राजपथ - जनपथ
यहां से आगे कहाँ?
लॉकडाउन खत्म होने के बाद पुलिस में एक छोटा सा फेरबदल हो सकता है। इसमें दो-तीन जिलों के एसपी को बदला जा सकता है। सुनते हैं कि रायपुर एसएसपी आरिफ शेख भी बदले जा सकते हैं। वैसे तो, उनके कामकाज को लेकर किसी तरह की शिकायतें नहीं है। उन्हें रिजल्ट ओरिएंटेड अफसर माना जाता है। अपने सालभर के कार्यकाल में उन्होंने प्रवीण सोमानी अपहरण कांड जैसे बेहद संवेदनशील और कठिन प्रकरणों को सुलझाया। इसकी काफी तारीफ भी हो रही है। अब ऐसे में उन्हें बदला जाएगा, तो कोई अहम दायित्व ही मिलेगा। कुछ लोगों का अंदाजा है कि आरिफ का अगला ठिकाना परिवहन विभाग हो सकता है।विभाग के मंत्री मोहम्मद अकबर हैं, और आरिफ उनकी पहली पसंद बताये जाते हैं।
अगला कौन?
पुलिस जवानों को युद्धकला की ट्रेनिंग के लिए 14 साल पहले कांकेर में जंगलवार ट्रेनिंग स्कूल की स्थापना की गई थी। इस ट्रेनिंग स्कूल में हजारों जवान ट्रेंड होकर नक्सल मोर्चे पर डटे हुए हैं। न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों के जवानों को भी यहां ट्रेनिंग दी जाती है। जवान बसंत पोनवार के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग पाते हैं। पोरवार सेना के रिटायर्ड ब्रिगेडियर हैं और वे पिछले 15 साल से संविदा पर ट्रेनिंग स्कूल में संचालक के पद पर पदस्थ हैं। उनकी संविदा अवधि जल्द ही खत्म होने वाली है। सुनते हैं कि पोरवार की संविदा अवधि बढ़ाने के लिए फाइल भेजी गई थी, लेकिन मंजूरी नहीं मिल पाई है। चर्चा है कि सरकार अब उनकी संविदा नहीं बढ़ाना चाहती है। ट्रेनिंग स्कूल आगे किस तरह काम करेगा, इसका खुलासा नहीं हो पाया है। फिलहाल तो लॉकडाउन की वजह से जवानों की ट्रेनिंग बंद है।
सरकार की तुरंत प्रतिक्रिया
इन दिनों सोशल मीडिया की मेहरबानी से उन लोगों को अपने कामों पर जनप्रतिक्रिया तुरंत मिल जाती है जो कि सोशल मीडिया पर चर्चित हैं. लेकिन इसे पूरी प्रतिक्रिया मान लेना ठीक नहीं. बुरी आलोचना करने वाले लोग बिगाड़ करने सामने नहीं आते, और तारीफ करने वाले मौका नहीं छोड़ते. इस तरह सार्वजनिक प्रतिक्रिया अमूमन तारीफ की ओर झुकी रहती है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोटा में कोचिंग पा रहे बच्चों को वापिस लाने के लिए बसें भेजने की घोषणा की, तो उनकी ट्वीट पर लोगों ने तुरंत तारीफ की बौछार कर दी. लेकिन इस बात को लिखने वाले भी कम नहीं थे कि सिर्फ पैसे वालों के बच्चों को ला रहे हैं, गरीब मजदूरों का क्या? उनको भी वापिस लाएंगे? आलोचना की ट्वीट भी कम नहीं थीं. अच्छा है कि वोट के दिन के पहले भी सरकार को अपने फैसलों को लेकर कम से कम कुछ लोगों की लिखी बातों का पता चलते ही रहता है. भूपेश सरकार के बारे में एक दूसरी बात जिस पर खूब लिखा जा रहा है, वह है शराब को लेकर. अब बहुत से लोग मानने लगे हैं कि एक महीने से ज्यादा तो कोई मेडिकल प्रयोग भी नहीं हो सकता. जब लोग इतने लम्बे वक़्त तक शराब के बिना रह ही चुके हैं, उनकी सेहत और घर की माली हालत दोनों सुधर रहे हैं, तो फिर अब चुनावी वायदे के मुताबिक दारूबंदी कर ही दी जाये !([email protected])
हमारे देश के लोग
भोपाल की रहने वाली तेजी ग्रोवर और उनके पति रुस्तम सिंह ग्रोवर वहां फंसे लोगों की मदद में लगे हुए हैं. उनका संपर्क लगातार छत्तीसगढ़ से भी हो रहा है, और उनके लिए भी वे अपनी सीमा से बहार जाकर भी मदद जुटा रही हैं।
आज सुबह उन्होंने फेसबुक पर लिखा- कल शाम पता चला कि 19 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के प्रताप सिंह जी को किराए के मकान से निकाल दिया गया था। वे 22 मार्च को ही भोपाल पहुंचे थे और मात्र एक दिन की दिहाड़ी उन्हें मिल पाई थी कि लॉकडाउन घोषित कर दिया गया। वे मकान मालिक को 1500 अग्रिम किराया दे चुके थे। महीना खत्म हुआ भी न था कि उन्हें और उनकी गर्भवती पत्नी को निकाल दिया गया।
मैंने फ़ोन करके पूछा कि कोई और कमरा उधर मिल रहा हो तो ले लीजिए। ( पत्नी को घबराहट, अपच सब हो रहा है।)
अब सुनिए क्या बोले-वे अभी तो साथियों के साथ झुग्गी में किसी तरह पड़े रहेंगे। आप किराए की व्यवस्था करेंगी तो 3 को लॉकडाउन खुलने से किराया बेकार चला जाएगा। मैंने कहा क्या पता खुलता भी है या नहीं, आप तो ढूंढ लीजिए। उन्होंने हमें कष्ट न देने की गरज़ से मना कर दिया।
कुछ दिन बाद मित्रों से निवेदन करूंगी कि वे इन परिवारों के खातों में सीधे कुछ राशि जमा करवा दें। क्योंकि वे चिंतित हैं कि गांव में जाकर भी वे भूखे ही मरेंगे।
देखिए फल से फल-फूल रहे हैं होटल कारोबारी
लॉकडाइन ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। इस बीच धीरे धीरे मिल रही छूट से कारोबार शुरू होने लगे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि धीरे-धीरे ही सही उद्योग धंधे पटरी पर लौटेंगे, लेकिन ऑनलाइन ट्रेंडिंग और पेमेंट की सुविधा सबसे बड़ी अड़चन दिखाई दे रही है, क्योंकि लोग इसे ज्यादा सुरक्षित और सहूलियत भरा मान रहे हैं। यही वजह है कि पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के कारोबारियों ने ऑनलाइन बिजनेस के खिलाफ थाली-घंटी बजाकर विरोध भी किया था। इस विरोध का कितना असर होगा, ये तो कारोबारी ही बता पाएंगे, लेकिन ऑनलाइन बिजनेस ने तो जोर पकडऩा शुरू कर दिया है। राज्य सरकार ने खुद ऑनलाइन सुविधाओं का विस्तार शुरू कर दिया है। दूध, दही और पनीर जैसे उत्पादों के बाद साग-सब्जी की ऑनलाइन डिलीवरी के लिए पोर्टल शुरु हो गए हैं। जाहिर है इससे थोक-चिल्हर व्यापारियों के धंधे पर असर पड़ेगा। जाहिर सी बात है कि लोगों को एक बार सुविधा की आदत पड़ जाए तो उसे बदलना मुश्किल होता है। फिलहाल तो सुरक्षागत कारणों और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए ऐसा किया जा रहा है, लेकिन आदत पडऩे पर थोक और चिल्हर कारोबारियों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो सकता है। हालांकि छत्तीसगढ़ में सरकार का कहना है कि इसमें सभी छोटे-बड़े व्यापारियों को जोड़ा जाएगा। खैर ये तो बाद की बात है, लेकिन फिलहाल तो इस ऑनलाइन कारोबार में भी चंद लोग फल फूल रहे हैं। चर्चा तो यह है कि होटल कारोबार से जुड़े कई बड़े लोग इसमें कूद गए हैं। लॉकडाउन के कारण होटल-रेस्टारेंट तो बंद है, ऐसे में इन लोगों ने होटल से सब्जी-भाजी का धंधा शुरू कर दिया है। अब फल से फलने-फूलने का इससे बड़ा उदाहरण कहां मिल सकता है।
राम भरोसे बीजेपी
छत्तीसगढ़ में लगातार 15 साल तक सत्ता में रहने वाली बीजेपी सियासी परिदृश्य से एकदम ओझल सी हो गई है। राज्य में अब तक हुए चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है, लिहाजा पार्टी कार्यकर्ताओं में स्वाभाविक निराशा तो है, लेकिन फिर भी दुनिया के सबसे ज्यादा सदस्यों वाली पार्टी का दावा करने वाले दल के लोग छत्तीसगढ़ से एकदम से गायब कैसे हो गए हैं, यह बात गले से उतरती नहीं। जबकि पार्टी के राज्य में भारी भरकम सांसद हैं। एक-दो को छोड़ दिया जाए तो बाकियों तो मानो सांप सूंघ गया है। कोरोना जैसी महामारी के दौर में भी उनकी न तो कोई गतिविधियां दिखाई देती है और न ही कोई बयान सुनने-पढऩे को मिलते हैं । खैर, ये पार्टी का अंदरुनी मामला है। इसलिए इस चुप्पी की मीडिया में भी कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हो रही है। गाहे-बगाहे ऐसी चर्चाओं में भाजपाई इसे तूफान के पहले की शांति का नाम दे देते हैं, तो कई अपनी पार्टी को राम भरोसे बताते हैं। जबकि स्थिति तो यह है कि तूफान के इंतजार में बैठे भाजपाई हवा के झोंके में खुद उड़ रहे हैं और जो राम के भरोसे बैठे हैं, उन्हें यह तो पता ही होगा कि छत्तीसगढ़ के लोग उन्हें भांचा मानकर निकल पड़े हैं राम वन गमन पथ पर। अब देखना होगा कि राम किसकी नैया पार लगाते हैं। अपने भांजों की या फिर अपने भक्तों की।
अंडे का क्या हो?
अंडा खाया जाये या नहीं, मुर्गा-मटन खाया जाये या नहीं इस पर हिंदुस्तान में धार्मिक भावना से भरपूर बहस चलती ही रहती है. अभी छत्तीसगढ़ में इन सबकी बिक्री पर रोक लगी हुई है. प्रदेश में भोजन के अधिकार को लेकर अभियान चलने वाले लोगों ने इस रोक के खिलाफ आवाज़ उठाई है और राज्य सरकार का छपवाया हुआ इश्तहार साथ में ट्विटर पर पोस्ट भी किया है जो कहता है- अंडा और चिकन से मिलता है उत्तम प्रोटीन, बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता- छत्तीसगढ़ शासन पशुधन विकास विभाग। यह िष्ट: और ट्वीट अभी पिछले ही पखवाड़े सरकार ने छपवाया था, लॉकडाउन शुरू हो जाने के बाद 7 अप्रेल को।([email protected])
कोराना युग मीडियाकर्मियों के लिए संकट भरा
इस कोरोना युग में पत्रकार और मीडियाकर्मी चौतरफा संकट से घिर गए हैं। मुंबई में एक साथ 53 पत्रकार कोरोना पॉजिटिव हैं। इसके पहले भोपाल में भी कई पत्रकार कोरोना संक्रमित पाए गए। डॉक्टर, मेडिकल स्टॉफ या दूसरे आवश्यक सेवा के कर्मियों के लिए तो बचाव और सुरक्षा के किट उपलब्ध हैं। आपात स्थिति में परिवार के लिए सरकारी मदद की गुंजाइश है, लेकिन पत्रकारों के पास न तो सुरक्षा के संसाधन हैं और न ही आपात स्थिति में परिवार के लिए राहत की कोई योजना है। फिर भी टीवी के पत्रकार और फोटोग्राफर जान जोखिम में डालकर अपना काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं कोरोना काल में पल पल खतरों के बीच काम कर रहे पत्रकारों के लिए नौकरी बचाना मुश्किल हो रहा है। कई छोटे-बड़े संस्थानों ने मंदी का रोना रोकर कॉस्ट कटिंग तक शुरू कर दी है। लिहाजा पत्रकारों के सामने दोनो तरफ विकट स्थिति है। जबकि सरकारों ने तमाम संस्थानों को सख्त हिदायत दी है कि अपने कर्मचारियों के सुरक्षा के उपाय के साथ उनके भविष्य की योजनाओं पर विचार किया जाना चाहिए। सरकारी निर्देशों का बहुत ज्यादा असर मीडिया संस्थानों में दिख नहीं रहा है। दूसरे तरफ संकट के समय में पत्रकारों को काफी कुछ सीखने समझने का मौका मिल रहा है। प्रेस ब्रीफिंग के लिए मौके पर जाने की जरुरत नहीं पड़ रही है। वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए प्रेस कांफ्रेंस हो रहे हैं, जिससे तकनीक के प्रति जागरुक हो रहे हैं। हालांकि इस युग में नेता-मंत्री और अफसरों के पास वीडियो कांफ्रेंस के आयोजन के लिए तमाम लोग और सुविधा उपलब्ध है, लेकिन पत्रकारों को सब खुद मैंनेज करना पड़ता है, जिससे वे अपडेट हो रहे हैं। इस तरह के कल्चर से आम लोगों के लिए संवाद स्थापित करना आसान हो रहा है। संभव है कि आने वाले दिनों में नेता मंत्री गांव और दूरस्थ इलाकों से जनता के साथ संवाद कर सकते हैं। सीखने समझने की गुंजाइश के बीच मीडिया हाउस में भी इस तरह के आधुनिक संसाधनों के उपयोग का चलन बढ़ सकता है। यह भी पत्रकारों के लिए मुश्किलों भरा साबित हो सकता है। इस स्थिति में स्टूडियो से लाइव या रिकार्डेड इंटरव्यू ज्यादा आसान हो सकते हैं।
बच्चों की स्मार्ट पढ़ाई !
छत्तीसगढ़ सरकार ने लॉकडाउन अवधि में स्कूली बच्चों की पढ़ाई के नुकसान को देखते हुए ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की है। पढ़ई तुंहर दुवार नाम से शुरु किए गए इस पोर्टल में वीडियो अपलोड किए गए हैं, लेकिन इस पोर्टल का कितना लाभ मिलेगा, इस पर संशय है। इसके जरिए पढ़ाई करने के लिए छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के सामने कई तरह समस्या है। अधिकांश बच्चों के पास मोबाइल तो नहीं है, उन्होंने माता-पिता या घर के दूसरे सदस्यों के नंबर दिए हैं। ऐसी स्थिति में उनको पढ़ाई के लिए घर के सदस्यों पर निर्भर रहना पड़ेगा। उसमें भी दिक्कत यह है कि आधे लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं है, वे केवल बातचीत का काम आने वाला फोन उपयोग करते हैं। मान लिया जाए कि उसमें से कुछ स्मार्ट फोन यूज करते भी होंगे तो उनके सामने नेट पैक की समस्या आती है, क्योंकि लॉकडाउन के कारण गरीब और मजदूर वर्ग के लोग नैट पैक की सुविधा कम ही ले रहे हैं। कुछ ले भी रहे होंगे तो उसको निश्चित समय तक चलना भी है। बच्चों के हाथ में गया और एकाध वीडियो देखने में ही पूरा नेट पैक निपट सकता है। कुल मिलाकर ऑन लाइन पढ़ाई के लिए वेबसाइट से बच्चे पढ़ पाएंगे इसकी संभावना तो कम ही दिख रही है। ऐसे समय में कुछ लोग रमन सिंह की स्मार्ट फोन योजना को याद कर रहे हैं। यह योजना चालू होती तो शायद सरकारी स्कूल के बच्चे भी स्मार्ट बन पाते। ([email protected])
मोर्चे पर अकेली अफसर
लॉक डाउन में थोड़ी ढील देने के बाद कुछ अफसरों का मंत्रालय में बैठना शुरू हो गया है। मगर राजस्व सचिव रीता शांडिल्य ही एकमात्र ऐसी अफसर हैं, जिन्होंने एक दिन भी ऑफिस नहीं छोड़ा। रीता के पास आपदा प्रबंधन का भी प्रभार है। ऐसे में कोरोना संक्रमण से निपटने की अहम जिम्मेदारी उन पर है। आईएएस की वर्ष-2002 बैच की अफसर रीता शांडिल्य सामान्य प्रशासन विभाग का भी दायित्व संभाल रही हैं।
वैसे तो रीता के पास भी विकल्प था कि वे बाकी अफसरों की तरह घर में बैठकर फाइलें निपटा सकती थीं और बैठकें ले सकती थीं। मगर वे इक्का-दुक्का अधिकारी-कर्मचारियों के साथ रोजाना मंत्रालय आती थीं और पूरे समय काम में लगी रही। ऐसे समय में जब कोरोना संक्रमण के चलते कई राज्यों का आपदा प्रबंधन गड़बड़ा गया है, रीता की मेहनत से छत्तीसगढ़ आपदा प्रबंधन के मामले में सबसे आगे है।
मुश्किलें बढ़ेंगी
कोरोना फैलाव रोकने के लिए एहतियात के तौर पर सेंट्रल एसी और कूलिंग सिस्टम को बंद करने के आदेश दिए गए हैं। इससे विशेषकर मंत्रालय के अधिकारी-कर्मचारियों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है। मंत्रालय के बड़े अफसरों के कक्ष में तो टेबल पंखा लगा दिया गया है। लेकिन छोटे कर्मचारी बिना एसी-पंखे के पसीने से तरबतर काम कर रहे हैं। अभी उपस्थिति बेहद कम है, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन खुलेगा, कर्मचारियों की मुश्किलें बढ़ेंगी।
ताश आवश्यक सामग्री ?
