ़ीसदी से अधिक मत की ज़रूरत थी, इसलिए दूसरे चरण का मतदान हुआ.
अर्दोआन की शख़्सियत
रेचेप तैय्यप अर्दोआन बेहद मामूली पृष्ठभूमि से तुर्की की राजनीति के सबसे बड़े शख़्सियत के रूप में उभरे हैं. वह पिछले 20 वर्षों से तुर्की का नेतृत्व कर रहे हैं. आधुनिक दौर के तुर्की में कमाल अतातुर्क के बाद किसी नेता ने देश को आकार दिया है तो वो अर्दोआन हैं.
कई संकटों से जूझने के बावजूद 2023 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें एक बार फिर जीत हासिल हुई है. हालांकि लगभग आधी जनता ने उन्हें अपना वोट नहीं दिया है.
उनके आलोचकों ने उन पर ग़ैर-परंपरागत आर्थिक नीतियों को अपनाने की वजह से जनता के रोज़मर्रा के जीवन को मुश्किल में डालने का आरोप लगाया है.
अर्दोआन ने तुर्की के आधुनिकीकरण और विकास का ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया है, लेकिन वह फ़रवरी में दोहरे भूकंपों में हुए नुक़सान से निपटने में नाकाम रहे.
विपक्ष ने उन पर शक्तिशाली भूकंप से ग्रस्त देश को आपदा के लिए तैयार करने में विफल होने और अर्थव्यवस्था को ख़राब ढंग से चलाने का आरोप लगाया.
सत्ता की सीढ़ी
रेचेप तैय्यप अर्दोआन का जन्म 1954 के फ़रवरी महीने में हुआ था. उनके पिता तुर्की के तटरक्षक बल में थे.
जब अर्दोआन 13 साल के थे तब उनके पिता ने अपने पांचों बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए इस्तांबुल में बसने का फै़सला किया.
युवा अर्दोआन नींबू का शरबत और एक तरह की डबलरोटी (सीमीट) बेचते थे ताकि थोड़े पैसे कमा सकें.
इस्तांबुल के मरमरा विश्वविद्यालय से मैनेजमेंट की डिग्री लेने से पहले उन्होंने एक इस्लामिक स्कूल में पढ़ाई की थी.
उनकी डिप्लोमा की डिग्री अक्सर विवादों में रही. विपक्ष का दावा है कि अर्दोआन ने विश्वविद्यालय से कोई पूरी डिग्री नहीं ली है बल्कि उनकी डिग्री एक कॉलेज डिप्लोमा के बराबर है. इस आरोप को अर्दोआन हमेशा से नकारते रहे हैं.
अर्दोआन जब युवा थे तब फ़ुटबॉल के प्रति उनकी रुचि बढ़ी और उन्होंने 1980 के दशक तक सेमी-प्रोफ़ेशनल प्रतियोगिताओं में भाग लिया.
लेकिन उनका दिल सियासत में लगता था.
वह 1970 और 80 के दशक में इस्लामवादी हलकों में सक्रिय थे. इस दौरान ही वे नेमेटिन एरबाकन की इस्लाम समर्थक वेलफ़ेयर पार्टी में शामिल हो गए.
1994 में अर्दोआन ने इस्तांबुल के मेयर पद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद अगले चार साल तक वे इस्तांबुल के मेयर बने रहे.
सियासत में शुरुआत
सेना के तख़्तापलट से पहले सिर्फ़ एक साल तक 1997 में तुर्की के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेमेटिन एरबाकन ने सत्ता संभाली थी.
उसी साल, अर्दोआन को एक राष्ट्रवादी कविता सार्वजनिक रूप से पढ़ने के लिए नस्लीय घृणा भड़काने का दोषी ठहराया गया था.
कविता की पंक्तियां थीं, "मस्जिद हमारे बैरक हैं, गुंबद हमारे हेलमेट हैं, मीनारें हमारा भाला हैं और धर्म में आस्था रखने वाले हमारे सैनिक हैं."
जेल में चार महीने बिताने के बाद वो राजनीति में वापस लौटे.
लेकिन 1998 में उनकी पार्टी पर आधुनिक तुर्की के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के उल्लंघन की वजह से प्रतिबंध लगा दिया गया था.
अगस्त 2001 में उन्होंने सहयोगी अब्दुल्ला गुल के साथ एक नई पार्टी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) की स्थापना की जिसकी विचारधारा इस्लाम समर्थक थी.
अर्दोआन की लोकप्रियता बढ़ रही थी. विशेष तौर से दो तरह के समूहों के सामने अर्दोआन का क़द बढ़ रहा था.
एक वर्ग वो जो देश के धर्मनिरपेक्ष अभिजात वर्ग के कारण ख़ुद को हाशिए पर महसूस करता था और दूसरा वो जो 1990 के दशक के अंत में आर्थिक मंदी से पीड़ित था.
2002 में एकेपी ने संसदीय चुनावों में बहुमत हासिल किया और अगले साल अर्दोआन को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. वह आज तक पार्टी के अध्यक्ष बने हुए हैं.
सत्ता का पहला दशक
2003 के बाद से वे तीन बार प्रधानमंत्री बने और अपना कार्यकाल पूरा किया. उनके कार्यकाल के दौरान एक स्थिर आर्थिक विकास हुआ जिसके लिए एक 'सुधारक' के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी तारीफ़ हुई.
अर्दोआन के कार्यकाल के दौरान ही तुर्की में मध्य वर्ग की तरक्क़ी हुई और लाखों लोग ग़रीबी से निकलकर बाहर आए.
ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि अर्दोआन ने तुर्की के आधुनिकीकरण के लिए बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को तरजीह दी थी.
सत्ता के शुरुआती सालों के दौरान तुर्की के कुर्द अल्पसंख्यक मतदाताओं को भी पक्ष में करने में अर्दोआन कामयाब रहे.
हालांकि 2013 तक अर्दोआन के आलोचकों ने यह चेतावनी देना शुरू कर दिया था कि वे लगातार निरंकुश होते जा रहे हैं.
2013 की गर्मियों में इस्तांबुल शहर के बीचों बीच मशहूर गीज़ी पार्क का कायापलट करने के विरोध में प्रदर्शनकारी सड़क पर उतर आए थे.
