गरियाबंद
लोकवाद्य और गायन से होती है संगीत की पहचान
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 23 फरवरी । सौ से अधिक कार्यक्रमों में प्रस्तुति दे चुके लोक कला मंच हरेली के संचालक टिकेन्द्रनाथ वर्मा ने मीडिया सेन्टर में हुए साक्षात्कार में बताया की यह कार्यक्रम 2006 से संचालित शुरु होकर अनवरत चल रहा है। उन्होने आगे बताया कि हम मध्यप्रदेश में भी अपनी प्रस्तुती दिये है लेकिन हमारा सबसे बढिय़ा अनुभव छश्रीसगढ़ के सीपथ का रहा। जहां नवरात्रि में जसगीत गायन पर लोगों का भरपूर प्यार मिला। उन्होने अपने पसंदीदा गीत के रुप में जय दुर्गा दाई हो... को बताया।
वर्मा जी इसके पहले भी कई बार राजिम कर्मा जयंती मे अपना प्रस्तुति देने की जानकरी दी। उनकी टीम में गायन के रूप मे कृतिका विश्वकर्मा है जो एक साल से इस मंच से जुडी है। वे अपने गायन मे वे पारम्परिक छश्रीसगढ़ी लोक गीतों को पिरोये हुए है। उन्होने आज मुख्यमंच पर मनमोहना तोर चेहरा की... गीत पर दर्शकों से खुब ताली बटोरी और बार-बार इस गीत को सुनने की फरमाइस करने लगे।
रामेश्वर साहू ने आधुनिक संगीत के बारे में पूछे जाने पर कहा की जो दिल को छू जाये वही गायन है। आधुनिक हिन्दी संगीत से संस्कृति की पहचान नहीं होती अपितु लोकवाद्य और गायन से पहचान होता है। वे अपना अनुभव सांझा करते हुए आगे बताया की मंच पर पहचान बनाने के लिए बहुत ही कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
कलाकारों को एकत्रित करना, सीखाना, फिर उनको मंच पर लाना एक मेंढक़ की तरह होते है। हमें मूल संस्कृति को नाटक एवं गीत के माध्यम से आगे बढ़ाना चाहिए। छश्रीसगढ़ी फिल्म और लोककला मंच मे फूहड़ता नहीं होना चाहिए। इससे छत्तीसगढ़ी महतारी का अपमान होता है।
छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व देना चाहिए।