लॉक डाउन के चलते कामकाजी लोगों को घर में समय काटना मुश्किल हो चला है। ज्यादातर लोग टीवी देखकर, किताबें पढ़कर समय गुजार रहे हैं। मनोरंजन के लिए लोग ताश का भी सहारा ले रहे हैं। एकाएक ताश की मांग काफी बढ़ गई है। कई किराना दूकानों में तो ताश नहीं मिल रहा है। ऐसे में किराना दूकानों को ताश सप्लाई कर अच्छा मुनाफा कमाने के फेर में एक व्यवसायी पुलिस के हत्थे चढ़ गया।
हुआ यूं कि व्यवसायी का रायपुर शहर के मध्य में किराने की दूकान हैं। उनके पास ताश का स्टॉक पड़ा हुआ था। पिछले दिनों व्यवसायी ताश को कार्टन में भरकर ले जा रहा था तभी पुलिस ने उन्हें रोक लिया। कार्टन की तलाशी ली, तो स्वाभाविक था कि उसमें ताश की गड्डियां ही थी। पुलिस ने पूछ लिया कि क्या ताश आवश्यक सामग्री में आता है, जिसकी सप्लाई करना जरूरी हो गया है? व्यवसायी को जवाब देते नहीं बना। इसके बाद पुलिस उसे ले गई। काफी प्रभावशाली लोगों के फोन घनघनाए लेकिन पुलिस टस से मस नहीं हुई। व्यावसायी और उसके परिवारवालों ने काफी अनुनय-विनय किया, तब कहीं जाकर पुलिस ने हिसाब-किताब कर उसे छोड़ा।
छत्तीसगढिय़ा का भांचा प्रेम
लॉकडाउन पीरियड में रामायण सीरियल का रिपीट टेलीकॉस्ट पहली बार जैसा लोकप्रिय रहा है। अमूमन हर घर में परिवार सहित सीरियल देखने में लोगों की दिलचस्पी देखी गई। रामायण अब अपने क्लाइमेक्स पर है। रावण का वध कर राम अयोध्या पहुंच गए हैं। उनकी इस जीत पर अयोध्यावासी खुशियां मना रहे हैं। त्रेता युग में भगवान राम की जीत का जश्न हजारों-लाखों साल के बाद कलयुग के कोरोना युग में छत्तीसगढ़ में भी देखने सुनने को मिल रहा है। सोशल मीडिया और वाट्सएप पर लोग राम की जीत की बधाई दे रहे हैं। कई लोगों का आचरण तो ऐसा है जैसे उनके किसी अपने या करीबी रिश्तेदार ने लंका फतह कर ली हो।
दरअसल, पिछले कुछ समय से भगवान राम का छत्तीसगढ़ कनेक्शन खूब प्रचारित हुआ है। मान्यता है कि वनवास काल का बड़ा समय उन्होंने छत्तीसगढ़ में ही बिताया था और राज्य को राम का ननिहाल भी बताया जाता है। इस कनेक्शन के बाद छत्तीसगढिय़ा का भांचा प्रेम जाग गया है और राम को भांचा (भांजा) मानकर लंका विजय की एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं। स्वाभाविक है कि परिवार के किसी करीबी की सफलता पर खुशी तो होती है, लिहाजा यहां भी माहौल ऐसा ही बन गया है। सोशल मीडिया में बधाई संदेशों की बाढ़ आ गई है।
दूसरी तरफ राज्य सरकार ने भी राम वन गमन पथ और उनके ननिहाल को पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने के लिए खजाना खोल दिया है। कोरोना फैलने के ठीक पहले इस पर तेजी से काम भी शुरू हो गया था। सूबे के प्रशासनिक मुखिया खुद निर्माण कार्य का मोर्चा संभाले हुए थे और उन स्थानों का दौरा कर निर्माण कार्यों की प्रगति का जायजा ले रहे थे। ऐसे में लोगों की भावनाएं कुलांचे मार रही है, तो आश्चर्य की बात नहीं है। सियासतदार भी लोगों की भावनाओं को खूब हवा दे रहे हैं। क्योंकि राम भले ही लोगों की भावनाओं से जुड़े हैं, लेकिन सियासत में तो वे वोट बटोरने के लिए ब्रम्हास्त्र से कम नहीं है। उम्मीद है कि कोरोना युग के निपटने के बाद त्रेता युग के तमाम अस्त्र शस्त्र चुनाव समर तक खूब चलेंगे।([email protected])
छत्तीसगढ़ के प्रमुख न्यूरोफिजिशियन डॉ. संजय शर्मा फोटोग्राफी के भी बड़े शौकीन हैं। मरीजों से थक जाते हैं तो कैमरा उठाकर जंगल निकल जाते हैं. फिलहाल यह तस्वीर उनका आम का इंतजार बता रही है !
36 गढ़ी कलेक्टर का मॉडल हिट
कोरोना संक्रमण रोकथाम के लिए पीलीभीत मॉडल सुर्खियों में है। ऐसे समय में जब देश के कई जगहों पर कोरोना संक्रमण कम्युनिटी स्टेज पर पहुंच गया है। वहां अब कोरोना को नियंत्रित करने के लिए पीलीभीत मॉडल अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने तो सभी जिला प्रशासन को पीलीभीत के तौर तरीके अपनाने के लिए कहा है।
पीलीभीत को कोरोना मुक्त कराने में वहां के कलेक्टर वैभव श्रीवास्तव की अहम भूमिका रही है। वे बिलासपुर के रहवासी हैं और खालिस छत्तीसगढिय़ा हैं। वे खेल संचालक श्वेता सिन्हा के भाई हैं। कोरोना देश में शुरूआती दौर में था, तब पीलीभीत जिला प्रशासन के पास सूचना आई कि 20 मार्च को सऊदी अरब से उमरा करके करीब 37 लोग पास के ही एक गांव में आए हैं। प्रशासन ने बिना देरी किए सभी लोगों की पहचान कर ली और सभी की कोरोना जांच कराई गई। 22 तारीख को जांच रिपोर्ट आई और इसमें खुलासा हुआ कि दो कोरोना संक्रमित हैं। ये दोनों मां-बेटे हैं। इससे हड़कंप मच गया। उस समय यूपी में गिनती के कोरोना मरीज थे।
इसके बाद पीलीभीत प्रशासन हरकत में आया और दोनों मां-बेटे को इलाज के लिए भर्ती कराया गया। प्रशासन ने विदेश यात्रा से लौटने की सूचना न देने पर बाकी सभी के खिलाफ एफआईआर करने के आदेश दिए। इसके बाद सभी विदेश यात्रियों और उनके परिवार वालों को क्वारंटाइन कर दिया गया। वैभव श्रीवास्तव ने तुरंत जिले की सीमा को सील करने के आदेश दिए। आसपास के दो दर्जन गांवों को सेनेटाइज किया गया। जिला प्रशासन और पुलिस ने आम लोगों को भरोसे में लेकर जनजागरूकता अभियान चलाया।
गांव-गांव और शहर के हर मोहल्ले में प्रशासन और पुलिस के लोगों ने कोरोना से बचाव के तौर तरीके समझाए। जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों को भरोसे में लिया। जिला प्रशासन- पुलिस की मेहनत रंग लाई, तबलीगी जमात के मरकज से कई लोग लौटे, तो खुद होकर सूचना दी। सामाजिक सदभाव बनाए रख मस्जिद और मदरसों को सेनेटाइज किया गया। जिसे भी क्वारंटाइन किया गया, उसने प्रशासन-चिकित्सा स्टॉफ को पूरा सहयोग किया। इसका अच्छा रिजल्ट भी सामने आ गया। मां-बेटे ने कोरोना को मात दे दी और स्वस्थ होकर घर लौट गए।
लॉकडाउन का सख्ती से पालन किया गया और कोई भूखा न रहे, इसके लिए व्यापक अभियान चलाया गया। सामुदायिक रसोई की स्थापना की गई। समाजसेवी संस्थाओं ने भरपूर सहयोग किया। इसका प्रतिफल यह रहा कि पीलीभीत यूपी का पहला जिला है जो कि कोरोना मुक्त हो गया है। कोरोना को लेकर लोगों में जनजागरूकता इस बात के संकेत दे रहे हैं कि भविष्य में भी जिले में कोरोना को लेकर बुरी खबर नहीं आने वाली है। वैभव श्रीवास्तव की अब तक की मेहनत रंग लाई है और पीलीभीत कोरोना रोकथाम का रोल मॉडल बन गया है।
पत्रकारिता में शह-मात का खेल
मध्यप्रदेश के माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में फेरबदल की खबर से छत्तीसगढ़ के लोग चकित हैं। दरअसल, कांग्रेस शासनकाल में कुलपति बनाए गए दीपक तिवारी ने शनिवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 24 घंटे से भी कम समय में यहां प्रभारी कुलपति के साथ पुराने कुलसचिव की वापसी का आदेश जारी हो गया। छत्तीसगढ़ में लंबे समय तक पत्रकारिता करने वाले संजय द्विेदी की कुलसचिव पद पर वापसी हुई है। लोगों को आश्चर्य इस बात पर है कि जब पूरे देश में कोरोना का कोहराम मचा हुआ है, तब भी अपने लोगों को एडजेस्ट करने का सियासी खेल वहां चल रहा है। जबकि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और इंदौर तो कोरोना के हॉटस्पॉट बने हुए हैं।
मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद सरकार का गठन तक नहीं हो पाया है। पिछले एक महीने से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अकेले सरकार चला रहे हैं। मंत्रिमंडल का गठन नहीं होना एक बात है उससे महत्वपूर्ण यह है कि वहां का प्रशासनिक अमला तक कोरोना की चपेट में है। ऐसी विषम परिस्थिति में विवाद को जन्म देने वाले आदेश ने लोगों को अचरज में डाल दिया है। इसके विपरीत छत्तीसगढ़ में तमाम परिस्थितियां अनुकूल होने के बाद भी तब के कुशाभाऊ ठाकरे और अब के चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता विवि में एक साल तक स्थायी कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पाई थी। नियुक्ति हुई भी तो सरकार की मर्जी के खिलाफ।
लोगों का कहना है कि छत्तीसगढ़ की तीन चौथाई बहुमत वाली सरकार को बीजेपी की शिवराज सिंह सरकार से सीख लेनी चाहिए कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी अपनों को उपकृत करने के फैसले तत्काल लिए जाते हैं। लोगों का मानना है कि फैसले लेने में देरी के कारण ही छत्तीसगढ़ में विपरीत विचारधारा के व्यक्ति को कुलपति के रुप में बर्दाश्त करना मजबूरी हो गई है। हालांकि सरकार ने नियुक्ति के बाद तत्परता दिखाते हुए कुलपति की नियुक्ति और पदच्युत करने के नियमों में बदलाव किया, लेकिन बात इससे आगे नहीं बढ़ पाई। इसी दौरान छत्तीसगढ़ सरकार ने विवि का नाम बदलने की भी कार्रवाई की, लेकिन अभी तक नया नाम कागजों से बाहर नहीं आ पाया है।
याद होगा कि मप्र में कुलसचिव बनाए गए संजय द्विेदी ने सबसे पहले छत्तीसगढ़ सरकार के इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोला था और राज्य के मुखिया को खुला पत्र लिखकर आलोचना की थी। कयास लगाए जा रहे हैं कि भोपाल में बैठकर छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी सीएम को चुनौती देने के कारण उन्हें कुलसचिव की कुर्सी वापस मिल गई है। ध्यान होगा कि छत्तीसगढ़ के साथ मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद कमलनाथ सरकार में संजय द्विेदी से कुलसचिव का प्रभार छीना गया था। इतना ही नहीं उनकी प्रोफेसर पद नियुक्ति के खिलाफ भी शिकायत हुई थी। शिकायत के बाद संभावना जताई जा रही थी कि उनकी प्रोफेसरी जा भी सकती है। उन पर विधानसभा चुनाव में खास विचारधारा के लोगों के पक्ष में काम करने के आरोप भी लगे थे। मप्र के तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी के खिलाफ तक काम करने की शिकायतें सामने आई थी। इसके बावजूद कांग्रेस के एक साल के शासनकाल में उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। बीजेपी की सरकार बनने के चंद दिनों बाद ही वे अपनी पुरानी प्रतिष्ठा पाने में सफल हो गए।
ऐसे में वे लोग दुखी हैं, जिन्होंने खास विचारधारा के लोगों के खिलाफ मुहिम चलाई थी, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद भी वे किसी का कुछ बिगाड़ नहीं पाए हैं। लोगों को लगता है कि छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विवि में भी ऐसे लोगों की भरमार है, जो खास विचारधारा के माने जाते हैं और उसी योग्यता के कारण नौकरी पाने में सफल हुए थे। लगातार शिकायतों के बाद कार्रवाई तो दूर ऐसे अयोग्य लोगों के मन में सरकारी कार्रवाई और नौकरी जाने का भय तक नहीं बन पाया है और वे अपने पदों पर जमे हुए हैं, सरकार के खिलाफ गतिविधियों में भी शामिल हैं। जाहिर है कि मौका मिलते ही वे फिर से पॉवरफुल हो जाएंगे, जैसा मध्यप्रदेश में हुआ है। छत्तीसगढिय़ा इस बात से चितिंत हैं कि यहां तो पहले ही सरकार की पसंद के खिलाफ कुलपति की नियुक्ति हुई है और मध्यप्रदेश की पत्रकारिता विवि में आक्रामक हिन्दू सोच के लोग फिर से मजबूत हो गए हैं। ऐसे में संभव है कि दोनों मिलकर खिचड़ी पकाने में सफल हो गए तो स्थानीय लोग हाथ मलते रह जाएंगे, क्योंकि कोरोना युग में एमपी में मामा ने शह और मात का खेल तो शुरु कर ही दिया है। ([email protected])
मासूम बीवी, भूत, और वफादार पति...
छत्तीसगढ़ में अभी पुलिस ने एक नौजवान को पकड़ा जो कि अलग-अलग लड़कियों और महिलाओं के नाम और तस्वीरों से फेसबुक पोस्ट बनाकर रात-दिन सांप्रदायिक नफरत की बातें पोस्ट करता था. यह तो आज के कॉरोनाकाल की अधिक सावधानी चल रही है इसलिए वह पकड़ा गया, वरना तो सब बढिय़ा चल रहा था. उसके फेसबुक फ्रेंड्स भी लबालब थे, 5000 तक पहुँच रहे थे, सिर्फ एक निशा जिंदल नाम के फेसबुक अकाउंट से. और मजे की बात की उसके 10000 से अधिक फॉलोवर्स भी थे, यानी दोस्ती नसीब नहीं हुई तो फॉलो करने लगे. अब रायपुर में एक पत्रकार युवती ने फेसबुक पर ही बाकी पत्रकारों के मजे लेने शुरू कर दिए हैं कि आप भी निशा जिंदल के दोस्त थे, फॉलोवर थे...!
पुलिस ने भी उसे पकडऩे के बाद कुछ पिटाई के बाद उसकी तस्वीर उसी के फेसबुक पेज पर लगवाई है कि मैं ही निशा जिंदल हूँ. उसके फेसबुक पेज पर बहुत से फैंस ने बड़ी-बड़ी तारीफें पोस्ट की थीं, और अब लोग सदमे में हैं कि फेसबुक मैसेंजर की राज की बातें सामने आएंगी तो क्या होगा. फिलहाल एक बात सही लग रही है, एक लतीफा अधूरा चल रहा है कि मासूम बीवी, और भूतों का अस्तित्व नहीं होता. इसे सुधारकर लिखना चाहिए- मासूम बीवी, भूत, और वफादार पति, इनका अस्तित्व नहीं होता.