ये विरोध पार्क से कहीं ज़्यादा सरकार को चुनौती देने के लिए था.
इसके बाद गीज़ी पार्क से प्रदर्शनकारियों को जबरन बेदख़ल किया गया और उन पर पुलिस बल का भरपूर प्रयोग किया गया.
यह अर्दोआन के शासन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. अपने आलोचकों के लिए वह लोकतांत्रिक होने के बजाय एक तानाशाह की तरह व्यवहार कर रहे थे.
महिलाओं के बारे में अर्दोआन के विचार और काम
अर्दोआन की पार्टी ने विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक सेवाओं में महिलाओं के हिजाब पहनने पर लगे प्रतिबंध को भी हटा दिया.
इन प्रतिबंधों को 1980 में एक सैन्य तख़्तापलट के बाद लागू किया गया था. अंत में पुलिस और सेना में शामिल महिलाओं के ऊपर से भी यह प्रतिबंध हटा लिया गया.
खु़द धार्मिक होने के बावजूद अर्दोआन ने देश हित में इस्लामी मूल्यों को थोपने से इनकार किया.
हालाँकि, उन्होंने बार-बार कहा कि समाज में महिलाओं की प्राथमिक भूमिका "पारंपरिक भूमिकाओं को पूरा करना" होना चाहिए और एक महिला को ''आदर्श माँ और आदर्श पत्नी'' बनना चाहिए.
उन्होंने नारीवादियों की निंदा की और कहा कि पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता है.
लंबे वक्त से अर्दोआन इस्लाम से जुड़े अभियानों और मिस्र से जुड़े मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे राजनीतिक रूप से सक्रिय इस्लामी संगठनों से वैचारिक रूप से नज़दीक रहे.
कई मौक़ों पर उन्हें मुस्लिम ब्रदरहुड का ख़ास चार उंगलियों वाला सलाम करते देखा गया जिसे रब्बा कहा जाता है.
जुलाई 2020 में अर्दोआन की देखरेख में इस्तांबुल के ऐतिहासिक हागिया सोफ़िया को एक मस्जिद में तब्दील कर दिया गया, जिससे कई ईसाई और धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम तुर्क नाराज़ हो गए.
हागिया सोफ़िया को 1,500 साल पहले बनाया गया था. लेकिन कमाल अतातुर्क ने इसे नए धर्मनिरपेक्ष देश के प्रतीक के तौर पर एक संग्रहालय में बदल दिया था.
सत्ता पर मज़बूत पकड़
अर्दोआन 2014 में प्रधानमंत्री पद के लिए फिर से चुनाव नहीं लड़ सकते थे क्योंकि उनके तीन कार्यकाल की अवधि पूरी हो चुकी थी. इसके बाद वे राष्ट्रपति पद के चुनाव में शामिल हो गए.
उन्होंने एक नए संविधान में राष्ट्रपति के पद में सुधार करने की योजना बनाई. आलोचकों का मानना था कि नए संविधान से देश की धर्म-निरपेक्षतावादी नींव को चुनौती का सामना करना पड़ेगा.
लेकिन अपने राष्ट्रपति पद के आरंभ में ही उन्हें दो इम्तिहान का सामना करना पड़ा.
उनकी पार्टी ने 2015 में कई महीनों के लिए संसद में अपना बहुमत खो दिया, और फिर अगले साल 15 जुलाई 2016 को तुर्की ने दशकों बाद तख्त़ापलट की पहली कोशिश देखी.
लगभग 300 नागरिक मारे गए क्योंकि उन्होंने तख़्तापलट की साज़िश रचने वालों को आगे बढ़ने से रोका था.
साज़िश के लिए 'गुलेन आंदोलन' को दोषी ठहराया गया था, जिसका नेतृत्व अमेरिका स्थित इस्लामिक स्कॉलर फ़तुल्लाह गुलेन ने किया था.
उनके सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन ने अर्दोआन को लगातार तीन चुनावों में जीत दिलाने में मदद की थी, लेकिन जब दोनों सहयोगी अलग हो गए, तो इसका तुर्की समाज पर नाटकीय प्रभाव पड़ा.
2016 के तख़्तापलट की कोशिश के बाद लगभग 150,000 लोक सेवकों को बर्ख़ास्त कर दिया गया और 50,000 से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया, इसमें सैनिक, पत्रकार, वकील, पुलिस अधिकारी, शिक्षाविद और कुर्द राजनेता शामिल थे.
आलोचकों पर इस तरह की कार्रवाई ने विदेशों में चिंता पैदा कर दी. इसकी वजह से यूरोपीय संघ के साथ तुर्की के संबंध ठंडे पड़ गए.
इस वजह से ही यूरोपीय संघ में तुर्की के शामिल होने की बातचीत कई सालों तक आगे नहीं बढ़ पाई.
उस बीच ग्रीस में तुर्की से जाने वाले प्रवासियों के मामले ने हालात में ज़्यादा खटास पैदा कर दी.
उन्होंने 2017 के एक जनमत संग्रह में जीत हासिल की, जिसमें उन्हें राष्ट्रपति पद की व्यापक शक्तियाँ मिल गईं, जिसमें आपातकाल की स्थिति लागू करने और शीर्ष अधिकारियों को नियुक्त करने के साथ-साथ क़ानूनी प्रक्रिया में दख़ल देने का अधिकार भी शामिल था.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में योगदान
राजनीति में उनके नेतृत्व के दौरान अर्दोआन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में विकसित हुए.
उन्होंने तुर्की की ताक़त को क्षेत्रीय शक्ति के रूप में बढ़ाया और उनकी ताक़तवर कूटनीति ने यूरोप और उसके बाहर के सहयोगियों को बेचैन कर दिया.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अर्दोआन के अच्छे संबंध हैं और उन्होंने खु़द को यूक्रेन में रूस के युद्ध में एक मध्यस्थ के रूप में खड़ा किया.
उन्होंने ब्लैक सी (काला सागर) के ज़रिए अनाज निर्यात के लिए एक सुरक्षित गलियारा खोलने के सौदे में मध्यस्थता करने में मदद की, और जब रूस ने समझौते से अपना समर्थन खींचा तब अर्दोआन ने इसके नुक़सान से तुर्की का बचाव किया.
