राजनांदगांव
चिरायु टीम और एजेंसी की मदद से हुआ सफल ऑपरेशन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव,1 अक्टूबर। स्वास्थ्य सेवा के लिए समर्पित विभिन्न सरकारी योजनाओं व डॉक्टरों की संवेदनशीलता से जुड़ा एक ऐसा प्रेरक उदाहरण सामने आया है। जिसके परिणामस्वरूप जन्म के समय से ही रेटिनोपैथी नामक विकृति से पीडि़त एक बच्ची की दुनिया अब रोशनी से जगमगा उठी है। यानी काव्या की भी आंखें अब वह सारा कुछ देखने लगी हैं, जो सामान्य और स्वस्थ आंखों को दिखाई देता है। बच्ची के पूरे उपचार में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (चिरायु) योजना और स्टेट नोडल एजेंसी काफी मददगार साबित हुई है।
चार महीने की आयु में एक दुर्लभ श्रेणी के ऑपरेशन के दौर से गुजरने के बाद बच्ची अब स्वस्थ है। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता मिलने के बारे में नोडल अधिकारी डॉ. बीएल तुलावी ने बताया कि जिले के डोंगरगढ़ विकासखंड के रीवागहन निवासी मंडावी परिवार की चार महीने की बेटी काव्या (परिवर्तित नाम) जन्म के समय से ही आंखों की बीमारी का शिकार हो गई। आंखों की बीमारी की चपेट में आने की वजह से वह कुछ भी देख पाने में असमर्थ थी। यह पता लगने पर परिजन ने उसके इलाज का प्रयास शुरू किया। सबसे पहले जिला मुख्यालय के ही सरकारी अस्पतालों में जाकर आंख के डॉक्टरों से जांच कराई गई, लेकिन परेशानी जटिल होने के कारण स्थानीय स्तर पर उसका इलाज संभव नहीं हुआ। इसके बाद बच्ची को राजधानी रायपुर स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां जांच करने पर पता लगा कि काव्या की आंखों की बीमारी को ठीक करने के लिए एक ऑपरेशन आवश्यक है, लेकिन वह ऑपरेशन आंबेडकर अस्पताल में कर पाना संभव नहीं है, बल्कि ऑपरेशन हैदराबाद स्थित एलवी प्रसाद इंस्टीट्यूट में कराया जा सकता है। आंबेडकर अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञों की इस राय पर काव्या को ऑपरेशन के लिए हैदराबाद ले जाने की तैयारी शुरू की गई। एलवी प्रसाद इंस्टीट्यूट में भर्ती व ईलाज से संबंधित विभिन्न औपचारिकता व प्रक्रिया पूरी करने के बाद राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (चिरायु) की टीम और स्टेट नोडल एजेंसी के माध्यम से राज्य शासन द्वारा एलवी प्रसाद इंस्टीट्यूट में काव्या के ईलाज के खर्च की पूरी राशि जमा कराई गई और काव्या का ऑपरेशन कराया गया, जो सफल रहा। परिजनों के लिए यह किसी उत्सव से कम नहीं है कि सफलतापूर्वक ऑपरेशन होने के पश्चात काव्या अब स्वस्थ है और उसकी आंखें सब कुछ देख पा रही हैं।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मिथलेश चौधरी ने बताया कि लोगों को उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवा व सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कलेक्टर डोमन सिंह के दिशा-निर्देशन में स्वास्थ्य विभाग द्वारा लागातार प्रयास किए जा रहे हैं।
इसी दौरान चार महीने की एक बच्ची की भी आंखों का सफलतापूर्वक ऑपरेशन कराया गया है। पीडि़त बच्ची जन्म के समय से ही रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योरिटी की चपेट में आ गई थी, लेकिन समुचित उपचार होने के बाद अब वह पूरी तरह स्वस्थ है। जिससे परिजन प्रसन्न हैं। बच्ची के उपचार में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम चिरायु की टीम और स्टेट नोडल एजेंसी ने सराहनीय भूमिका निभाई है।
यह है रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योरिटी
रेटिनोपैथी ऑफ प्री मैच्योरिटी (आरओपी), आंखों से जुड़ा एक विकार है। जिसमें देखने की क्षमता में कमी आ सकती है। मुख्य रूप से यह समस्या 1,250 ग्राम या इससे कम वजन वाले प्री मैच्योर शिशुओं को प्रभावित करती है, जो 31 सप्ताह के गर्भ से पहले पैदा होते हैं। वहीं पूर्ण गर्भावस्था की अवधि 38 से 42 सप्ताह की होती है। आरओपी से ग्रस्त शिशुओं में दोनों आंखों की रेटिना पर असामान्य रूप से रक्त वाहिकाएं विकसित हो जाती हैं। रेटिना ऊतक की परत होती है, जो आंख के पिछले हिस्से में मौजूद होती है और इसी की मदद से देखना संभव हो पाता है।