बड़े-बड़े अफसर, बड़े-बड़े पत्रकार निशा जिंदल नाम और चेहरे के पीछे इस भूत के प्रशंसक थे ) फिर अभी इसके बाकी फज़ऱ्ी फेसबुक अकाउंट तो सामने आना बाकी ही है।
अंत भला तो सब भला
कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे एम्स के डॉक्टर्स अपना क्वारंटाइन पीरियड एकबार फिर से होटल पिकॉडली में ही बिताएंगे। पूरे विवाद का पटाक्षेप हो गया है। दरअसल शासन, प्रशासन के निर्देश और अलग-अलग फैसलों से स्थिति बिगड़ गई। इसकी शुरुआत उस हिदायत से हुई कि जिसमें कहा गया कि क्वारंटाइन पीरियड में संक्रमण की आशंका रहती है, इसलिए होटल के सेंट्रलाइज्ड एसी को बंद करा दिया गया। इसी तरह डॉक्टरों के डाइट से लेकर पीने के पानी के बारे में निर्देश दिए गए थे। होटल प्रबंधन के लिए नियमों का पालन करना जरुरी था। होटल के लोगों ने मामले को जैसे-तैसे संभाला और व्यवस्था को और दुरुस्त किया। इस बीच प्रशासन को कम रेट पर नई होटल मिल गई, तो उऩके अधिकारियों ने फरमान जारी कर दिया कि डॉक्टर्स को शिफ्ट किया जाए। इस बात ने आग में घी का काम किया और पूरा ठीकरा होटल प्रबंधन पर फूट गया। बात मीडिया के पास पूरे मिर्च मसाले के साथ पहुंची और अखबारों में बड़ी हेडलाइन के साथ खबर तन गई। टीवी चैनल्स में भी बिग ब्रेकिंग फायर हो गए। दूसरे दिन प्रशासन को भी समझ नहीं आया कि आखिर हो क्या गया ? वे तो इस धोखे में थे कि उनको वाहवाही मिलेगी क्योंकि वे जनता का पैसा बचा रहे हैं। दरअसल, प्रशासन को अंदाजा ही नहीं था कि तवा ज्यादा गर्म है और रोटी जल भी सकती है। स्वाभाविक है उन्हें तो रोटी के जलने के बाद मामला समझ आया। बात सरकार के प्रमुख लोगों तक पहुंची और पूछताछ हुई तब पूरी पिक्चर साफ हुई कि मामला कुछ था ही नहीं। केवल बैक टू बैक घटनाक्रम ने पूरा रायता फैलाया। इतना सब कुछ होने के बाद भी डॉक्टर्स और प्रशासन दोनों की पहली पसंद यही होटल है, लेकिन कन्फ्यूजन की वजह से मामले ने अलग रुप ले लिया था। यही वजह है कि उसका फिर से उपयोग करने का फैसला लिया गया है। खैर, कहते हैं ना कि अंत भला तो सब भला।
बड़ों ने झाड़ा पल्ला, फंस गए नेताजी
छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन के कारण शराब की तस्करी के मामले लगातार सुनाई दे रहे हैं। अभी जब यह लाइन लिखी जा रही है, राजनांदगाव से 10 लाख की शराब पकड़ी जाने की खबर है. राजधानी रायपुर में पिछले दिनों प्रेस का स्टिकर लगी गाड़ी से शराब की तस्करी का मामला सामने आया। इसी तरह मुंगेली में सत्ताधारी कांग्रेस का एक नेता शराब के गोरखधंधे में लिप्त पाया गया, हालांकि उसके खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, और इसकी आंच राजधानी तक पहुंचते-पहुंचते रह गई। चर्चा है कि पकड़े गए नेता ने प्रदेश के सबसे बड़े अधिकारी से संबंध का हवाला देकर धौंस जमाने की कोशिश भी की थी। सरकार के करीबियों और बड़े लोगों से भी संपर्क साधने की खूब चर्चा है। फिर भी वह बच नहीं पाया और पुलिस ने उसकी तमाम एप्रोच की अनदेखी कर कड़ी कार्रवाई की। इस पूरे घटनाक्रम से ये साबित नहीं होता कि सूबे की पुलिस निष्पक्ष और बिना दबाव के काम कर रही है। चर्चा तो यह कि उस पर कई नामी गिरामी लोगों का हाथ था, यही वजह है कि वह बेधड़क इस काम में लिप्त था। जैसा कि अक्सर ऐसे मामले में देखा गया कि बदनामी के डर से बड़े-बड़े साथ छोड़ देते हैं। इस मामले में भी वही हुआ और सत्ताधारी दल के इस नेता की नेतागिरी शुरु होने से पहले ही चौपट हो गई। राजनीति में धरना प्रदर्शन और आंदोलनों के कारण जेल जाने को तो अच्छा माना जाता है, लेकिन सत्ता की आड़ में गोरखधंधा करने वालों की करतूत सार्वजनिक हो जाए, तो जनता के बीच संदेश अच्छा नहीं जाता। इसलिए बड़े से बड़े लोग पल्ला झाडऩे में जरा भी देर नहीं करते। तभी तो कहा जाता है कि दोस्ती बराबर वालों से ठीक होती है। बड़े-बड़ों से ना दोस्ती सही और न ही दुश्मनी। दोनों स्थिति में ही फंसना छोटे को ही पड़ता है। मुसीबत के वक़्त बराबरी के काम आ जाते हैं, छोटे काम आ जाते हैं, लेकिन बड़े? भूल जाओ. ([email protected])
राज पर्दाफाश
कोरोना प्रकोप रोकने के लिए लॉक डाउन का सख्ती से पालन हो रहा है। लोग भरपूर सहयोग भी कर रहे हैं। मगर एक-दो कॉलोनियों में शराब-शबाब के शौकीन लोग मौका पाकर बाहर चले जा रहे हैं, जिससे यहां के पदाधिकारी काफी परेशान हैं। उन्हें नियंत्रित करने में काफी दिक्कत हो रही है। ऐसी ही एक बड़ी कॉलोनी में एक कारोबारी की हरकत से नाराज लोगों को पुलिस की मदद भी मांगनी पड़ी। हुआ यूं कि कारोबारी सुरक्षा गार्ड को धमकाकर कार लेकर अक्सर बाहर निकल जाता था। कारोबारी के चाल चलन पर पहले से ही कॉलोनी के पदाधिकारियों को शक था।
दो-तीन दिन पहले जब वापस लौटा, तो पदाधिकारियों ने कारोबारी की कार रूकवाई और तलाशी ली। उन्होंने जैसे ही डिक्की खुलवाया, तो वे हक्का-बक्का रह गए। डिक्की में एक महिला थी। इसके बाद कारोबारी और पदाधिकारियों के बीच वाद विवाद बढ़ गया। कारोबारी का तर्क था कि बाहर से किसी के आने पर रोक लगा दी गई है। ऐसे में अपने घरेलू काम के लिए महिला को छिपाकर लाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। बात बढ़कर पुलिस तक पहुंच गई। पुलिस कॉलोनी में पहुंची और फिर कारोबारी को चेताया। भविष्य में गलती दोबारा न करने की चेतावनी देकर पुलिस ने बिना किसी कार्रवाई के छोड़ भी दिया।
संत स्वभाव का राज...
वैसे तो लॉक डाउन के चलते शराब दूकानें बंद है। इससे शौकीन परेशान भी हैं। वजह यह है कि उन्हें अपना शौक पूरा करने के लिए तीन-चार गुना अधिक खर्च करना पड़ रहा है। शराब दूकानें बंद होने से भांग की खपत बड़े पैमाने पर हो रही है। शराब की तुलना में भांग थोड़ा आसानी से उपलब्ध हो जाता है और सस्ता भी है। लेकिन शराब के असर से भांग का असर एकदम अलग होता है. बात-बात पर बौखलाने वाले लोग अब अगर एकदम संत स्वभाव के दिखने लगें तो यह भांग का असर भी हो सकता है।
सुनते हैं कि कुछ दिन पहले तक एक प्रभावशाली नेता तो खुद अपने करीबियों को मुफ्त में शराब दे रहे थे। मगर लॉक डाउन के बीच नेताजी के बंगले में धीरे-धीरे भीड़ बढऩे लगी, तो उन्होंने इसे बंद कर दिया। दूकानें बंद होने से पान मसाले और बीड़ी सिगरेट के शौकीन भी काफी परेशान हैं। कई लोग जिनके पुलिस कर्मी मित्र हैं, उनकी मदद से जरूरत पूरी हो जा रही है।
अधिक सहूलियत दिक्कत का सामान
केन्द्र सरकार ने एडवाइजरी जारी कर सेंट्रल एसी-कूलिंग सिस्टम का उपयोग नहीं करने की सलाह दी है, क्योंकि इससे कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसको लेकर दिशा निर्देश भी जारी किए हैं। इससे मंत्रालय में काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। तेज गर्मी में भी वे एसी का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं और पसीने से तरबतर हो रहे हैं। कुछ लोग इसके लिए पिछली सरकार को कोस रहे हैं।
ऐसे ही एक जानकार ने खुलासा किया कि जब मंत्रालय बिल्डिंग का निर्माण हो रहा था तब सेंट्रल एसी लगाने की कोई योजना नहीं थी। उस समय गणेश राम भगत मंत्री थे। बिल्डिंग के निर्माण का काम काफी आगे बढ़ गया और रमन सरकार के दूसरे कार्यकाल में आवास पर्यावरण विभाग का जिम्मा राजेश मूणत को सौंपा गया। उन्होंने अफसरों और हॉल में एसी लगाने के बजाए पूरी बिल्डिंग को ही एसी (वातानुकूलित) करने के लिए निर्देश दे दिए। इससे बिल्डिंग की लागत तो बढ़ गई अब जब कोरोना संकट पैदा हो गया है, तो यह दिक्कत का सामान भी बन गया है। ([email protected])
दाएं हाथ को पता नहीं चलता कि...
जान जोखिम में डालकर कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे एम्स के डॉक्टरों-नर्सिंग स्टॉफ के साथ बदसलूकी को लेकर आईएमए में गुस्सा है। होटल पिकाडिली में क्वारंटाइन के दौरान रखे गए डॉक्टरों से रात में होटल बदलने कह दिया गया। होटल का भुगतान नगर निगम के मत्थे डाल दिया गया था, उसने हाथ खड़े कर दिए कि इतने महंगे होटल का खर्च वह नहीं उठा सकता. दिलचस्प बात यह है कि खुद स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने अपनी तरफ से एम्स स्टॉफ के लिए क्वारंटाइन के लिए होटल की व्यवस्था की थी। लेकिन मुनादी तो हो गयी थी, उसका भुगतान कौन सा विभाग करेगा यह तय नहीं था. महंगे होटल का खर्च वहन करने में सरकारी अमला रास्ता निकालता रहा।
इस महंगे होटल को एम्स के डॉक्टर्स और स्टॉफ के लिए क्वारंटाइन सेंटर बनाने का फैसला लिया गया था चूंकि वह एम्स के एकदम पास था। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने प्रस्ताव दिया था कि खाने पीने और रुकने से लेकर तमाम इंतजाम के लिए होटल को साढ़े तीन हजार प्रति रूम के हिसाब से भुगतान किया जाएगा। इस पर होटल प्रबंधन ने भी सहमति जता दी थी। प्रशासन और होटल प्रबंधन के बीच हुए इस समझौते के अनुसार डॉक्टर्स और स्टॉफ को ठहरने यहां भेजा गया। अगले दिन बुधवार को जिला प्रशासन के अधिकारियों ने होटल प्रबंधन को सूचित किया कि मेडिकल स्टॉफ को नजदीक के दूसरे होटल और गेस्ट हाउस में शिफ्ट किया जा रहा है। इसके पीछे प्रशासन की दलील थी कि उन्हें कम दर पर कमरे उपलब्ध हो गए हैं, लिहाजा उन्हें वहां भेजा रहा है। डॉक्टरों को लाने ले जाने का पूरा इंतजाम भी प्रशासन और एम्स प्रबंधन की ओर से किया गया।
पिकाडिली के अलावा दो और होटलों में चिकित्सकों-नर्सिंग स्टॉफ के क्वारंटाइन की व्यवस्था की गई। मगर यहां भी चिकित्सा स्टाफ का अनुभव अच्छा नहीं रहा। उनके लिए होटल के खाने के बजाए टिफिन की व्यवस्था की गई है। यह कहा गया कि होटल का खाना महंगा पड़ता है। यही नहीं, पहले दिन तो बोतल बंद पानी दिया गया, बाद में होटल वालों ने बता दिया कि अब सादे पानी से ही काम चलाना पड़ेगा।
उद्योगपति रतन टाटा ने देश के सबसे महंगे, अपने मुंबई के ताज होटल को कोरोना की जंग लड़ रहे डॉक्टर-नर्सिंग स्टाफ को समर्पित कर दिया है ताकि उन्हें कोरोना जंग में किसी तरह की सुविधाओं में कमी महसूस न हो।
मगर छत्तीसगढ़ में सरकार चिकित्सा स्टॉफ को सुविधाएं उपलब्ध कराना तो दूर, उनका सम्मान भी नहीं रख पाई।दरअसल सरकार के दाएं हाथ को पता नहीं चलता कि बाएं हाथ ने किस हुक्म पर दस्तखत किये हैं। सरकार के भीतर की यह नौबत बार-बार इलाज सी जुड़े फैसलों को बदलवा रही है। एम्स सलाहकार समिति के सदस्य सांसद सुनील सोनी इस पूरे घटनाक्रम को लेकर स्वास्थ्य मंत्री और विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि सिर्फ एम्स के भरोसे ही कोरोना जांच और इलाज हो रहा है। जबकि राज्य सरकार का एक भी सरकारी अस्पताल जांच और इलाज के लायक तैयार नहीं है। सोनी ने यह भी कहा कि सिंहदेव जो भी कहते हैं, उसका पालन भी नहीं हो पाता है। बहरहाल, एम्स के नर्सिंग स्टाफ के हौसले की तारीफ करनी होगी, जो कि इतना सबकुछ होते हुए कोरोना के खिलाफ तन-मन से जुटा है, और किसी तरह की बयानबाजी से परहेज कर रहा है ।
पिकॉडली होटल से डॉक्टरों को निकाले जाने वाली खबरों पर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि पूरी बात को जानने समझने में कहीं न कहीं चूक हुई है। डॉक्टरों के लिए जिला और नगरीय प्रशासन के माध्यम से पिकॉडली होटल को लिया गया था। इसके लिए रेट भी तय हुआ था, जिसमें खाना वगैरह सब कुछ था। कुछ दिन डॉक्टर वहां रहे भी। अच्छे से रहे, कहीं कोई दिक्कत नहीं हुई। बाद में कम रेट की एक व्यवस्था हम लोगों को मिली तो विभाग ने उस विकल्प को लिया। स्वेच्छा से विभाग ने डॉक्टरों को शिफ्ट किया, लेकिन पता नहीं ये बात कैसी आई कि होटल प्रबंधन ने ऐसा कुछ किया। उन्होंने कहा कि होटल ने तो हमारा बहुत अच्छा ध्यान रखा। डॉक्टर भी वहां की व्यवस्था से पूरी तरह संतुष्ट भी थे। केवल पब्लिक के पैसों के खर्च को देखते हुए हम लोगों ने वहां जाने का निर्णय लिया, जहां कम पैसे में कमरे मिल रहे थे।
स्टिंग और बहाली
कोरोना के खिलाफ जंग में पुलिस कर्मियों की भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। मगर कुछ घटनाएं ऐसी हो जा रही है जिससे खाकी पर दाग भी दिख रहा है। ऐसे ही एक प्रकरण में पिछले दिनों एक आरक्षक को सस्पेंड भी किया गया था। सुनते हैं कि बाहरी इलाके के थाने में पदस्थ आरक्षक एक प्रकरण को निपटाने के लिए रिश्वत मांगते स्टिंग ऑपरेशन का शिकार हो गया।
मीडिया में मामला आया, तो एसएसपी ने आरक्षक के खिलाफ कार्रवाई में देर नहीं लगाई। मामला यही खत्म नहीं हुआ। आरक्षक ने अपनी बहाली के लिए भरपूर कोशिश की और उनसे भी संपर्क किया जिसने स्टिंग ऑपरेशन किया था। स्टिंग ऑपरेटर ने बहाली कराने के लिए आरक्षक से ही एक लाख रूपए मांग लिए। अब गेंद आरक्षक के पाले में थी।
आरक्षक ने भी चतुराई दिखाते हुए बातचीत कर ऑडियो तैयार कर लिया। फिर उसने खुद को पाक साफ बताते हुए प्रमाण के तौर पर ऑडियो टेप आला अफसरों के समक्ष पेश भी किया। परन्तु किसी ने इसमें रूचि नहीं दिखाई। इसके बाद आरक्षक उस राजनेता के पास पहुंचा, जिसकी एसएसपी सबसे ज्यादा सुनते हैं। आरक्षक ने नेताजी को पूरी व्यथा सुनाई। साथ ही प्रमाण के तौर पर ऑडियो टेप भी सुनाई। फिर क्या था नेताजी ने एसएसपी को फोन कर दिया और आरक्षक की बहाली हो गई।
...जब रावण और केंवट को देखने भीड़ उमड़ी
दुरदर्शन पर धारावाहिक रामायण चल रहा है। तीन दशक बाद इस सीरियल की लोकप्रियता में कमी नहीं आई है। लोगों के बीच खूब पसंद किया जा रहा है। जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अशोक बजाज ने रामायण के कलाकारों की बरसों पुरानी तस्वीर साझा की है। उस समय रावण की भूमिका निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी और निषाद राज की भूमिका निभाने वाले कलाकार, दोनों 1991-92 में साथ साथ छत्तीसगढ़ आए थे। वक्त निकाल कर दोनों जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अशोक बजाज के गृह गांव खोल्हा (अभनपुर) पहुंचे जहां मड़ई मेले का आयोजन चल रहा था। इस दौरान लोगों ने उनका खूब स्वागत किया।
मड़ई मेले के मंच में उन्होंने अपने चिरपरिचित अंदाज में रामायण धारावाहिक के डायलॉग भी सुनाये थे। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण कल्चर से दोनों अति प्रभावित हुए थे। मंच में उन दोनों के अलावा जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अशोक बजाज एवं वर्तमान सांसद सुनील सोनी भी मौजूद थे।
जन्नत की हकीकत
बहुत से अखबारों और पत्रिकाओं में इक्कीसवीं सदी में भी भविष्यफल छपते हैं, आखिर क्यों ना छपें, लोग आज भी कुंडली दिखाकर शादियां करते हैं, महूरत निकालकर घर के बाहर कदम रखते हैं, ऐसे में कुछ चर्चित ज्योतिषी मुफ्त में अपने नाम सहित रोज भविष्यफल छपने को देते है, एक बड़े ज्योतिषी ने तो इस अख़बार को उसके बदले में हर बरस अपना कामयाब पंचांग भी मुफ्त देने का प्रस्ताव रखा था. खैर, आज इसकी चर्चा की जरूरत इसलिए लगी कि छत्तीसगढ़ के एक होनहार कार्टूनिस्ट ने फेसबुक पर एक अख़बार में छापा अपना भविष्यफल दिखाया जिसमें आज विदेशयात्रा का योग दिख रहा है।
इसे पढ़कर जब भविष्यफल देखा तो और भी मजेदार बातें निकलीं. उसमें छपी कुछ बातें इस प्रकार हैं-
-पश्चिम दिशा में ना जाएँ, जरूरी हो तो काली तिलभात से बनी वस्तु खाकर जाएँ. (मतलब यह कि तिलभात से पुलिस लाठी की मार कम लगेगी? )
- यात्रा का लुत्फ उठाएंगे ! कामकाज में अच्छा मुनाफा होगा ! आज छात्र पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करेंगे !