चुनावी उलटफेर
कई आलोचक 2019 के स्थानीय चुनावों को अर्दोआन के लंबे वक़्त से चले आ रहे शासन के लिए "पहले झटके" के तौर पर देखते हैं क्योंकि उनकी पार्टी तीन सबसे बड़े शहर इस्तांबुल, अंकारा और इज़मिर में हार गई थी.
मुख्य विपक्षी रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी (सीएचपी) के एक्रेम इमामोग्लू के हाथों काफ़ी कम अंतर से इस्तांबुल का मेयर पद खोना अर्दोआन के लिए करारा झटका था, जो खु़द 1990 के दशक में शहर के मेयर रह चुके थे.
एक्रेम इमामोग्लू अपनी इस सफलता का विस्तार देशभर में करना चाह रहे थे, क्योंकि वे अर्दोआन के ख़िलाफ़ एकजुट विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार कमाल कलचदारलू के साथ प्रचार कर रहे थे.
मई के चुनावों में खड़े होने से रोके जाने से पहले इमामोग्लू ओपिनियन पोल में अर्दोआन से आगे थे. अर्दोआन और उनके सहयोगियों पर ये आरोप लगा कि उन्होंने अदालतों के सहयोग से एक्रेम इमामोग्लू को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया.
तुर्की की कुर्द-समर्थक तीसरी सबसे बड़ी पार्टी एचडीपी को भी कुर्द उग्रवादियों से कथित संबंधों की वजह से प्रतिबंधित होने की आशंका थी.
तुर्की के पुराने नेताओं की तरह राष्ट्रपति अर्दोआन ने प्रतिबंधित कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) को फटकार लगाई.
हालाँकि तुर्की ने सीरियाई गृहयुद्ध से भागे हुए 35 लाख से अधिक शरणार्थियों को जगह दी. अंकारा ने भी तुर्की में कुर्दों को अलग-थलग करते हुए सीमाओं के पार कुर्द सेना के ख़िलाफ़ भी अभियान शुरू किया.
एक नाटो देश का नेता होने के बावजूद, उन्होंने एक रूसी एंटी-मिसाइल डिफेंस सिस्टम की ख़रीद की और तुर्की के पहले परमाणु रिएक्टर के निर्माण के लिए रूस को चुना.
2023 के चुनाव से पहले उन्होंने पश्चिम पर उनके ख़िलाफ़ जाने का आरोप लगाकर राष्ट्रवादी और रूढ़िवादी मतदाताओं के साथ अपनी साख बढ़ाने की कोशिश की थी.
उन्होंने कहा था, "मेरा देश इस साज़िश को नाकाम कर देगा."
अर्दोआन ने अदनान मेंडेरेस के मकबरे पर जाकर 2023 के चुनाव अभियान का समापन किया. अदनान मेंडेरेस लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित तुर्की के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्हें 1961 में एक सैन्य तख्तापलट के बाद मार दिया गया था. (bbc.com)
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन ने रनऑफ़ इलेक्शन में अपने प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू को पीछे छोड़ दिया और तीसरी बार राष्ट्रपति बन गए हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार कमाल कलचदारलू ने इसे 'सबसे ग़लत ढंग से पूरा हुआ चुनाव' करार दिया है लेकिन नतीजों पर उन्होंने कोई सवाल नहीं किए हैं.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अर्दोआन को 52.1 फ़ीसदी वोट मिले हैं जबकि कलचदारलू के हिस्से में 47.9 फ़ीसदी वोट आए.
अर्दोआन के लिए इस चुनाव को बहुत मुश्किल माना जा रहा था क्योंकि घरेलू स्तर पर वह कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
तुर्की में महंगाई आसमान पर है और इसी साल आए विनाशकारी भूकंप के बाद से प्रभावित इलाकों में ज़िंदगी पटरी पर पूरी तरह नहीं लौट सकी है.
ऐसे में विपक्षी पार्टियों को लग रहा था कि अर्दोआन को चुनाव में हराया जा सकता है. इसी वजह से तुर्की की छह पार्टियों के गठबंधन ने कमाल कलचदारलू को अपना साझा उम्मीदवार बनाया था.
तुर्की में पहले 14 मई को चुनाव हुए थे लेकिन किसी भी उम्मीदवार को 50 फ़ीसदी से अधिक वोट न मिल पाने की वजह से दूसरे चरण का मतदान करवाना पड़ा.
जीतने के बाद अपने भाषण में अर्दोआन ने सभी विवादों को पीछे छोड़ने और राष्ट्रीय मूल्यों और सपनों के लिए एकजुट होने का संकल्प लिया. हालांकि, उन्होंने विपक्ष पर हमलावर रुख अपनाते हुए बिना किसी सबूत के कलचदारलू पर आतंकवादियों का साथ देने का आरोप लगाया.
अर्दोआन ने कहा कि महंगाई तुर्की का सबसे प्रमुख मुद्दा है.
69 वर्षीय अर्दोआन ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा, "आज का विजेता सिर्फ़ तुर्की है. मैं हर उस शख्स का धन्यवाद करता हूं जिन्होंने मुझे फिर से अगले पाँच सालों के लिए देश चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी."
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार अर्दोआन के घर के बाहर जमा हुए उनके समर्थक लगातार 'अल्लाह-हू-अक़बर' के नारे लगाते रहे.
