राजनांदगांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 13 सितंबर। जैन संतश्री हर्षित मुनि ने कहा कि बाणों की शैया में सोए भीष्म पितामह ने कौरव और पांडव के बीच कहा था कि उन्होंने जो पाप किया है वह उन्हें पीड़ा दे रही है। कौरव और पांडवों ने पूछा था कि आपने तो कोई पाप नहीं किया है फिर यह पाप आपसे कहां और कब हुआ, तब उन्होंने कहा था कि यह पाप द्रौपदी के चीरहरण को रोकने की कोशिश नहीं करने के कारण हुआ। यही पाप उन्हें पीड़ा दे रही है। जैन संत ने कहा कि हमें भी पीड़ा होती है, किंतु अपने पापों के लिए नहीं, बल्कि अन्य कारणों से। उन्होंने कहा कि अंतिम समय में हमारा द्वारा किया गया पाप हमें बहुत दुख देता है।
समता भवन में जैन संत ने कहा कि पाप रूपी शूल (कांटा) को भीतर से आलोचना कर बाहर निकाल दीजिए। उन्होंने कहा कि पाप इतना असरकारक नहीं होता जितना पाप को छुपाने के लिए किए जा रहे प्रयास असरकारक होते हैं। उन्होंने कहा कि संथारा लेते समय भी आपने अपने पाप को छुपाया तो आपका मरण पंडित मरण नहीं हो सकता। पंडित मरण के लिए यह जरूरी है कि आप संथारा लेते समय गुरु के सामने अपने द्वारा किए गए पाप की आलोचना करें। यह जानकारी विमल हाजरा ने दी।