-आज पूरा दिन तरोताजा रहेंगे, नौकरी में सफलता मिलेगी, व्यापार में धन लाभ होगा, धन सही कार्यों पर खर्च होगा, कार्य में अच्छी सफलता मिलेगी.
- नौकरी में अच्छा धनलाभ होगा, प्रमोशन के संकेत हैं, व्यापारियों के लिए लाभ की स्थिति है, नौकरी में मान-प्रतिष्ठा, सफलता, प्रमोशन...
-किसी शादी-विवाह या मांगलिक कार्य में शिरकत करेंगे, कामकाज में अच्छा धनलाभ होगा...
-छात्रों को प्रतियोगिता में सफलता , कारोबार में वृद्धि...
-आज विदेश यात्रा का आनंद लेंगे, कामकाज के सम्बन्ध में दूर की यात्रायें संभव, पालिसी, शेयर मार्किट में धन इन्वेस्ट कर सकते हैं...
-मांगलिक कार्य में सहभागी होंगे, कार्य में सफलता,
-कामकाज में लाभदायक स्थिति, मांगलिक कार्य में व्यस्त रहेंगे,
(लेकिन इसके बाद की बात सही भी हो सकती है !)
-आज दांपत्य जीवन में मधुरता रहेगी, परिवार या प्रेमीजनों के साथ अच्छा समय गुजरेगा !
दरअसल भविष्यफल लोगों की जिंदगी में प्लेसिबो इफ़ेक्ट रखता है. जब किसी मरीज को दवा की जरूरत न हो, लेकिन उसे दवा लेने की जिद रहे, तो उसे बिना दवा वाली कैप्सूल दी जाती है, जिसे प्लेसिबो कहते हैं. भविष्यवाणी उसी किस्म की होती है.
यह अखबारनवीस बहुत पहले एक अखबार में काम करता था. वहां दूर के शहर के एक ज्योतिषाचार्य डाक से लिखा हुआ भविष्यफल भेजते थे. कभी डाक की गड़बड़ी से समय पर भविष्यफल ना पहुंचे तो कंपोज़ीटर ही एक राशि का भविष्य दूसरे में जोड़कर पुराने को ताजा बना देता था.
सबको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल के बहलाने को ग़ालिब ये खय़ाल अच्छा है...
कमाऊ विभाग के अफसरों की बेचैनी
किसी भी राज्य में आबकारी और रजिस्ट्री विभाग को कमाऊ पूत कहा जाता है। इन दोनों विभागों से राज्य को अच्छा खासा राजस्व मिलता है, इसमें कोई दो राय नहीं है। इन दोनों विभागों के बारे में एक और सार्वजनिक सत्य यह भी है कि यहां काम करने वाले कर्मचारी-अधिकारी भी मोटा माल अंदर करते हैं। लॉकडाउन के समय जब सारे सरकारी दफ्तरों में तालाबंदी है और वर्क फ्रॉम होम लागू है, फिर भी इन दोनों विभाग का महकमा सबसे पहले कामकाज शुरू करने के लिए बेचैन है। ये बेचैनी इस बात का भी संकेत है कि इन विभागों के कर्मचारियों-अधिकारियों की ऊपर की आमदनी बंद हो गई है। यही कारण है कि वे कामकाज शुरु करने के लिए उत्साहित दिखाई पड़ते हैं, जबकि सरकार की चिंता है कि कोरोना के संकट में इन दोनों विभागों में काम शुरू होते ही सोशल डिस्टेंसिंग पूरी तरह से भंग हो जाएगी, लिहाजा वे उचित समय का इंतजार कर रहे हैं। दिक्कत यह है कि इन दोनों विभागों के अफसर सरकार की मंशा को समझकर भी नासमझ बने हुए हैं और आदेश से पहले ही अपनी तैयारियां शुरु कर देते हैं, ताकि बिना देरी के तुरंत सब शुरू हो जाए। तभी तो कहीं पर शराब दुकानों में सोशल डिस्टेंसिंग के लिए गोले लगाने की तो कहीं बेरिकेड्स लगाने की तस्वीरें वायरल हो रही हैं, तो कहीं कार्यालय को सेनिटाइज करने का काम शुरू कर दिया जाता है। सरकार से ज्यादा अफसरों को अपने राजस्व की चिंता ज्यादा सता रही है। इन उत्साही अफसरों के आदेश और कार्रवाई से सरकार की किरकिरी हो रही है, क्योंकि खाने पीने के शौकीन तो अपने घरों में नशामुक्ति केन्द्र जैसा निर्वासित जीवन जीना सीख रहे हैं, लेकिन विभाग के अफसरों को यह बात सहन नहीं हो रही है और वे हर दूसरे-तीसरे दिन ऐसा कुछ करते हैं, जिससे शौकीनों को उम्मीद की किरण नजर आने लगती है।
कुलपति महोदय को घेरने दांवपेंच
पत्रकारिता विवि के कुलपति बल्देव भाई शर्मा के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के फेसबुक पेज पर लाइव आने का विवाद गहराने लगा है। छात्र कांग्रेसियों ने सरकार से इसकी शिकायत की है। मीडिया में खबर आने के बाद कुलपति महोदय ने सफाई दी है कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि किस प्लेटफार्म का उपयोग किया गया है, बल्कि इसमें समाज के लिए दिया गया संदेश महत्वपूर्ण है। इस सफाई के बाद कुलपति जी को घेरने के लिए छात्र कांग्रेसियों ने रणनीति बनाई है। अब उन्हें एनएसयूआई के फेसबुक पेज पर लाइव के लिए इनवाइट करने की तैयारी है। संगठन के पदाधिकारियों को पूरा भरोसा है कि कुलपतिजी संघ की विचारधारा से प्रभावित हैं। ऐसे में वे कांग्रेस के छात्र संगठन के फेसबुक पर लाइव के लिए राजी नहीं होंगे। अगर ऐसा हुआ तो वे साबित करने में सफल हो जाएंगे कि विवि में खास विचारधारा को प्रमोट किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि कुलपति महोदय एनएसयूआई के पेज पर लाइव के लिए राजी हो गए तब तो दांव उलटा भी पड़ जाएगा। खैर, जो भी हो, लेकिन इस एपिसोड में किसका दांव सही होगा और किसका उलटा, यह देखना दिलचस्प होगा। ([email protected])
एक तरफ देश भर में छाये कोरोना-संकट की वजह से पुलिस को वैसे भी रात-दिन काम करना पड़ रहा है, उसके ऊपर कहीं लोग महुआ से शराब बनाते पकड़ा रहे हैं, कहीं जुआ खेलते पकड़ा रहे हैं . भिलाई में कल एक उठाईगिरी हो गई और एक कारोबारी की बड़ी रकम चली गयी. पुलिस के मत्थे शहर कस्बों में लोगों की आवा-जाही को रोकना तो है ही, कोरबा जिले के कटघोरा में पुलिस कोरोना का ख़तरा उठाकर भी मरीजों को एम्बुलेंस में बिठाने, जांच करवाने के काम में लगी हुई है.
इस बीच पुलिस का काम बढ़ाने में किसी को जऱा भी शर्म नहीं आ रही है. अभी राजधानी रायपुर से लगे अभनपुर थाने की एक खबर है कि किसी के घर 12 तारीख की रात 2 बजे बकरे के बाड़े में आवाज आई. इस पर सुनने वाले ने बाड़े के मालिक को फ़ोन किया, वह अपने भाई के साथ पहुंचा, तो दो चोर एक बकरे को मोटरसाइकिल पर लेकर भाग गए, लेकिन बाकी 3 चोर एक और मोटरसाइकिल छोड़कर भागे. मतलब यह कि दो मोटरसाइकिल्स, और पांच चोर ! 5 हज़ार का बकरा लेकर भागे, और एक मोटरसाइकिल छोड़ गए ! छूटी मोटरसाइकिल के नंबर से पुलिस ने आज के आज नया रायपुर और आरंग थाना इलाके के पांच चोरों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. बकरा भी एक के कब्जे से बरामद करके मालिक को वापिस दिलवाया गया.
अब सवाल यह है कि दो मोटरसाइकिल्स के पांच मालिकों को 5 हज़ार के बकरे के लिए पुलिस के मत्थे इतना काम लादते शर्म नहीं आयी, जो कि वैसे भी बोझ से लदी हुई चल रही है?
लेकिन लोगों का कहना है कि आने वाले दिन इस किस्म के छोटे-छोटे जुर्म से भरे हुए रहेंगे. लोग बेरोजगार होंगे, और खाली जेब भी. बैठे-ठाले वे कई किस्म के छोटे जुर्म करेंगे. मतलब यह कि कोरोना जाने के बाद भी पुलिस के लिए बोझ छोड़कर जायेगा?
बैगा और परिवार क्वारंटाइन में
कटघोरा में दो दर्जन कोरोना मरीज मिलने से हड़कंप मचा हुआ है। मरीजों का इलाज रायपुर के एम्स में हो रहा है और तकरीबन सभी की हालत बेहतर है। तब्लीगी जमात से ताल्लुक रखने वाले ये मरीज काफी दहशत में भी थे। बिरादरी के एक युवक के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद उनसे संपर्क में आए लोग इलाज के बजाए झाड़-फूंक कराने में लग गए।
सुनते हैं कि क्वारंटाइन में रहने के दौरान इनमें से कुछ लोग पड़ोस के गांव के एक बैगा पास भी गए। बैगा ने झाड़-फूंक कर ठीक करने का दावा किया। ये लोग संतुष्ट होकर लौट आए। झाड़-फूंक के बाद इनका भी सैंपल लिया गया। करीब आधा दर्जन लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। अब हाल यह है कि बैगा और उसके परिवार के लोगों को क्वारंटाइन में रखा गया है। हर बीमारी का इलाज करने का दावा करने वाला खुद दहशत में है।
हनुमान वाला मास्क
कोरोना युग में सोशल मीडिया भी मास्क वाली तस्वीरों से भरा पड़ा है। हालांकि जागरुकता के लिए सेलिब्रिटिज और नेता ऐसा कर रहे हैं, लेकिन फॉलोअर्स कैसे पीछे रह सकते हैं। यही वजह है कि फेसबुक-ट्वीटर की प्रोफाइल पिक्चर से लेकर वाट्सएप के स्टेटस में भी मास्क वाली तस्वीरें छाई हुई हैं । टीवी चैनल के रिपोर्टर और पत्रकार भी मास्क पहनकर लाइव कर रहे हैं। दूसरी तरफ इन दिनों टीवी पर रामायण सीरियल सुबह शाम एक एक घंटे दिखाया जा रहा है। घर-घर में लोग रामायण देख रहे हैं। स्वाभाविक है बच्चों की भी नजर पूरे समय पर टीवी पर टिकी है। रामायण में इस समय हनुमान से लेकर पूरी वानर सेना मैदान पर है। वानर का किरदार निभाने वाले सभी मुंह और नाक में मास्कनुमा मुखौटा लगाए रहते हैं। ऐसे किरदार बच्चों के बीच खासे लोकप्रिय भी होते हैं। इसके पहले जब रामायण का प्रसारण हुआ तो उस दौर के लोगों को याद होगा कि उस समय बच्चों के खेलने के लिए तीर कमान और वानरों के मुखौटों की बाढ़ आ गई थी। तकरीबन हर बच्चों के हाथों में रामायण से जुड़ा ही खिलौना दिखाई देता था। ये उस दौर की बात थी, लेकिन अब समय बदल गया। बच्चे भी हाईटेक हो गए हैं। लैपटॉप-मोबाइल और इलेक्ट्रानिक्स गैजेट्स के जमाने में वे ऐसे खिलौनों से खेलना तो दूर उसके बारे में ठीक से जानते तक नहीं, लेकिन कोरोना युग में रामायण के प्रसारण से उसके पात्रों के बारे में बच्चे वाकिफ हुए हैं। चूंकि बच्चे सोशल मीडिया और कोरोना युग के हैं तो उनकी बातें और फरमाइश भी अलग ही होगी। वे सवाल करते हैं कि क्या रामायण काल में भी कोई कोरोना जैसी बीमारी फैली थी, जो सभी वानर मास्क लगाए रहते हैं। इसी तरह उनकी फरमाइश की बात करें, तो उसमें रामायण इफेक्ट दिखाई देता है। उन्हें मास्क भी कपड़ों वाला या वैसा पसंद नहीं है, जो आमतौर पर उपलब्ध है। वे तो सेलिब्रेटिस वाला वैसे ही मास्क की डिमांड कर रहे हैं, जिसमें नाक-मुंह ढंका होता है जिसे वे हनुमान मास्क कहने लगे हैं। खैर, फरमाइश और सोच भी समय के साथ बदलती हैं, इसका अनुभव भी लोगों को हो रहा है। यह एक अलग बात है कि कोरोना संकट के इस दौर में बच्चों के तरह तरह के सवालों और ऐसे कनेक्शन जोडऩे से कई माता पिता अपने बाल तो जरुर नोंच रहे होंगे।
कोरोना के हॉटस्पॉट कटघोरा में सख्ती के लिए छत्तीसगढ़ के दबंग और तेजतर्रार आईपीएस उदय किरण की खासतौर पर तैनाती की गई है। उदय किरण जहां भी पोस्टेड रहे हैं, वे बीजेपी-कांग्रेस नेताओं के साथ-साथ अधिकारियों को खटकते रहे हैं। विवादों से उनका गहरा नाता रहा है। बिलासपुर में बीजेपी के सांसद और मेयर को उन्होंने सीएम के कार्यक्रम में जाने नहीं दिया था, तो वहां पत्रकारों के साथ बदसलूकी के कारण भी वे चर्चा में रहे। नेताओं की बेल्ट से पिटाई और बंदूक तानने के कारण तो हर कोई उनसे खौफ खाने लगा था। महासमुंद पहुंचे तो तत्कालीन विधायक की पिटाई के बाद पूरे प्रदेश में उनकी दबंगई की चर्चा होने लगी थी। उनके खिलाफ डीजीपी, एचएम, सीएम से शिकायत की गई। कुछ लोगों ने तो त्राहिमाम-त्राहिमाम करते हुए हाईकोर्ट में भी याचिका लगाई थी। खैर, अब यही अफसर कटघोरा के लिए ब्रम्हास्त्र साबित हो रहे हैं। कटघोरा के पुरानी बस्ती इलाके में कोरोना का संक्रमण इस कदर फैला हुआ कि सरकार की नींद हराम है। वहां सामुदायिक संक्रमण के खतरे को भांपते हुए पूरे इलाके को सील कर दिया गया है और कर्फ्यू जैसा माहौल है। स्थिति यह है कि पुलिस वाले भी उस इलाके में बमुश्किल जा पाते हैं। पूरे इलाके की निगरानी ड्रोम कैमरे से की जा रही है। ऐसे में लोगों को घरों में कैद रखना बड़ी चुनौती है। लिहाजा, सरकार को ऐसे अफसर की तलाश थी, जिसके नाम का ही लोगों में खौफ हो। ऐसे नाजुक समय में उदय किरण सरकार के क्राइटेरिया में बिल्कुल फिट बैठे हैं, क्योंकि उन्हें डंडा, बेल्ट और बंदूक तानने में खूब महारत हासिल है। खास बात यह भी है कि जिन वीआईपी लोगों को उनका प्रसाद मिला है, वे भी उनको वहां जिम्मेदारी देने की तारीफ कर रहे हैं। ये भी वक्त वक्त की बात है कि जो कभी आंखों की किरकिरी थे, वो आज आंखों का तारा हो गए हैं।
लालबत्ती के बेचारे
अचानक उभरी कोरोना महामारी के कारण सत्ताधारी दल कांग्रेस के नेता सर्वाधिक हताश और परेशान हैं, क्योंकि यह वक्त उनके पुरस्कार का था। उम्मीद की जा रही थी कि निगम मंडलों की कुर्सियां बंटेगीं और वे पंद्रह बरस बाद सत्ता सुख प्राप्त करेंगे। दावेदार नेताओं ने कुर्सियों पर रुमाल बिछाना भी शुरु कर दिया था, लेकिन अब ऐसा लग रहा है जैसे उन्हीं रुमालों को वायरस ने जकड़ लिया है। बेचारे इन नेताओं के पास इस संक्रमण में मुक्ति के लिए भगवान से प्रार्थना के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। कुछ पदाधिकारी तो शुभ मुहूर्त देखकर पूजा पाठ करने की सलाह तक दे रहे हैं। आमतौर पर नेता पद पाने के लिए खुद पूजा पाठ और हवन करते हैं, लेकिन फिलहाल कोरोना को भगाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। लालबत्ती की चिंता में दुबले हुए जा रहे एक नेता ने दूसरे दावेदार से पूछा कि कोरोना संकट से निपटने के तरीके तो सरकार ढ़ूंढ़ लेगी, लेकिन हमारे अच्छे दिन लाने का कोई उपाय हो तो बताओ। दावेदारी वाले नेता ने ढांढ़स बांधते हुए कहा कि मेरी भी यही चिंता है और उसी के लिए यह उपाय किया जा रहा है। उनका कहना था कि ज्योतिष के अनुसार कोरोना ने राहू केतु की तरह लालबत्ती पर अपनी वक्र दृष्टि डाल दी है। ऐसे में पूजा पाठ करके करोना को भगाने में सफल हो गए, तो लालबत्ती पाने में भी सफल हो जाएंगे। मानो नेताजी का आशय यह था कि जहान है तभी जान है।