एक समर्थक ने रॉयटर्स से कहा, "दुनिया के हर देश में समस्याएं हैं. यूरोपीय देशों में भी...मज़बूत नेतृत्व के बलबूते हम भी तुर्की की समस्याएं सुलझा लेंगे." (bbc.com/hindi)
इस्लामाबाद, 28 मई पाकिस्तान के कई हिस्सों में रविवार सुबह 6.0 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया जिससे दहशत फैल गई और लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने को मजबूर होना पड़ा।
इस्लामाबाद स्थित राष्ट्रीय भूकंपीय निगरानी केंद्र के अनुसार भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान का सीमावर्ती क्षेत्र था और यह 223 किलोमीटर की गहराई में आया, जिसके चलते इसके विनाशकारी प्रभाव नहीं हुए।
इस्लामाबाद, पेशावर, स्वात, हरिपुर, मलकंद, एबटाबाद, बाटग्राम, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, टेक्सलिया, पिंड दादान खान और देश के कई अन्य हिस्सों में भूकंप के झटके महसूस किए गए।
अभी तक जान-माल के नुकसान की कोई सूचना नहीं मिली है।
पाकिस्तान में अक्सर अलग-अलग तीव्रता के भूकंप आते हैं। 2005 में पाकिस्तान में आए सबसे घातक भूकंप में 74,000 से अधिक लोग मारे गए थे। (भाषा)
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 28 मई | पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को 2018 में सत्ता में आने से पहले देश के शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान द्वारा प्यार, समर्थन और प्रोत्साहन मिला।
हालांकि, खान और उनकी सरकार के सत्ता से हटने के बाद सेना का समर्थन उनको बंद हो गया। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख को अब सेना का जवाबी हमले का सामना करना पड़ रहा है। सेना के साथ उनके मधुर संबंध अब कट्टर प्रतिद्वंदिता में बदलते जा रहे हैं।
खान की नौ मई को इस्लामाबाद से गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों व पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने हिंसक विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला, तोड़फोड़ और लूटपाट करके अपना गुस्सा व्यक्त किया। इस पर सेना अपने नए प्रमुख जनरल असीम मुनीर के नेतृत्व में बदला लेने का फैसला किया।
सेना ने न केवल पीटीआई के राजनीतिक अस्तित्व को कुचल कर, बल्कि देश में गृह युद्ध थोपने की धमकियों, जनरल मुनीर और अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के खिलाफ खुले आरोपों, उनके सत्ता-विरोधी रवैए को भी गंभीरता से लिया। खान सोचते हैं कि देश की सेना को चुनौती देना और निशाना बनाना, भविष्य के राजनीतिक लाभ के लिए एक विकल्प हो सकता है।
खान का राजनीतिक भविष्य कठिन होता जा रहा है, क्योंकि उनके शीर्ष पार्टी के नेता उनसे अलग हो रहे हैं, उन्हें अलग-थलग कर दिया गया है और लाहौर में उनके जमान पार्क निवास की दीवारों के पीछे सीमित कर दिया गया है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक तलत हुसैन ने कहा, जिस तरह से उनके शीर्ष पार्टी नेतृत्व ने पार्टी छोड़ दी है और गिरफ्तारी और जेल के दबाव के आगे झुक गए हैं, ऐसा लगता है कि इमरान खान के लिए भविष्य की पटकथा लिखी जा चुकी है। उनका राजनीतिक कब्रिस्तान तैयार है और उनकी पार्टी को इसमें दफन किया जा रहा है।
अलगाव और तेजी से बढ़ते राजनीतिक अकेलेपन के बीच संकट के व्यावहारिक समाधान के लिए बातचीत शुरू करने की इमरान की मांग को सैन्य प्रतिष्ठान नजरअंदाज कर रहा है। इससे लगता है कि वह खान को कोई जगह देने के लिए तैयार नहीं है। सेना से सुनिश्चित करना चाहती है कि उनकी सैन्य-प्रतिष्ठान विरोधी राजनीति को कुचल दिया जाए। (आईएएनएस)
हमजा आमिर
इस्लामाबाद, 28 मई | पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश के शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान के साथ अपने संबंधों का सबसे अच्छा और सबसे बुरा दौर देखा है।
कभी सैन्य प्रतिष्ठानों के बेहद चहेते रहे इमरान, जिनकी बहुत अच्छी तरह देखभाल की गई और देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरा समर्थन दिया गया, आज उनके लिए सबसे बड़ी भूल बन गए हैं। इमरान खान अब फ्रेंकस्टीन के मॉन्स्टर हैं जिसे रास्ते से हटाना जरूरी है।
यह एक ज्ञात और स्थापित तथ्य है कि खान के राजनीतिक संघर्षों, उनके सरकार विरोधी प्रदर्शनों, रैलियों, लंबे माचरें और राजनीतिक आंदोलनों को तत्कालीन सैन्य प्रतिष्ठान का समर्थन प्राप्त था, जिसने राजनीतिक क्षेत्र में खान के उदय का समर्थन किया और उन्हें 'नायक' पाकिस्तान की गरिमा, उसकी प्रगति और उसके आध्यात्मिक परिवर्तन के रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया।
खान ने 2018 में जब चुनाव जीता और प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया, तो उनके विपक्षी दल उन्हें चयनित कहते थे, उन्हें सैन्य प्रतिष्ठान की चयन प्रक्रिया के माध्यम से सत्ता हासिल करने वाला करार देते थे।
खान ने खुद कहा है कि उन्हें तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल (सेवानिवृत्त) कमर जावेद बाजवा, खुफिया एजेंसियों और बड़े पैमाने पर संस्थान का पूरा समर्थन प्राप्त था। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी सहयोगी सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों को बुलाने और विभिन्न निर्णयों के पक्ष में मतदान करने के लिए संसदीय सत्रों और महत्वपूर्ण बैठकों में भाग लेने के लिए मजबूर करने के लिए उनकी मदद लेनी पड़ती थी।
