बीजापुर

आदिवासी योद्धा वीर बाबूराव सडमेक जयंती पर 12 फीट की प्रतिमा का अनावरण
13-Mar-2024 11:18 PM
आदिवासी योद्धा वीर बाबूराव सडमेक जयंती पर 12 फीट की प्रतिमा का अनावरण

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

भोपालपटनम, 13 मार्च। वीर योद्धा बाबूराव सडमेक की जयंती के अवसर पर आज लिंगापुर गांव में उनकी मूर्ति का अनावरण किया गया।

गांव के मुख्य चौक पर सडमेक परिवार की जमीन पर वीर बहादुर बाबूराव सडमेक की लगभग 12 फ़ीट ऊंची मूर्ति लगाई गई है। वीर बहादुर सडमेक के वंसज इस गांव में रहते है उनके परिवार के सदस्य लिंगापुर में निवासरथ है। मंगलवार को उनके जन्म दिवस पर विधायक विक्रम मंडावी समेत बड़ी संख्या में समाज के लोग इक_ा हुए। विधायक विक्रम मंडावी ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए।

आदिवासी योद्धा शहीद बाबूराव सडमेक जीवन परिचय के बारे में बताया उन्होंने बताया कि भारतीय इतिहास में सन 1857 का पहला स्वस्तंत्रता संग्राम एक ऐसी घटना थी। जिसने अग्रेज हुकूमत की नींव को हिलाकर रख दिया, उनके इतिहास पर नजर डाले तो उनका जन्म 12 मार्च 1833 को महाराष्ट्र के चंदा जिले के आहेरी के किश्तपुर में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता के वे सबसे बड़े पुत्र थे बाबूराव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घोटुल में प्राप्त की और बाद में उन्हें अंग्रेजी शिक्षा के लिए रायपुर भेज दिया गया। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह मोलमपल्ली लौट आये और अठारह वर्ष की उम्र में उनका विवाह राज कुँवर से हो गया।

बाबूराव सडमेक का जीवन और विदेशी शासन के खिलाफ उनका विद्रोह आज भी गोंड समुदाय द्वारा मनाया जाता है। उनकी वीरता की निशानी के रूप में उनका जन्म और पुण्यतिथि प्रतिवर्ष मनाई जाती है। वीर सडमेक मात्र 25 वर्ष की आयु में गोंडवाना साम्राज्य के जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए ब्रिटिश हुकूमत के सामने बहादुरी के साथ लडऩे वाले शहीद रहे।

जिला पंचायत सदस्य बसंत राव ताटी ने बताया कि बाबूराव सडमेक 18 सितंबर 1858 को लक्ष्मीबाई के सैनिकों ने पकड़ लिया और कैप्टन क्रिक्टन को सौंप दिया। बाबूराव को चांदा लाया गया और उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। अंग्रेजों ने उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह का दोषी पाया। 21 अक्टूबर 1858 को उन्हें चंदा जेल में फाँसी दे दी गई।

वीर सडमेक के वंशज के पास रखी है उनकी तलवार

शहीद बाबूराव सडमेक के वंशज परपोता नगैय्या सडमेक लिंगापुर में निवास करते है वे खेती किसानी से अपना जीवन यापन कर रहे है उनके वंसज नगैय्या सडमेक के पास उनके दादाजी की तलवार रखी हुई है। वे अपने दादा की वीरता को हमेशा याद किया करते है। उनके दादाजी की वीरता की किस्से उन्हें उनके पिता ने बताई है वे अपने दादा की पुण्यतिथि पर माल्यार्पण कर उनको याद किया करते है।

विधायक निधि 10 लाख की लागत से बनाई गई प्रतिमा

दस लाख की लागत से विधायक विक्रम मंडावी ने अपनी निधि से बापूराव सडमेक की प्रतिमा बनवाई है गांव वालों की मांग पर अपनी निधि से लिंगापुर के मुख्य चौराहे पर 12 फ़ीट की प्रतिमा स्थापित की गई मंगलवार को उनके जन्म दिवस के अवसर पर उनको याद कर मूर्ति का आवरण किया गया। 85 बरस की बुजुर्ग समक्का बताती है किस्से।

उनकी बहू समक्का सडमेक बताती है कि उनके जवानी में उनके सास ससुर उनके बहादुर दादा के बहादुरी के किस्से बताया करते थे बुजुर्ग ने बताया कि कई सालों से उनके परिवार के वीर की मूर्ति पर पुण्यतिथि के अवसर पर याद किया करते है।

इलैया कोरम मांझी आदिवासी समाज

समाज के माझी बताते है कि हमारे आदिवासी समाज के वीर सुपुत्र आदिवासियों के हक की लड़ाई जल जंगल जमीन की लड़ाई मे अंग्रेजों से लडक़र शाहिद हुए है। उनकी मूर्ति बनाने हम लोगो ने विधायक से मांग की थी उन्होंने 10 लाख की लागत से मूर्ति बनवाई है और आज उसका आवरण भी हो गया है हमारे लिए यह गर्व की बात है।

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