मकान मालिक को पद
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अपनी कार्यकारिणी गठित करने में सफल हो गए हैं। हालांकि इसमें उन्हें एक साल से ज्यादा का समय लग गया। एक दिन पहले प्रदेश कांग्रेस की संचार विभाग और प्रवक्ताओं की सूची भी जारी हो गई। इसमें एक्का-दुक्का को छोड़कर करीब-करीब वही पुराने चेहरे हैं, जो पिछली कार्यकारिणी में थे, हालांकि इस सूची में जगह पाने के लिए पार्टी नेताओं की ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि बरसों से कई नेता वहीं के वहीं हैं। उन्हें लगता है कि उनका कद बढऩा चाहिए। उनके बॉडी लैग्वेंज में भी वरिष्ठता के भाव दिखाई देते हैं। संभव है कि संगठन के बड़े नेता उनकी वरिष्ठता को भांप नहीं रहे हैं, या फिर भांपना नहीं चाहते। कुल मिलाकर ऐसे तथाकथित, या स्वघोषित वरिष्ठों के चेहरों पर पद पाने के बाद भी खुशी गायब है। दूसरी तरफ एक-दो नए नेता पदाधिकारी बनाए जाने से काफी खुश हैं, क्योंकि वे सत्ताधारी पार्टी के मीडिया विभाग में आ गए हैं। लेकिन कुछ कांग्रेसियों को उनकी खुशी सहन नहीं हुई, तो मीडिया के सामने पोल खोलना शुरू कर दिया। मीडिया को सूची का विश्लेषण करने के लिए बताया कि गया कि नई सूची में प्रवक्ता बनाए गए एक नेता कांग्रेस के एक बड़े पदाधिकारी के मकान मालिक हैं और एक अन्य दूसरी पार्टी से आने के बाद से लगातार इंतजाम अली की भूमिका निभा रहे थे। अब इन कांग्रेसियों को कौन समझाए कि ये तो पार्टी की पुरानी परंपरा है। पद पाने की बेसिक क्वालिटी है। इसको अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए। ([email protected])
छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति के रुप में बलदेव प्रसाद शर्मा की नियुक्ति से ही सरकार की भृकुटि तन गई थी और सरकार ने बिना देरी किए कुलपति की नियुक्ति से लेकर हटाने तक सारे अधिकार अपने पास रखने के लिए नियमों में संशोधन तक कर डाला, लेकिन इन सब से बेखबर कुलपति महोदय कोरोना युग में दिल्ली में क्वारंटाइन ( अपने घर पर छुट्टी मना रहे हैं) हो गए हैं। छात्र कांग्रेसियों ने इसकी शिकायत भी सरकार से की है, हालांकि अभी कोरोना संकट से निपटना बड़ी प्राथमिकता है, इस वजह से संभव है कि कुलपति से जवाब तलब नहीं हो पाया है। दूसरी तरफ सरकार की नाराजगी या ऐसे घटनाक्रम से कुलपति महोदय पूरी तरह बेपरवाह दिख रहे हैं। उन्होंने 12 अप्रैल को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद वर्धा के फेसबुक पर व्याख्यान दिया। जिसमें उन्होंने कोरोना युग के शब्दों को सनातन धर्म से जोड़ते हुए व्याख्या की। उनका कहना था कि क्वारंटाइन या आइसोलेशन दरअसल एकांतवास है, जो सनातन काल से चला आ रहा है। खैर, ये उनका दर्शन हो सकता है, लेकिन बड़ी बात यह है कि जब उनकी नियुक्ति के समय से ही उन पर संघ पृष्ठभूमि से जुड़े होने के आरोप लगते रहे। ऐसे में कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में उनकी नियुक्ति को सरकार अभी तक बर्दाश्त किए हुए है, यही भी एक बड़ी बात है। उसके बाद भी कुलपति महोदय संघ की विचारधारा वाले छात्र संगठन एबीवीपी के कार्यक्रम में शिरकत कर रहे हैं, तो वाकई ये बड़ी दिलेरी वाली बात है। विवि और इससे जुड़े लोग इसके दो तरह के मतलब निकाल रहे हैं। पहला यह कि कुलपति महोदय यहां रहना नहीं चाहते होंगे, इसलिए उन्हें सरकार की नाराजगी से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है, या फिर उन्हें सरकार से ऊपर का कोई संरक्षण मिला हुआ है। जिसकी वजह से उन्हें भरोसा होगा कि उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। इन बातों में कितनी सच्चाई है, ये बताना तो कठिन है, लेकिन लोगों के इन दोनों अनुमान में दम तो लगता है।
मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं ?
कांग्रेस नेता राजेश बिस्सा साफ सुथरी छवि के नेता माने जाते हैं। उन्होंने रमन सरकार के खिलाफ हर स्तर पर लड़ाई लड़ी। कांग्रेस की गुटीय राजनीति में वे वोरा-महंत खेमे से जुड़े हैं। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बिस्सा जैसे कई नेताओं को अहम दायित्व सौंपे जाने की चर्चा थी। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब जब वोराजी का संसदीय जीवन खत्म हो गया है। ऐसे में वे अपने समर्थकों के लिए आगे कुछ कर पाएंगे, इसकी उम्मीद बेहद कम है।
पार्टी की नई कार्यकारिणी में भी बिस्सा को जगह नहीं मिली है। उनके जैसे कई नेता भी पद से वंचित है। खैर, लॉकडाउन के बीच बिस्सा ने फेसबुक पर मिर्ची का चार बनाकर दिखाया है। कांग्रेस की सरकार डेढ़ साल हो गए हैं, ऐसे में संघर्षशील नेताओं को कुछ नहीं मिलने से उन्हें मिर्च लगना स्वाभाविक है। फिलहाल तो उनकी रेसीपी को काफी लाइक मिल रहे हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के भीतर ऐसे प्रतीकों में बात होती है या नहीं, यह पता नहीं है। ([email protected])
सोशल मीडिया कुम्भ के मेले जैसा होता है. इस पर हर किसी को अपनी मर्जी का कुछ ना कुछ करने की गुंजाईश मिलती है. अब कोरोना के बीच कुछ लोग बेबस लोगों की तकलीफदेह कहानियां पोस्ट कर रहे हैं, एक वीडियो इतना दर्दनाक है कि एक महिला बिहार की सड़कों पर छोटे से बच्चे को लेकर दौड़ रही है उसे एम्बुलेंस नहीं मिल रही, और दौड़ते हुए ही उसकी गोद में बच्चे/बच्ची की मौत हो जाती है. कुछ लोग हॉस्पिटल्स के डॉक्टर-नर्सों के वीडियो पोस्ट कर रहे हैं कि किस तरह वे बिना सही मास्क, पोशाक, और दस्तानों के रात-दिन कोरोना मरीजों से जूझ रहे हैं. मोर्चे पर ही मर जाने वाले डॉक्टरों के वीडियो भी पोस्ट हो रहे हैं. भूखे मजदूरों के भी कई वीडियो पोस्ट हो रहे हैं, कि किस तरह वे रस्ते में कई दिनों से फंसे हुए भूखे हैं. बेरोजगारों के वीडियो की तो कोई जगह ही नहीं है।
इन्हीं के बीच-बीच कई लतीफे पोस्ट हो रहे हैं, मजेदार कार्टून पोस्ट हो रहे हैं, गुलाबजामुन बनाकर उसकी तस्वीर पोस्ट हो रही है, और हिन्दुस्तानी महिलाओं के बीच इस देश में भी और पश्चिम में भी हो रहे साड़ी -चैलेंज की तस्वीरें पोस्ट हो रही है, किसी संपन्न विदेश से तो साड़ी चैलेंज का वीडियो भी आया है. कुछ लोग अपने कुत्तों की फोटो पोस्ट कर रहे हैं, तो कुछ ने चैलेंज किया है कि अपने किसी पर्यटन की फोटो पोस्ट करें।
अपने सोशल मीडिया पेज पर से गुजरते हुए इतनी जल्दी-जल्दी झटके लगते हैं, दिमाग भन्ना जाता है. भूख, और गुलाबजामुन, नर्स बिना मास्क के, और संपन्न महिला घर में बनारसी साडिय़ां बदल-बदलकर। बुजुर्गों की जुबान में कहें तो सरद-गरम हो जाने का खतरा लगता है दिमाग को।
सरकारी स्मगलिंग
खबर है कि कोरबा के बाद राजनांदगांव जिला कोरोना संक्रमण का नया केन्द्र हो सकता है। वैसे तो अभी तक राजनांदगांव में कोरोना के एक ही मरीज का पता चला है और वह भी ठीक हो चुका है। बावजूद इसके इस सीमावर्ती जिले को स्वास्थ्य अफसर कोरोना के मामले में काफी संवेदनशील मान रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार और स्थानीय प्रशासन कुछ नहीं कर रही है। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा से सटे इस जिले को पूरी तरह सील कर दिया गया है। कलेक्टर खुद इस पर निगरानी रखे हुए हैं और बाहर से आने वाले लोगों को यहां प्रवेश की अनुमति नहीं दे रहे हैं। इसके लिए उन्हें नेताओं का कोपभाजन भी बनना पड़ रहा है।
सुनते हैं कि कई प्रभावशाली लोगों ने महाराष्ट्र से अपने लोगों को राजनांदगांव लाने के लिए तोड़ निकाल लिया है और परिवहन विभाग के लोगों से सांठ-गांठ कर महाराष्ट्र से अपने लोगों को नांदगांव लाने में सफल रहे हैं। महाराष्ट्र में कोरोना बेकाबू हो रहा है और देश में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में ही आए हैं। ऐसे में बिना किसी जांच के बाहर से आए लोगों से राजनांदगांव में कोरोना संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कोरबा जिले के कटघोरा में सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज मिले हैं। दिलचस्प बात यह है कि जिस कोरोना संक्रमित युवक के जरिए कटघोरा में कोरोना फैला वह नागपुर से ही आया था। यानी महाराष्ट्र से आए इस युवक की लापरवाही से कटघोरा कोरोना का हॉट स्पाट बन गया। परिवहन विभाग में प्रतिनियुक्ति पर आए पुलिस अफसर इस खतरे को नजर अंदाज कर जिस तरह लोगों को राजनांदगांव से प्रदेश में दाखिल करवा रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में स्थिति और गंभीर हो सकती है।
अब मीडिया भी चौकीदार
कोरोना के इस युग में मीडिया की ड्यूटी भी चौबीस घंटे सातों दिन हो गई है। मीडिया के लोग रात-रात भर काम कर रहे हैं। कब कहां से क्या खबर मिल जाए, इसका कोई भरोसा नहीं रहता। कोरोना की नियमित बुलेटिन रात 8-9 बजे तक मिल जाती है, लेकिन उसके बाद नए मरीज या पॉजिटिव केस के अपडेट के लिए जूझना जैसी स्थिति रहती है। कटघोरा में 7 नए पॉजिटिव केस की जानकारी शनिवार आधी रात बाद मिली। इसके बाद टीवी चैनल्स, वेब पार्टल और सोशल मीडिया के जरिए रात भर खबरों और उससे जुड़े अपडेट का आदान प्रदान होता रहा। सूचना पहुंचाने का ये काम तकरीबन रात भर चलता रहा। आमतौर पर अखबार के एडिशन छूट जाने के बाद अपडेट की संभावना नहीं रहती। इसी तरह न्यूज चैनल्स में रात 12 बजे के बाद बुलेटिन रिकार्डिंग मोड पर चलते हैं, लेकिन मौजूदा हालत में ऐसी परिस्थितियां बिल्कुल नहीं रही। बुलेटिन री-रोल हो रहे हैं और अखबारों में भी देर रात खबरें अपडेट हो रही हैं। तमाम अखबारों के पोर्टल भी हैं, जिसके कारण भी पत्रकारों और मीडिया के लोगों के लिए जागते रहो-जागते रहो की चौकीदार वाली स्थिति बन गई है।
मीडिया के लिए सीखने का भी समय
कोरोना काल में मीडिया को चुनौतियों के साथ सीखने-समझने का भी मौका मिल रहा है। आधी रात के बाद कोरोना पॉजिटिव मरीजों की जानकारी सामने के बाद पता चला कि सभी को रायपुर के एम्स में शिफ्ट किया जा रहा है, तो टीवी चैनल्स और अखबारों के कैमरे वहां पहले से तैनात हो गए। पौ फूटने से पहले एम्बुलेंस सभी मरीजों को लेकर यहां पहुंच भी गई। जाहिर है कि उनका इंतजार कर रहे मीडिया के लोगों को विजुअल और फोटो भी मिल गए। कोरोना मरीजों की खबरें और तस्वीर प्रकाशित करने के लिए भी तमाम तरह के नियम कायदे हैं। मरीजों के संबंध में नाम, चेहरा को गोपनीय रखने के गाइडलाइन है। लेकिन कई बार तस्वीरों में पहचान, धर्म को गोपनीय रखना काफी मुश्किल होता है। यहां भी कुछ इसी तरह की स्थिति है। मरीजों का चेहरा भले न दिखे, लेकिन उनके पहनावे उनके धर्म को उजागर कर देते हैं। ऐसे में इस बात का ध्यान भी रखना जरुरी है कि पहचान का मतलब केवल चेहरा नहीं है, बल्कि पहनावे से लेकर आभूषण, ताबीज जैसी कई ऐसी चीजें हैं, जिनसे उनके धर्म और मजहब का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे नियम कायदों के पालन के लिए तमाम तरह की बारीकियों का ध्यान रखना भी जरुरी हो जाता है। लिहाजा, इस समय में मीडिया को सीखने का भी मौका मिल रहा है। ([email protected])