लेकिन, खान की सरकार के समय उनके कुछ फैसलों ने सैन्य प्रतिष्ठान और उनके बीच बड़ी दरारें पैदा कर दीं। विशेषज्ञों का मानना है कि यहीं से सैन्य प्रतिष्ठान की बंदूकें उनके खिलाफ उठ गईं।
निर्णयों में से एक चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की कई परियोजनाओं को उलटना था, जिनकी खान के आदेश पर समीक्षा की गई। इससे कठिन वित्तीय समयों में इस्लामाबाद का उद्धारकर्ता रहा चीन नाराज हो गया।
सेना के खान के खिलाफ होने का दूसरा कारण अरब देशों, विशेष रूप से सऊदी अरब के प्रति उनकी अनदेखी थी, जो मुस्लिम दुनिया का प्रतिनिधित्व करने के लिए तुर्की और मलेशिया के साथ संयुक्त गठबंधन बनाने की खान की घोषणा से नाराज था। सऊदी अरब ने इस मामले पर कड़ा संज्ञान लिया और खान को ऐसी कोई भी कोशिश करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी।
तीसरा कारण उस समय खान का रवैया था जब विपक्ष ने एक गठबंधन बनाया और संसद में अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से उन्हें बाहर करने का फैसला किया।
घटनाओं की अंदरूनी जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, इमरान खान ने बाजवा को अपने बचाव में आने और गठबंधन के गठन को रोकने के लिए जोर दिया जबकि बाजवा ने उन्हें विपक्षी दलों के साथ बातचीत करने के लिए कहा। खान ने सीधे बातचीत के माध्यम से विपक्ष के साथ कोई परामर्श करने से इनकार कर दिया और सैन्य प्रतिष्ठान पर उन्हें रोकने का दबाव डाला।
सूत्र ने कहा, ऐसा लगता है कि वीओएनसी को रोकने की स्थिति में खान बाजवा को असीमित विस्तार की पेशकश कर रहे थे, और ऐसा नहीं करने पर उन्होंने बाजवा को सेना प्रमुख के पद से हटाने की धमकी दी।
उसी समय बाजवा ने न केलव इमरान खान से अपने रास्ते अलग करने का फैसला किया बल्कि गठबंधन के सहयोगियों का साथ छोड़ने के साथ ही उनकी पार्टी को टूटने के लिए छोड़कर इमरान को कमजोर करने का मन बना लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि अविश्वास प्रस्ताव सफल हुआ और इमरान को सत्ता से बाहर जाना पड़ा।
और अब बाजवा के सेवानिवृत्त होने और जनरल असीम मुनीर के सेना प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने के साथ सैन्य प्रतिष्ठान के साथ किसी भी जुड़ाव की खान की उम्मीदें समाप्त हो गई हैं।
सूत्र ने कहा, खान का सीओएएस जनरल असीम मुनीर के साथ रिकॉर्ड खराब, उनकी नियुक्ति को रोकने के लिए उनका अभियान और 9 मई की सबसे हालिया घटना को, जब खान के समर्थकों ने सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला किया, खान के राजनीतिक अस्तित्व के लिए ताबूत में आखिरी कील के रूप में देखा जा सकता है।
आज जब खान को उनके राजनीतिक समर्थन से अलग-थलग किया गया है और अकेला छोड़ दिया गया है, तो हर गुजरते दिन के साथ उनकी तरफ से वार्ता की मांग बढ़ती जा रही है। हालांकि, प्रतिष्ठान के बंद दरवाजों पर खान की मांगों नहीं सुनी जा रही है।
सूत्र ने कहा, खान एक सैन्य परियोजना थे, राजनीतिक मोर्चे के चेहरे के रूप में उनकी सबसे अच्छी पसंद.. और उनकी सबसे बड़ी गलती। (आईएएनएस)
तुर्की में आज नए राष्ट्रपति के लिए दूसरे चरण का मतदान हो रहा है. पहले चरण के चुनाव में मौजूदा राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन और उनके प्रतिद्वंदी कमाल कलचदरालु में से किसी को भी 50 फीसदी वोट नहीं मिले थे. इसलिए अब इन दोनों के बीच दूसरे दौर का चुनाव हो रहा है.
तुर्की में राष्ट्रपति बनने के लिए 50 फीसदी से अधिक वोटों की जरूरत पड़ती है. अगर किसी उम्मीदवार को इतने वोट न मिल सके तो रन-ऑफ यानी दूसरे चरण के मतदान की स्थिति आ जाती है.
तुर्की में राष्ट्र्रपति चुनाव के पहले चरण में अर्दोआन को जहां 49.5 फ़ीसदी वोट मिले वहीं कमाल कलचदरालु 44.5 फ़ीसदी वोट ही हासिल कर सके.
तुर्की में अर्दोआन 20 साल से सत्ता में हैं. तुर्की के इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति चुनने के लिए दूसरे दौर का मतदान कराना पड़ रहा है.
रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने वादा किया है कि चुनाव जीतने पर 'तुर्की एक नई सदी' देखेगा.
अर्दोआन के समर्थक मानते हैं कि वो देश का और विकास करेंगे और उसे मज़बूत बनाएंगे.
लेकिन उनके आलोचक कहते हैं कि अर्दोआन जीते, तो कमाल अतातुर्क की विरासत और कमज़ोर होगी, मुल्क में इस्लामीकरण बढ़ेगा और, तुर्की का भविष्य अंधेरे की ओर बढ़ता जाएगा. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान सरकार ने इमरान ख़ान की पार्टी 'पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ' के 10 नेताओं के राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर दिए हैं.
इन नेताओं में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी, पूर्व गृह मंत्री शेख रशीद अहमद, असर उमर, परवेज खटक, आजम स्वाति, अली अमीन गंडापुर, फारूख़ हबीब, एओन अब्बास, जरताज गुल और अली मोहम्मद खान शामिल हैं.
पासपोर्ट रद्द होने पर शेख रशीद ने कहा, "मैं 16 बार संघीय मंत्री रहा, संयुक्त राष्ट्र को संबोधित किया, पाकिस्तान की परमाणु तकनीक के लिए काम किया. कभी देश से नहीं भागा लेकिन आज मेरा पासपोर्ट रद्द कर दिया गया है."
इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक़-ए-इंसाफ़ को बीते कुछ दिनों से एक के बाद एक कई बड़े नेता अलविदा कह रहे हैं. ज्यादातर नेता, 9 मई के घटनाक्रम का हवाला देते हुए पार्टी छोड़ रहे हैं. (bbc.com/hindi)
इस्लामाबाद, 27 मई | पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मरियम नवाज ने पार्टी समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा, इमरान खान, आपका खेल खत्म हो गया है। यह दावा मरियम और उनकी पार्टी के नेताओं द्वारा पहली बार नहीं किया गया, लेकिन इस बार, 9 मई के दंगों के बाद पीटीआई के वरिष्ठ नेतृत्व द्वारा बड़े पैमाने पर पलायन को ध्यान में रखते हुए किया गया। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया कि इमरान के खिलाफ ऐसा लगता है कि वह एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं।
9 मई के दंगों के बाद पहली बार एक युवा सम्मेलन को संबोधित करते हुए मरियम ने कहा, यह परिवर्तन (पीटीआई मंत्र तबदेली की ओर इशारा करते हुए), उसी खुले सीवर में डूब जाएगा, जिससे यह निकला था।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक खान पर 9 मई के दंगों का मास्टरमाइंड होने का आरोप लगाते हुए, मरियम ने कहा कि लोग इमरान और न्यायाधीशों को नहीं बख्शेंगे, उन्होंने मुख्य न्यायाधीश उमेर अता बांदियाल का जिक्र किया।
मरियम ने पीटीआई के कार्यकर्ताओं और नेताओं को डरपोक होने के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि इमरान और उनकी पार्टी थोड़ी देर के लिए भी मुश्किलों का सामना नहीं कर सकती, जबकि उनके पिता नवाज शरीफ और उनकी पूरी पार्टी दुस्साहस के सामने खड़ी थी। पीएमएल-एन एसवीपी ने कहा, जिन्होंने नवाज शरीफ को कोड़े मारने की कोशिश की, उन्हें खुद कोड़ा मार दिया गया है।
मरियम ने कहा कि इमरान और उनके लोगों ने जिस तरह का काम किया है, कोई भी दुश्मन ऐसा करने की हिम्मत नहीं कर सकता। एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, जैसे ही इमरान को गिरफ्तार किया गया, उनके लोगों ने पहले से ही नियोजित विरोध के साथ देश भर में सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला करना शुरू कर दिया।
लाहौर में प्रदर्शनकारी लाहौर के मॉल की ओर क्यों नहीं मुड़े, जो कॉर्प्स कमांडर के आवास के ठीक सामने है? वे सीधे क्वेटा में छावनी के लिए, रावलपिंडी में लाल हवेली के बजाय जीएचक्यू की ओर और पेशावर में एफसी की ओर क्यों गए?
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया, उन्होंने मियांवाली में हमारे शौर्य और बहादुरी के प्रतीक विमान को क्यों जलाया? ये हमले पाकिस्तानी सेना पर थे। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 27 मई | अमेरिका की एक अदालत ने कंपनी के स्मार्ट स्पीकर पेटेंट का उल्लंघन करने के लिए गूगल को हाई-टेक ऑडियो टेक्नोलॉजी कंपनी सोनोस को 32.5 मिलियन डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया है। सैन फ्रांसिस्को जूरी ने मामले में पाया कि गूगल के स्मार्ट स्पीकर और मीडिया प्लेयर्स ने सोनोस के दो पेटेंटों में से एक का उल्लंघन किया है।
जूरी सदस्यों ने कहा कि बेचे गए 14 मिलियन से अधिक डिवाइस में से प्रत्येक के लिए गूगल 2.30 डॉलर का भुगतान करेगा।
पिछले साल जनवरी में एक फैसले में, यूएस इंटरनेशनल ट्रेड कमिशन (आईटीसी) ने कहा कि गूगल ने स्मार्ट स्पीकर से संबंधित हाई-टेक स्पीकर और ऑडियो टेक्नोलॉजी कंपनी सोनोस के पांच पेटेंट का उल्लंघन किया है।
एक अमेरिकी न्यायाधीश ने पिछले साल अगस्त में फैसला सुनाया था कि गूगल ने सोनोस पेटेंट का उल्लंघन किया है।
जनवरी 2020 में, सोनोस ने पहले तकनीकी दिग्गज गूगल पर उसके वायरलेस स्पीकर डिजाइन की कथित रूप से नकल करने के लिए मुकदमा दायर किया, आईटीसी से लैपटॉप, फोन और स्पीकर जैसे गूगल प्रोडक्ट्स पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया।
सोनोस के सीईओ पैट्रिक स्पेंस ने यूएस हाउस एंटीट्रस्ट कमेटी के सामने गवाही दी कि गूगल ने कंपनी को अमेजन के एलेक्सा असिस्टेंट और गूगल असिस्टेंट दोनों को एक ही समय में सक्रिय होने से रोक दिया।
गूगल ने कहा था, हम अपने प्रोडक्ट्स को आयात करने या बेचने की हमारी क्षमता पर कोई प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं करते हैं।
सोनोस ने गूगस पर कुल 100 पेटेंट का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।
गूगल ने हमेशा कहा है कि इसकी तकनीक स्वतंत्र रूप से विकसित की गई थी और इसे सोनोस से कॉपी नहीं किया गया था।
टेक दिग्गज ने सोनोस पर मुकदमा भी दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि कंपनी ने स्मार्ट स्पीकर और वॉयस कंट्रोल टेक्नोलॉजी के पेटेंट का उल्लंघन किया है। (आईएएनएस)
एमनेस्टी समेत दो संस्थाओं ने मांग की है कि महिलाओं के खिलाफ तालिबान द्वारा लाए गए प्रतिबंधों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाना चाहिए और इसी आधार पर जांच होनी चाहिए.
यह मांग एमनेस्टी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल कमीशन ऑफ जूरिस्ट्स की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट में की गई है. रिपोर्ट में अफगानिस्तान की महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर तालिबान द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बारे में विस्तार से बताया गया है.
अगस्त 2021 में सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने बड़े पैमाने पर महिलाओं के अधिकार सीमित किए हैं और उनका शासन निरंतर सत्तावादी बनता गया है. महिलाओं को शिक्षा और रोजगार से दूर कर दिया गया है और साथ ही उन्हें यात्रा करने और चिकित्सा हासिल करने पर भी प्रतिबंध लगा दिए गए हैं.
एमनेस्टी की महासचिव एग्नेस कैलामार्ड ने कहा, "ये सब अंतरराष्ट्रीय अपराध हैं. ये संगठित, विस्तृत, सुनियोजित हैं." दोनों संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत (आईसीसी) से अपील की है कि वह अफगानिस्तान के हालात पर चल रही अपनी जांच में "लैंगिक उत्पीड़न जैसे मानवता के खिलाफ अपराध" को भी जोड़ दे.
संयुक्त राष्ट्र से अपील
संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के आने वाले सत्र में "तालिबान द्वारा लैंगिक उत्पीड़न और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत दूसरे संभावित अपराधों" पर चर्चा करे.