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच भाई-भाई का रिश्ता माना जाता है। जिस तरह से भाई आपस में अपनी पैतृक संपत्तियों का बंटवारा करते हैं। उसी तरह राज्य का दो हिस्सों में बंटवारा हुआ। सूबे के मुखिया भूपेश बघेल भी कहते रहते हैं कि मध्यप्रदेश उनके लिए बड़े भाई जैसा है, लेकिन कोरोना की महमारी ने भाई-भाई के बीच दूरी बढ़ा दी है। हालांकि यह आलोचना का विषय नहीं है,क्योंकि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सोशल डिस्टेंशिंग को सबसे बड़ा हथियार माना गया है। ऐसे में यह प्रासंगिक और जरुरी भी है और प्रदेश के मुखिया की इस दूरी को सावधानी के तौर पर देखा जाना चाहिए। लेकिन राज्य और मध्यप्रदेश के ब्यूरोक्रेट्स के बीच बन रही दूरी को अलग नजर से देखा जा रहा है। दरअसल, वहां का पूरा स्वास्थ्य महकमा यानि टॉप टू बॉटम कोरोना से संक्रमित हो गया है, लिहाजा यहां के अफसर गाइड लाइन का इस कदर कड़ाई से पालन कर रहे हैं कि वो मोबाइल या वाट्सएप के जरिए भी उनसे संपर्क रखने से बच रहे हैं। कुछ अफसरों को यहां तक भय है कि मरकज में शामिल लोगों को जिस तरह से मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से ट्रेस किया गया, कहीं यहां भी बातचीत के आधार पर ट्रेस कर लिया गया, तो नई मुसीबत आ जाएगी। इसलिए थोड़े दिन की दूरी बना लेना ही बेहतर है। खैर, संक्रमण से बचने के लिए सभी अपने अपने तरीके से उपाय करते हैं और यहां भी कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं और यदि ये केवल संक्रमण काल तक के लिए है, तो इसमें बुराई नहीं है। तभी तो कहा जाता है कि दाग लगने से कुछ अच्छा होता है, तो दाग अच्छे हैं।
ये भी है हमारे अदृश्य कोरोना फाइटर
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाने वाले डॉक्टर्स, नर्सेस और मेडिकल स्टॉफ की चारों तरफ प्रशंसा हो रही है और होनी भी चाहिए, क्योंकि वे लोग अपनी जान पर खेलकर कोरोना जैसी महामारी से लोगों की जान बचा रहे हैं। इनके बीच मेडिकल स्टोर्स के संचालक भी है, जो लगातार खतरों से खेलकर लोगों की सेवा कर रहे हैं, लेकिन इस महामारी की जंग में उनके योगदान का कोई नामलेवा नहीं है। बड़े-बड़े शहरों से लेकर गांव-गांव में फैले दवा दुकानदार रोजाना सैकड़ों अजनबी लोगों से मिलते हैं, उनसे बात करते हैं, दवा की पर्ची लेते-देते हैं। इसके बाद दवा देने से लेकर नोट लेना और चिल्हर लौटाना। तमाम ऐसी प्रक्रिया है, जिसके जरिए संक्रमण का खतरा रहता है। मेडिकल कारोबारी दूसरे धंधे से जुड़े लोगों की तुलना में मरीज और उनके परिजनों से बेहद आत्मीयता के साथ पेश आते हैं। इस काम में अधिकांश दुकानों में मालिक की उपस्थिति करीब करीब अनिवार्य होती है। यह काम केवल कर्मचारियों के भरोसे चलता हो, ऐसा कम ही देखने-सुनने को मिलता है। मास्क या सेनिटाइजर को छोड़ दें तो अधिक दाम पर बेचने की शिकायत भी सुनने को नहीं मिलती। कई दुकानदार जरुरतमंद और बुजुर्गों मरीजों को नियमित दवाएं घर पहुंचाकर भी दे रहे हैं, जिसका वो कोई अतिरिक्त पैसा भी नहीं ले रहे हैं। ऐसे संकट के समय में खतरा मोल लेकर दवाएं उपलब्ध कराने वाले दवा कारोबारी भी अदृश्य कोरोना फाइटर से कम नहीं है। ([email protected])
भाजपा हाईकमान ने लॉक डाउन के बीच पदाधिकारियों के लिए नया कार्यक्रम देकर उन्हें उलझन में डाल दिया है। एक तरफ कोरोना संक्रमण के चलते लोगों को घर से बाहर नहीं निकलने की सीख दी जा रही है, तो दूसरी तरफ पार्टी दफ्तर में रोजाना वीडियो कॉफ्रेसिंग हो रही है। जिसमें प्रधानमंत्री केयर्स मद में राशि जुटाने के लिए कहा गया है।
सुनते हैं कि वीडियो कॉफ्रेसिंग के नाम से ही अब जिले के पदाधिकारी कांपने लगे हैं। हरेक पदाधिकारी को कम से कम 40 लोगों को प्रधानमंत्री केयर्स मद में राशि देने के लिए प्रेरित करने कहा गया है। पदाधिकारियों की दिक्कत यह है कि लोगों को प्रेरित करने के लिए घर से निकलना जरूरी होगा। मगर आम जागरूक लोग बाहर से आए लोगों से मेल मुलाकात से परहेज करने लगे हैं।
प्रदेश में वैसे भी पार्टी विपक्ष में हैं, और यहां लोग प्रधानमंत्री केयर्स के बजाए मुख्यमंत्री सहायता कोष में राशि देना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सहायता कोष के मद में दान देने वालों का सोचना है कि मुख्यमंत्री कोष में पैसा देने से स्थानीय जरूरतमंदों के लिए ही उपयोग होगा। ऐसे में जिले स्तर के नेता, काफी परेशान हैं। कोरोना संक्रमण के बीच कुछ लोग तो चाह रहे हैं कि उन्हें पद से मुक्त कर दिया जाए। ताकि संक्रमण के जोखिम से बचा जा सके।
इन सबके ऊपर एक बात और हो गयी है. सोनिया गाँधी ने मोदी को लिखी चि_ी में कहा कि मोदी केयर्स नाम से अलग फण्ड बनाने के बजाय प्रधानमंत्री राहत कोष ही चलना चाहिए जो कि सीएजी ऑडिट के लिए खुला भी रहता है. सरकार को दान देने में लोग वैसे भी हिचकते हैं, और जिस फण्ड का ऑडिट ना हो उसमें क्यों दिया जाये? यही वजह है कि बिल गेट्स से लेकर टाटा, और अज़ीम प्रेमजी तक जो दान देते हैं, वे सरकार को नहीं देते, खुद समाजसेवा में लगते हैं, पाई-पाई का इस्तेमाल करते हैं.
आलोक शुक्ला का नया प्रयोग...
लॉकडाउन की वजह से प्रदेश में स्कूलों में परीक्षाएं नहीं हो पाई। और दसवीं और बारहवीं को छोड़कर माध्यमिक शिक्षा मंडल से संबंद्ध स्कूलों में जनरल प्रमोशन हो गया। स्कूलें कब खुलेंगी, यह तय नहीं है। मगर विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसान न हो, इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने अनूठी पहल की है और ऑनलाइन पढ़ाई हो सकेगी। विभाग ने बकायदा पोर्टल भी तैयार किया है और पोर्टल पर जूम एप के जरिए ऑनलाइन इंटरएक्टिव कक्षाएं शुरू होंगी। आम तौर पर सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए इस तरह हाईटेक पढ़ाई भी कल्पना से परे मानी जाती रही है। मगर प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने बेहद कम समय में यह कर दिखाया, इसकी काफी सराहना हो रही है।
दिलचस्प बात यह है कि स्कूल शिक्षा विभाग ने बिना किसी बाहरी मदद के खुद तैयार किया है और डॉ. आलोक शुक्ला की पोर्टल तैयार करने में अहम भूमिका रही है। इस सॉफ्टवेयर को तैयार करने में विभाग को कोई खर्च भी नहीं करना पड़ा। वैसे तो शुक्ला चिकित्सा के विद्यार्थी रहे हैं। मगर आईटी में भी उनकी दखल बराबर रही है। चाहे पीडीएस के कम्प्यूराइजेशन हो, या फिर केन्द्रीय चुनाव आयोग में कम्प्यूराइजेशन का काम हो। आलोक शुक्ला ने हमेशा कुछ नया कर दिखाया है, इस पोर्टल से एक बार फिर उनकी योग्यता साबित हुई है। दिक्कत यह है कि आलोक शुक्ला का रिटायरमेंट एकदम करीब है, शायद दो महीने में ही. स्कूल शिक्षा विभाग को पटरी पर लाना हो नहीं सकता अगले दो महीनों में. अगर किसी अफसर को एक्सटेंशन दिया जाना चाहिए तो आलोक शुक्ला को, ताकि स्कूलों का कुछ भला हो सके।
एक दूसरी दिक्कत यह है कि जिस ज़ूम एप्लीकेशन से अब पढाई होने जा रही है, वह दुनिया भर में बदनाम हो रहा है कि उसके रास्ते किसी भी फ़ोन में घुसपैठ हो सकती है. लगातार सायबर सुरक्षा विशेषज्ञ इस कंपनी से सवाल कर रहे हैं कि उसने इतने छेद क्यों रखे हैं जासूसी करने के ?
लॉक डाउन के चलते जरूरतमंदों को राशन वितरण का अभियान जोर शोर से चल रहा है। मगर इसमें अफरा-तफरी भी हो रही है। कई कथित समाजसेवी संस्थाओं और कुछ नेता, दानदाताओं से प्राप्त राशन और अन्य साम्रगियों को बंटवाकर वाहवाही बटोर रहे हैं। इस गड़बड़ झाले की भाजपा ने शिकायत भी की है। कुछ दिन पहले रायपुर के जयनारायण पाण्डेय स्कूल के समीप की एक बस्ती में राशन से भरी एक मेटाडोर को लूटने की कोशिश भी की गई। बस्ती के लोगों का आरोप था कि राशन उन्हें न देकर कुछ नेता अपने घरों में ले जा रहे हैं।
बस्ती के लोग मेटाडोर में चढ़ गए थे, तभी एक नेता ने पुलिस को सूचना दी और पुलिस हस्तक्षेप के बाद मेटाडोर किसी तरह वहां से निकल पाई। बिलासपुर में भी कुछ इसी तरह की शिकायत पर आईजी दीपांशु काबरा ने साफ तौर पर निर्देश जारी किए हैं कि कोई भी समाजसेवी या अन्य संगठन, पुलिस और नगर निगम के लोगों की गैर मौजूदगी में राशन वितरण नहीं कर सकेंगे। हालांकि यह आदेश कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते निकाला गया है। मगर इसके पीछे भावना अफरा-तफरी को रोकने की थी। बिलासपुर की देखा-देखी अब रायपुर में भी इस तरह का आदेश निकला है।
दूसरे सबसे अधिक
बहादुर और उदार
आज जब कोरोना के डर से बहुत से लोग घरों से नहीं निकल रहे हैं, अपनी इमारतों में न एयर इंडिया के पायलट-कर्मचारियों को रहने दे रहे हैं, और ना डॉक्टर-नर्सों को रहने दे रहे हैं, तब दुनिया के दर्जनों देशों में और हिंदुस्तान के सैकड़ों शहरों में सिख समाज लोगों की मदद को जुटा हुआ है. किसी भी मुसीबत के वक्त सिख लोग यह नहीं देखते कि किस धर्म के लोगों को जरूरत है. पंजाब के मलेरकोटला में तो गुरूद्वारे के सिखों ने पूरे मदरसे के बच्चों को अपनी सरपरस्ती में ले लिया है क्योंकि सरकारी हुक्म से मदरसा बंद हो गया है, और वहां के गरीब बच्चे दूसरे प्रदेशों से आये हुए हैं. सिखों के बीच इस धर्मनिरपेक्ष सेवाभावना के पीछे गुरुनानकदेवजी के गुरुग्रंथसाहेब की सीख का बहुत बड़ा हाथ है. ग्रंथसाहब दुनिया का अकेला धर्मग्रन्थ है जिसमें दूसरे धर्मों के संतों की बाणी भी रखी गयी है, सभी धर्मों के सम्मान की बात कही गयी है. खुद नानक के कई साथी मुस्लिम थे, और उनकी उदारता ऐसी थी कि हिन्दू धर्म के उस वक़्त अछूत माने जाने वाले संतों की लिखी बातों को सम्मान से ग्रंथसाहब में जोड़ा गया है. जाहिर है कि रोज गुरुनानक को बातों को सुनने, पढऩे, और मानने वाले दूसरे धर्मों से बेहतर तो होंगे ही.
एयरटेल बिल के साथ
इन दिनों कोरोना की दहशत में हर किसी को लग रहा है कि उनकी रकम बाजार में डूब न जाए। एयरटेल कुछ अधिक दहशत में दिख रही है। जिस बिल को चुकाने की आखिरी तारीख 25 अपै्रल है, उसके लिए 6 तारीख को भेजे गए इस संदेश के बाद कंपनी ग्राहकों को फोन भी करना शुरू कर चुकी है। लोगों को मारने की अपनी ताकत पर जितना भरोसा कोरोना को खुद को नहीं है, उतना भरोसा एयरटेल को लग रहा है, और एक पखवाड़े पहले से ही वसूली की कोशिश हो रही है। यह एक अलग बात है कि ऑप्टिक फाइबर केबल बिछाने के चलते एयरटेल की मौजूदा सर्विस भी चौपट चल रही है। ([email protected])
कोरोना संक्रमण से निपटने में अब तक भूपेश सरकार कामयाब दिख रही है। प्रशासन की धमक दूर-दराज गांवों से लेकर मजरेटोलों तक में नजर आई है। छत्तीसगढ़ में दो दिन पहले ही लॉक डाउन कर दिया गया था। इससे बहुत कम समय में न सिर्फ शहरी बल्कि ग्रामीणों में भी जागरूकता लाने की सरकार की कोशिश सफल रही है।
दूर दराज के गांवों में कोरोना को लेकर कितनी जागरूकता आई है, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि सीएस आरपी मंडल, पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी के साथ 18 मार्च को सुकमा गए थे। इस दौरे का एक मकसद रामगमन परिपथ को विकसित करने के लिए योजना तैयार करना भी था। मान्यता है कि भगवान राम वनवास के दौरान दंडकारण्य (बस्तर) होते तेलंगाना गए थे। सुकमा से करीब 20 किमी की दूरी पर रामोराम गांव है। यहां भगवान राम रूके थे। इस गांव को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की योजना बनाई गई है।
दोनों अफसर जब सुकमा में बैठक लेने के बाद रामोराम गांव पहुंचे। तब छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमण को लेकर जागरूकता अभियान चल रहा था। दोनों अफसरों यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि इस बीहड़-सुविधाविहीन गांव के सरपंच और ग्रामीणों को कोरोना से बचाव के उपायों की पूरी जानकारी थी। ग्रामीण मुंह पर कपड़ा लपेटे हुए थे और सामाजिक दूरी का पालन कर रहे थे। गांव से बाहर से आने वाले लोगों की जानकारी स्वास्थ्य केन्द्र और पुलिस को दे रहे हैं। सरकार की कोशिशों का नतीजा यह रहा कि कोरोना छत्तीसगढ़ में अब तक पांव नहीं पसार पाया है।
लेकिन जब फेसबुक पर इन लोगों की रामपथ गमन की तस्वीरें देखीं तो लोग हैरान हुए कि, धान के मौसम में, वनोपज के मौसम में, कोरोना के खतरे के बीच प्रदेश के सबसे बड़े अफसरों को रामपथ गमन की पडी है? लेकिन हिंदुस्तान के लोगों को मुसीबत में भगवान ही सूझते हैं, यह एक अलग बात है कि आज देश के सबसे बड़े मंदिरों में भी पुजारियों को मास्क की पहले सूझ रही है, फिर जाकर पूजा-आरती की।
एक धमकी का असर
मलेरिया की एक दवाई से कोरोना का इलाज होते की ख़बरों को उस वक़्त और बढ़ाया मिल गया जब हिंदुस्तान के महान दोस्त अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने टीवी पर हिंदुस्तान की कनपटी पर बन्दूक टिकाई और गब्बर के अंदाज़ में कहा कि ये दवा हमका दे-दे ठाकुर (वरना हाथ काट डालूँगा). नतीजा यह हुआ कि मलेरिया की दवा जो कि हिंदुस्तानी बाजार से पहले से गायब हो गयी, वह और भी ख़त्म हो गयी. लोगों ने इस अंदाज़ में अपने घर में इकठ्ठी कर ली कि पूरे परिवार के लायक मलेरिया के इलाज का कोर्स घर पर रहे, कोरोना के इलाज के लिए. होना यह है कि कोरोना हुआ तो जाकर अस्पताल में ही भर्ती होना है, लेकिन मलेरिया की दवाई सबने घर में भर ली. बाकी लोग ढूंढ रहे हैं कि वे पीछे न रह जाएँ.
दरअसल दहशत की खरीददारी ऐसी ही होती है. गैरमरीज लोग जरूरी दवा भर लेंगे, तो मरीजों को दवा मिलेगी नहीं. लोगों को यह समझना चाहिए कि कोरोना का इलाज करने वाले अस्पताल घर से लाई गयी दवा को खिलाएंगे भी नहीं. इसलिए मूर्ख और गुंडे अमरीकी राष्ट्रपति की धमकी-चमकी से लोग दवा खरीदने की अंधीदौड़ में शामिल ना हों। ([email protected])
वैसे तो छत्तीसगढ़़ में कोरोना का प्रकोप अब तक दिखने में कम है। यहां तकरीबन सभी कोरोना मरीज ठीक हो चुके हैं। मगर सरकार कोरोना संक्रमण रोकने के लिए एहतियात के तौर पर कड़े कदम उठा रही है और लॉकडाउन का कड़ाई से पालन भी करवा रही है। बावजूद इसके डर का माहौल बना हुआ है। हाल यह है कि पुलिस के एक आला अफसर तो कोरोना संक्रमण से इतने भयभीत हैं कि उन्होंने अपने ड्राइवर को छुट्टी दे दी है। खुद कार ड्राइव कर पीएचक्यू जाते हैं। लोगों की शिकायतें सुनना भी बंद कर दिए हैं। यही नहीं, जरूरी होने पर ही सीएम और होम मिनिस्टर की बैठक में जा रहे हैं और वहां भी सेफ डिस्टेंस बनाकर रखते हैं। ये अलग बात है कि पूर्व में नक्सल विषयों को लेकर जब भी उच्चस्तरीय बैठक होती थी तब वे सैनिक वाली वर्दी पहनकर बैठक में मौजूद रहते थे। मगर कोरोना ने इतना डरा दिया है कि अफसर वर्दी को ही भूल गए हैं।
लॉकडाउन का सख्ती से पालन
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए राजधानी रायपुर की कई कॉलोनियों में लॉक डाउन का सख्ती से पालन हो रहा है। सबसे ज्यादा आबादी वाले रिहायशी कैंपस अशोक रतन में तो कॉलोनी के पदाधिकारियों ने मुख्य द्वार पर ही ताला लगा दिया है। पहले कुछ लोग सिगरेट पीने तक के लिए कार निकालकर कॉलोनी से बाहर चले जाते थे। वहां गार्ड की भी परवाह नहीं करते थे।
कॉलोनी के पदाधिकारियों ने लॉक डाउन का सख्ती से पालन करवाने के लिए सबसे पहले गार्ड को ही छुट्टी दे दी और कुछ पदाधिकारियों ने बारी-बारी से सुरक्षा गार्ड के काम को अपने हाथों में ले लिया। यही नहीं, बेकाबू हो रहे कुछ लोगों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस की भी मदद ली गई और कॉलोनी वासियों से यह कहा गया कि जिसे भी कॉलोनी से बाहर जाना है, उसे थाने में सूचना देनी होगी। पुलिस की अनुमति से ही वे बाहर जा सकेंगे। इसका नतीजा यह रहा कि कॉलोनी में अनुशासन कायम हो गया है और लोग लॉकडाउन का सख्ती से पालन कर रहे हैं। (([email protected]))
कुछ लोग इस बात से हैरान परेशां हैं कि वे दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में गए थे लेकिन तबलीग़ी जमात की मरकज में नहीं गए थे, फिर भी उनका फ़ोन नंबर दिल्ली पुलिस ने राज्य पुलिस को भेज दिया है कि उनकी सेहत पर नजर रखी जाये. दरअसल मरकज में जितनी बड़ी संख्या में लोग थे, और उनसे देश बाहर में जिस तरह कोरोना फ़ैल रहा है, उसे देखते हुए, पुलिस ने उस इलाके में उन नाजुक दिनों में जाने वालों के नंबर भी मोबाइल टावर लोकेशन हिस्ट्री से निकाल लिए हैं और राज्यों को भेज दिए हैं. इस लिस्ट में छत्तीसगढ़ के हिन्दू भी हैं, आदिवासी भी हैं, सभी लोग हैं, क्योंकि कोरोना मज़हब पूछ-पूछकर नहीं दबोच रहा. इस लिस्ट में देश भर के दसियों हज़ार लोग हैं, और उनमें से वक़्त, उस इलाके में ठहरने, या वहां वक़्त गुजरने के हिसाब से खतरे में पड़े लोगों के नंबर छांटे गए हैं.
बेशर्मी की भला कैसी सीमा?
एक तरफ देश भर से ख़बरें आ रही हैं कि कि़स तरह डॉक्टर, नर्सें, पुलिसवाले और दूसरे लोग घर के बाहर रह रहे हैं, दरवाजे के बाहर से खाना खा रहे हैं, होटलों में सो रहे हैं क्योंकि वे रूबरू कोरोना से ऐसे जूझ रहे हैं कि परिवार को उनसे ख़तरा हो सकता है. छत्तीसगढ़ की राजधानी की एक संपन्न कॉलोनी में बैठे यह टाइप करते हुए एक बहुत बूढ़ा सफाई कर्मचारी नाली साफ़ करने के लम्बे-लम्बे बांस लिए जुटा दिख रहा है, सूनी सड़कों पर भी एक महिला झाड़ू लगती दिख रही है. ऐसे में देश भर में इन कर्मचारियों के परिवार के कई लोग भी मदद कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ में पुलिस-परिवारों की महिलाएं सिलाई मशीनों पर मास्क सिलते दिख रही हैं. सिख समाज, जैन समाज सहित बहुत से लोग लोगों को खाना पहुंचाने में लगे हुए हैं. लेकिन इस बीच म्युनिसिपल परेशान है कि बहुत से करोड़पति भी फ़ोन करके खाना बुला रहे हैं कि उनके घर खाना बनाने वाली नहीं आयी है. बेशर्मी की कोई हद नहीं होती है. जब कुछ दूसरे लोग जान को खतरे में डालकर जरूरतमंदों की मदद को निकले हुए हैं, तब बहुत से रईस इस तरह बेईमानी कर रहे हैं ! वैसे भी यह पैसेवालों की बीमारी है जो गरीबों पर लाद दी गयी है !([email protected])
छत्तीसगढ़ भाजपा ने कोरोना संक्रमण के रोकथाम के लिए पीएम केयर्स में चंदा देने की अपील की है। पार्टी ने चंदा जुटाने के लिए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल को जिम्मेदारी भी दी है। पार्टी नेताओं ने कार्यकर्ताओं से कम से कम 10 और लोगों को पीएम केयर्स में दान देने के लिए प्रेरित करने कहा है। मगर पार्टी के कई नेता पीएम केयर्स में अंशदान करने के बजाए सीधे सीएम सहायता कोष में दान दे रहे हैं। इसको लेकर पार्टी के बड़े नेता नाराज बताए जा रहे हैं।
सुनते हैं कि कांकेर के भाजपा नेता और अपेक्स बैंक के पूर्व अध्यक्ष महावीर सिंह राठौर ने सीएम सहायता कोष में 51 हजार रूपए दान दिए। उन्होंने कांकेर के भाजपा सांसद मोहन मंडावी और स्थानीय कांग्रेस विधायक शिशुपाल सोरी की मौजूदगी में कलेक्टर को चेक दिया। मोहन मंडावी पहले ही सार्वजनिक तौर पर सीएम भूपेश बघेल की तारीफ कर चर्चा में रहे हैं। इसके अलावा पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी और उनके भाई मोहन सुंदरानी ने भी पिछले दिनों कोरोना आपदा कंट्रोलरूम पहुंचकर सीएम सहायता कोष में 51 हजार रूपए दिए। इस मौके पर कोन्ग्रेस्स विधायक सत्यनारायण शर्मा भी थे।
इसकी खबर जब पार्टी के रणनीतिकारों को लगी, तो उन्होंने आपसी चर्चा में दानदाता पार्टी नेताओं को काफी भला-बुरा कहा। वे इसे पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन मान रहे हैं। इससे परे राज्य के कांग्रेस नेता इस बात से खफा हैं कि प्रदेश के भाजपा सांसद-विधायक राज्य के कोष में सहायता देने के बजाए पीएम केयर्स में धनराशि दे रहे हैं। जबकि राज्य की समस्या को निपटने में सहयोग देने उनकी पहली जिम्मेदारी है। भाजपा की तरह कांग्रेस ने अपने नेताओं को कोरोना के रोकथाम के लिए सीएम सहायता कोष में दान देने के लिए कहा है। इसी सब को देखते हुए किसी समझदार ने बहुत पहले कहा था- गुप्तदान महाकल्याण..!
तबलीगी जमात
छत्तीसगढ़ के कोरबा में एक मस्जिद में ठहराए गए तबलीगी जमात के लोगों में से एक के कोरों पॉजि़टिव निकल जाने के बाद अब इस संस्था के बारे में सच-झूठ कई कि़स्म की बातें फैल रही हैं।
एक शब्द चर्चा में है और वो है 'तबलीगी जमात'। कुछ दिनों पहले ही दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात का कार्यक्रम आयोजित हुआ था, जिसमें 2000 के करीब लोग शामिल हुए थे। इसमें शामिल 200 के करीब लोग कोरोना के संक्रमित हो सकते हैं। जिस कार्यक्रम में ये लोग पहुंचे थे उसका नाम है मरकज तबलीगी जमात।
आम तौर पर मोटी बातें सही लिखने वाले विकिपीडिया के मुताबिक़- मरकज, तबलीगी, जमात, ये तीनों शब्द अलग-अलग हैं। तबलीगी का मतलब होता है, अल्लाह के संदेशों का प्रचार करने वाला। जमात मतलब, समूह और मरकज का अर्थ होता है मीटिंग के लिए जगह। यानी की अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला समूह। तबलीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं। इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है। एक दावे के मुताबिक इस जमात के दुनिया भर में 15 करोड़ सदस्य हैं। 20वीं सदी में तबलीगी जमात को इस्लाम का एक बड़ा और अहम आंदोलन माना गया था।
कहा जाता है कि 'तबलीगी जमात' की शुरुआत मुसलमानों को अपने धर्म बनाए रखने और इस्लाम का प्रचार-प्रसार तथा जानकारी देने के लिए की गई। इसके पीछे कारण यह था कि मुगल काल में कई लोगों ने इस्लाम धर्म कबूल किया था, लेकिन फिर वो सभी हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज में लौट रहे थे। ब्रिटिश काल के दौरान भारत में आर्य समाज ने उन्हें दोबारा से हिंदू बनाने का शुद्धिकरण अभियान शुरू किया था, जिसके चलते मौलाना इलियास कांधलवी ने इस्लाम की शिक्षा देने का काम प्रारंभ किया।तबलीगी जमात आंदोलन को 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने भारत में हरियाणा के नूंह जिले के गांव से शुरू किया था। हरियाणा के मेवत इलाक़े का हाल यह है की यहाँ की अधिकतर आबादी मुस्लिम दिखाई पड़ती है।
कोरोना के जाने के बाद आएगी असली मुसीबत...
कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए केन्द्र सरकार ने एक लाख 70 हजार करोड़ का पैकेज जारी किया है। छत्तीसगढ़ समेत बाकी कोरोना प्रभावित राज्य भारी भरकम राशि मिलने की उम्मीद पाले हुए हैं, मगर उनकी उम्मीदों को झटका लग सकता है। राहुल गांधी ने केन्द्र सरकार ने आर्थिक पैकेज का ब्रेकअप मांगा है, जो कि अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। सुनते हैं कि पैकेज में उन योजनाओं को शामिल किया गया है, जो कि पहले से चल रही है और इस मद में केन्द्र से धनराशि मिलती है। मसलन, मनरेगा के अलावा समाज कल्याण की योजनाएं शामिल हैं।
जीएसटी की तारीख बढ़ाने जैसे कई फैसले से राज्य को नुकसान भी है। जीएसटी से राज्य का हिस्सा मिलने में काफी विलंब होगा। यही नहीं, लॉक डाउन के चलते रजिस्ट्री-शराब बिक्री पर रोक से राजस्व में भारी नुकसान का अंदेशा है।सरकार ने बिजली बिल देर से पटाने जैसी कई दूसरी छूट भी दे राखी हैं।
राज्य सरकार ने पहले से ही धान-बोनस के मद में भारी भरकम कर्ज ले रखा है और अब कोरोना की मार झेलनी पड़ रही है। कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि यदि केन्द्र ने भरपूर मदद नहीं की, तो सरकारी कर्मचारियों के वेतन के लिए भी मुश्किलें आ सकती है। पंजाब सरकार तो पहले ही कर्ज लेकर ही सरकारी अमले को तनख्वाह बांट पा रही है।
फिलहाल तो कोरोना संकट से उबरने की कोशिश हो रही है। इसलिए इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है, राज्य सरकार पूरी तरह प्रधानमंत्री के साथ चल रही है, लेकिन अपेक्षाकृत मदद नहीं मिलने से कोरोना संकट खत्म हो जाने के बाद देर सबेर केन्द्र और राज्य के बीच विवाद की स्थिति बन सकती है।
दारू का पैसा आएगा कहाँ से?
दारू का मामला हमेशा ही बड़ा गड़बड़ रहता है। लोग कहते हैं कि जिनको इसकी जरूरत रहती है, वे गला काटकर भी दारू पाने की कोशिश करते हैं। फिलहाल तो छत्तीसगढ़ में सरकारी दुकान में चोरी करके ईमानदार शराबियों ने महज शराब चुराई थी, वहां रखी नगदी को छुआ भी नहीं। गैरशराबी शायद ही इतने ईमानदार होते। एक आदमी दारू बेचते पकड़ाया जो अपने दोनों बेटों के साथ मिलकर दारू बेच रहा था, अब जेल में तीनों काम से काम साथ रहेंगे। छत्तीसगढ़ में दारू न मिलने पर स्पिरिट पीकर तीन लोगों के मरने की खबर है, लेकिन इलाके के पुलिस अफसर का कहना है कि उन्होंने स्पिरिट नहीं पी थी। हो सकता है न पी हो, लेकिन सरकार अगर दुकानें शुरू करना चाहती है तो यह मामला ठीक है। दो नंबर की दारू बिक रही है, दूकान से चोरी हो रही है, और लोग कुछ और पीकर मर रहे हैं। इतनी वजहों से तो दारू फिर शुरू हो ही जाएगी। लेकिन लोगों का रोजगार बंद है, मजदूरी बंद है, तनख्वाह मिली नहीं है, तो दारू के लिए पैसा आएगा कहाँ से? जनता कंगाल और फटेहाल है, कर्ज लेगी या गहने बेचेगी? या शराबी घर से चावल चुराकर दारू खरीदेगा? बिना कमाई के हो गयी जनता के बीच दारू बेचना शराबियों के घर की दूसरी जरूरतों को बेच डालेगा। बच्चों का खाना भी हो सकता है कि दारू दूकानों के बाहर बिक जायेगा।
निगम अफसरों पर दबाव
कोरोना संक्रमण की आशंका के चलते प्रभावशाली लोग अपने घर-दफ्तर को सेनेटाइज करा रहे हैं। वैसे तो लॉक डाउन के चलते सरकारी दफ्तर बंद हैं किन्तु जरूरी सेवा से जुड़े अफसर-कर्मी काम में हैं। मंत्रालय में कुछ अफसरों ने आना-जाना भी शुरू कर दिया है। इन अफसरों ने अपने कमरे में बैठने से पहले सेनेटाइज कराया। कुछ इसी तरह वार्ड पार्षदों में भी सेनेटाइज कराने की होड़ मची हुई है। सुनते हैं कि ये पार्षद अपने मोहल्ले के बजाए अपने घरों को पहले सेनेटाइज करने के लिए निगम अफसरों पर दबाव बनाए हुए हैं। कुल मिलाकर निगम के लोगों का काम पहले से ज्यादा बढ़ गया है। ([email protected])
सलाह महंगी पड़ी
महापौर एजाज ढेबर पर महापौर बंगले में एक ट्रक चावल उतरवाना मंहगा पड़ गया. चावल बांटना तो था जरूरतमंदों में ही , लेकिन सरकारी इंतजाम में ही बांटना था. किसी ने सलाह दे दी कि महापौर बँगला खाली पड़ा है, वहां से भी आस-पास के गरीब लोगों को बंट जायेगा, तो खाली बंगले में एक ट्रक चावल भेज दिया गया. अब इस अख़बार में खबर छपने के बाद एज़ाज़ को समझ आया कि सलाह गलत थी. जिसके घर इनकम टैक्स एक ट्रक नोट मिलने की उम्मीद में आया था, उसे अपने इलाके में एक ट्रक चावल खाली पड़े महापौर बंगले से बंटवाने का मोह नहीं पालना था। सत्ता पर बैठे लोगों का ईमानदार होना ही काफी नहीं होता, उन्हें ईमानदार दिखते भी रहना चाहिए.