कैलामार्ड ने कहा कि तालिबान के कदमों के प्रति अभी तक जितनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई है उससे ज्यादा मजबूत प्रतिक्रिया होनी चाहिए. उन्होंने कहा, "सिर्फ एक ही नतीजा स्वीकार्य है: लैंगिक दमन और उत्पीड़न का यह तंत्र ध्वस्त होना चाहिए."
तालिबान ने अभी तक इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया नहीं दी है. इससे पहले तालिबान इस तरह की रिपोर्टों को पक्षपातपूर्ण और उसके खिलाफ प्रोपेगैंडा बताता रहा है.
अप्रैल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर तालिबान से मांग की थी वह अफगानिस्तान में "महिलाओं और लड़कियों की पूरी, बराबर, सार्थक और सुरक्षित भागीदारी" सुनिश्चित करे.
सीके/एनआर (डीपीए, एपी)
खुफिया सूचनाओं को साझा करने संबंधी नए समझौते के जरिए जर्मनी और दक्षिण कोरिया यूक्रेन में संघर्ष और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तनाव के बीच अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाना चाहते हैं.
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स दक्षिण कोरिया में महज कुछ घंटों के लिए रुके लेकिन उनकी यह यात्रा और वहां के राष्ट्रपति यून सुक-योल के साथ हुई बातचीत में कई समझौते हुए. इन समझौतों में सबसे अहम सैन्य खुफिया जानकारियों को साझा करने और दोनों देशों के रक्षा उद्योगों के लिए सप्लाई चेन को व्यवस्थित करने संबंधी समझौते हैं.
यह द्विपक्षीय सम्मेलन तब हुआ जब शॉल्त्स जापान के हिरोशिमा शहर में हुई जी7 देशों की बैठक से वापस लौट रहे थे. दोनों कूटनीतिक घटनाएं यूक्रेन में चल रहे सुरक्षा संकट और उत्तर पूर्व एशिया में बढ़ते तनाव पर केंद्रित थीं. और जब बात एशिया की होती है तो चीन एक बार फिर सबसे महत्वपूर्ण विषय था.
विश्लेषकों का कहना है कि शॉल्त्स और यून के बीच रक्षा सौदे हाल के दिनों में कई देशों के बीच हुए इस तरह के सौदों का एक उदाहरण है जिन्हें एक साथ लेने पर चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की एक रणनीति मालूम पड़ती है.
इन समझौतों और गठबंधन के पीछे चीन की उन इकतरफा कार्रवाइयों को देखा जा सकता है जिनके तहत वो दक्षिणी चीन सागर के विवादित द्वीपों पर कब्जा करके उनका सैन्यीकरण कर रहा है, पूर्वी चीन सागर के द्वीपों के लेकर जापान के साथ उसका सीधा टकराव और हिमालय क्षेत्र में भारत के साथ उसका संघर्ष हो रहा है.
और हाल के कुछ वर्षों में जर्मनी भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भूमिका को बढाने की कोशिश कर रहा है. 2021 में एक जर्मन युद्धपोत को इस इलाके में तैनात किया गया था और जर्मन नौसेना ने अन्य देशों की नौसेनाओं के साथ यहां कई बार अभ्यास किया है. साथ ही, हाल में लड़ाकू विमानों के युद्धाभ्यास में भी हिस्सा लिया है.
दक्षिण कोरिया-नाटो संबंध और भी मजबूत होंगे
शॉल्त्स और यून की मुलाकात सियोल में राष्ट्रपति कार्यालय में तब हुई जब जर्मन चांसलर कोरियाई प्रायद्वीप के असैन्य क्षेत्र में स्थित पनमुनजोम गांव की यात्रा करके लौटे थे. शॉल्त्स का कहना था कि कड़ी सुरक्षा वाली इस सीमा पर उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु हथियारों और लंबी दूरी की मिसाइलों का लगातार परीक्षण यह बताता है कि यह इलाका अभी भी ‘खतरनाक स्थिति में' हैं और उत्तर कोरिया ‘इस इलाके की शांति और सुरक्षा के लिए एक खतरा बना हुआ है.'
बाद की बातचीत में दोनों नेताओं ने मिलिट्री सीक्रेट्स को साझा करने, उनकी सुरक्षा करने और सैन्य आपूर्ति शृंखला को आसान बनाने की व्यवस्था संबंधी समझौते पर सहमति जताई.
ट्रॉय यूनिवर्सिटी के सियोल कैंपस में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर डैन पिंक्स्टन ‘बीजिंग में विस्तार नीतियों' को उन राष्ट्रों के बीच मजबूत सहयोग की वजह के रूप देखते हैं जिनका चीन से संबंध नहीं हैं.
सैन्य संबंधों में नजदीकी के मुद्दे पर डीडब्ल्यू से बातचीत में पिंक्स्टन कहते हैं, "मुझे पूरी उम्मीद है कि आगे अभी और ऐसा ही देखने को मिलेगा. यह स्वाभाविक है कि दक्षिण कोरिया की सेना नैटो या अन्य उन देशों की सेनाओं के साथ संयुक्त अभ्यास में हिस्सा लें जिनकी चिंताएं एक जैसी हैं. ये अभ्यास युद्ध सामग्री, हथियार प्रणाली और अन्य सैन्य घटकों की क्षमता को सुनिश्चित करने के लिए तो महत्वपूर्ण हैं ही, यह सुनिश्चित करने के लिए भी अहम हैं कि आपूर्ति श्रृंखला की गारंटी है.”
यूक्रेन युद्ध दक्षिण कोरिया के लिए ‘गहरा सदमा'
और जब जर्मन नौसेना और वायु सेना दक्षिण कोरिया सेना के साथ सैन्य अभ्यास कर रही हैं, दक्षिण कोरिया अपनी अत्याधुनिक हथियार प्रणाली यूरोप को निर्यात कर रहा है. पिछले साल, दक्षिण कोरिया ने पोलैंड के साथ करीब 16.2 अरब डॉलर का एक बड़ा रक्षा सौदा किया था. इस सौदे में करीब एक हजार के2 मुख्य युद्धक टैंक, 648 स्वचालित हॉवित्जर र 48 एफए050 लड़ाकू विमानों की बिक्री शामिल थी.