नाम में क्या रक्खा है? बहुत कुछ....
कल एक खबर आई। कोरोना की दहशत के बीच पैदा हुई जुड़वां बच्चों के नाम मां-बाप ने कोविद और कोरोना रख दिए। मां का कहना है कि लॉकडाउन के बीच वह एम्बुलेंस से सरकारी अस्पताल ले जाई गई थी और आज सबके मन में कोरोना की दहशत छाई हुई है इसलिए उसने बेटे का नाम कोविद और बेटी का नाम कोरोना रखना तय किया। खबर दिलचस्प थी, दुनिया में और कहीं से ऐसी खबर सुनाई नहीं पड़ी थी, इस अखबार ने भी उसे पहले पन्ने पर लिया और सोशल मीडिया पर भी अखबार से लोगों ने उसे पढ़ा। माँ की दोनों बच्चों के साथ तस्वीर भी छपी, बहुत से लोगों ने उसे अप्रैल फूल की गढ़ी हुई खबर मान लिया। खैर रात होते-होते एक पत्रकार साथी ने फोन करके संपादक से इस बात का जमकर विरोध किया कि पहले तो मां-बाप ने ऐसे अटपटे और नकारात्मक नाम रखकर गलती की, और उससे भी बड़ी गलती इस खबर को फोटो सहित छपना रहा। उनका कहना था कि ऐसे नामों की वजह से यह बच्चे पूरी जिंदगी शर्मिंदगी उठाएंगे, और साथ के बच्चे उनका मखौल उड़ाते रहेंगे। उनका तर्क सही था, ऐसी नौबत तो किसी दिन आ सकती है। खबरों के सैलाब के बीच यह तो मुमकिन नहीं होता कि हर खबर तो उसके ऐसे असर के लिए, तौला जाए, और फिर यह माँ-बाप का अपना फैसला भी था, उनका यह भी सोचना था कि इससे कोरोना, कोविड शब्दों से दहशत कम होगी, उनके सोचने को चुनौती देना खबर के वक्त मुमकिन भी नहीं होता। खैर, हमारे अखबारनवीस दोस्त की यह बात सही है कि ऐसे नामों की वजह से इस बच्चों को आगे चलकर, पूरी जिंदगी शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है, उन्होंने बच्चों के माँ-बाप से परिचय होने के कारण उन्हें खूब डांटा भी है। अभी गोरखपुर से एक खबर आई है कि वहां पैदा हुए एक बच्चे का नाम लॉकडाउन रखा गया है।
ऐसा हिंदुस्तान में कई मौकों पर होता है। छत्तीसगढ़ में अकाल के बरस पैदा होने वाले बहुत से बच्चों का नाम अकालू, या अकालिन बाई रखा जाता था। लगातार दो साल अकाल पड़े तो पैदा होने वाले बच्चों का नाम दुकालू, या दुकालिन बाई पड़ जाता था। अच्छी फसल वाले साल की बच्चों की पैदाइश सुकालू या सुकालिन कहलाती थी। एक वक्त था जब लोगों के बच्चे एक के बाद एक मर जाते थे, तो उन्हें बुरी नजर से बचाने के इरादे से लोग उनके नाम बहुत अटपटे या खराब रखते थे कि वे बुरी नजरों से बच तो जाएँ। फकीरचंद, भिखारीदास जैसे कई नाम उसी सोच की उपज रहे।
हिंदी वालों के बीच कुछ नाम पता नहीं क्या सोचकर रखे गए, जैसे- अतिरिक्त, निराशा वगैरह। कुछ लोगों का मानना है कि कुछ नाम आखिरी संतानों के लिए अधिक इस्तेमाल होते हंै, जैसे संतोष, तृप्ति, इति, सम्पूर्ण, मतलब कुनबा पूरा हो गया, या मां-बाप की तृप्ति हो गई।
लेकिन यह बात सही है कि नकारात्मक अर्थ या सन्दर्भ वाले नामों से लोग कतराते हैं। गाँधी हत्या के बाद पता नहीं कोई बच्चे का नाम नाथूराम रखते भी हैं? राम को वनवास सुनाने वाली कैकेयी के नाम पर भी शायद लोग नाम ना रखते हों। रावण और विभीषण, दुर्योधन सुनाई तो पड़ते हैं, लेकिन वे क्या सोचकर रखे गए होंगे पता नहीं। फिलहाल यही है कि लोग बच्चों के नाम ऐसे ही रखें कि उन्हें आगे चलकर शर्मिंदगी ना झेलनी पड़े।
अमरीका के कुछ राज्यों में हिटलर या दूसरे नाजी शब्दों पर बच्चों के नाम रखे जा सकते हैं, लेकिन कुछ राज्यों में इन्हें नहीं रखा जा सकता। सऊदी अरब में मलिका, और माया जैसे करीब 50 नामों पर सरकारी रोक है। पुर्तगाल में निर्वाण नाम नहीं रखा जा सकता, मैक्सिको में फेसबुक, रेम्बो या बैटमैन नाम नहीं रखे जा सकते। स्वीडन में सुपरमैन और एल्विस जैसे कई नामों पर रोक है। नॉर्वे जैसे सबसे उदार देश में भी कई नामों पर रोक है, डेनमार्क में प्लूटो नाम पर भी रोक है। स्विट्जऱलैंड में किसी का नाम पेरिस नहीं रखा जा सकता, न मर्सिडीज़। जर्मनी में अडोल्फ हिटलर, या ओसामा बिन लादेन नामों पर कानूनी रोक है। फ्रांस में मिनी कूपर, नूट्रेला, स्ट्रॉबेरी, जैसे नाम नहीं रखे जा सकते। ([email protected])
लॉकडाउन के दौरान बिलासपुर पुलिस की फेसबुक पेज पर जब युवक ने मांगी माँ की दवाई के लिए मदद...
सुपर हीरोज ऑफ छत्तीसगढ़
फेसबुक पर बने एक नए पेज, सुपर हीरोज ऑफ छत्तीसगढ़ पुलिस में राज्य भर की पुलिस के सामाजिक सरोकार की कहानियां पोस्ट हो रही हैं। जगह-जगह पुलिस लोगों की वह मदद भी कर रही है, जो कि उसके वर्दी वाले काम में नहीं आता। दुर्ग जिले के सुपेला थाने में रोज सैकड़ों लोगों के लिए खाना बनवाकर जरूरतमंद लोगों में बांटा जा रहा है। रायपुर के खमतराई थाने की पुलिस लोगों को खाना दे रही है। दुर्ग के ऊतई थाने में पुलिस ने अपने खर्च से 400 लोगों को मास्क बांटे। पुलिस की तरफ से यह अपील भी पोस्ट की गई है कि वह जनता के काम से सड़कों पर रूकी है, इसलिए लोग घर पर रूकें।
मंडला से आए मजदूरों के पास लॉकडाउन के कारण खाने के लिए खाना नहीं था। 300 किलोमीटर ये मजदूर वापस अपने घर पैदल जाने की बात कर रहे थे, महिला आरक्षक जमुना रानी, सीता चौधरी, कीर्ति सूर्यवंशी द्वारा इन मजदूरों को न जाने की सलाह दी गई व लॉकडाउन तक खाने का सामान दिलाकर इनकी मदद की गई।
बलौदाबाजार में यूपी से आकर चनाचुर बेचने वाले परिवार के पास खाने के लिए नहीं था अन्न। कोतवाली में पदस्थ एएसआई श्री साहू पेट्रोलिंग में गौरव पथ से गुजर रहे थे इसी दौरान बिसम्भर बाड़े में रहने वाले ये शख्स दिखाई दिए पूछने पर पता चला कि उनके पास खाने के लिए दाना नहीं है। तत्काल श्री साहू ने 500 रू दिए व अपने घर से चावल, दाल, सब्जी, अचार, पापड़ लाकर दिया।
पूरी जिंदगी सूचना छुपाना...
आम तौर पर सूचना आयोगों में सरकारों से रिटायर होने वाले पसंदीदा अफसरों को इनफार्मेशन कमिश्नर बनाया जाता है. सरकारी अफसर रहते हुए जिनका धंधा पूरी जिंदगी लोगों से सूचना छुपाना रहता है, अब वे सूचना दिलवाने के नाम पर और कई बरस ऐश करते हैं. ऐसे में मध्य प्रदेश के इनफार्मेशन कमीशन की यह पोस्ट चौंकाती है, जो गरीब की मौत की खबर दे रही है ! ट्विटर पर देश के किसी एक सूचना आयोग को फॉलो करना हो तो यही एक है ! ('छत्तीसगढ़' न्यूज डेस्क)
लालबत्ती पर कोरोना की छाया
छत्तीसगढ़ में लंबे समय से लालबत्ती का इंतजार कर रहे लोगों को कोरोना ने निराश कर दिया है। उम्मीद थी कि राज्यसभा चुनाव निपटने यानि 26 मार्च के बाद निगम मंडल की लिस्ट आ जाएगी, लेकिन दावेदारों के अरमानों पर पानी फिर गया। हालांकि राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर कांग्रेस खेमे में पहले ही निराशा थी, क्योंकि दोनों नाम दिल्ली से तय हो गए और राज्यसभा जाने का सपना संजोए नेताओं को झटका लगा। इस पूरे घटनाक्रम से एक बात यह भी साफ हुई है कि राज्यसभा में प्रदेश के बड़े नेताओं की नहीं चली है। ऐसे में लालबत्ती बांटने में एकतरफ चलने की उम्मीद कम ही दिखाई पड़ रही है। लिहाजा उन नेताओं के लिए यह दुब्बर बर दू आषाढ़ वाली स्थिति बन गई है। मतलब पहले से ही लालबत्ती किसी ने किसी कारण से अटक रही थी अब नए समीकरण से विपत्ति और बढ़ गई है।
थोड़ी ढिलाई भारी पड़ सकती थी
छत्तीसगढ़ में कोरोना प्रकोप अब तक नियंत्रण में है। अगर थोड़ी भी ढिलाई बरती गई होती, तो केरल-महाराष्ट्र जैसी बुरी स्थिति छत्तीसगढ़ में बन जाती। वजह यह है कि कोरोना संक्रमण रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने कोई अतिरिक्त संसाधन मुहैया नहीं कराए थे। दो दिन पहले कोरोना टेस्ट की किट भी खत्म हो गई थी। और कोरोना जांच भी तकरीबन बंद होने की स्थिति बन गई थी। ऐसे में एम्स प्रबंधन और राज्य सरकार ने केन्द्र पर दबाव बनाया, तब कहीं जाकर विशेष विमान से किट और मास्क भेजे गए।
कोरोना संदिग्धों की जांच के लिए चिकित्सकों से लेकर वार्डब्वॉय तक के लिए विशेष पोशाक की जरूरत होती है, लेकिन यह सिर्फ एम्स और दो-तीन अस्पतालों में ही चिकित्सकों को उपलब्ध कराए गए हैं। महासमुंद और एक-दो जगहों में तो चिकित्सक संदिग्धों की जांच रेनकोट पहनकर कर रहे हैं। इसी तरह विशेष मास्क भी खत्म हो गए हैं, ऐसे में हल्के स्तर का मास्क पहनकर काम चलाया जा रहा है।
शहरों के मुकाबले ग्रामीणों में कोरोना संक्रमण को लेकर जागरूकता ज्यादा देखने को मिल रही है। हाल यह है कि रायपुर, महासमुंद, दुर्ग और बेमेतरा सहित अन्य जिलों में बाहर से आए मजदूरों की जानकारी खुद होकर ग्रामीण, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस को दे रहे हैं। गांव के स्कूलों और पंचायत भवनों में मजदूरों को क्वारंटाइन में रखकर जांच भी हो रही है। कुल मिलाकर अब तक का हाल यह है कि कोरोना छत्तीसगढ़ में पांव नहीं पसार सका है, जो भी मरीज संक्रमित हुए हैं उनमें से 8 में से 7 विदेश से लौटे हुए यात्री हैं। सिर्फ एक व्यक्ति शायद संक्रमित लोगों के संपर्क में आने से कोरोना पीडि़त हुआ है। कुल मिलाकर स्थिति अभी काबू में हैं। ([email protected])
सीएम कब तक सम्हालेंगे?
बस्तर में पत्रकार या पत्रकारों पर दजऱ् करवाया गया मामला ठन्डे बस्ते में डालने के लिए तो सीएम भूपेश बघेल ने कह दिया है, लेकिन कब तक? हर महीने दो महीने में पत्रकारों को छेडऩे के लिए कुछ न कुछ कर ही दिया जाता है, और फिर सरकार के लोग ? शांति करने में लग जाते हैं. कुछ हफ्ते पहले फेक न्यूज़ पर रोक के लिए बनी कमिटी की मीटिंग हुई, तो उसके नाम से एक किस्म से मीडिया को चेतावनी जारी कर दी गयी कि सम्पादकों और मीडिया मालिकों के बारे में जानकारी इक_ा की जाएगी. पूरी बैठक का निशाना पहले से तय था, लेकिन प्रेस नोट बनकर आया तो वह अलग ही था. बैठक में दो मनोनीत पत्रकार भी थे, जिन्हें दिखाए बिना बैठक का प्रेस नोट जरी किया गया. कुल मिलकर पुलिस की हसरत बैठक की खबर से पूरी हो गयी, और बैठक के पत्रकार अपने को ठगा सा महसूस करते रह गए. एक अखबारनवीस ने उलाहना दिया कि कुल्हाड़ी के हत्थे को देखकर पेड़ समझे थे कि हमारा ही हिस्सा है, लेकिन कुल्हाड़ी ने तो पेड़ गिराकर जंगल साफ़ कर दिया।
वह बात जोर नहीं पकड़ पाई, हालाँकि पुलिस बड़ी खुश हुई कि जनसम्पर्क की कमिटी उसका औजार बन गयी. अब यह नया बवाल बस्तर के एक कलेक्टर ने खड़ा कर दिया जो पहले भी ऐसा कर चुके हैं. पहले सीएम के एक कार्यक्रम में खामी निकलकर उसने एक सरकारी इंजीनियर को थाने में बिठवा दिया था. इमेज सीएम की खऱाब हुई कि उनका आतंक है. उस खबर को सामने लाने वाले पत्रकार को इस बार जंगल में पत्तों के मास्क को लेकर फोटो-खबर के बताकर जुर्म दजऱ् करवा दिया कि उसने भीड़ लगवाई फोटो के लिए. अब फिर सीएम को बीच में पढ़कर सरकार की बदनामी को रोकना पड़ा.
इस बार भी शायद कुल्हाड़ी के हत्थे की कुछ लकडिय़ों ने सरकार में बैठे कुछ लोगों को भड़काकर पेड़ कटवाने की कोशिश की. लेकिन जिले सम्हाल रहे अफसर मुख्यमंत्री के मिजाज के खिलाफ जाकर इतनी मनमानी करेंगे, किसी ने सोचा नहीं था. अंग्रेजी समझने वाले जो लोग ऐसी हरकतों के पीछे हैं, उन्हें याद रहना चाहिए की सरकार को अवाइडेबल ब्लंडर्स से बचना चाहिए।
कोरोना से राहत !
छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में कोरोना का डर है, लेकिन यह कहा जाए कि किसी को कोरोना से राहत मिली है, तो आपको आश्चर्य होगा। आश्चर्य में पडऩा स्वाभाविक है, पर राहत मिलने वाली बात भी उतनी ही सही है। दरअसल, कोरोना के दहशत के बीच राज्य सरकार ने पत्रकारिता विवि का नाम बदल दिया। ऐसे संकट के समय में इस तरह के राजनीतिक फैसले की आलोचना भी हो रही है। सोशल मीडिया में कोरोना के बाद दूसरा चर्चित इश्यू पत्रकारिता विवि का नामकरण ही है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ आग में घी डालने का काम यहां के कुलसचिव महोदय ने भी किया। उन्होंने जनता कफ्र्यू के दौरान थाली लोटा बजाने वालों का मजाक उड़ाने के साथ मीडिया की भी खिल्ली उड़ाई। इससे पत्रकारों और वहां पढऩे वाले भावी पत्रकारों को बुरा लगा, तो उन्होंने भी कुलसचिव के पोस्ट के साथ-साथ नाम बदलने के मुद्दे को ट्रेंडिंग टॉपिक बना दिया। इससे सरकार भी असहज हुई है, लेकिन विवि के संबंध में और कोई फैसला लेकर सरकार ऐसे समय में विवाद को बढ़ाने के मूड में नहीं है, लिहाजा कुलसचिव महोदय को कोरोना के कारण फिलहाल राहत मिलते दिख रही है। हालांकि कुलसचिव के विरोधियों का मानना है कि कोरोना का पीरियड 21 दिन का है, यह समय सही सलामत निकल गया तो कोरोन की तरह कुलसचिव के खिलाफ भी गो-गो के नारे बुलंद हो सकते हैं। ([email protected])