चूंकि पोलैंड नैटो का एक सदस्य है. इसका मतलब जर्मन सैनिक युद्ध अभ्यास में हिस्सा लेंगे और ठीक उसी समय वो कोरियाई उपकरणों का मुकाबला भी करेंगे. पिंक्स्टन कहते हैं कि महत्वपूर्ण बात यह है कि जर्मनी को अपनी क्षमताओं के बारे में पता है.
भारत-प्रशांत क्षेत्र में हालांकि दक्षिण कोरिया उम्मीद कर रहा होगा कि एक अन्य यूरोपीय शक्ति का साथ उसके नजदीकी संबंध प्रतिद्वंद्वियों के प्रति उसकी क्षमता को बढ़ाएगा.
दक्षिण कोरिया के वरिष्ठ इंटेलीजेंस ऑफिसर और पूर्व डिप्लोमैट रा जोंग यिल कहते हैं, "यह स्पष्ट है कि कोरिया पश्चिमी देशों के साथ मजबूत और नजदीकी संबंध बनाना चाहता है और निश्चित तौर पर इसके पीछे यूक्रेन युद्ध के परिणाम हैं जो दक्षिण कोरिया के लिए गहरे सदमे की तरह हैं.”
वो कहते हैं, "दुनिया के इस हिस्से में निश्चित तौर पर चीन एक बड़ी चिंता है, लेकिन हमें उत्तर कोरिया और रूस पर भी कड़ी नजर रखनी होगी.”
चीन सहयोगियों का साथ देता है
जबकि दक्षिण कोरिया पश्चिमी देशों के साथ नजदीकी संबंध बना रहा है, चीन कूटनीतिक रणनीति बनाता दिख रहा है. रा कहते हैं, "हाल के महीनों में चीन मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के कई देशों तक पहुंच बना रहा है और इन देशों के साथ वो अपने संबंधों को बेहतर करने की कोशिश में है. इस तरह से दोनों ही देश अपने नए सहयोगियों की तलाश में हैं और अपने हितों को मजबूत कर रहे हैं.”
हिरोशिमा में हुए जी7 सम्मेलन की तरह चीन ने पांच मध्य एशियाई देशों- कजाखिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के साथ शियान में खुद का एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया.
यही नहीं, हाल ही में मध्य पूर्व के देशों के बीच चीन ने शांति वार्ता में मध्यस्थ की भूमिका निभाई और सऊदी अरब और ईरान के बीच कई साल से चल रही दुश्मनी को खत्म कराने का श्रेय चीन को दिया जा रहा है. एशिया में पहले से ही अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशों में लगे चीन से दक्षिण कोरिया का सावधान रहना स्वाभाविक है.
पिंक्स्टन कहते हैं, "उत्तर कोरिया चूंकि दक्षिण कोरिया की सीमा से लगा हुआ है इसलिए वो उसके लिए सबसे बड़ा और तात्कालिक खतरा है. लेकिन बड़ी तस्वीर यह है कि ताइवान स्ट्रेट, दक्षिणी चीन सागर, मानवाधिकार और ग्लोबल गवर्नेंस जैसे मुद्दे चीन से जुड़े हैं और निश्चित तौर पर आगे चलकर उसके लिए यही सबसे बड़ी चुनौती होगी.” (जूलियन रायल)
कंबोडिया में मगरमच्छों की देखभाल करने वाला एक शख़्स उनके बाड़े में फंस गया. लगभग 40 मगरमच्छों ने पलक झपकते ही उसके टुकड़े कर दिए.
स्थानीय पुलिस ने कहा 72 साल के लुआन नाम अंडे पर बैठे एक मगरमच्छ को उसकी जगह से हटाने के लिए उनके बाडे़ में उतरे थे.
लेकिन मगरमच्छों ने उस छड़ी को मुंह से पकड़ कर उन्हें अपने बाडे़ में खींच लिया जिससे वो उन्हें हटाने की कोशिश कर रहे थे. ठीक उसी समय लगभग 40 मगरमच्छों ने उस पर हमला कर दिया.
यह घटना शुक्रवार को सिम रीप शहर में हुई. मारे गए शख्स के पूरे शरीर में काटने के निशान थे. उसका एक हाथ भी गायब है. वो मगरमच्छ पालने वाले किसानों के संगठन के अध्यक्ष भी थे.
2019 में इसी फार्म में मगरमच्छों ने एक दो साल की बच्ची को मार डाला था. यह फार्म विश्व प्रसिद्ध अंकोरवाट मंदिर के सामने है.
दक्षिण एशियाई देशों में मगरमच्छों के अंडे, चमड़े और मांस का इस्तेमाल होता है. (bbc.com/hindi)
पूर्वी यूक्रेन के निप्रो शहर में एक अस्पताल पर मिसाइल हमले में दो लोगों की मौत हो गई और 23 घायल हो गए. स्थानीय गर्वनर ने बताया कि घायलों में से तीन की हालत गंभीर है.
गवर्नर शेरिल लाइस्का ने बताया कि घायलों में दो और छह साल के दो बच्चे भी हैं. हाल के हफ़्तों में यूक्रेन पर रूस के हमले में तेज़ी आई है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने क्षतिग्रस्त अस्पताल का एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें इमारत से धुआं उठता दिख रहा है.
उन्होंने कहा, ''रूस के आतंकवादियों ने एक बार फिर इस बात को साबित कर दिया कि वह मानवता के ख़िलाफ़ हैं.''
अब भी बचाव दल लापता दो लोगों की तलाश में जुटा है.
यूक्रेन का कहना है कि बीती रात से उन्होंने 17 रूसी मिसाइलें और 31 ड्रोन को मार गिराया है. वहीं, रूस के दक्षिणी शहर क्रास्नोदर में एक विस्फोट से एक रिहाइशी और एक दफ़्तर की इमारत को क्षति पहुंची है. यहां के गवर्नर वेनियामीन कोंद्रातेव ने बताया कि दो यूक्रेनी ड्रोन से ये विस्फ़ोट हुए. (bbc.com/hindi)